शायरी - 4 pradeep Kumar Tripathi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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शायरी - 4

कोई इश्क की खातिर मेरे दिल को झिझोड़ रखा है
दिल से पूंछा तो पता चला वो रिश्ता हीं हमसे तोड़ रखा है

तुम कहो तो ज़िन्दगी को गला देता हूं
उससे तुम्हारे लिए एक रुमाल बना देता हूं
मैं जीते जी तुम्हें छू तक नहीं पाया
तुम्हारे आंसू रुमाल को ना छुए ये दुआ देता हूं

मौत अब सुनहरी हो गई है
ज़िन्दगी अब गहरी हो गई है
तू छोड़ कर गई है जब से
मुझे लगता है दुनिया बहरी हो गई है

अगर इश्क में दिल टूटने की दवा जाम है, तो मैं पूरा मैयखना पी जाऊं
मुझे तो फिकर इस बात की है, नशा तब भी नहीं हुआ तो फिर मैं घर कैसे जाऊं

टुटते जा रहे हैं दिल के आइने में रखी यादों की तस्वीर
मुझे लगता है कि फिर से कोई प्यार का पत्थर मार रहा है

ऐ दिल टूटे हुए आइने को जोड़ कोई तस्वीर दिल हि में बना ले
क्या तू फिर से किसी बाहर वाले पे भरोसा करने जा रहा है

जो दिल में है वो सायद सबसे भरोसेमंद तस्वीर थी
अब क्या तू उसका भरोसा तोड़ने जा रहा है

मैंने उसकी जुदाई से भी कुछ ऐसा रिश्ता निभाया वो जबसे गई मैंने किसी हंशिं को देखा तक नहीं
सुना है वो शादी करके जाने क्या क्या करते होंगे हमने तो अभी तक सोचा भी नहीं

किसी ने मेरी धडकनों को बहुत सम्हाल के रखा है
मैं मर गया लेकिन वो अब भी जिन्दा है
ऐ जमाना तू उसे भूल से भी बेवफा मत कहना
वो जहां में एक ही है जिसके लिए मैं मर कर जिन्दा है

मैं शहर से लौट आया कमा कर नहीं मिला सुकून तो
ये सोच कर गांव में कोई मेरी ज़िन्दगी के पल चुरा कर बैठा है
आकर देखा उसे तो बेजान सा बैठा था वो
जो उम्र हमने शहर में खर्च कर दी वो तो उसकी निकली

एक बाप माला कि तरह टूट कर फर्श पर बिखर गया जब मां ने कहा घर में लक्ष्मी आई है
हे खुदा तूने मुझे क्यों परी दे दिया जब ये दुनिया तूने दरिंदों से बनाई है

दिल अब समंदर से भी ज्यादा गहरा हो गया है
सांसों पर अब काले तूफानों का पहरा हो गया है

एक दिन मैं एकांत में बैठ कर खुद के बारे में सोचा
खुदा की कसम मुझे खुद से प्यार हो गया
उसने मेरे साथ एक पूरी रात बिताई थी
ऐ दिल तु आज भी मेरे पास है उसने ये नहीं सोचा

तुम्हारी आंखें देख कर मैं उदास हो जाता हूं
ये किसी कि याद दिलाती हैं तुम सामने मत आया करो
वो मेरे आंखों में आज भी रहता है आंसू की तरह
तुम सामने आते हो तो वो हर बार मुझसे दूर हो जाता है

जब तुम साथ थे तो सर्दी का एहसास ही नहीं होता था
तुम क्या गए मेरे शहर में सर्दी की बारिश होने लगी है
वो दिन थे कि हम दोनों सर्दियों में दूर तक घूमा करते थे
अब हमें धूप में भी सर्दियों का एहसास होत है

आप की खबर फैल गई है वीराने में
आप सम्हल कर रहना घर आने जाने में
दुश्मन वफादार था हर वार आगे से किया
अपने तो लगे रहे हमें पीछे से गिराने में