शायरी - 3 pradeep Kumar Tripathi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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शायरी - 3

1. गज़ल
तुम को अपनी जाने वफ़ा मानता है दिल।
तुम हिं हो बेवफा ये जनता है दिल।।
तुम को अपनी....
तुमने दिया जो धोखा तो क्या गलत किया।
दिखावे के प्यार को तो पहचानता है दिल।।
तुम को अपनी.....
तुम हो हसीन दिलरुबा जानेंजा जाने बहार हो।
तुम्हारी हसीन मुलाकात को अब पहचानता है दिल।।
तुम को अपनी...
तुम हो अमीर जाने जिगर इस कायनात में।
हम भी बजीर कायनात के ये मानता है दिल।।
तुम को अपनी....
तुम हो नसीली जाम सी आंखों में झील है।
हम भी तो इन आंखों में डूबा हुआ है दिल।।
तुम को अपनी जाने वफ़ा मानता है दिल।

2.गीत- मैं तेरे दर पे

मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे

तू चाहे पार लगादे, तू चाहे पार लगादे
मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे

तू चाहे तो मेरी नईया बीच भवर में डूबा दे
तू चाहे तो डूबी नईया को भी पार लगादे

मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे

तू चाहे तो पूतना को भी मईया की गती दिलादे
तू चाहे तो दुर्योधन को सेना सहित मिटा दे

मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे

तू चाहे तो कुब्जा को भी गजगमिनी बनादे
तू चाहे तो पत्थर को भी नारी अहिल्या बनादे

मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे

तू चाहे कान्हा तो सबको माखन चोर बनादे
तू चाहे तो बना बलमीक रामायण रचवादे

मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे

तू चाहे तो चीर हरण कर चीर चोर कहलाबे
तू चाहे तो चीर बड़ा कर द्रोपदी की लाज बचादे

मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे

तू चाहे कान्हा बिना बुलाए प्रेम में कदली पात चबाले
तू चाहे तो छप्पन व्यंजन प्रेम बिना ठुकरा दे

मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे

तू चाहे कान्हा तो मेरी अरज भी चरण सरण में लगादे
तू चाहे कान्हा तो प्रदीप को चरणन दास बनाले

मैं तेरे दर पे आकर बैठा हूं कान्हा तू चाहे पार लगादे
1.
दीवाना हूं तो मैं दीवाने पन के हद तक जाऊंगा।।
हुई शादी तेरी तो क्या तुझे मैं छीनकर लाऊंगा।।
हुई रुकसत नहीं दुनियां से जबतक तू मैं वापस लाऊंगा।
तेरी ससुराल से मैं तुझको जिन्दा कर के लाऊंगा।।
2.
आओ हम मिल दीप जलाकर करें अभिनंदन श्री राम का।
हुआ सवेरा भागे दुश्मन जय घोष हो श्री राम का।।
जो कहते थे बाबरी मस्जिद मूल्ला और अजान का।
उनसे कहदो देश ये है दसरथ नन्दन श्री राम का।।
3.
ऐ अम्बर तेरे दामन से सितारों को मै छीन लाऊंगा ।
मैं खुद अपने हांथो से अपना गम सजाउगा।।
उसको सजा के मै उसकी तरफ एक बार न देखूंगा।
अपने जहां के खुशियों का उसे सौगात देदुगा।।
4.
अब हमें लगता है कि जिन्दगी बेंच कर गम खरीद लूं।
अब हमें मरहम नहीं भा रहा जख्म खरीद लूं।।
5.
मेरे सामने वो मेरी तस्वीर को फाड़ कर बोले।
आपसे मोहब्बत इतनी है कि आपके तस्वीर के कागजों से भी जलन होने लगी है।।
6.
हम यूं ही नहीं बने हैं उनके दीदार के आशिक।
उनका हर किरदार मेरी सासों में बसा करता है।।
7.
कल गली के मोड़ पर कोई तमाशा दिखा रहा था हम सब देख कर खुश हो रहे थे।
आज उसी गली के मोड़ पर मेरा तमाशा बन गया तो एहसास हुआ हम अपना कल देख रहे थे।।
8.
उनके इस एक वाक्य ने मेरा दिल तोड़ दिया।
वो बोले मेरा इश्क समंदर जैसा है हम ने खारा समझ कर साथ ही छोड़ दिया।।
9.
तेरी हर मुश्कान मुझ पर भारी पड़ने वाली है।
तेरी घुंघराली जुल्फ तो बादल को ढकने वाली है।।
जरा इन्हे सम्हाल कर रखा करो ऐ सनम ।
प्रदीप की सारी ज़िनदगी इसके साए में कटने वाली है।।

10.
कल शाम मैंने खुद को जब खोल कर पढा
तेरे शिवा मुझमें कुछ और ना मिला।
तेरी मुस्कान तेरी तस्वीर तेरी धड़कन तेरा दिल तेरी अंगड़ाइयां और मैं ना मिला।।

11.
अब हर शाम उनकी हम पर उछाली जाती है।
बेवफ़ाई उन्होंने की ओर नाम मेरा बताई जाती है।।
अब तो वो हमें और भी टूट कर चाहने लगे हैं।
जब मेरे टूटे दिल की दास्तां उन्हें सुनाई जाती है।।

12.
हर शाम उनके घर एक महफिल सजाई जाती है।
मुझे बेवफ़ा कह एक समा जलाई जाती है।।
मेरी हर वफ़ा महफिल में सुनाई जाती है।
सब खुसी से सुनते समा रोती हुई जलती जाती है।।