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रिसते घाव - (भाग-१३)


अमन के चले जाने के बाद श्वेता से थोड़ी बहस होने से राजीव का मन अशान्त हो गया था । श्वेता द्वारा सुरभि को लेकर कही बात पर उसे यकीन नहीं आ रहा था । अब तक वह अपनी बड़ी बहन को त्याग की मूर्ति मानकर सम्मान की नजरों से देख रहा था । अचानक से आये इस तूफान ने जैसे उसकी मन की स्थिति को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया । अपने विचारों के द्वंद में घिरा हुआ वह चिन्तातुर होकर कुछ सोचते हुए वहीं सोफे पर बैठ गया था । श्वेता अपनी बात कहकर अन्दर कमरे में चली गई थी । रागिनी नाश्ते की प्लेट्स उठाकर रसोई में चली गई थी और आकृति रसोई में उसकी मदद को जुट गई थी ।
इन्सान की अपनी निजी जरूरतें भली प्रकार से पूरी होती रहे तो उसी तरह की जरूरतों की कमी का अंदाजा किसी ओर की जिन्दगी को लेकर महसूस नहीं किया जा सकता । राजीव ने सुरभि का परिवार बिखरने के बाद कभी उसे लेकर इस तरह विचार भी नहीं किया था कि जिन्दगी में अपने साथी के बिना जिन्दगी रुकती तो नहीं लेकिन अधूरी जरुर रह जाती है । लगभग उसकी ही हमउम्र बहन अपनी जिन्दगी में आये अधूरेपन को पूरी तरह से स्वीकार कर जीती रही और किसी ने उसकी पीड़ा को समझकर सुलझाने की पहल भी नहीं की । यही कुछ सोचते हुए राजीव का सिर भारी हुआ जा रहा था । परेशान होकर वहां से उठकर वह अपने बेडरूम में चला गया ।
रागिनी की नजर बेडरूम की तरफ जाते राजीव पर पड़ी तो वह भी उसके पीछे पीछे उसे परेशान जान चल पड़ी । रागिनी अच्छी तरह से वाकिफ थी कि जब भी राजीव परेशान होता तो बेडरूम में जाकर लेट जाता । अभी असमय उसे बेडरूम में जाता देख वह उसकी मनोदशा समझ गई ।
‘बहुत ज्यादा मत सोचो । जो हो चुका और जो हो रहा है उस पर तुम्हारा कोई कन्ट्रोल नहीं है ।’ रागिनी ने राजीव के सिरहाने बैठते हुए बात शुरू की ।
‘कहीं न कहीं मेरी जिम्मेदारी तो बनती है न । मैं यह कैसे भूल गया कि उम्र के एक दौर में जो जरूरतें एक पुरूष शरीर की होती है वही स्त्री शरीर की भी तो होती है ।’
‘कहना क्या चाहते हो राजीव ?’ रागिनी राजीव के कहने का मर्म न समझ सकी ।
‘दीदी और मेरी उम्र में मात्र दो तीन साल का ही तो फर्क था । आज उम्र के इस पड़ाव में आकर जब में शरीर की एक जरूरत को लेकर इतना व्याकुल हो जाता हूँ तो वही व्याकुलता दीदी ने भी तो अनुभव की होगी न? त्याग की मूर्ति का आवरण चढ़ाकर मजबूर होकर जीने को विवश कर देना ही तो अपराधों को जन्म देता है न ?’ राजीव ने कहते हुए अपनी आँखें बंद कर ली ।
‘पागल हो गए हो राजीव ? अपनी बहन को लेकर ये कैसी बातें कर रहे हो ?’ रागिनी ने कुछ समझते हुए राजीव के माथे पर हाथ फेरा ।
‘सच कह रहा हूँ । क्या गलत है ? जिन्दगी की बाकि जरूरतों की तरह सेक्स भी तो एक जरूरत ही होती है । अगर शरीर सम्बन्ध गलत होता तो ईश्वर इस जरूरत किसी भी शरीर में पैदा ही नहीं करता । दरअसल हम ही ने इसका दमन कर इसे और अधिक उत्तेजित बना दिया है । सही वक्त पर जो दीदी पर थोड़ा सा दबाव बनाकर उन्हें फिर से शादी कर लेने के लिए मना लिया होता तो शायद आज उनकी और श्वेता की जिन्दगी किसी और मोड़ पर ही होती ।’ राजीव का गला भर आया कहते हुए ।
‘जो हो चुका उसे भूलकर अब श्वेता के बारें में सोचो ।’
‘सोचना क्या है । वह ठानकर ही बैठी है अमन के संग जिन्दगी गुजारने को तो ठीक है जहां रहे खुश रहे दोनों ।’ राजीव के स्वर में एक हताशा छाई हुई थी ।
‘वे लोग शादी किए बिना साथ रहना चाहते है । शादी कर रहे तो कुछ गलत नहीं है ।’ राजीव की बात सुनकर रागिनी ने विरोध जताया ।
‘नासमझ है अभी दोनों । थोड़े दिन साथ रहेंगे तो शादी की जरूरत और महत्ता को भी समझ जाएंगे ।’ कहते हुए राजीव के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट छा गई ।
‘मतलब तुम श्वेता को जाने दोगे अगर वह जाना चाहे तो ?’ रागिनी ने प्रश्नभरी नजर राजीव की तरफ डाली ।
तभी बेडरूम के दरवाजे पर दस्तक हुई । रागिनी ने वहीं बैठे बैठे मुड़कर देखा तो श्वेता दरवाजे पर खड़ी थी ।
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