The Author pradeep Kumar Tripathi फॉलो Current Read शायरी - 5 By pradeep Kumar Tripathi हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Venom Mafiya - 7 अब आगे दीवाली के बाद की सुबह अंश के लिए नई मुश्किलें लेकर आई... My Devil Hubby Rebirth Love - 50 अब आगे रुद्र तुम यह क्या कर रही हो क्या तुम पागल हो गई हों छ... जंगल - भाग 7 कुछ जंगली पन साथ पुख्ता होता है, जो कर्म किये जाते है।... डेविल सीईओ की मोहब्बत - भाग 69 अब आगे,अर्जुन, अराध्या को कमरे से बाहर लाकर अब उसको जबरदस्ती... बैरी पिया.... - 53 अब तक :प्रशांत बोले " क्या ये तुमने पहली बार बनाई है... ?? अ... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास pradeep Kumar Tripathi द्वारा हिंदी प्रेम कथाएँ कुल प्रकरण : 17 शेयर करे शायरी - 5 (5) 5.3k 12.1k 1 मैं जुर्म घोर रात के सन्नाटे में कर रहा थामुझे भ्रम था कि अब मुझे देखेगा यहां कौनजुर्म करते हुए देखा नहीं मेरे सिवा कोई औरजब पेसे दर हुआ तो गवाह मेरा दिल निकलावो सवर कर गई मेले में तो कयामत आ गईकोई मेला खाक देखेगा जब मेला खुद उन्हें देखेवो जुर्म करने वाला तो अंधा निकलावो जुर्म करके सोचा वो देखता नहींवो देखता मुझे तो आवाज देताजब पेस दरबार में हुआ तो हिसाब सब निकलावो कितना मासूम है जो परिंदो के लिए आशियाना बना रहा हैकुछ लोग प्रदीप उसे चाल बाज कहते है जोमौत से ज़िन्दगी का बहाना बना रहा हैवो अहले महफिल अहले वफ़ा खोजते रहेवो आशिक है जो पत्थर में खुदा खोजते रहेअंधेरे में उसने हजार तीर चलाए हैंउजाला हुआ तो तीरे जख्म खोजते रहेहर मासूमियत चेहरे को भी छुपा लेती हैअब वो उतने बेवाफा नजर नही आतेकोई मुझे बताए कि इंसानों की इंसानों से जरूरत खत्म हो रही हैलोग अब याद करने के लिए भी सौदा करते हैंअब वो तो ख्वाबों का भी हिंसाब मागता हैअब हिंस्से में वो अपने मेरी जान मगता हैउसे कैसे बताऊं कि मेरा ख्वाब भी अंधा हैमेरी जान के दुश्मन को ये जान मानता हैकिसी के गम ने हमें आवाज दिया उसे हमने अपनी खुशी देदीवो अपनी शादी की पत्रिका ले कर आए हमने हंसते हंसते हा कर दीमेरे मन के लहरों से अब तो समंदर भी हार गया।इस में तो हर एक पल में करोड़ों तूफान आते हैं।।वो तो बहुत शरारती है बच्चों की तरह तोड़ेगा।दिल हो या कोई खिलौना वो तो बेवजह तोड़ेगा।।अब सजा भी किस तरह दूं मुझे देखेगा तो रो पड़ेगा।प्रदीप दिल तो उसके पास भी है जब टूटेगा तो मेरे कदमों में आ पड़ेगा।।मैंने अपने इश्क की किताब अधूरी लिखीऐ खुदा अपने किस्मत में ही दूरी लिखीवो तो देखते हैं महालो के ख़्वाबअपने हिस्से में तो प्रदीप मजदूरी लिखीजो कल तक जिस खिलौने से खेलना चाहता था, वो आज मेले में खिलौना बेंचता है।जो खिलौने के लिए पैसा चाहता था, वो आज खिलौना बेंच कर घर चलाता है।।हवस वाले तारीफ में उसे परी कहते हैं जो सारे बदन को खोल कर बाजार जाती है।हमारे गांव के पारियों के सामने लाना अगर घूंघट उठाया तो चांदनी भी शरमा जाती है।।अब चांद मेरे गांव में चांदनी रात को नहीं देता है।मेरे गांव की सब परियां उजाला साथ लेकर चलती है।।अभी मेरी कश्ती ने समंदर से किनारा कर लिया है।उसे बताना है कि मैं तब आऊंगा जब तूफान आयेगा।।वो हर बार याद रखता है डुबो कर लाखों शहरों को।मैं भी उसे बताऊं गा जब लाखों पार ले कर जाऊंगा।।दरिया को लगा मैं डूबने को जा रहा थामैं तैरने का हुनर शीखने को जा रहा थावो मुझको डुबो कर खुश हो रहा थामैं डूबा तो उस किनारे पर जा रहा था"अहमद फ़राज़ साहब के हवाले से एक शेर"बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़। कच्चा तेरा मकान है कुछ तो खयाल कर।।हर किसी से दोस्ती अच्छी नहीं प्रदीप।दिल तेरा नादान है कुछ तो खयाल कर।। ‹ पिछला प्रकरणशायरी - 4 › अगला प्रकरण शायरी - 6 Download Our App