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प्रेम का अधूरा मिलन

चाँदनी रात हो रही है, प्रीतिमा अपने प्रीतम से मिलन के लिए विरह की अग्नि में जल रही है। चंद्रमा का अलौकिक प्रकाश मानो प्रीतिमा को चिढ़ा रहा है। हवा भी प्रीतिमा की प्रीत से चिढ़ कर उसे परेशान करने को आतुर है। हवा ने अपने ठंडे स्पर्श से प्रीतिमा के विरह को और भी भड़का दिया अब प्रीतिमा को अपने प्रीतम पर थोड़ा गुस्सा आया। इतनी देर कर दी, क्या उसे मेरी परवाह नही? मैं यहाँ दुनिया की लोक लाज को छोड़ कर उसके इंतजार में पल पल तड़प रही हूँ।
अरे! ये क्या, मैंने अपने प्रीतम पर शक किया? छी कितनी तुच्छ हूँ, मैं? जो ऐसा सोच रही हूँ, ओ हवाओं कान खोल कर सुन लो आगे से हमारी प्रीत के बारे में थोड़ा सा भी उपहास किया तो। प्रीतिमा ने अपने ह्रदय को समझाया, अरे! हो सकता है कुछ कार्य आ पड़ा हो? मैं भी कितनी बद्दू हूँ? अपने प्रीतम पर शक कर रही हूँ। आ जायेगा। जिस प्रीत में प्रतीक्षा न हो, विरह न हो वो प्रीत कैसी? प्रीतिमा अपने आप को समझते हुए अपने प्रीतम के सपनों में खोने लगी। चंद्रमा को भी अब अपने आप पर लज्जा आ रही थी।क्यों?

मैंने इन प्रेमियों के प्रेम से चिढ़ रहा हूँ, मुझे अपने आप पर विश्वास नहीं होता,   

मैं वही चन्द्रमा हूं जिसमें हर प्रेमी अपने प्रिय के दर्शन करता है। अब चन्द्रमा ने अपने चित्त में प्रेम जगाकर, प्रेम रूपी प्रकाश को सर्वत्र फैलाना प्रारम्भ कर दिया। यह देख हवा भी थोड़ा धीमी हुई और उसने भी अपनी गति में प्रेम की मीठी खुसबू समाहित कर बहना प्रारम्भ किया। अब मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो प्रीतिमा इन सब के स्पर्श से प्रीतम से मिलने को और अधिक आतुर हो गयी अब उसे इस बात की भी खुसी थी कि सम्पूर्ण अवस्थाएं उसके साथ है और उसे विश्वास हो गया कि उसकी प्रीत में कोई दोष नही है।

अब वो छण आने ही वाला है जब प्रीतिमा अपने प्रीतम से मिलेगी। उसे अपनी बाहों में समेट लेगी, उससे प्रेम की बातें करेगी और उसके साथ उन पलों में ही समा जाना चाहेगी। इतने में ही प्रीतिमा को कुछ आहट सुनाई पड़ती है उसका ह्रदय एकाएक जोर धड़क ये पल उसकी प्रीत के सबसे अलौकिक पल होने वाले है वो अपने प्रीतम के दर्शन जो करेगी। अब उससे और अधिक प्रतीक्षा नही ही रही है। उसने अपनी आंखें धीरे से बंद की और सोचा मेरा प्रीतम मुझे धिरे से कहेगा “आंखे खोलों प्रिये, मैं आ गया हूँ”। प्रीतिमा के ह्रदय की धड़कने बढ़ती जा रही है, ह्रदय में प्रेम का स्पंदन अपनी चरम सीमा पर है। उसके मन में तरह तरह के दृश्य बन रहे है और वो उनसे आनंदित होती जा रही है। इतने में आवाज आती है, कौन है वहां? ये आवाज प्रीतिमा के ह्रदय पर आघात जैसी लगती है! एक पल में सब बिखर जाता है। अब प्रीतिमा के लिए अपने प्रीतम से मिलना स्वप्न बनके रह जायेगा। पता नही अब मिलन के ये छण आएंगे भी या नही। क्योंकि ये आवाज प्रीतम की नही है।


ये कहानी यही पर समाप्त होती है जरा सोचिए आज कल का झूठे प्रेम जो एक पल में टूट जाता है क्योंकि आज कल हवस के लिए प्रेम का झोठा चोला ओढ़ा जाता है। और जब प्रेम आने अपने चरम पर पहुँचने वाला होता है दो प्रेमी अपने सच्चे प्रेम के दर्शन करने की ओर आगे बढ़ते है उसी कड़ी में अवरोध के रूप में हमारी महत्वकांक्षाएँ, स्वार्थ, बीच में आ जाते है।

जो लोग इन व्यक्तिगत प्रपंचों पर विजय पा लेते है वो ही सच्चे प्रेम के दर्शन, या उसे प्राप्त कर पाते है फिर वो प्रेम दो प्रेमियों के मध्य हो या अन्य किसी भी संबंध में हो।

                                    - राजेश कुमार

         

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