रिसते घाव (भाग १०) Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रिसते घाव (भाग १०)

सुबह के दस बज रहे थे । रागिनी रसोई में सुबह के खाने की तैयारी में जुटी हुई थी । राजीव आज जल्दी ही ऑफिस को निकल चुका था । आकृति थोड़ी देर पहले ही कॉलेज जाने को निकल चुकी थी ।
श्वेता अभी भी नींद के आगोश में समाई हुई थी । रागिनी का ध्यान बार बार थोड़ी देर से श्वेता के मोबाइल पर बार बार आ रहे मैसेज की वजह से रही आवाज की तरफ जा रहा था । रागिनी श्वेता के ऑफिस से आने के बाद से उसके व्यवहार को लेकर आंशकित सी थी । न जाने क्यों उसे महसूस हो रहा था कि श्वेता उससे कुछ छिपा रही है । उस पर अब बार बार उसके मोबाइल पर आ रहे मैसेज की आवाज सुनकर उसकी शंका को बल मिल रहा था । तभी वह कुछ सोचकर उसके कमरे में गई । श्वेता बड़े ही आराम से अभी भी सो रही थी । रागिनी ने उसके तकिये के पास रखा मोबाइल अपने हाथ में ले लिया । वह उसके मोबाइल पर बार बार आ रहे मैसेज चैक करना चाह रही थी लेकिन मोबाइल लॉक होने की वजह से वह अपनी शंका का समाधान नहीं कर पा रही थी । वह कुछ सोचते हुए मोबाइल वापस रखने जा ही रही थी कि एक लम्बी रिंग के साथ उसके मोबाइल स्क्रीन पर झलक उठा ।
‘अमन प्रधान’ मोबाइल स्क्रीन पर झलकते नाम को पढ़ते हुए वह धीमे से बुदबुदाई और शीघ्र ही मोबाइल लेकर कमरे से बाहर निकल गई ।
रागिनी को अपने मन में उठ रही शंका अब सच साबित होती नजर आ रही थी । उसने मोबाइल पर अपनी ऊँगली घुमाई और कॉल जोड़ लिया ।
‘गुड मार्निग स्वीटी !’ एक मदहोशभरी आवाज सुनकर रागिनी के मन में उठ रहे सवालों का जवाब मिल गया । जवाब में कुछ और जानने के लिए उसने मोबाइल के पास अपना मुँह ले जाकर एक लम्बी साँस छोड़ी ।
‘अभी तक सो रही हो क्या ? कितने मैसेज किए, जवाब तो दो ।’ अमन ने बात आगे बढ़ाई ।
रागिनी कुछ न बोली, चुपचाप सुनती रही ।
‘डार्लिंग ! अब नहीं रहा जाता । तुम बात न कर सको तो मैं आ जाता हूँ बात करने ।’
‘श्वेता सो रही है । जो भी बात करना हो वह करने शाम के सात बजे आ जाना । श्वेता के मामा शाम को मिलेंगे ।’ रागिनी से अब नहीं रहा गया और उसने अमन को दो टूक सा जवाब देकर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया । कमरे में जाने को वह जैसे ही पीछे मुड़ी श्वेता उसके पीछे खड़ी हुई थी । रागिनी ने उसकी परवाह किए बिना एक छुपे हुए गुस्से के साथ उसका मोबाइल उसके हाथ में थमा दिया ।
‘ये कोई तरीका हुआ मामी किसी की बात चोरी से सुनने का ? आपको अगर शंका थी ही तो मुझसे बात कर सकती थी ।’ श्वेता को रागिनी का अमन से इस तरह बात करना पसंद नहीं आया ।
‘पूछा तो था पर तूने नहीं बताया तो मैंने अपना तरीका अजमा लिया ।’ रागिनी ने उसी अंदाज में श्वेता को जवाब दिया ।
‘कुछ बातें मेरी अपनी जिन्दगी की है । जरुरी नहीं कि सारी बातें आपको बताऊं ।’ श्वेता के चेहरे पर अब भी गुस्सा झलक रहा था ।
‘जरुरी नहीं लेकिन सुरभि दीदी के जाने के बात तू अब हमारी जिम्मेदारी है । तू क्या करती है ? कहाँ जाती है ? यह सब जानना मेरे लिए जरुरी है ।’ रागिनी ने पूरे हक से श्वेता को जवाब दिया ।
‘मम्मी के रहते अगर इतनी परवाह की होती तो शायद आज यह दिन आता ही नहीं ।’ बीती बातें याद करते हुए श्वेता के चेहरे पर एक कड़वाहट छा गई । उसकी बात सुनकर रागिनी कुछ ढ़ीली पड़ गई । अपने पति और ननद के रिश्तों के बीच रही शुष्कता से वह अच्छी तरह से परिचित थी ।
‘श्वेता, जो कुछ हो चुका उसे कुरेदने से कोई फायदा नहीं बेटी । मैं तेरे और अमन के सम्बन्धों के विरुद्ध नहीं हूँ लेकिन परिवार का विश्वास साथ लेकर चलने से बहुत सी कठिनाईयाँ आप ही हल हो जाती है ।’ रागिनी ने श्वेता को समझाते हुए कहा ।
‘मैं आज सबकुछ बताने वाली ही थी लेकिन आपने ही शायद अपनी धीरज खो दी ।’ कहते हुए श्वेता वहाँ से जाने लगी ।
‘क्या बताने वाली थी ? कौन है ये अमन ?’ रागिनी ने उसे टोका ।
‘अमन और मैं साथ नौकरी करते है । एक दूसरे से प्यार करते है और अब साथ रहना चाहते है ।’ श्वेता ने पीछे मुड़कर जवाब दिया ।
‘शाम को बुला ले उसे घर पर । देख लेंगे कैसा लड़का है ।’ रागिनी ने उसे प्यार से कहा ।
‘आप यह बात इतनी सरल तरीके से लेंगी कभी सोचा नहीं था ।’ श्वेता ने जवाब दिया और रागिनी से लिपट गई ।
‘एक उम्र के बाद माँ बाप को बच्चों का दोस्त बन जाना चाहिए और तू अभी जिस प्यार की बात कर रही है उसी प्यार से तेरे मामा और मेरी जिन्दगी की शुरुआत हुई थी । प्यार करना गलत नहीं है लेकिन उसे छिपाना गलत है ।’ रागिनी ने श्वेता के बालों को सहलाया और उसका माथा चूम कर वहाँ से चली गई ।
श्वेता अचानक से रागिनी का बदला हुआ वर्तन देखकर मन ही मन एक आश्चर्यचकित होकर खुश भी हो रही थी । वहीं सोफे पर बैठकर उसने मोबाइल पर आये अमन के मैसेज को पढ़ना शुरू किया और एक एक कर जवाब देने लगी ।