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इंसानियत

यह प्रसंग मेरे बाल्यकाल की एक सच्ची घटना पर आधारित है। मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता था। मैंने उत्तरप्रदेश पॉलिटेक्निक संयुक्त प्रवेश परीक्षा हेतु आवेदन किया था। मैं घर से बाहर रहकर पढ़
रहा था। पॉलिटेक्निक संयुक्त प्रवेश परीक्षा में आवेदन के बाद परीक्षा तिथि तय हो गयी थी।
मैं घर से दूर अकेला ही मामा जी के दोस्त के साथ पढ़ रहा था। परीक्षा वाले दिन उनका भी एग्जाम था। अब मैं बहुत असहज था कि मेरे साथ कौन जाएगा। परीक्षा केंद्र समय से मिलेगा भी या नही। मैं पहुँच भी पाऊंगा कि नहीं। कैसे जाऊँगा? बहुत सारे प्रश्न मुझे असहज कर रहे थे। परीक्षा के दिन मैं सुबह बाकी दिनों से जल्दी उठा। तैयार होकर कुछ पढ़ाई की जो मेरे साथी थे उन्होंने परीक्षा केंद्र के बारे में कुछ जानकारी नोट कराई। उन्होंने मुझे परीक्षा केंद्र तक जाने का रास्ता भी समझाया। फिर वो अपनी परीक्षा के लिए निकल गए। मैं भी अपनी परीक्षा के लिए निकल पड़ा। मैं बहुत असहज था कि कैसे पहुँच पाऊँगा। मैंने ऑटो पकड़ा उसने मुझे गोल चौक छोड़ दिया। वहां से परीक्षा केंद्र के लिए ऑटो पकड़ना था। कई ऑटो वालों से पूछने पर भी कोई उस स्थान को नही जा रहा था, इसमें मेरे साथी से बताने में थोड़ी भूल हुई थी। ऑटो परीक्षा केंद्र के पास स्थित मेडिकल कॉलेज के नाम से मिलते थे। मैं बहुत परेशान था, समय बीत रहा था अब केवल 45 मिनट बचे थे परीक्षा में शामिल होने को। मुझे कोई ऑटो नही मिल पा रहा था।
अब मेरे साथ वो सुखद घटना घटित हुई जिसके लिए मैंने ये लेख लिखा है। जिससे मैंने हृदय से महसूस किया और जो मेरे मन मस्तिष्क पर जीवनभर के लिए अंकित हो गयी। मैंने इंसानियत के क़िस्से कहानियां सुनी थी, किताबों में पढ़ा था परन्तु इंसानियत को उस दिन प्रत्यक्ष परिभाषित होते हुए देखा। उस घटना ने मुझे दिखाया,सिखाया की इंसानियत केवल किताबों, किस्सों, कहानियों या केवल दिमाग़ी मनोरंजन की चीज नही है, अपितु आज के इस समाज में भी वो विशुद्ध रूप से कुछ लोगों में विधमान है। जिनमें इंसानियत अभी भी कूट-कूट कर भरी हुई है।
मुझे ऑटो की तलाश में परेशान होते हुए एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति मेरी और देख रहा था, शायद उसने मेरी परिस्थिति को समझ लिया हो, शायद इसलिए कि मेरे हाथ में प्रवेशपत्र, स्केल, आदि थे। उसने कहा पेपर देने जाना है क्या? मेरी गर्दन हाँ कहने को झुकी और उसने ऑटो वाले से रुकने को कहा,उसने मुझसे पूछा कि केंद्र कहाँ है? तब मैंने परीक्षा केंद्र का नाम बताया तो वह बोला यह ऑटो उसी ओर जाएगा बैठ जाओ। उस व्यक्ति को रास्ते में पहले ही उतरना था। वह उतरते ही ऑटो वाले को अपना किराया देता है। साथ ही मेरी ओर इशारा करते हुए कहता है इस बच्चे को मेडिकल कॉलेज के पास वाले पॉलिटेक्निक कॉलेज पर उतरना है, बच्चे को जरा ध्यान से ले जाना फिर उसने मेरे पास आकर कहा बेटा जहाँ ये ऑटो वाला उतारेगा वहाँ से बाई ओर परीक्षा केंद्र का गेट होगा। वहीं उतर जाना। चिंता मत करना मैंने ऑटो वाले को बोल दिया है। तुम्हारे पास किराया तो है ना, मैंने कहा हाँ है। फिर वो सज्जन व्यक्ति अपने रास्ते चले गए। ऑटो वाले ने मुझे परीक्षा केंद्र के ठीक पास में ही छोड़ दिया मैं समय से परीक्षा केंद्र पहुँच गया। परीक्षा के बाद मैं आसानी से अपने कमरे पर पहुँच गया। क्योंकि अब मैं रास्ता देख चुका था।
मेरे जीवन की इस घटना ने मुझे इंसानियत के प्रत्यक्ष दर्शन कराए। मुझे नही मालूम कि वो व्यक्ति कौन थे,क्या थे कहाँ से आए, कहाँ गए? लेकिन वो एक सच्चे इंसान थे। जिन्होंने मेरी परिस्थिति के अनुरूप मेरी सहायता की। आज भी बहुत से व्यक्ति इंसानियत के वाहक है जो बिना किसी मोल के दूसरों की सहायता करते हैं। मेरे बाल्यकाल की वो सुखद घटना मेरी स्मृतियों में आज भी सजीव बनी हुई है। जब जब भी मैं उसे स्मरण करता हूँ, वो मुझे इंसानियत की शिक्षा देती है, मुझे इंसानियत के लिए प्रेरित करती है। मुझे सुखद अनुभूति कराती है।
जरा सोचिए कि अगर हम किसी की सहायता करें, किसी के साथ इंसानियत पूर्वक व्यवहार करें। तो वो हमें कितना याद करेगा, कितनी दुआ देगा। हमें भी एक अनोखी खुशी का अहसास होगा। अतः हमें इंसानियतपरक जीवन का अनुसरण करना चाहिए।
"सुखद स्मृति वर्ष-2012 से" (कक्षा दस)
- राजेश कुमार

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