शायरी - 5 pradeep Kumar Tripathi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शायरी - 5

मैं जुर्म घोर रात के सन्नाटे में कर रहा था
मुझे भ्रम था कि अब मुझे देखेगा यहां कौन
जुर्म करते हुए देखा नहीं मेरे सिवा कोई और
जब पेसे दर हुआ तो गवाह मेरा दिल निकला

वो सवर कर गई मेले में तो कयामत आ गई
कोई मेला खाक देखेगा जब मेला खुद उन्हें देखे

वो जुर्म करने वाला तो अंधा निकला
वो जुर्म करके सोचा वो देखता नहीं
वो देखता मुझे तो आवाज देता
जब पेस दरबार में हुआ तो हिसाब सब निकला

वो कितना मासूम है जो परिंदो के लिए आशियाना बना रहा है
कुछ लोग प्रदीप उसे चाल बाज कहते है जो
मौत से ज़िन्दगी का बहाना बना रहा है

वो अहले महफिल अहले वफ़ा खोजते रहे
वो आशिक है जो पत्थर में खुदा खोजते रहे
अंधेरे में उसने हजार तीर चलाए हैं
उजाला हुआ तो तीरे जख्म खोजते रहे

हर मासूमियत चेहरे को भी छुपा लेती है
अब वो उतने बेवाफा नजर नही आते

कोई मुझे बताए कि इंसानों की इंसानों से जरूरत खत्म हो रही है
लोग अब याद करने के लिए भी सौदा करते हैं

अब वो तो ख्वाबों का भी हिंसाब मागता है
अब हिंस्से में वो अपने मेरी जान मगता है
उसे कैसे बताऊं कि मेरा ख्वाब भी अंधा है
मेरी जान के दुश्मन को ये जान मानता है

किसी के गम ने हमें आवाज दिया उसे हमने अपनी खुशी देदी
वो अपनी शादी की पत्रिका ले कर आए हमने हंसते हंसते हा कर दी

मेरे मन के लहरों से अब तो समंदर भी हार गया।
इस में तो हर एक पल में करोड़ों तूफान आते हैं।।

वो तो बहुत शरारती है बच्चों की तरह तोड़ेगा।
दिल हो या कोई खिलौना वो तो बेवजह तोड़ेगा।।
अब सजा भी किस तरह दूं मुझे देखेगा तो रो पड़ेगा।
प्रदीप दिल तो उसके पास भी है जब टूटेगा तो मेरे कदमों में आ पड़ेगा।।

मैंने अपने इश्क की किताब अधूरी लिखी
ऐ खुदा अपने किस्मत में ही दूरी लिखी
वो तो देखते हैं महालो के ख़्वाब
अपने हिस्से में तो प्रदीप मजदूरी लिखी

जो कल तक जिस खिलौने से खेलना चाहता था, वो आज मेले में खिलौना बेंचता है।
जो खिलौने के लिए पैसा चाहता था, वो आज खिलौना बेंच कर घर चलाता है।।

हवस वाले तारीफ में उसे परी कहते हैं जो सारे बदन को खोल कर बाजार जाती है।
हमारे गांव के पारियों के सामने लाना अगर घूंघट उठाया तो चांदनी भी शरमा जाती है।।

अब चांद मेरे गांव में चांदनी रात को नहीं देता है।
मेरे गांव की सब परियां उजाला साथ लेकर चलती है।।

अभी मेरी कश्ती ने समंदर से किनारा कर लिया है।
उसे बताना है कि मैं तब आऊंगा जब तूफान आयेगा।।
वो हर बार याद रखता है डुबो कर लाखों शहरों को।
मैं भी उसे बताऊं गा जब लाखों पार ले कर जाऊंगा।।

दरिया को लगा मैं डूबने को जा रहा था
मैं तैरने का हुनर शीखने को जा रहा था
वो मुझको डुबो कर खुश हो रहा था
मैं डूबा तो उस किनारे पर जा रहा था

"अहमद फ़राज़ साहब के हवाले से एक शेर"
बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़।
कच्चा तेरा मकान है कुछ तो खयाल कर।।

हर किसी से दोस्ती अच्छी नहीं प्रदीप।
दिल तेरा नादान है कुछ तो खयाल कर।।