रिसते घाव (भाग-३) Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रिसते घाव (भाग-३)

कैसे हो गया यह सब ?’ कुछ देर चुप रहने के बाद राजीव ने श्वेता की ओर देखा ।
‘मामाजी, आज जब रात को अपनी जॉब शिफ्ट पूरी कर घर पहुँची तो पाया कि मम्मी के कमरे की लाईट चालू है और वो गहरी नींद में सो रही है । रोज तो वे मेरे आने तक अक्सर बारह बजे तक जागती रहती है । मैं लाईट बंद करने उनके कमरे में गई तो पता नहीं क्यों मुझे कुछ अजीब सी अनुभूति हुई ।’ कहते हुए श्वेता सिसकियाँ लेने लगी ।
‘हिम्मत रख ।’ राजीव ने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसे ढाढ़स बंधाया ।
‘मम्मी अक्सर करवट लेकर सोती है लेकिन उन्हें बिस्तर पर सीधे अस्तव्यस्त हालत में सोया देख मुझे कुछ शंका गई । उनके पास गई तो महसूस किया की उनकी साँसे ही नहीं चल रही थी । हड़बड़ाहट में समझ ही न आया कि क्या करूँ? फिर कुछ सोचकर पहले मनीष अंकल को बुला लाई ।’
‘वही जो अभी यहाँ से गए ?’ राजीव ने श्वेता की बात सुनकर पूछा ।
‘हाँ, वे अपने बेटे और बहू के साथ यहाँ रहते है । पर अभी अकेले है । उनके बेटे की पिछले महीने ही शादी हुई है और वे लोग हनीमून टूर पर बाली गए है ।’ श्वेता ने राजीव को अपने पड़ौसी का परिचय देते हुए कहा ।
‘और मनीष जी की पत्नी ?’ राजीव ने श्वेता की ओर कुछ सोचते हुए देखा ।
‘मम्मी बता रही थी कि उनकी पत्नी की डेथ पिछले साल हो गई ।’ श्वेता ने धीमे से जवाब दिया ।
‘अच्छा ! तू जब ऑफिस गई तब तेरी मम्मी का मूड कैसा था? आय मीन उदास थी या खुश थी?’ राजीव घटना के पीछे का कारण खोजने की चेष्टा कर रहा था ।
‘मम्मी यहाँ रहने आने के कुछ दिनों बाद से कुछ परेशान सी रहा करती थी । लाख पूछने पर भी कोई न कोई बहाना बनाकर टाल ही जाती थी । मैं अक्सर दोपहर को डेढ़ बजे ऑफिस के लिए निकलती हूँ और मम्मी के साथ खाना खाकर ही जाती हूँ । आज उन्होंने सुबह का खाना न खाया । कह रही थी उपवास रखा है और जब मैं जाने लगी तो मेरे सिर पर बड़े ही लाड़ से ऐसे हाथ फेरा जैसे अब फिर कभी .....।’ दोपहर का वाकया याद करते हुए श्वेता रोने लगी ।
‘आकृति .... जरा एक गिलास पानी लाना ।’ राजीव ने आकृति को आवाज देते हुए श्वेता के लिए पानी लाने को कहा ।
राजीव ने दीवार पर सामने लगी घड़ी पर नजर डाली । इस वक्त सुबह के पाँच बज रहे थे । तभी आकृति पानी का गिलास लेकर आ गई और श्वेता पास ही बैठ गई । श्वेता ने दो घूंट पानी गले से नीचे उतारा और फिर से सिसकियाँ लेने लगी ।
‘दीदी, हिम्मत रखों ।’ अपने से पाँच साल बड़ी श्वेता को समझाते हुए आकृति खुद उससे लिपटकर रोने लगी ।
सहसा राजीव अपनी जगह से खड़ा हो गया और सुरभि के कमरे में चला गया । रागिनी अभी भी सुरभि के पैरों के पास ही उदास सी बैठी हुई थी । उसकी आँखें गीली थी । डबडबाई आँखों से उसने राजीव की ओर देखा । राजीव ने अपनी आँखों में उभर आये आँसुओं को पोंछा और फिर सुरभि के निस्तेज हो चुके चेहरे को गौर से देखने लगा । बचपन से लेकर बीस साल तक का दोनों भाई बहनों की हँसती खेलती जिन्दगी का सफर और फिर एक लम्बी जुदाई के बाद पिछले पाँच सालों से फिर से धीमे धीमे जुड़ रहे सम्बन्धों की स्मृतियों में राजीव डूबने उतरने लगा ।