दूर
बहुत
चला आया हूं
तुझसे
लेकिन
अकेला नहीं आया
तेरी यादें
अपने
साथ लाया हूूं
दूर
बहुत
चला आया हूं
तुझसे
सीमा पर
खडा होता हूूं
जब
देश का प्रहरी
बनकर
दूर
जहां तक
नजर जाती है
रेगिस्तान मे
कोई नजर नही आता
सिर्फ
मेरे सिवाय
ऐसे मे
तेरी याद आकर
रूलाती है
तडपाती है
दिल करता है
पंख लगाकर
तेरे पास
उडा
चला आउ
लेकिन
मातृभूमि की
रक्षा का दायित्व
पैरों मे
बेडियां डाल देता है
दूर
बहुत
चला आया हूं
तुझसे
दूरी हो
आज
चाहे जितनी
हमारे बीच
रह नही सकेगी
यह दूरी
हमेशा
आऊंगा
एक दिन
लौटकर
तेरे पास
करना
तुम
इन्तजार
मेरा
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लाइक
;;--------
खुशी
की बात हो
तो
लाइक
दुख
की बात हो
तो
भी
लाइक
हाडमॉस
का
मानव
ई मे
तब्दील
हो गया है
इसलिए
उसके
दिल मे
संवेदनाएं
नही उपजती
ई मानव
सुख
दुख
मे अंतर
नहीं कर पाता
मशीनी युग
ने
मानव को
निष्ठुर
बना- दिया है
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हवस
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कफन
मे
जेब नहीं होती
हर आदमी
जानता है
खाली हाथ
इस संसार मे
आया है
और
खाली
हाथ जाना है
फिर भी
जर जमीन की
हवस
मिटती नही
और और
हर पल और
पाने की
तिकडम
मे
रहता
है
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डर
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धम धम
की
आवाज ने
चौका दिया
लगता है,
छत पर
कोई है
इन दिनों
शहर मे
चोरियां
भी ज्यादा
हो रही थी,
पत्नी बोली,
लगता है,
छत पर
चोर है,
देखो
मै
दरवाजा खोलते हुए
बोला,
तुम भी आ
जाओ
ऑगन मे जाकर,
मै बोला
कौन है,छत पर?
अरे ऐसे नही,
पत्नी बोली,
चोर चोर
जोर से
हल्ला मचाओ
पडोसी
सतर्क हो जायेगे
मै जोर से बोला
चोर चोर
अरे जोर से चीखो,
मिमिया रहे हो
कौन सुनेगा
ताकत लगाकर
जोर से चीखो,
और
मै पूरी ताकत
लगाकर
जोर से चीखा
चोर चोर चोर
और
तभी पत्नी की
कर्कश आवाज
सुनाई पडी
चीख
कयों रहे हो?
हडबडाकर
मेरी
ऑखे
खुल
गई
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कुछ ऐसा करो
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मै
कल
नही रहूंगा
यह शाश्वत
सत्य है
लेकिन
धरती, आकाश
सूरज,
चॉद-तारे
कल भी थे
आज भी है
और
मेरे
ना रहने के
बाद भी
रहेगें,
मानव
इस धरती पर
न जाने
कहां से
आता है
और
अपना जीवन जीकर
वापस
चला जाता है,
रह जाती है,
सिर्फ
उसकीं यादें
समय गुजरने के
साथ
यादों पर
वक्त की
धूल
जमती जाती है
और
अपने ही
उसे
भूल जाते है
जो
अपने कर्मों से
जननायक
बन जाते है
ऐसे महापुरुषों
का नाम
इतिहास के
पन्नों मे,
दर्ज हो जाता है
और
उनकी यादें
समय के
साथ साथ
चलती रहती है,
पशु पक्षियों, कीडे मकोड़े
की तरह
जीना भी
कोई
जीना है
मानव योनि मे
जन्म
लिया है,तो
ऐसे
कर्म करो कि
तुम्हारा
नाम भी
इतिहास के पन्नों मे
दर्ज हो जाये
और
तुम्हारे जीवन से भी
लोग
प्रेरणा लेते रहे
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-नारी
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उस लडकी को
पहली बार
मैंने
ट्रेन मे
चढते हुये देखा था
सॉवले रंग के
बावजूद
उसका व्यक्तित्व
बेहद आकर्षक था
सुन्दरता की मूरत
चाहे, वह न हो
लेकिन
उसमे कशिश थी,उसके
व्यतित्व से स्वाभिमान झलकता था
उसकी जुबां नहीं, ऑखों
बोलती थी,वह
नजरें झुकाए स्टेशन आती
और शालीनता से
,अकेली खडी रहकर
ट्रेन का
इन्तजार करती
और
ट्रेन आने पर
उसमें चढ जाती
वो भी समय था
जब औरतें
घर की चार दीवारी मे
कैद रहती थी
घर से बाहर
किसी पुरुष के साथ ही
कदम रखती थी
लेकिन
वह
आधुनिक भारत की
शिक्षित नारी थी
जो मानती थी,
बेटा बेटी मे
कोई
अंतर नही है
आदमी जो काम कर सकता है,
उसे करने की सार्मथ्य
औरत मे भी है
पुत्र ही नही, पुत्री भी
मॉबाप की देखभाल, सेवा
कर सकती है
वह लडकी
अपने मॉबाप की
इकलौती संतान थी,
जो दुर्घटना मे
अपाहिज हो चुके
मॉबाप की,
नौकरी करके सेवा
कर रही थी
उसके बारे मे जानकर
मेरा सिर श्रद्वा से
भारतीय नारी के
सम्मान मे
झुक गया
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बच्चे
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मेरे दो पोते है
जब वे
घर मे होते है
घर
रणभूमि या
कुश्ती का अखाड़ा
नजर आता है
दोनों
धमाचौकड़ी मचाकर
पलंग के चद्दर तकिये
उल्ट पलट देते है
सोफे के कवर नीचे फेंक देते है
खिलौने अलमारी मे से निकालकर
कमरे में चारों तरफ फेंक देते है
नाव जहाज बनाने के लिए
कागज फाडऩे रहते है
टीवी चलाकर नाचते गाते है
कृष्ण बलराम सिरियल का डॉयलॉग
"आ भॉजे गले लग जा"
बोलकर कुश्ती लडते है,
उनका हुडदंग, शोरगुल सुनकर
परेशान हो जाता हूं,
तब डॉट देता हूं
लेकिन
उन पर मेरी डॉट का
असर ज्यादा देर नहीं रहता
पोतों की शैतानी देखकर
पत्नी कहती है,
"ऐसे बच्चे किसी के नही देखे,
घर को कबाड़ खाना बना दिया है
बच्चे जब ननिहाल चले जाते है
तब घर मे सन्नाटा पसर जाता है,
तब पत्नी कहती है,
बच्चों के बिना
घर
कितना खाली खाली,
सूना सूना सा लग रहा है,
तब मैं कहता हूं,
बच्चों को बुला लो
और पत्नी के हाथ
फोन की तरफ
बढ जाते है
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इन्तजार
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बलम
परदेश जाने से पहले
जल्दी,
लौट आने का वादा
तुमने, मुझसे किया था,
दिन पर दिन बीते
बदल गये मौसम
रितु आ गई सावन की,
सावन आने पर,
चलने लगीं हवा पुरवाई,
नभ मे छाने लगी काली धटाये
रिमझिम बरसने लगा पानी,
प्रकृति ने ली अंगडाई
धरती दुल्हन सी
सज संवर गई
छायी चारों ओर हरियाली
वन उपवन मे कोयले कूकने लगी
फूलों पर रस के लोभी
भौरे मंडराने लगे
ऐसी मदमाती ऋतु आने पर
परदेश गये सखियों के साजन लौट आये
तुम परदेश जाकर भूल गये अपना वादा
न तुम आये, न संदेश
मै प्रेम दीवानी,
तेरे प्यार मे बन विरहणी
बैठी हूं,
राह तकती
तेरे इन्तजार
मै