लौट आओ Rakesh Kumar Pandey Sagar द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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लौट आओ

प्रिय दोस्तों,
दिल के किसी कोने से आवाज़ आ रही है, कोई
दिल पे दस्तक दे रहा है, दिल से दिल की बातेंं हो रही हैं।
और ये नादान दिल कुुुछ महसूस कर रहा है,हो
सकता है आपका दिल भी कुछ महसूस करता हो।
गीतों की माला आपको समर्पित करता हूँ...

१-लौट
आओ

मैं पथिक रस्ता था भूला,
प्रेम की पगडंडियों का,
लग रहा है चाँद आँगन,
आके बोला लौट आओ, आओ
लहलहाती दोपहर में,
झुलस जाएगा बदन ये,
इन नयन झीलों के तट पर,
बैठो या डुबकी लगाओ।

ढूंढते फिरते हो क्यूँ ,
अनजान गलियों में मुझे तुम,
छोड़कर मीठी नदी को,
क्यूँ समंदर में हुए गुम,
प्रेम के इस ओढ़नी की,
छाँव बस तेरे लिए है,
कह रही हैं ये हवाएं,
थक गए हो बैठ जाओ,
लग रहा है चाँद आँगन,
आके बोला लौट आओ।

रखने की चीजें हटाकर,
दिल तुम्हारा रख रहा हूँ,
हूँ बहुत मैं दूर पर,
मीठे सपन को चख रहा हूँ,
जाने कितने खत लिखे,
वो खत नहीं थे दिल था मेरा,
कुछ नहीं बस उन खतों को,
साथ लेकर लौट आओ,
लग रहा है चाँद आँगन,
आके बोला लौट आओ।

होठ थे खामोश तुम,
आँखों का ही अनुवाद हो,
डोर हो तुम हूँ पतंगा,
जब तलक तुम साथ हो,
हूँ जिया हरपल तुम्हें,
धड़कन हो तुम हर साँस हो तुम,
बस उन्हीं साँसों की डोरी,
साथ लेकर लौट आओ,
लग रहा है चाँद आँगन ,
आके बोला लौट आओ।

आसमाँ के फलक पर,
उभरी हुई तस्वीर हो,
तृप्त हों मन की क्षुधाएँ,
वो बरसता नीर हो,
बुझ रही है लौ तुम्हारे बिन,
कहूँ मैं क्या प्रिये,
प्यार के मधुमास की,
वो प्यास लेकर लौट आओ,
लग रहा है चाँद आँगन,
आके बोला लौट आओ।।

२-तुम्हीं से प्यार करता हूँ

तुम्हीं से है मेरा जीवन,
हरा तुमसे मेरा उपवन,
मेरी साँसों की डोरी पर,
लिखा बस नाम है तेरा,
सुबह हो शाम हो,
हरपल तेरा दीदार करता हूँ,
बताना भी नहीं आता,
तुम्हीं से प्यार करता हूँ।।

पिरोई प्रीत की लड़ियाँ,
हैं जोड़ी नित नई कड़ियाँ,
तुम्हारे ही लिए हरपल जिया,
देखी नहीं घड़ियाँ
तुम्हें ही चाहने की गलतियां,
हर बार करता हूँ,
बताना भी नहीं आता,
तुम्हीं से प्यार करता हूँ।।

गली में चाँद निकला,
और सबकी ईद हो जाए,
मुबारक हो मेरी भी ईद,
बस तेरी दीद हो जाए,
जो आए हो मेरे जीवन में मैं,
आभार करता हूँ,
बताना भी नहीं आता,
तुम्हीं से प्यार करता हूँ।।

न चाहा कुछ तुम्हें पाकर,
न माँगा कुछ दुआओं में,
महक फैली हुई है आजतक,
पागल हवाओं में,
तेरी तस्वीर से हर रोज,
आँखें चार करता हूँ,
बताना भी नहीं आता,
तुम्हीं से प्यार करता हूँ।।

तेरी यादों की एक पतली सी चादर,
रह गई बाकी,
मुझे उम्मीद है जितना मैं जागा,
उतना तुम जागी,
कमी बस है तेरी जीवन में मैं,
स्वीकार करता हूँ,
बताना भी नहीं आता,
तुम्हीं से प्यार करता हूँ।।

३-इन आँखों से रस्ता निहारा करोगे

जो कहते हो हमसे मुहब्बत नहीं है,
यहाँ बैठने की इजाजत नहीं है,
तो सुन लो कभी तुम इशारा करोगे,
इन आँखों से रस्ता निहारा करोगे।।

है चाहा तुम्हें मैंने खुद को बदल के,
नदी जैसे निकले शिखर से पिघल के,
समा जाऊँगा रूह में इस कदर मैं,
मेरा नाम लेकर पुकारा करोगे,
इन आँखों से रस्ता निहारा करोगे।।

है इतनी मुहब्बत कि जैसे दीया हो,
चलें लाख आँधी बुझे फिर न जल के,
उड़ा लूँगा नींदे जो सपनों में आकर,
तो बिन मेरे कैसे गुजारा करोगे,
इन आँखों से रस्ता निहारा करोगे।।

किया प्यार अनहद भरोसा किया हूँ,
थी हिस्से की खुशियां परोसा किया हूँ,
मेरे इश्क की बेल फैली है नभ तक,
बता मुझसे कैसे किनारा करोगे,
इन आँखों से रस्ता निहारा करोगे।।

अकिंचन ही हो जाऊँगा जो गए तुम,
मगर तुम भी रह ना सकोगे सुकूँ से,
छपी दिल दीवारों पे तस्वीर मेरी,
उसे हाथ लेकर सवाँरा करोगे,
इन आँखों से रस्ता निहारा करोगे।।

४-नादान दिल

कितने मौसम गुजरे दिल समझाने में,
बात जुबां तक आ न सकी अनजाने में,
सोचा था अबकी लिखकर कुछ कह दूँगा,
कलम कलमुँही खो गई है तहखाने में।।

मध्यम मध्यम बारिश थी,
जब पहली बार मिला था,
अब तक था अंजान प्यार से,
लव अब तक ही सीला था,
रिक्शे से वो गुजरी जुल्फें लहराईं,
जैसे बादल फटा किसी वीराने में,
सोचा था.....

मैं उस रात को हरक्षण प्रतिपल,
यादों में खोया था,
शायद तेरी मुस्कानों ने ,
प्रेम बीज बोया था,
सुबह उठा तो मौसम बदला बदला था,
लगा खड़ा हूँ खुशबू की बागानों में,
सोचा था.....

भरी नदी उफनाई जैसे,
उसने ली अँगड़ाई,
दिल बेचारा कैसे सम्भले,
आह निकल ही आयी,
उतर गया उस पार तो कोई बात नहीं,
मजा कहाँ कम होगा डूब भी जाने में,
सोचा था.....

यौवन की मलिका हो,
तुम तो फूलों की रानी हो,
एहसासों का चंदन वन हो,
झीलों का पानी हो,
राहों में अरमानों की नन्हीं कलियाँ,
खिल जाएँगी तेरे गुजर बस जाने से,
सोचा था.....

मिल न सका तेरा प्यार हमें,
पर कोई बात नहीं है,
तेरी यादों से दिन उजला,
काली रात नहीं है,
गर तुम होती तो क्या होता छोड़ो ना,
हद से गुजर जाता मैं साथ निभाने में,
सोचा था अबकी लिख कर कुछ कह दूँगा,
कलम कलमुँही खो गई है तहखाने में।।
धन्यवाद
राकेश सागर