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रिसते घाव (भाग- ५)

श्मशान से लौटने के बाद राजीव नहाधोकर उसी कमरे में आकर बैठ गया जहाँ सुरभि का पार्थिव शरीर अंतिम समय रखा गया था । खाली पड़े बेड पर सूनी हो चुकी आँखों से नजर पड़ते ही उसकी आँखों की पलकें भींग गई । अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ाकर वह तकिये पर एक गहरी संवेदना के साथ फेरने लगा ।
‘मुझे माफ कर दो दीदी ।’ वह धीमे से बुदबुदाया और फिर आँखों से बह निकली अनवरत अश्रुधारा को हाथ आँखों के पास ले जाकर अपनी शर्ट की बांह से पोंछने लगा । डबडबाई हुई आँखों के सामने वर्षों से मन में फांस की तरह चुभी हुई घटना ताजा होकर मन के घावों को कुरेदने लगी ।
बी. एस. सी. करने के बाद एम. एस. सी. में रागिनी से परिचय होने के बाद राजीव अपने अन्दर एक अजीब तरह का बदलाव महसूस करने लगा था । वैसे तो रागिनी से उसका परिचय बी. एस. सी. सेकेण्ड ईयर के दौरान ही हो गया था लेकिन उस वक्त वह परिचय एक औपचारिकता तक ही सीमित था । राजीव के एम. एस. सी. के अंतिम वर्ष में पहुँचने पर दोनों के परिचय बीच रही औपचारिकता दोस्ती के दायरों को तोड़कर एक मंजिल को पाने की राह पर मुड़ चुकी थी । रागिनी राजिव्के ख्वाबों में आकर उसकी रातों की नींद को चुराने लगी थी । राजीव अच्छी तरह से जानता था कि जिस राह पर एक मंजिल को पाने के लिए वह चल पड़ा है वहाँ तक पहुँच पाना लगभग नामुमकिन है लेकिन उम्र के एक दायके में इन्सान बॉयोलाजिकली अपने अन्दर कुछ इस तरह के परिवर्तन महसूस करने लगता है कि वर्षों से एक माता पिता के संबन्ध की हूँफ से निकलकर जवानी के प्रेम के जुनून में अपने सम्बन्धों को लेकर थोड़ा सा स्वार्थी हो जाता है । कुछ यही राजीव के संग भी हो रहा था । परिवार में प्रेम को लेकर एक बुरी घटना घट जाने के बाद राजीव अच्छी तरह से जानता था कि रागिनी और उसके प्रेम सम्बन्ध को शादी की मोहर परिवार की सहमति से कभी नहीं लग पाएगी । अपनी जिन्दगी के इन्हीं क्षणों में यकायक उसे सुरभि याद आई थी और उसे अहसास हुआ था कि किस खिंचाव के चलते सुरभि ने परिवार के मान सम्मान की परवाह न कर अपना स्वार्थ पहले देखा था । घर में घट चुकी एक घटना को फिर से दोहरायें इतना नासमझ तो वह न था ।
प्यार को लेकर राजीव के समर्थन में केवल एक ही बात थी और वह थी रागिनी का अच्छा पढ़ा लिखा होना । राजीव के पिता पण्डित रामप्रसाद शुक्ला लड़कियों की शिक्षा को बहुत महत्त्व देने वालों में से थे । राजीव ने अपने पिता की इसी बात का फायदा उठाते हुए रागिनी को अपनी जीवनसंगिनी बनाने की बात घर पर रखी । उसके बाद पूरे घर में असहनीय सी शान्ति प्रसर गई । अपने पिता के सामने कुर्सी पर बैठे हुए राजीव अपने पिता के चेहरे के पल पल बदल रहे भावों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था । बाप बेटे के बीच मूक दर्शक बनी बैठी माँ जैसे एक फैसले के आने का इन्तजार कर रही थी । राजीव से जब उनकी नजर मिली तो राजीव ने उनकी आँखों में एक अजीब सा दर्द महसूस किया ।
‘जमाना बदल रहा है और जमाने के साथ माँ बाप न बदले तो बच्चे किस हद तक जा सकते है यह तो तेरी बहन ने अच्छी तरह समझा दिया है ।’ कहते हुए पण्डित रामप्रसाद अचानक चुप हो गए । राजीव की नजरें उनकी आँखों पर ठहरी हुई थी । उसने महसूस किया कि प्रेम के उन्माद में आकर बहन द्वारा दिए गए घाव अब भी उनके मन को कुरेद रहे थे । उसे अपनी बात उनके समक्ष रखकर पछतावा हो रहा था लेकिन रागिनी के बारें में बात करना भी तो जरूरी था ।
‘आवेश में आकर कुछ ऐसा वैसा न कर बैठना जिसकी वजह से अब इस उम्र में हमें फिर से जिल्लत उठानी पड़े । लड़की अपनी जाति से न है लेकिन पढ़ी लिखी है तो समझदार ही होगी । तू एक बार उसके परिवार वालों से मिलवा दे । ठीक जान पड़ा तो करवा दूँगा तेरी शादी ।’ राजीव अभी कुछ सोच ही रहा था कि पण्डित रामप्रसाद अपनी बात पूरी कर अपनी जगह से खड़े हो गए । राजीव ने एक क्षण अपने पिता की ओर देखकर दूसरे ही क्षण माँ की आँखों में समायें एक दर्द को पढ़ने की कोशिश की । अपने पिता का अपनी आशा के विपरीत जवाब पाकर चौंक गया ।
‘पापा, रागिनी बेहद समझदार है । उसके अपने परिवार से जुड़ने से अपना परिवार सुखों से भर जाएगा ।’ खुशी के मारें राजीव के मन में जो आया वह बोल गया ।
‘राजीव! कब से आवाज दे रही हूँ । कहाँ खो गए हो ?’ तभी अपने कन्धे पर एक स्पर्श महसूस करते हुए उसके कानों में रागिनी का स्वर पड़ा ।
‘हं ....कुछ नहीं । पता नहीं क्यों इस वक्त पिछली सारी बातें याद आ रही है ।’ कहते हुए राजीव ने अपनी गीली आँखें पोंछ डाली ।
‘बीता हुआ समय वापस नहीं आता और समय के साथ पीछे छूट गई बातों और इन्सानों को भी मन पर पत्थर रखकर भूलना पड़ता है राजीव ।’ रागिनी ने राजीव की आँखों में झाँका ।
‘सबकुछ भूल ही तो गया था । चाहकर भी माफी न माँग सका दीदी से और वह चुपचाप अपने गम अपने साथ लेकर चली गई । काश ! उस वक्त मुझमें इतनी समझ होती कि मैं दीदी के दिल में किसी के लिए उठते प्यार को समझ पाता और उनका साथ दे पाता ।’ कहते हुए राजीव की आँखें एक बार फिर से गीली हो गई ।
‘राजीव । उस मामले में तुम्हारी कोई गलती न थी । सब समय समय की बात है ।’ रागिनी राजीव को सांत्वना देने लगी ।
‘अफसोस तो इस बात का है कि प्रेम की बात को लेकर पापा ने जो समझदारी हम दोनों के मामले में दिखाई वही दीदी की प्यार वाली बात पर भी दिखाई होती तो आज उनका समय कुछ और ही होता ।’ राजीव अब भी बीती बातों के जाल में से अपने को छुड़ा नहीं पा रहा था ।
‘हिम्मत रखो राजीव । इस वक्त तुम हिम्मत हार जाओगे तो श्वेता को कौन सम्हालेगा ? अब उसी में जीजी का अक्स देखकर उसकी जिन्दगी संवारकर अपनी भूलों का प्रायश्चित कर लो ।’ रागिनी ने राजीव के सामने बेड पर बैठकर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे उसके भावनात्मक द्वंद से बाहर निकालने की कोशिश करने लगी ।
‘पापा, चाय ।’ तभी आकृति कमरे में चाय के दो कप लेकर आई । रागिनी ने दोनों कप आकृति के पास से अपने हाथ में ले लिए और उसे वहाँ से जाने का इशारा कर एक कप राजीव के हाथ में थमा दिया ।
राजीव चुपचाप कप हाथ में लेकर कुछ सोचते हुए चाय का घूंट गले से नीचे उतारने लगा ।

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