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आकांक्षा

आकांक्षा
चार वर्षीया आकांक्षा अपने पड़ोस में होने वाली श्यामा की शादी में माँ शान्ति के साथ गयी थी। बारात के साथ वीरपुर (नेपाल) का विराट बैण्ड आया था। इस कोसी इलाके में ’’विराट बैंड’’ का बड़ा नाम था।
​बारात दरवाजा लगने के समय ’’विराट बैंड’’ के सेक्सोफोन की धुन पर छोटे-बड़े लड़के डिस्को डांस कर रहे थे। तभी माँ शान्ति का हाथ छुड़ाकर आकांक्षा बैंड बाजा की ओर भागी। बिना किसी डर के लड़कों के बीच अनायास नाचने लगी। एक छोटी बच्ची को बैंड की धुन पर नृत्य करते देख, लड़के हतप्रभ हो गये। बाराती और शराती उत्सुकता में उसके नृत्य देखने चारो तरफ से घेर कर खड़े हो गये। डिस्को डांस कर रहे लड़के भी छोटी आकांक्षा को बेसुध नाचते देख एक किनारे हो गये। आकांक्षा अकेली नाचती रही।
इसी बीच उसकी माँ शान्ति भीड़ को चीरती आकांक्षा तक पहुँची और गाल पर एक चांटा मार दी। फिर आकांक्षा का हाथ पकड़ कर खींचते हुए भीड़ से बाहर ले गयी।
शान्ति की इस हरकत पर बारात शरात के लोगों ने एक स्वर में कहा - बच्ची बहुत अच्छा नाचती है। बड़ी होनहार है। इसे आपने क्यों मार दिया।
शान्ति चुपचाप सुनती रही।
​शादी से लौटकर घर आने पर शान्ति ने ’आकांक्षा’ द्वारा बैंड बाजा पर डांस करने की बात अपने पति रमेश को बतायी।
​ रमेश ने डांटने के बजाय आकांक्षा को गोद में उठा लिया। सिर पर हाथ फेरते हुए बोला - वाह, वाह। मेरी बेटी बैंड की धुन पर नाची हैं आज। यह तो बहुत बड़ा कलाकार बनेगी। इसे नृत्य सिखाऊंगा। यह तो मेरी शान बनेगी।
​ शान्ति ने कहा - चुप रहिये। मन मत बढ़ाइये। गांव समाज में यह सब अच्छा नहीं माना जाता। आकांक्षा सिर्फ पढ़ेगी। नाच गाना मुझे पसंद नहीं।
​ अच्छा, अच्छा बहुत हो गया। रात ज्यादा हो गयी है। अब मेरी बेटी को सोने दो। सुबह बात करेंगे।
​ कुछ दिनों बाद सरस्वती पूजा के शुभ दिन पर निकट के प्राइवेट स्कूल ’’टी फाॅर टैलेन्ट’’ स्कूल में आकांक्षा का एडमिशन हुआ। स्कूल में प्रतिदिन एक क्लास डांस का भी होता था। टैलेन्ट स्कूल का एक टीचर भी उस बारात में गया था। आकांक्षा को उसने डांस करते देखा था। उसी ने डांस टीचर को बताया कि ’आकांक्षा’ बहुत बढ़िया नाचती है।
​ पढ़ाई के साथ-साथ आकांक्षा नृत्य भी मन लगाकर सीखने लगी। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर सहरसा जिला मुख्यालय में स्कूलों की कल्चरल कम्पीटीशन हुई। "टी फार टैलेन्ट स्कूल "से आकांक्षा एकल नृत्य में प्रथम आयी। कलक्टर के हाथ से मैडल और प्रमाण पत्र मिला। अखबारों में फोटो छपी।
धीरे-धीरे आकांक्षा बड़ी होती गयी। क्लास वन से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के 10 वर्षों के दरम्यान नृत्य व अभिनय में पूर्णत: समर्पित हो गयी। सुन्दर नैन नक्स, सुडौल शरीर वाली आकांक्षा नृत्य और नाटक कम्पीटीशन में बाजी मारती रही।
​किशोरावस्था आते-आते आकांक्षा स्वछंद और उन्मुक्त विचारों वाली बन गयी। रहन-सहन आधुनिक बन गया।
गांव में उसके रहन-सहन, बोली व्यवहार पर अगल-बगल के लोग ताने कसते। "लड़की बेलगाम हो गयी है। लड़कों के साथ मटरगस्ती करती है। शर्म हया नाम की कोई चीज नहीं। वस्त्र भी अर्द्धनग्न वाली पहनती है। रमेश का नाम मिट्टी में मिला रही है।"
विभिन्न तरह के व्यंगवाणों को सुनकर आकांक्षा का चाचा सुरेश ने घर में विद्रोह कर दिया। उसने अपने भाई से स्पष्ट कहा - "आकांक्षा का नाटक - नाच में रात दिन लगा रहना बेईज्जती करा रही है। आप उसका ये सब चाल चलन बंद कराइये, वरना हमसे बंटवारा कर लीजिये, फिर अपनी बेटी को नचाते रहिये।"
​सुरेश के कड़े रुख पर रमेश ने बेटी आकांक्षा और पत्नी शान्ति को सामने बुलाया। फिर सुरेश के निर्णय को माँ-बेटी को बता दिया।
​ आकांक्षा कुछ देर चुप रही, फिर तेज आवाज में बोली - ’’मैं ना तो डांस छोड़ूंगी, ना थियेटर में एक्टिंग। मुझे अपना लक्ष्य हासिल करना है। सिनेमा और टीवी सीरियल में अपना फ्यूचर बनाना है। मेरे कदम कभी पीछे नहीं हटेंगे। कौन क्या बोलते हैं, इसकी मुझे कोई परवाह नहीं।’’ फिर अपने हाथ में पकड़े लिफाफा को खोलकर उसके अन्दर का पत्र सबको दिखाते हुए आकांक्षा ने पुनः कहा - ’’मोडलिंग कान्टेस्ट में भाग लेने हेतु मेरा सेलेक्शन हुआ है। पहले पटना में होगा। यहाँ सेलेक्ट होने पर मुम्बई में होगा। वहाँ जीत गयी तो सीधा इनटरनेशल फैशन शो में मैं फ्रांस जाऊँगी। मैं परसों आयोजित कान्टेस्ट में भाग लेने के लिए आज ही पटना जा रही हूँ।’’
​ सुरेश के कटे पर मानो आकांक्षा ने नमक छिड़क दिया। वह बिफर उठा। उसने स्पष्ट कहा - ’’आकांक्षा अब इस घर में लौटकर नहीं आएगी। मुझसे अब कोई रिश्ता नहीं। मैया, अपनी बेटी को अब आप तब इस घर में नहीं लाइयेगा, जब तक आंगन में दीवार खड़ी कर घर को दो भागों में मैं बांट नहीं दूंगा। फिर गुस्सा में तेजी से घर के बाहर चला गया।’’
​ माँ शान्ति ने आकांक्षा को समझाया - ’’छोड़ दे ये सब। कोसी नदी के कगार पर बसे गांवों में दकियानूसी सोच वाले लोगों द्वारा तुम्हारे चरित्र को अच्छी नजर से नहीं देखा जाएगा। तुम दुष्चरित्रा कहलाओगी।
​ यह सुनते ही रमेश चिंग्घाड़ उठा - मेरी बेटी ’’माॅडलिंग’’ कान्टेस्ट में जाएगी। मैं स्वंय उसे ’’नाइट बस सर्विस’’ से पटना लेकर जाऊँगा। आकांक्षा एक दिन महिषी का नाम रोशन करेगी।
​माॅडलिंग कान्टेस्ट में आकांक्षा ने भाग लिया। "राइजिंग स्टार माॅडल कान्टेस्ट "का प्रायोजक भोजपुरी फिल्म ऐसोसिएसन पटना था। आकांक्षा ने माॅडल कान्टेस्ट में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। टाॅप फाइव स्थान तक के माॅडल को मुम्बई कान्टेस्ट में भाग लेने का पार्टिसिपेशन लेटर आकांक्षा को मिल गया। अगले महीना कान्टेस्ट का आयोजन होना था।
​पटना माॅडलिंग कान्टेस्ट का फोटो राजधानी के अखबारों की सुर्खियों में था। मुख्यपृष्ठ के फोटो सहरसा के स्थानीय अखबारों में भी छपे थे। आकांक्षा की बोल्ड फोटो छपी थी।
उसे देखते ही चाचा सुरेश ने अखबार को फाड़ डाला। जबकि दूसरे दिन पटना से लौटने पर रमेश बेटी आकांक्षा की सफलता का बखान तस्वीरें दिखा दिखाकर पूरे गांव में कर रहा था। युवकों ने आकांक्षा की सफलता पर सम्मान समारोह का आयोजन किया।
आकांक्षा का ग्लेमर गांव में चर्चा का विषय था। खासकर युवक गौरवान्वित थे। आकांक्षा की आकांक्षा पूरी हो रही थी।
परन्तु घर में दीवार खड़ी हो गयी थी। बंटवारा हो गया। सुरेश और रमेश अलग हो गये थे।
आकांक्षा को उड़ान भरना था जिसमें पिता ने भरपूर सहयोग दिया।

-मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह

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