भगवान की भूल - 4 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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भगवान की भूल - 4

भगवान की भूल

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग-4

जैसे कॉलेज के दिनों की ही बातें लूं। अपनी मित्र गीता यादव को मैं तब फूटी आंखों देखना पसंद नहीं करती थी। क्योंकि वह लंबी-चौड़ी पहलवान सी थी। मुझे बच्चों कि तरह गोद में उठा लेती थी। सारे मिलकर खिलखिला कर हंसते थे। इतना ही नहीं तब मैं उसे मन ही मन खूब गाली देती थी जब वह मेरे अंगों से खिलवाड़ कर बैठती थी। मगर एक बात उस में यह भी थी कि और किसी को वह मुझे एक सेकेंड भी परेशान नहीं करने देती थी। मेरे लिए सबसे भिड़ जाती थी । आज वह गीता यादव पुलिस इंस्पेक्टर है। और पहले की तरह आज भी वो मेरी तरफ किसी को आंख उठाकर देखने नहीं देती। एक बार जब डिंपू अपनी हद से बाहर जाने लगा था तो इसी गीता से कहकर उसे फिर उसी की हद में पहुंचा दिया था। मेरी समस्या, मेरा अपमान यहीं तक नहीं था।

वह दिन, वह क्षण आज भी जस का तस याद है जब चित्रा आंटी ने मेरी अपंगता, मेरे बौनेपन को बेचने की कोशिश की थी। हालांकि बाद में यह बात मुझे सेलिब्रिटी बनाने तक पहुंच गई। इसमें उनकी बेटी मिनिषा ने भी खूब साथ दिया था अपनी मां का। वह वैसे तो ऑब्स्ट्रेक्ट, सेमी ऑब्सट्रेक्ट पेंटिंग ही ज़्यादा बनाती थीं। रियलिस्टक पेंटिंग तब तक गिनी-चुनी ही बनाई थीं।

वह अचानक ही एक दिन मुझे रियलिस्टिक न्यूड पेंटिंग के बारे में बताने लगीं। बोलीं कि ‘न्यूड पेंटिंग के लिए ही नहीं पेंटिंग सीखने के लिए भी न्यूड मॉडल्स बहुत जरूरी हैं। बिना इनके पेंटिंग की पढ़ाई पूरी ही नहीं हो सकती।’ मैं उनसे यह सुन कर ही दंग रह गई कि ऑर्ट की पढ़ाई के दौरान डिग्री कोर्स में तीसरे वर्ष में अर्धनग्न एवं चौथे वर्ष में पूर्ण नग्न मॉडलों को सामने कर पढ़ाई पूरी की जाती है। क्योंकि शारीरिक संरचना को पूरी गहराई तक जाने समझे बिना पढ़ाई अधूरी है।

वह बड़ा जोर देकर समझातीं कि ‘देखो तनु ऑर्ट्स स्टूडेंट के लिए मॉडल का नग्न शरीर एक ऑब्जेक्ट के सिवा और कुछ नहीं होता। ऑर्टिस्ट के लिए मॉडल की देह एक निर्जीव वस्तु के सिवा और कोई मायने नहीं रखती। मॉडल और ऑर्टिस्ट अपना काम करते वक्त सारी भावनाओं से रहित हो कर काम करते हैं। दुनिया के सारे बड़े ऑर्ट्स कॉलेज में न्यूड मॉडल यूज किए जाते हैं।’

इन बातों से अनजान जब मैंने आश्चर्य व्यक्त किया तो उन्होंने यह कह कर और आश्चर्य में डाल दिया कि उन्होंने तो यह भी सुना है कि मुंबई के जे.जे.ऑर्ट्स कॉलेज में तो डेढ़ सौ वर्ष पहले 1857 से ही पढ़ाई के दौरान छात्रों के लिए न्यूड मॉडल प्रयोग किए जाते रहें हैं।

इसके आगे मैं उनकी यह बात भी सुन कर हैरान रह गई कि उन्होंने तो यह भी सुना है कि जे.जे.आर्ट्स कॉलेज में तो न्यूड मॉडल्स की कॉलेज की जरूरत बिना बाधा के पूरी हो सके इसके लिए कॉलेज कैंपस में ही एक परिवार बसाया गया था। जिसके सदस्य पढ़ाई के दौरान छात्रों के लिए मॉडलिंग करते थे। मैंने तब उनसे यह जानकर दांतो तले ऊंगली दबा ली थी कि परिवार के सारे सदस्य एक ही कॉलेज के तमाम स्टूडेंट्स के सामने नग्न होते रहे होंगे। अलग-अलग उम्र के महिला-पुरुष सारे सदस्य। वाकई यह एक असाधारण काम था। उन सबका यह काम किसी निर्विकार साधु-संत की साधना से कम महत्वपूर्ण काम तो नहीं है।

नग्न अवस्था में घंटों रहने के बाद भी सिर्फ़ ऑर्ट ही ऑर्ट हो। काम भावना की ज़्वाला ही न हो। क्योंकि इस ज़्वाला के रहते तो ऑर्ट हो ही नहीं सकती। तब मैंने आंटी से मजाक में ही कहा था कि आंटी इन लोगों से मिलना चाहूंगी। इस पर वह गहरी सांस लेकर बोली थीं। ‘तनु असल में हुआ क्या कि समय, बाज़ारवाद, महंगाई ने सब कुछ बदल दिया। इस परिवार ने ज़्यादा पैसे कमाने के लिए दूसरे धंधे अपना लिए हैं। क्योंकि मॉडलिंग से उन्हें कुछ खास पैसा नहीं मिलता था। दुनिया के सारे कॉलेजों का यही हाल है। सभी के पास अब न्यूड मॉडलों का टोटा पहले से ज़्यादा हो गया है। कॉल गर्ल्स का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन यह बहुत महंगा है। इससे न्यूड ऑर्ट या मूर्ति शिल्प के सारे कलाकार दुनिया भर में परेशान हैं।’ फिर इसके बाद आंटी ने दुनिया के कई बड़े कलाकारों के भी नाम लिए। उन्होंने राजा रवि वर्मा, जतिन दास, मंजीत बावा और फिर अमृता शेरगिल और चीन के ऑर्टिस्ट ली झिआंग पिंग की पेंटिंग के बारे में भी बताया। यह भी कि अमृता ने तो अपनी बहन को भी मॉडल बनाया। छोटी बहन इंदिरा सुंदरम की नींद नाम से न्यूड पेंटिंग बनाई। जो बहुत प्रसिद्ध हुई।

बड़ा तहलका मचा दिया था उन्होंने। वह न्यूड पेंटिंग तो नेट पर दुनिया आज भी देख रही है। युरोप, चीन आदि की बारे में भी खूब बातें बताईं। कहा कि ‘चीन में ली झिआंग पिंग ने कुछ बरस पहले ही अपनी युवा होती पुत्री की न्यूड पेंटिंग बना डाली।’ चित्रा आंटी मुझे यह सब बता कर, दिखा कर इस बात के लिए कंविंस करने में लगी हुई थीं कि मैं न्यूड पेंटिंग के लिए उनकी मॉडल बनूं। उनके हिसाब से यूं तो न्यूड पेंटिंग अनगिनत मॉडल्स ने बनवाई हैं। लेकिन मेरी पेंटिंग तहलका मचा देगी। करोड़ों रुपए में बिक जाए तो आश्चर्य नहीं। क्यों कि मेरा बौना शरीर तमाम बौनी लड़कियों के शरीर से भिन्न है। टेढ़े- मेढ़े न होकर सीधे सुडौल हैं। भरे पूरे स्तन, नितंब, जांघें यह सब मेरी न्यूड पेंटिंग्स को ऐसी आश्चर्यजनक पेंटिंग बना देंगी कि यह न सिर्फ़ करोड़ों में बिकेंगी बल्कि मैं दुनिया में प्रसिद्ध हो जाऊंगी।

उनको जैसे ही लगता कि मैं उनकी बात पर यकीन नहीं कर पा रही हूं तो वह फट से एक नई सनसनीखेज जानकारी देतीं। पहाड़ के संसार चंद्र बरू के बारे में बताया कि ‘वह एक जनजाति की महिलाओं की न्यूड पेंटिंग बनाते थे। उस जनजाति की महिलाएं उनके लिए खुशी-खुशी न्यूड मॉडलिंग करतीं थीं।’ उनकी इस बात पर मैंने जब यह तर्क दिया कि जब पुराने जमाने से ही लोग कलाकारों के सामने बिना शर्म संकोच के आर्ट के लिए नग्न होते आ रहे हैं तो आज न्यूड मॉडलों की कमी क्यों हो गई। अब तो लोगों को कपड़े उतारने में पहले के मुकाबले जरा भी संकोच नहीं है। तो आंटी करीब-करीब झल्ला कर बोलीं ‘तनु पैसा, पैसे के कारण यह हो रहा है। मॉडल सोचते हैं कि कलाकारों के सामने नग्न होने पर नाम मात्र को पैसा मिलता है। वहीं किसी प्रोडक्ट, फिल्म आदि के लिए कपड़े उतारते हैं तो ज़्यादा पैसा मिलता है। आज भी जो कलाकार मॉडलों को मुंह मांगी रकम देने या दिलाने में सक्षम हैं उन्हें न्यूड मॉडलों की कमी नहीं है।’

मेरे यह कहने पर कि आंटी आप के पास भी पैसे की कमी नहीं है। फिर आप को मॉडलों की कमी क्यों है? इस पर खिसियानी हंसी हंसती हुई बोलीं ‘तनु-तनु मेरे बच्चे मैंने भी बहुत पैसे खर्चं किए हैं।’ फिर उन्होंने दो न्यूड पेंटिंग दिखाईं कहा ’इन मॉडलों को मैंने मोटी रकमें दीं। तब इन्होंने यह काम किया वह भी इस शर्त के साथ कि चेहरा इतना चेंज कर दूं कि वह पहचान में न आएं। इससे पेंटिंग्स में वह बात नहीं आई जो आनी चाहिए थी। इसकी वजह से पेंटिंग अच्छे दामों में नहीं बिक सकी। इसके बावजूद इन दोनों ने आगे के लिए इतनी रकम मांगी जो मैं नहीं दे सकती थी।’

इस पर मैंने मजाक में ही कह दिया कि आंटी मुझे तो आप एक भी पैसा नहीं दे रहीं हैं। मेरी हंसी रुकी भी नहीं थी कि आंटी बोलीं ‘तनु मेरे लिए तुम मॉडल नहीं हो। मेरे लिए एक और मिनिषा हो। मेरी बेटी हो। असाधारण हो, मैं तुम्हें पैसे नहीं दूंगी । सेलिब्रिटी बनाऊंगी। दुनिया तुम पर पैसे बरसाएगी।

सारे बड़े-बड़े ऑर्टिस्ट तुम्हें अपना मॉडल बनाने के लिए करोड़ों देंगे। तुम अपनी तरह की अकेली पहली मॉडल बन जाओगी। जैसे विश्व प्रसिद्ध मॉडल नॉओमी कैंपबेल। वह निग्रो है। जबरदस्त काली है। लेकिन मॉडलों की मॉडल रही है। न जाने कितने प्रोडक्ट्स के लिए मॉडलिंग की है। तुम भी उसी तरह एक सेलिब्रेटी मॉडल बन जाओगी।‘

सच कहूं तो मुझ पर उनकी बातों का जादुई असर भी हुआ। कई दिन टुकड़ों में अपनी बातें कहने के बाद मुझे जब उन्होंने अपने प्रभाव में आया हुआ मान लिया तो! एक बात और कि जब वह यह बातें करतीं तो खुद भी बेहद कम कपड़ों में रहतीं और मिनिषा भी। एक बार जब मैं उनके घर में पहुंची तो शाम के चार बज रहे थे। मेरे पहुँचते ही बड़े प्यार से मेरा स्वागत किया। जल्दी से मुझे पेंटिंग रूम में ले गईं। उनका पेंटिंग रूम बहुत बड़ा और शानदार था। मुझे बहुत अच्छा लगता था। तरह-तरह की पेंटिंग्स लगी थीं।

उस दिन उन्होंने ईजल पर नया कैनवस लगा रखा था। चित्रा आंटी ने स्यान कलर की ढीली-ढाली घुटनों से ऊपर बरमुडा पहन रखी थी। और स्लीवलेस छोटी सी बनियान, मिनिषा ने छोटी सी पीले रंग की बेहद चुस्त नेकर और मां ही की तरह स्लीवलेस सिल्क की छोटी सी बनियान पहन रखी थी। मां की तरह मिनिषा भी तब तक अच्छी ऑर्टिस्ट बन चुकी थी।

लाइन स्केच बहुत अच्छा बनाने लगी थी। एक तरफ उसने भी अपना ईजल लगा रखा था। उस पर मैट फिनिश पेपर लगा था। मां-बेटी दोनों ही मेरी न्यूड पेंटिंग बना लेने के लिए जी जान से तैयार थीं। उनकी बातों से यह पहले ही मालूम था कि यह काम वे कई दिन में पूरा करेंगी। और मुझे उस पोज में रोज आकर उनके लिए मॉडलिंग करनी थी। मुझ पर अपनी अपंगता, बौनेपन की कुंठा पर, सेलिब्रेटी बनकर, विजय पाने का भूत सवार हो चुका था। मेरी नज़रों के सामने सिंडी क्रॉफर्ड, नॉओमी कैंपबेल घूमती थीं। मां-बेटी ने मुझे ऐसा समझा दिया था कि मैं यह सपना देखने लगी थी कि मैं उन सब के मुंह पर सेलिब्रेटी बनकर करोड़ों रुपए कमाकर मारूंगी जो मुझे चिढ़ाते अपमानित करते हैं।

उन सब को बताऊंगी कि देखो तुम अपनी और मेरी हैसियत। कहां तुम और कहां मैं। मेरी यह मनोस्थिति उन मां-बेटी ने ही बना दी थी। इस जुनून के चलते जब उस दिन उन्होंने न्यूड पोज के लिए मुझे कपड़े उतारने को कहा तो मैं शुरू में थोड़ा बहुत ही संकुचाई। इस संकोच को भी मां बेटी ने एक झटके में खत्म कर दिया था। मां बोली ‘देखो संकोच करोगी तो शरीर तनाव में रहेगा। शरीर की स्वाभाविक रेखाएं नहीं मिलेंगी। पेंटिंग खराब हो जाएगी। तुम्हारी हमारी सब की मेहनत पर पानी फिर जाएगा।’ उनकी यह बात भी जब मेरी हिचक दूर न कर पायी। चेहरे पर सहजता न आ पाई। तो मां ने अचानक जो किया उससे मेरी आंखों के सामने एक के बाद एक मानो कई-कई बार बिजलियां कौंध गईं थीं। चित्रा आंटी एकदम मेरे सामने खड़ी होकर मुझे समझा रहीं थीं। अचानक ही क्षण भर में अपनी टी-शर्ट उतार कर कुछ दूर पड़ी एक कुर्सी पर फेंकती हुई बोलीं ‘लो देखो क्या फर्क है हममें तुममें। जैसा शरीर तुम्हारा वैसा मेरा। इसमें कैसी शर्म, हम कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं बेटा, हम एक ऑर्टिस्ट हैं। तुम एक मॉडल हो। आर्ट की दुनिया को हम तीनों मिलकर एक महान कृति देंगे। जब तक यह आर्ट की दुनिया रहेगी तब तक हम तीनों का नाम रहेगा। हम अमर हो जाएंगे। तुम्हारे पैरेंट्स को भी तुम पर गर्व होगा।’

इस बीच मिनिषा भी मेरे सामने आ गई। मैंने देखा उस पर जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था। मां की बात पूरी होते ही वह भी बोली ‘तनु इसमें कोई शर्म की बात नहीं है। ये एक महान काम है। कोई गलत काम नहीं, कोई साधारण काम नहीं है जिसे हर कोई कर सके।’ फिर मां से भी आगे निकलते हुए एकदम निर्लिप्त भाव से उसने भी मेरे ही सामने अपने कपड़े उतार दिए। मैं हक्का-बक्का थी। मेरी कल्पना से परे था यह सब कुछ। यह कैसा महान काम था?

मैं बड़े असमंजस में थी कि ली झिआंग पिंग ने तो अपनी बेटी को ही न्यूड मॉडल बनाया था। यहां तो मां-बेटी मॉडल बनाने के लिए उसके सामने खुद ही न्यूड हो गई हैं। मैं हक्का-बक्का दोनों को देख ही रही थी कि तभी आंटी मेरी बगल में बैठ गईं थीं। समझाने लगी थीं मुझे। और मिनिषा तीन कप काफी लेकर आ गई थी। वह भी एक छोटी सी चेयर पर सामने बैठ गई। मां-बेटी कॉफी पीती रहीं और मेरी संकोच की आखिरी रेखा भी मिटा देने के लिए अपने तर्क देती रहीं। बगल में बैठी मां मेरे कपड़ों, बदन पर भी बराबर हाथ चला रही थी। कॉफी खत्म होते-होते आखिर दोनों सफल रहीं और मेरे संकोच की आखिरी रेखा भी मिटा दी।

अब मैं भी मिनिषा की तरह बिना कपड़ों के थी। मुझे एक स्टूल के बगल में खड़ा कर दिया, मेरा एक हाथ स्टूल पर था। पोज इस तरह का था कि मेरे शरीर का एक-एक अंग ज़्यादा से ज़्यादा उन्मुक्त रहे। मां-बेटी एकदम यंत्रवत सी अपने काम में लगी रहीं। मैं उनकी यह लगन मेहनत देख कर बहुत प्रभावित हुई। बिना हिले-डुले मूर्ति बने खड़ा रहना बड़ा मुश्किल काम था। मैं थक जाती तो मुझे कुछ देर आराम दे दिया जाता। फिर उसी तरह काम शुरू हो जाता।

पहले दिन दो घंटे में ही थक कर मैंने कह दिया अब आज और नहीं कर पाऊंगी। इस पर मां-बेटी ने खुशी-खुशी पैकप कर दिया। मैंने जल्दी से अपने कपड़े पहने, मां ने पेंटिंग शुरू करने से पहले ही कपड़े पहन लिए थे और बेटी ने भी। काम को विराम देते ही मां ने आकर मुझे बड़े प्यार से न सिर्फ़ चूमा था बल्कि कपड़े पहनने में भी मदद की। मिनिषा का प्यार से गले लगा लेना भी मुझे बहुत भाया। मैंने कैनवस पर देखा कि कुछ बड़ी अस्पष्ट सी आकृति बनी हैं। मिनिषा का पेंसिल स्केच ज़्यादा स्पष्ट था।

उस रात मैं जागते और सोते दोनों ही हालत में एक ही सपना देख रही थी कि मेरे पास ढेरों पैसा आ गया है। लोग मेरी पेंटिंग्स खरीद रहे हैं। मैं सेलिब्रेटी बन गई हूं। आंटी-मिनिषा ने जो सपने दिखाए उसमें मैं कई दिन मस्त हो डूबती-तैरती रही। मुझे बाकी लड़कियां अपने सामने बदसूरत गंदी नजर आ रही थीं। मैं समझ रही थी कि चार-छः दिन में पेंटिंग तैयार हो जाएगी। इसलिए वह जब बुलाती मैं टाइम से पहले पहुंच जाती। मां-बेटी में जबरदस्त उत्साह देख रही थी, वह जल्दी से जल्दी काम पूरा करने की कोशिश में थीं। मैं तो उत्साह में थी ही। पहली बार के बाद मुझे फिर कभी कपड़े उतारने और उसी पोज में खड़ा होने में कोई हिचक नहीं होती थी।

मगर आठ-दस दिन बाद ही मेरा उत्साह कुछ-कुछ कम होने लगा था।

मेरा मन ऊबने लगा और घबराहट भी होने लगी थी। मैंने देखा आंटी पेंट सूखने के इंतजार में समय खूब ले रही हैं। मिनिषा ने ज़रूर पेंसिल स्केच पूरा कर लिया। बहुत बढ़िया स्केच बनाया था। उसने मैटफिनिस पेपर पर मुझे पूरी तरह उतार दिया था। अपने को नग्न देखकर मैं उस दिन एकदम शर्म से गड़ गई। अपने हुनर से मिनिषा ने मेरे एक-एक अंग, एक-एक उभार को साकार कर दिया था, जीवंत कर दिया था। लगता मानो मैं पेपर से बस बाहर निकल ही रही हूं। मैं कायल हो गई थी उसकी आर्ट की। लेकिन उस दिन मेरे शर्म की जो लकीर गाढ़ी होनी शुरू हुई थी वह हर क्षण बढ़ती जा रही थी। उस रात पहली बार मैंने गंभीरता से यह सोचा कि मैंने यह क्या कर डाला। मेरी यह पेंटिंग कौन सा करिश्मा कर डालेगी।

न्यूड पेंटिंग्स की भीड़ में एक और पेंटिंग ही साबित होगी इसकी संभावना ही ज़्यादा है। यह बात मेरी समझ में पहले क्यों नहीं आई। पापा का सारा डर-खौफ कहां चला गया कि मैंने यह सब कर डाला। मेरे दिमाग में जरा सी यह बात क्यों नहीं आई कि जब पापा-मां को यह बात पता चलेगी तो क्या होगा? उन पर क्या बीतेगी? कितना बड़ा विस्फोट होगा? फिर उस रात चिंतन-मनन कर मैंने यह तय कर लिया कि अगले दिन जाकर कह दूंगी कि मुझे नहीं बनना सेलिब्रिटी।

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