रिसते घाव (भाग-२) Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रिसते घाव (भाग-२)

राजीव ने इस्कोन आइकोन रेसीडेंसी के पार्किंग एरिया में कार पार्क की तो उसकी कलाई पर बंधी घड़ी सुबह के चार बजा रही थी । एक ही शहर में रहते हुए भी राजीव को यहाँ तक पहुँचने में पूरा एक घंटा लग गया था । यह रेसीडेंसी शहर की सीमा रेखा के बाहर कुछ सालों पहले ही बनी थी । शहरी सभ्यता के अनुरुप ३०० फ्लैट्स की मध्यमवर्गीय परिवार की तमाम सुख सुविधाओं से युक्त इस्कोन आइकोन रेसिडेंसी के ‘सी’ ब्लॉक की लिफ्ट की तरफ राजीव ने चलना शुरू किया । रागिनी और आकृति उसके पीछे तेज कदमों से चलने लगी ।
दसवीं मंजिल पर पहुँचकर जैसे ही लिफ्ट का ऑटोमेटिक दरवाजा खुला तो सामने ही फ्लैट नम्बर ‘सी – १०१’ के आगे जमा दो चार आस पड़ौसी आपस में बातें करते हुए तीनों आगुन्तकों को देखने लगे । लिफ्ट का ऑटोमेटिक दरवाजा खुलते ही राजीव, रागिनी और आकृति तेज क़दमों से किसी से कुछ बातें किए बिना घबराये से घर के अन्दर दाखिल हो गए ।
राजीव को आया देख श्वेता दौड़कर उससे लिपट गई । राजीव के हाथ श्वेता के सिर को सहला रहे थे और उसकी आँखें सामने बिस्तर पर चिर निंद्रा में समा चुकी अपनी बहन की निस्तेज देह को देखकर गीली हो रही थी । आकृति दौड़कर अपनी बुआ के शरीर से लिपटकर रोने लगी । रागिनी ने चुपचाप जाकर अपनी ननद के पैरों को छुआ और माथे से लगा लिया । आकृति को समझाकर उसने चुप कराया और जाकर श्वेता को सम्हालने को कहा । श्वेता को सांत्वना देकर राजीव ने उसे समझाकर हिम्मत रखने को कहा और आकृति को कुछ देर उसके पास बैठने को कहकर वह अपनी बहन की मृतदेह के नजदीक गया । उससे उम्र में दो साल बड़ी रही सुरभि अपनी बंद हो चुकी आँखों से आज भी जैसे एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए विचारशून्य होकर राजीव से कुछ पूछ रही थी । राजीव आज तक सुरभि की प्रेम और स्नेह से ओतप्रोत पर उदास आँखों का सामना करने से कतराता रहा था । आज उसी एक उदासी को सदैव के लिए अपनी बंद हो चुकी आँखों की पलकों में छिपाकर सुरभि ने जैसे राजीव को अपने प्रश्नों के घेरे से सदा के लिए मुक्त कर दिया था । राजीव कमरे में लगी कुर्सी सुरभि के सिरहाने खिसकाकर वहीं बैठ गया । उसकी आँखों से आँसू रह रहकर बह रहे थे और उन्हीं अश्रुधारा में कहीं पुरानी बातें मन के कोने से पिघलकर बहकर आँखों के माध्यम से चेहरे पर उमड़कर उसकी दिमाग की नसों को तंग बना रही थी ।
‘भाई साहब, आप आ ही गए है तो अब आगे क्या और कैसे करना है मिलकर विचार कर लीजिए ।’ तभी राजीव के कानों में मोबाइल पर सुना वही पुरुष स्वर गूंजा । राजीव की तन्द्रा भंग हुई और वह अपनी जगह से खड़ा हो गया । राजीव सुरभि और श्वेता के छह महीने पहले इस फ्लैट में रहने आने के बाद एक या दो बार ही यहाँ रागिनी के साथ आया था और दोनों के कुशल होने की उड़ती मुलाकात लेकर शीघ्र लौट भी गया था । अपनी बहन के आस पड़ौसियों से उसका कोई खास परिचय न था । वह अपने सामने खड़े अपने ही हमउम्र उस सज्जन का इस विकट और दुखद परिस्थिति में सहयोग करने के लिए धन्यवाद देते हुए हाथ जोड़ते हुए आभार व्यक्त करने लगा ।
‘अरे ! कैसी बात करते है आप भाई साहब । मैंने तो अपना पड़ौसी धर्म ही निभाया है ।’ राजीव के अपने सामने जुड़े हुए हाथों को नीचे झुकाते हुए उस सज्जन ने बड़ी ही शालीनता से जवाब दिया ।
‘बहुत ही सुलझी हुई महिला थी सुरभि जी लेकिन किसी से ज्यादा घुलती मिलती नहीं थी और हमेशा ही किसी गहरे विचार में खोई हुई सी लगती थी । वह अचानक से ऐसा कुछ कर बैठेंगी यह तो सपने में भी नहीं सोचा था ।’
उस सज्जन की बात सुनकर राजीव ने चुप रहना ही मुनासीब समझा ।
‘डॉक्टर अभी कुछ देर पहले ही उनकी डेथ की पुष्टि करके गए है । नींद की गोलियों के ओवर डोज की वजह से सुरभि जी की मृत्यु हुई है ।’ राजीव को चुप देखकर उस सज्जन ने आगे कहा ।
‘व्हाट ?’ राजीव कुछ समझ नहीं पा रहा था कि इस अप्रत्याशित घड़ी में वह अपनी क्या प्रतिक्रिया दे । एक ही शहर में होने के बावजूद भी वह मन से कभी भी अपनी बहन से जुड़ न पाया था और फिर आज अचानक से उनकी मौन विदायी राजीव के मन को एक गहरे सदमें से भर गया ।
‘वैसे तो यह पुलिस केस बनता है पर डॉक्टर मेरे पहचान वाले है सो यह बात दबाकर रखी हुई है । अब आप देख लीजिए, आगे क्या करना है ? मैं थोड़ी देर में वापस आता हूँ, श्वेता के जॉब से आने के बाद से यहीं हूँ ।’ कहते हुए वे सज्जन वहाँ से जाने को हुए ।
‘वैसे भी इस फ्लोर पर सुरभि जी और मेरे फ्लैट ही खुले हुए है । बाकि के दोनों फ्लैट तो अभी भी बंद है और किसी परिवार के आने की राह देख रहे है तो घबराइये मत क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यों हुआ वगैरह प्रश्न नहीं सतायेंगे आपको ।’ सहसा जाते हुए पीछे मुड़कर उन सज्जन ने फिर से राजीव को एक छुपी हुई सी सलाह देते हुए कहा ।
राजीव उन्हें जाता हुआ देखता रह गया । जाते हुए वे सज्जन राजीव के मन में ढ़ेर सारी आशंकायें उड़ेलते गए । राजीव कुछ देर हतप्रद सा खड़ा रहा कुछ सोचता रहा । सहसा आकृति ने पास आकर उसके हाथ में पानी का गिलास थमाया तो उसे जैसे होश आया । पानी पीने के बाद राजीव श्वेता को लेकर सुरभि की मृतदेह के पास से उठकर हॉल में आकर बैठ गया ।