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मेरी कविताएं


1.

लिखता हूँ, डरता हूँ,
डर डर कर लिखता हूँ।
लिखने से पहले,
हर बात समझता हूँ।
इस अमोघ शस्त्र लेखनी से,

हर बात सही तो लिखता हूँ।
फिर मैं क्यों डरता हूँ?
लिखता हूँ, डरता हूँ,
डर डर के लिखता हूँ।
बना ढाल लेखनी को,
उद्गार उठे जो अंतर में,
उनको कागज पर लिखता हूँ।
है बात सही सब जो मैं लिखता हूँ,
बस यही सोच कर आगे बढ़ता हूँ।

लेकिन क्या?
करेगा स्वीकार जमाना,
जो मैं लिखता हूँ।
यही सोच कर डरता हूँ।
लिखता हूँ, डरता हूँ,
डर डर के लिखता हूँ।

2.

जीवन के कुंद गलियारों में,
मानव को फँसते देखा है।
तनिक तनिक सी बातों पर,
अपनों को रूठते देखा है।
काल चक्र के घटनाक्रम में,
मानवता को मरते देखा है।
जीवन के कुंद गलियारों में,
मानव को फँसते देखा है।।

बड़े प्रेम से पाला जिसने,
उन्हें सताते देखा है।
थोड़े-थोड़े धन के खातिर,
भाई-भाई को लढते देखा है।
आधुनिकता के साये में,
जन्मों-जन्म के बन्धन की,
रीत को टूटते देखा है।
जीवन के कुंद गलियारों में,
मानव को फँसते देखा है।।

जहाँ भरे पड़े हो वैद्य-चिकित्सक,
आभाव में धन के मानव को,
रोगों से मरते देखा है।
जहां भरे पड़े हो, भण्डार अनाज से,
और फेंका जाता हो खाना।
फिर भी मानव को,
भूख से मरते देखा है।
जीवन के कुंद गलियारों में....।।
लेकिन:-

तेज युक्त सूर्य को भी,
बादल से ढकते देखा है।
अविरल बहने वाले जल को,
बांधों में बंधते देखा है।
सर्वत्र फैलने वाली,
वायु को भी, पत्र में भरते देखा है।
आश:-
तेजयुक्त सूर्य से,
बादल को हटते भी देखा है।
बांध में बंधने वाले जल को
बांध तोड़ते भी देखा है।
पात्र में बन्धित वायु को भी,
पात्र तोड़ते देखा है।
निराश:-
पर मानव को लगभग ,
अमानव बनते ही देखा है।
जीवन के कुंद गलियारों में,
मानव को फँसते देखा है।


3.

जिंदगी है खूबसूरत,

मुस्कुराता चल।
प्रेम ही है जिंदगी,

ये गुनगुनाता चल।
मार्ग अपनी सफलता के,

खुद बनाता चल।
चल रहा है यह समय ,

कदम मिलता चल।
आएगी बाधाएँ,

उन्हें पार करता चल।

लगेंगी ठोकरे हर मोड़पर,

बस उन्हें अनुभव का,

आधार बनाता चल।

रहे अवगत हर क्षण,

चल रहा है जिस पाथ पर

उसका अवलोकन तो कर।

मिलेगी असफलता,

निश्चित ही राह में

बस उसे ही सफलता की ,

ढाल बनाता चल

जिंदगी है खूबसूरत,

मुस्कुराता चल।


4.

तू महान है रे प्राणी

लिख नित नई कहानी
तू महान है रे प्राणी
व्यर्थ ना कर जवानी
तू कर्म करे प्राणी
सोचना निज का तू केवल
तू अंग है समाज का
तेरा कर्म हो समाज हित
करे स्वीकार हर चित्त
ऐसा कर्म कर रे प्राणी
तू महान है रे प्राणी
लिख नित नई कहानी
तू महान है रे प्राणी।।
5.
मन भी कितना कोमल है, पल पल ख्वाब सजाता है।
परिचित भी है हम इसकी,
नटखटपन और चपलता से।
कुछ पूरे होते ख्वाबों से,
ये मंद मंद मुस्काता है।
न हो पाते कुछ स्वप्न पूर्ण तो
भेज सन्देशा ह्रदय को
ये पल पल खूब रुलाता है
मन भी कितना.....


6.
तेरी चाहत का नशा,

इस कदर है दोस्त
आये जब जब याद तेरी,
हम हो जाते है मदहोश।
वो लम्हे अपनी यारी के,
सँभाले है दिल के झरोखों में।
जब गुजरते थे रात दिन,
खिल खिलाती दोस्ती के साये में।।

7.

जिंदगी तू भी लाजवाब है,

तेरी हकीकत भी बेमिसाल है।

तू है एक किताब की तरह,

जो रटते हैं बिना समझे इसको,

वो हर कदम पर निराश हैं।

जो पढ़ते भाव समझकर इसका,

उनके हर पल में उल्लास है।

जिंदगी तू भी लाजवाब है,

तेरी हकीकत भी बेमिसाल

- ✍️राजेश कुमार


भाग -१

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