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पिंजड़ा

"पिंजड़ा"
अनिमेश आज नये आॅफिस में ज्वाइन कर लिया था। साल भर पहले ही बदली हुई थी पर बाॅस ने मुख्यालय से बदली रुकवा दी थी। पेन्डिंग पड़े सभी प्रोजेक्ट को पूरा करने के बाद अनिमेश विरमित हो पाया था।
एकाउन्ट ऑफ़िस तिमंजलि इमारत पर अवस्थित था। राजधानी पटना के गांधी मैदान के समीप। इस आॅफिस में पूर्व से परिचित सहकर्मियों से ज्वाइनिंग के बाद मिलकर खुशी हुई। अनिमेश को लगा कि जाने-पहचाने स्टाॅफ के बीच काम में आनन्द आएगा। परन्तु एक सप्ताह के अन्दर वह बेचैनी महसूस करने लगा। कार्यालय में अजीब किस्म का भारीपन, सन्नाटा और उदासी छायी रहती। स्वाभाविक उत्साह की जरा भी ’झलक नहीं’ मिली। स्टाॅफ के बीच कोई तालमेल नहीं दिखा। अभी काम आबंटित नहीं हुआ था। इसलिए ’एडिसनल एकाउन्ट आॅफिसर’ अखिलेश शरण के निकट टेबिल पर रखी संचिकाओं को उलट-पलट कर यहाँ की कार्यशैली का अवलोकन कर रहा था।
ठीक उसी वक्त एक चौबीस पच्चीस वर्षीया युवती ने बड़ी सक्रियता से अपने साथ की संचिकाएं सामने टेबिल पर रख दी। फिर उसमें से एक संचिका को खोल एडिसनल एकाउन्ट आॅफिसर से कुछ निर्देश माँगने लगी। मेरी नजरें उस पर टिक गयी।। मैं समझ गया कि यह युवती यहीं की क्लर्क है।
संध्या में आॅफिस छोड़ने से पहले अपने कुलीग लक्ष्मी शुक्ला, राकेश कुमार,शिवशंकर,शंभुनाथ, उमेश शर्मा, विजय सिन्हा से मिल लिया। कुछ लेडी स्टाॅफ से भी औपचारिकतश हाय हैलो कर आॅफिस छोड़ा। अगले दिन आॅफिस आया और एक सप्ताह की छुट्टी ’’रेसिडेन्स शिफ्टिंग " के लिए ले ली।
अवकाश से लौटने पर पुनः नियमित रुप से कार्यालय जाने लगा। इस बीच यहीं के सिनीयर एकाउन्ट आॅफिसर का भी ट्रांसफर हो गया। फेयरवेल पार्टी रखी गयी। अनिमेश अच्छे वक्ता के रुप में पहचाना जाता था। फेयरवेल में बोलने का अवसर मिला। उसके लच्छेदार शब्दों और वाक्पटुता पर एकाण्ट आॅफिस के सभी स्टाॅफ प्रभावित हुए। एकान्ट आॅफिसर द्वारा भी प्रशंसा की गयी। फेयरवेल स्पीच के बाद डिनर आयोजन हुआ।
अनिमेश की आवाज का जादू और शब्दों के प्रेजेन्शन से मुग्ध होने वालों में एक, वह युवती भी थी।
अनिमेश फेयरवेल पार्टी के बाद काफी खुश था। उसकी धाक जम गयी थी। वह प्रफुल्लित होकर कुछ गुनगुनाते हुए अपने कैबिन में बैठा था। तभी वह युवती आयी और अपना परिचय देती हुई बोली - मेरा नाम शिल्पी है, अपने हसबैंड के ’डेथ’ के बाद ’’कम्पन्सेशन ग्राउंड’’ पर एक वर्ष पहले नियुक्ति हुई है।
अनिमेश ने जवाब दिया - बड़ी खुशी हुई जानकर।
सर, कल आप बहुत अच्छा बोले थे। आपके यहाँ ज्वाइन करने से पहले आपके परिचित कर्मी बोला करते थे कि अनिमेश बहुत तेज तर्रार व्यक्ति है। जहाँ भी रहता है ’’लीड’’ करता है। उसके आने पर देखना, आॅफिस का सभी ’’पोलिटिक्स’’ बंद हो जाएगा। कोई चमचागिरी नहीं चल सकेगी। सचमुच आपमें क्षमता है सर।’’शिल्पी ने बड़ी बेवाकी से कहा।
अनिमेश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया - ऐसा कुछ नहीं है। स्पष्टवादी हूँ। बुरा या भला मुँह पर कह देता हूँ शिल्पी जी, आप बैठिये। बताइये कौन-कौन से ’डिपार्टमेन्ट आपके जिम्मे हैं।
सर कोई भी ’’डिपार्टमेन्ट’’ मेरे प्रभार में नहीं है। पूराने फाइल्स को कम्प्यूटराइज रेकार्ड कीपिंग कर रही हूँ। इससे क्या होगा सर, ’एकाउन्टिंग’ तो नहीं सीख पाऊँगी न। एक वर्ष हो गया है। प्रशिक्षण भी नही दिया गया। यहाँ पदस्थापित स्टाॅफ काफी स्वार्थी हैं। कुछ भी सिखाना नहीं चाहते। उनको लगता है, कार्य सीख जाने पर उन सब का ’वर्क’ बंट जाएगा।
ओह नहीं ! आॅफिस इस तरह नहीं चलता। ठीक है, मैं सिखाऊँगा। अभी मैं फ्री हूँ। एकाउण्ट आॅफिसर से बात करता हूँ। कार्य वितरण कराने का प्रयास करुँगा। चिन्ता नहीं करें अनिमेश ने आश्वस्त किया।
शिल्पी ने कहा - आपसे मदद की आशा करती हूँ। मेरे साथ पूनम सिन्हा ने भी योगदान किया है। उसे भी कोई काम-वाम नहीं मिला है। उसे भी मदद करेंगे।
आॅफिस के सभी कर्मचारी को काम मिलना चाहिए। अनिमेश ने जवाब दिया।
सचमुच में एकाउन्ट आॅफिसर ने अनिमेश की सलाह पर शिल्पी और पूनम को वर्क एलाॅट कर प्रभार लेने का आदेश निकाला। कार्य मिलने से दोनों को अत्यन्त खशी हुई। वे दोनों धन्यवाद एवं आभार व्यक्त किये बिना नहीं रह सकी।
अपने सहयोगी स्वाभाव के कारण अनिमेश संचिकाओं के निष्पादन में मदद देने लगा। टिप्पणी लिखना, पत्र तैयार करना, लेखा गणना करना, कम्प्यूटर चलाना सिखाकर शिल्पी और पूनम को दो माह में ही दक्ष बना दिया।
उत्साही दोनों महिलाओं ने कमाल कर दिया। लक्ष्य के अनुरुप कार्य करने से दोनों को संतुष्टी मिली।
अब शिल्पी अनिमेश के इतने करीब आ गयी कि मन में दबी बातों को शेयर करने लगी।
अनिमेश रचनात्मक कार्यों में बचपन से रुचि लेता था। कभी कभार कविता-कहानी भी लिख लेता था। भावुक प्रकृति के चलते शिल्पी के साथ घटी घटनाओं को सुनकर वह उद्विग्न हो जाता। संवेदनशील अनिमेश शिल्पी के निकट आता गया। वह कुरेद-कुरेद कर उसके जीवन में घटी घटनाओं को नोट की ,फिर सूत्रबद्ध कर एक कहानी की रचना कर डाली। अपनी कहानी में शिल्पी का नाम ’’शालिनी’’ रख दिया। और शालिनी के रुप में शिल्पी को एक जीवंत पात्र बनाया।
एक दिन अनिमेश ने उस कहानी को शिल्पी के हाथों में थमायी, फिर पढ़ने का निवेदन किया। अनिमेश ने कहा- इस कहानी की पृष्ठभूमि तुम्हारी जिन्दगी से ली गयी है। कहानी का नाम ’’संघर्ष’’ रखा हूँ।
सब कार्य छोड़कर शिल्पी अनिमेश द्वारा लिखी कहानी - ’’संघर्ष’’ को एक सांस में पढ़ गयी। शिल्पी की आंखों में आंसू छल छला आये। उसकी जिन्दगी दुखों का समुद्र था। बचपन में पिता की मृत्यु हुई और भरी जवानी में पति की मृत्यु हो गयी। इस कहानी को पढ़ लेने के बाद शिल्पी मानो अनिमेश पर मोहित हो गयी। सुबह में कार्यालय आने से पहले और कार्यालय से जाने के बाद रास्ते में देर तक लम्बी बातचीत करती रहती।
अनिमेश भावानात्मक रुप से उससे इतना जुड़ गया कि शिल्पी की ह सुख-दुख में खुशी और दुखी होने लगा। उसने शिल्पी के सामने शपथ ले ली - मैं इस कार्यालय में रहूँ या न रहूँ, पर तुम मेरे दिल की गहराई में बस गयी हो। जीवन पर्यन्त मैं तेरा साथ निभाऊँगा। तुम पुकारोगी मैं हाजिर हो जाऊँगा।
उसी दौरान दीपावली पर्व आ गया। शिल्पी अपने चारवर्षीय पुत्र पुष्पम के साथ कार्यालय आयी थी। आज ही अनिमेश भी अपने गांव शाम की ट्रेन से निकलने वाला था। शिल्पी ने अपने पुत्र को बताया ये तुम्हारे पापा के दोस्त हैं। ’पापा अंकल’ को प्रणाम करो।
पुष्पम ने ’’प्रणाम’’ कहा। फिर अचानक बोल पड़ा - ’’अंकल सभी के पापा अपने बच्चे को पटाखा खरीद कर देते हैं। आप मेरे ’’पापा अंकल’’ हैं तो मुझे भी पटाखा खरीद दो ना।’’
अनिमेश ने जवाब दिया - हाँ, हाँ चलो पटाखा खरीदते हैं। तुम जो पसंद करोगे वही खरीद दूँगा। फिर इशारे से शिल्पी को कहा - तुम कार्यालय से इसे लेकर निकलो, मैं भी बैग लेकर आ रहा हूँ।
शिल्पी पुष्पम को लेकर निकल गयी। और बाहर अनिमेश की प्रतीक्षा करने लगी। तीन-चार मिनट के अन्तराल में अनिमेश भी बाहर आया। फिर तीनों साथ -साथ पटना मार्केट आ गये। अनेक तरह के पटाखे पुष्पम ने पसंद किये जिसे अनिमेश ने खरीद कर पैक करा दिया।
शिल्पी और अनिमेश ने एक होटल में साथ-साथ नाश्ता किया। तब तक बेगूसराय जाने वाली ट्रेन का समय हो चला। शिल्पी और पुष्पम से विदा लेकर अनिमेश ने पटना जंक्शन में ट्रेन पकड़ी।
लगभग एक घण्टा बाद शिल्पी ने एसएमएस पर पहली बार मैसेज भेजा। उसने लिखा - ’आइ लव यू’। आपने मेरे पुत्र के ’पापा’ की कमी पूरी कर दी। पुष्पम घर में काफी ख़ुश है। पटाखे छोड़ रहा है। बोलता है मेरे ’पापा अंकल’ ने पटाखे खरीदे हैं। वे मेरे पापा समान हैं। आपसे निवेदन है, मेरे बेटे की खुशी को यों ही बनाये रखियेगा। दोनों के बीच मोबाइल की बैट्री डिस्चार्ज होने तक ना जाने क्या-क्या प्यार भरी बातें होती रही।
मोबाइल के बंद होने पर अनिमेश बेचैन हो उठा।
लगभग नौ बजे रात में अनिमेश बेगूसराय अपने घर पहुँचा। मोबाइल को झटपट चार्ज में लगाया।
पत्नी सुनिधी गुस्सा से विफर रही थी। आपके मोबाइल का स्वीच क्यों ’आॅफ’ था। मैं चिन्ता से व्याकुल थी।
अनिमेश सफेद झूठ बोला - डियर मैडम, क्या कहूँ। आज मोबाइल बिना चार्ज किये ही आॅफिस चला आया। फिर बेगूसराय पहुँचने से पहले ही बैट्री डिस्चार्ज होने के कारण बंद हो गया।
सुनिधी ने सच मानकर बस इतना ही कहा - आगे से ख्याल रखियेगा। ट्रेवेलिंग में मोबइल बंद नहीं होना चाहिए। मैं पत्नी हूँ ना। मैं परेशान हो गयी। कई तरह की शंकाएं उत्पन्न होने लगती है।
अनिमेश ने अपनी गलती पर पर्दा डालते हुए जवाब दिया - आगे से ऐसा नहीं होगा। माफ करो। चलो भूखा हूँ।, खाने की व्यवस्था करो।
रात में सुनिधी और अनिमेश एक ही साथ सोये थे। अनिमेश को शक था कि शिल्पी जरुर फोन करेगी। इसलिए मोबाइल साइलेन्ट मोड में डाल तकिया की बगल में रख लिया।
वास्तव में ग्यारह बजे मोबाइल में वाइब्रेशन होने लगा। अनिमेश को काॅल की प्रतीक्षा में नींद नहीं आयी थी। वह झटपट उठा ओर मोबाइल लेकर बरामदे में आ गया।
शिल्पी की आवाज आयी - सो गये थे क्या ?
अनिमेश ने कहा एसएमएस पर तुमसे हुई प्यारी-प्यारी बातें और शेरो -शायरी इस कदर मेरे मस्तिष्क में घूम रही है कि नीन्द ही गायब थी।
शिल्पी ने कहा - चलिए, मैं एक ’किस’ के साथ आपको नीन्द में भेजती हूँ। चुम्बी की आवाज मोबाइल पर स्पष्ट सुनाई पड़ी।
अनिमेश ने भी जवाबी ’चुम्बन’ देकर कहा - अब दिवाली के बाद बात करुँगा। उस दिन मैं पटना कार्यालय में ही रहूँगा। बाय। गुडनाइट।
दिवाली के अगले दिन अनिमेश पटना जंक्शन से उतरकर सीधा कार्यालय ही आ गया।
शिल्पी मानो इंतजार कर रही थी। दोनों की आँखें मिली। मुस्कुरा कर अभिवादन का आदान-प्रदान हुआ।
अनिमेश के केबिन में थोड़ी ही देर बाद शिल्पी फाइल लेकर पहुँच गयी। फाइल के बहाने लगातार डेढ़ घण्टे तक बैठी रही। इस बीच दोनों के हाथ आपस में जुड़ गये। शिल्पी थोड़ी झुकी तो अनिमेश ने ’’किस’’ कर लिया शिल्पी का चेहरा लाल हो गया। दो वर्षों बाद किसी पुरुष का गर्म ’’किस’’ उसके गाल पर पड़ा था।शिल्पी बेसुध हो गयी। फिर थोड़ा सचेत हुई और केबिन से बाहर आ गयी। थोड़ी देर बाद टिफिन टाइम में शिल्पी ने अपना लंच अनिमेश के साथ बाँटकर खाया। दिन काफी हसीन बन गया था आज। शाम में साथ-साथ दोनो निकले।
अगले दिन अनिमेश समय से पहले आॅफिस आ गया। पर शिल्पी नहीं आयी थी। अचानक दो दिनों तक ’’’शिल्पी’ आॅफिस नहीं आयी। मोबाइल फोन पर अनिमेश को कोई सूचना भी ना दी।
अनिमेश ने कई बार काॅल किया। हमेशा इन्गेज टोन ही मिला। एसएमएस करके थक गया। कोई जवाब नहीं आया। इस घटना पर वह चौंक उठा और चिन्ता की रेखाएं चेहरे पर उभर आयी। कार्य करने में मन नहीं लग रहा था।
टी ब्रेक में अनिमेश के सहकर्मी रमेश शुक्ला, शिवशंकर , उमेश शर्मा व संतोष उसके पास आये। संतोष बोला - अनिमेश भैया, चलिए बाहर कैंटिन में चाय पीते हैं। केबिन में बैठे-बैठे क्यों बोर हो रहे हैं ?
अनिमेश वास्तव में उदास था। साथियों के आग्रह पर सबों के साथ कैंटिन चला आया।
चाय की प्यालियां नमकीन के साथ टेबिल पर आ गयी।मुँह में नमकीन लेकर चाय सीप करते हुए रमेश शुक्ला ने बात छेड़ी - अनिमेश भाई, आप शिल्पी से काफी घुल मिल रहे हैं। ये आपकी सेहत के लिए अच्छा नहीं हैशिवशंकर ने भी जोर देकर कहा - इस विधवा युवती का इतिहास बहुत खराब है। यह जिससे भी मदद लेती है, खूब घुल मिल जाती है। फिर उसी को बेइज्जत भी करती है। पूर्व में प्रभाकर सिंह बड़े बाबू थे। ज्वाइन करने के बाद उन्हीं के पास बैठती थी। वो अधेड़ व्यक्ति इस पर ममता प्रदर्शित किये।परन्तु, शिल्पी ने एक दिन हल्ला गुल्ला मचाकर उनपर कई आरोप मढ़ दिये। बेचारे प्रभाकर सिंह ने इस घटना के बाद अपना स्थानान्तरण ही करा लिया।
उमेश शर्मा ने फुसफुसाते हुए कहा - कान मेरे पास सटाइये सर। गोपनीय बात बताता हूँ।
अनिमेश चौंक पड़ा और अपना कान उमेश शर्मा के निकट लाया।
उमेश ने आगे कहा - वह बदचलन औरत है। ’’कम्प्यूटर सर्विस प्रोवाइडर’’ राजकुमार के साथ कार्यालय के अन्दर की एक छोटी कोठरी में दिनदहाड़े रंगरेलियां मनाती रहती है। आपके योगदान देने के चार-पाँच दिन बाद ही संयोगवश राजकुमार अपनी बीमार माँ के इलाज के लिए बम्बई में है। इसलिए उसकी अनुपस्थिति में शिल्पी आपके साथ घुली मिली है। राजकुमार के आते ही वह पलटा मारेगी।
चाय पीकर सभी आॅफिस में अपने स्थान पर बैठ काम करने लगे।
अनिमेश याद करने लगा। उसने भी शिल्पी को राजकुमार की कोठरी में कई बार आते-जाते देखा था। पर कुछ परख नहीं पाया था।
सहकर्मियों की बातों में कुछ दम था। हालांकि यह सब जानने के बाद वह सकते में था। अचानक वह आकाश से जमीन पर आ गिरा था। तुरन्त उसने अपनी सोच को मजबूती दी और मन ही मन बुदबुदाया - मेरे साथ प्रेम-प्यार की बातों के अतिरिक्त चुम्बन का भी आदान-प्रदान शिल्पी के द्वारा हुआ है। यह निश्छल प्रेम है। धोखा नहीं हो सकता। राजकुमार के साथ उसका जो भी रिश्ता रहा हो अब आगे नहीं चलेगा, ना रहेगा।
दो दिनों बाद शिल्पी आॅफिस आयी। उसके साथ-साथ राजकुमार भी आया। राजकुमार के आने के बाद शिल्पी बार-बार उसकी कोठरी में गयी थी। पर एकबार भी अनिमेश के पास नहीं आयी, ना कोई बात ही की।
दोपहर में राजकुमार आॅफिस से कुछ देर के लिए निकला। इसी बीच मेंशिल्पी तेजी से अनिमेश के केबिन में घुसी। अनिमेश कुछ लिख रहा था।
’’गुड आफ्टर नून सर’’, शिल्पी ने कहा।
अनिमेश ने सिर उठाया। अनिमेश ने पूछा - दो दिनों से कहाँ थी ? मैं काफी चिन्तित रहा हूँ। चिन्ता का कारण था तुम्हारे द्वारा फोन काॅल रिसीव नहीं करना एवं एसएमएस पर कोई जवाब नहीं देना। शिल्पी ने बताया - मैं समझ सकती हूँ। आप काफी परेशान होंगे। पर मेरी तबीयत खराब थी। सिर में काफी दर्द उठ गया था। डाॅक्टर के पास गयी तो कई तरह की पैथोलोजिकल टेस्ट कराना पड़ा। इस हालत में मोबाइल फोन को साइलेन्ट कर अपनी माँ को दे रखा था। फिर कैसे काॅल रिसीव करती या एसएमएस से मैसेज भेजती।
​अनिमेश शिल्पी की अवस्था जानने के बाद ज्यादा विश्लेषन नहीं कर सका। वह शिल्पी पर विश्वास जो करता था।
​अगले दिन अनिमेश के सीधा राजकुमार की कोठरी में घुसा। राजकुमार लेपटाॅप पर गेम खेल रहा था। अनिमेश के देखते ही हड़बड़ा उठा। अनिमेश को ना चाहते हुए भी राजकुमार ने एक कुर्सी पर बिठाया।
अनिमेश ने पूछना शुरु किया। मैं इस कार्यालय में जब योगदान किया था, उसके चौथे या पाँचवें दिन के बाद आप लम्बे दिनों से आॅफिस में नहीं आ रहे थे। मुझसे आपका परिचय नहीं हो सका। मैं अनिमेश हूँ। सिनीयर सेक्शन आॅफिसर। भागलपुर से स्थानान्तरण के बाद यहाँ आया हूँ। आपका परिचय जानना चाहता हूँ।
​राजकुमार ने जवाब दिया -जी, मैं एकाउन्ट आॅफिस में स्थापित कम्प्यूटरों का ’’एनुअल मैन्टिनेन्स’’ करता हूँ। मुझे यह कमरा एकान्ट आॅफिसर द्वारा प्रदान किया गया है ताकि मैं अच्छी तरह से ’’कम्प्यूटर’’ की देखभाल कर सकूँ। एग्रीमेन्ट हुआ है मेरे साथ।
​अनिमेश ने याद करते हुए पूछा - पर भागलपुर में तो अब पहले का कोई एग्रीमेन्ट नहीं चल रहा। जरुरत पड़ने पर स्थानीय स्तर पर कम्प्यूटर का मेन्टीनेन्स कराया जाता है। फिर यहाँ कैसे चल रहा।
​राजकुमार को मानो साँप सूंघ गया। उसने झट से कहा - मुझे एकान्ट आॅफिसर द्वारा मौखिक रुप से कार्य करते रहने की अनुमति दी गयी है।
पर बिना किसी शुल्क के आप दिनभर यहाँ बैठे रहते हैं। इसका क्या प्रयोजन है ? अनिमेश ने फिर प्रश्न दागा।
​इस प्रश्न पर राजकुमार उत्तेजित हो गया और बोला - अपने काम से मतलब रखिये। मैं मुफ्त काम करुँ या शुल्क लेकर आपको इससे क्या लेना देना है। जाइये, अपना काम कीजिए। मेरे मामले में दखल अंदाजी नही कीजिए। मेरे बारे में धीरे-धीरे सब जान जाएंगे।
​अनिमेश को राजकुमार की बातों से जबरदस्त धक्का लगा। आगे और कोई बात नहीं हुई। अनिमेश राजकुमार के कमरे से बाहर निकल अपने केबिन में आ गया। सिर को हाथ से थाम टेबिल पर झुक कई तरह से सोचता रहा।
​आॅफिस बंद होने पर शिल्पी अनिमेश के साथ अन्य दिनों की भाँति नहीं निकली। आज वह राजकुमार के पीछे-पीछे निकली। शिल्पी के इस परिवर्तन पर दूसरा धक्का लगा। अनिमेश उधेड़बुन में था। क्या करे, क्या नहीं करे।
​रात के दस बजे के करीब जब अनिमेश सोने की तैयारी में था। शिल्पी का फोन आया। हैल्लो अनिमेश जी।
​बोलो शिल्पी ? सोने वक्त तुम्हारा फोन आया है। शाम से याद नहीं थी। अनिमेश ने कुछ रुखाई से जवाब दिया।
​नहीं सर, ऐसी बात नहीं है। आप नाराज मत होइये। पहले ये बताइये कि आप राजकुमार से क्यों मिल ?शिल्पी ने प्रश्न किया।
​अनिमेश ने प्रत्युत्तर दिया - राजकुमार कोई शेर है कि खा जाएगा। यों ही मिलकर परिचय प्राप्त करना चाहा था।
​सर, आप उससे मत उलझिये। वह पहले के एकाउन्ट आॅफिसर अरुण कुमार का दलाल था। और अब जो वर्तमान एकाउन्ट आॅफिसर है उसका काॅलेज का क्लास फेलो। राजकुमार जो चाहता है। एकान्ट आॅफिसर ब्रजेश वही करता है। आप बेकार के अपमानित हो जाएंगे। राजकुमार जैसे रहता है, वैसे रहने दीजिए। शिल्पी ने एक सच्चे मित्र के समान समझाया।
​अनिमेश ने शिल्पी की बातों पर सहमति देते हुए कहा - ठीक है, जैसा तुम कहती हो वैसा ही करुँगा। फिर फोन गुडनाइट के आदान-प्रदान के बाद डिस्कनेक्ट हो गया।शिल्पी
से बातचीत के बाद प्रश्नों के भंवर में अनिमेश डूबता उतराता रहा। उसे इस निष्कर्ष पर पहुँचने में जरा भी देर नहीं लगी कि राजकुमार और शिल्पी के बीच में कोई कनेक्शन तो है। वरना राजकुमार और उसके वार्तालाप को शिल्पी कैसे जान गयी। देर रात तक नीन्द नहीं आयी। इसी उनीन्दी के बीच अनिमेश ने निश्चय किया ,जो भी हो, अब वह शिल्पी को एक धूर्त व्यक्ति के चंगुल से मुक्त कराकर ही दम लेगा। कार्यालय के सहकर्मियों द्वारा बतायी गयी बातें ,धीरे-धीरे सच लगने लगी थी उसे।
शिल्पी​ अब अनिमेश के केबिन में आना बन्द कर दी थी। परन्तु अनिमेश के समक्ष उसको फाइल रखना पड़ता था। इसलिए वह आती और फिर शीघ्र अपनी कुर्सी पर लौट जाती। शिल्पी के बैठने का स्थान अनिमेश के केबिन के ठीक बगल में ही था। आते जाते अनिमेश की आंखें मिलती। दोनों मुस्कुरा उठते।
शिल्पी अब आॅफिस के बदले फोन पर रात में ही ज्यादातर बात करती। दिल की बात शेयर करने से दोनों ख़ुश रहते। भले आॅफिस में दोनों के बीच बहुत सीमित एवं कार्यालय कार्य से संबंधित बातें ही होती।
​रविवार की छुट्टी में अनिमेश अपने घर बेगूसराय नहीं गया था। सुबह में शिल्पी से बात हुई तो यह जानकार अनिमेश ने शिल्पी को भी दे दी।
​शिल्पी ने कहा - अच्छा हुआ रुक गये। आज का रविवार मेरे साथ बिताइये। मैं गांधी मैदान में दो बजे दोपहर आऊँगी। मैदान की खुली धूप में बैठूंगी,हँसेंगे-बोलेंगे। आएंगे ना सर ?
​तुम बुलाओगी और मैं नहीं आऊँगा।ऐसा नहीं हो सकता ।मैने तो शपथ ले ही ली है। तुम पुकारोगी और मैं हाजिर हो जाऊँगा। अतः मैं दो बजे गाँधी मैदान के पश्चिमी हिस्से में इंतजार करुँगा। अनिमेश ने आश्वस्त किया।
पहली बार शिल्पी और अनिमेश आॅफिस के अतिरिक्त रविवार की छुट्टी में एक दूसरे से मिलने वाले थे। अनिमेश रोमांचित था। वह शादीशुदा था। शादी के बाद किसी परायी स्त्री से मिलने का यह पहला अवसर था। मन-मस्तिष्क में अच्छे-बुरे का तूफान चल रहा था। कभी डरता,कभी रोमांचित हो जाता। कभी पत्नी सुनिधी का चेहरा सामने उभर आता तो कभी शिल्पी का।शिल्पी विधवा जरुर थी। पर थी अतिसुन्दर स्त्री। एक विधवा स्त्री को पुरुष का संबल मिलना चाहिए। सुरक्षा और बेहतर जीवन के लिए पुरुष का साथ समय की माँग है। एक पराया मर्द और एक परायी औरत आज गांधी मैदान के झुरमुटों में मिलने वाले थे।
​दो बजे दोपहर दोनों पहुँच गये गाँधी मैदान के पश्चिमी भाग के लतड़ों ,फूलों वाली झुरमुट के पास। आमने-सामने आते ही शिल्पी और अनिमेश एक-दूसरे से लिपट गये।शिल्पी ने कहा - मेरा साथ कभी मत छोड़ना अनिमेश। मैं अकेली हूँ। इसलिए मजबूर हूँ। सभी मेरी शिकायत करते हैं। मेरी दुखों पर नहीं मेरी देह पर सबकी नजर है। मैं सुन्दर हूँ, इसमें मेरा क्या दोष है। मैं भाग्यहीन हूँ। इसीलिए तो मेरे पति का असमय देहान्त हो गया। मेरी पीड़ा को कोई नहीं समझना चाहता है। मेरी ओर ऊँगली उठे। इसके कारण ढूंढे़ जाते हैं। शिल्पी फफक पड़ी।
​अनिमेश स्वचालित हाथों से उसकी आँख के आंसू पोछे। अनिमेश ने घर परिवार की जानकारी ली, हाल चाल पूछताछ की। कुछ देर बाद पार्क में घूम-घूम कर मूंगफली बेचने वाला पहुँचा। अनिमेश ने दो सौ ग्राम मूंगफली ली। खोंचेवाले ने काले नमक की दो पुड़िये भी साथ में दी।
​ शिल्पी काफी उदास थी। उसकी चुप्पी पर अनिमेश ने पीठ सहलाया, फिर समझाया - आज तुम्हें मेरे साथ खुशी-खुशी रविवार बितानी थी ना। फिर यह चुप्पी छोड़ो। हम दोनों साथ में मूंगफली भी खाएंगे और मीठी-मीठी बातें भी करेंगे। मेरी कसम है तुम्हें।
​शिल्पी ने झट से अपनी हथेली अनिमेश के ओठों पर रख दी और बोली - कसम मत खाना। मैं अपना पति खो चुकी हूँ। अब तुम्हें नहीं खोना चाहता। फिर मूंगफली खाने लगी।
​अनिमेश और बातें भी कर रहे थे और मूंगफली भी चबा रहे थे। मूंगफली खाने में नमक की एक ही पुड़िया खोली। पुड़िया का नमक दोनों साथ-साथ खा रहे थे। लग ही नहीं रहा था कि दोनों अलग-अलग है। इसलिए पार्क के झुरमुटों के इर्दगिर्द बैठे अन्य जोड़ों को भी कोई शक नही हुआ।
​उसी वक्त नींबू की चाय वाला भी निकट आया। दो कप चाय ली और दोनों पीने लगे। गांधी मैदान में सैकड़ों चायवाले नींबू की चाय लेकर घूमते रहते हैं। कभी-कभी तो गांधी मैदान के पार्क में बैठने वाले चाय वाले की आवाज पर खीझ भी पड़ते हैं।
​इधर उधर की बातें अविराम होती रही। दिसम्बर माह के जाड़े का दिन, सूर्य ढ़लने लगा। शिल्पी और अनिमेश अब शीघ्र ही गांधी मैदान से निकलने के लिए खड़े हुए। तभी अचानक शिल्पी चक्कर खाकर गिर गयी।
​अनिमेश झटपट उसे संभाला। सीने पर चार-पाँच बार दबाब दिया ताकि साँसें सामान्य हो जाये। शिल्पी का दिल काफी धीमी गति से धड़क रहा था। धीरे-धीरे धड़कन जब कुछ सामान्य हुआ तो शिल्पी ने बताया - मुझे ’’लो ब्लडप्रेसर’’ है। इसलिए माथा घूम जाता है कभी-कभी । एक सप्ताह पूर्व जाँच करायी थी। कमजोरी के कारण ऐसा हुआ है। हिमोग्लोबिन की कमी है।
​यह सुनते ही अनिमेश ने नमक की दूसरी पुड़िया को खोली शिल्पी के मुंह में नमक डाला और बोतल का मिनरल वाटर पिलाया। लो ब्लड प्रेसर में नमक घोल पिलाना घरेलू और अचूक उपचार है। दस मिनट तक अपनी गोद में शिल्पी का सिर रखकर अनिमेश सहलाता रहा।
​जब शिल्पी सामान्य स्थिति में आयी तब अनिमेश से बोली - अब चलो अनिमेश, धुंधलका होने लगा है। पुष्पम घर पर अकेला है। ढूंढ रहा होगा।
​ठीक कहती हो, चलो चलते हैं।शिल्पी के कमर पर हाथ से सहारा देते अनिमेश बिल्कुल सटकर चलते हुए गांधी मैदान से बाहर आये।
​फिर गेट पर खड़ी आॅटो के ड्राइवर को इशारा से बुलाया। दोनों कंकड़बाग के लिए चल पड़े। रास्ते में चिड़ैयांटांड पुल पार करने पर अनिमेश उतर गया।शिल्पी का हाथ चूमा और विदा किया।
​रात में सोने के समय अनिमेश का मोबाइल बजा। घर से पत्नी सुनिधी का काॅल था। सुनिधी फोन पर काफी दुखी थी। बोली - पहली बार हमदोनों का ’’विकेन्ड’’ साथ-साथ नहीं बीता। आज बहुत बोर हुई दिनभर। आज माॅल में स्वेटर खरीदने थे, ’रोहित’ के लिए,पर तुम्हारे बिना नहीं गयी बाजार।
​सुनिधी मुझे भी आज दिनभर मन नहीं लगा। तुम्हारी याद आती रही। इस बार इसलिए नहीं आया क्योंकि पच्चीस दिसम्बर को बड़ा दिन की छुट्टी है। इस वर्ष के शेष बचे आकस्मिक अवकाश ले लूंगा। एक सप्ताह साथ-साथ रहेंगे। पहली जनवरी में कहीं जाने का भी प्लान बनाएंगे। अनिमेश ने शिल्पी के साथ दिनभर बिताये गये समय को बड़ी सफाई से छिपा लिया।
​सुनिधी ख़ुश हो गयी। फिर अपने पति अनिमेश को शुभ रात्रि कह प्रणाम किया और फोन काट दिया।
​अपनी झूठ पर अनिमेश का दिल जोर-जोर से धड़ रहा था। बड़ी असहज स्थिति बन गयी थी उसकी। पत्नी से बहुत बड़ा झूठ बोला था उसने। यही सोचते विचारते अनिमेश को नीन्द आ गयी।
​साल का अन्तिम सप्ताह आ गया था। इसलिए कई कर्मी अपनी बची छुट्टियां बीताने अवकाश पर चले गये थेकार्यालय खाली-खाली सा था। राजकुमार भी कहीं गया हुआ था। ठण्ड भी काफी बढ़ गयी। आॅफिस के अन्दर भी कंपकंपी लगती थी सुबह-साढ़े दस बजे।
​अनिमेश अपने केबिन में टेबिल हीटर लगा लिया था।शिल्पी दो तीन दिनों से वहीं आमने सामने कुर्सी पर बैठ हाथ सेंकती। इसी दौरान एक-दूसरे को गुदगुदी लगाते, चिकोटी काटते। कभी-कभी अगल-बगल की नजरें बचा शिल्पी के गाल पर चुम्बी भी ले लेते। इस प्रकार दोनों का प्रेम प्रगाढ़ बन गया था। अनिमेश अपने तय कार्यक्रम के अनुसार बड़ा दिन की छुट्टी के साथ एक सप्ताह का अवकाश लेकर बेगूसराय चला गया।
​एक जनवरी को नये साल की खुशियां मनाने अनिमेश अपनी पत्नी सुनिधी, पुत्र रोहित व पुत्री रम्मी के साथ दार्जिलिंग चला गया। महाकाल मन्दिर दर्शन के दौरान शिल्पी का काॅल आया। मोबाइल पर स्वर उभरा - ’’हैप्पी न्यू ईयर माई डियर।’’
​’’सेम टू यू’’, कहकर अनिमेश फुसफसाया -अभी भीड़ में हूँ पत्नी भी साथ में है। बाद में मैं इधर से ही बात करुँगा।
सुनिधी ने बात करते देख अनिमेश से पूछ ली - किसका फोन था ?
किसी का गलत नम्बर लग गया। मैंने कह दिया - राँग नम्बर है। अनिमेश को अब शिल्पी से बात करने की बेताबी थी। मन्दिर से निकलने के बाद चढ़ावा खाया। फिर कंचनजंघा होटल में सपरिवार नाश्ता किया। और फिर दार्जिलिंग के निकटस्थ हिमालयन रेलवे के टाॅय ट्रेन पर पुत्र और पुत्री को चढ़ाने निजी कार से निकल पड़े। एक ’’गाइड बुक’’ मन्दिर की बगल के स्टाॅल से खरीद ली ताकि सुविधा हो घुमने फिरने में। दो घण्टे दर्शनीय जगहों को देखने के बाद एक जगह गाड़ी रोकी। राॅयल बंगाल रेस्टूरेन्ट में दोपहर का खाना खाने के लिए बैठे। बंगाल की प्राउन (झींगा) मछली के कई आइटम के पूरे डिस का आर्डर देकर अनिमेश हाथ मुँह धोने ’वाशरुम’ में घुसा। वहीं से मोबाइल फोन पर शिल्पी से बातें की और पूछा - तुम कहाँ घूम रही हो आज।
शिल्पी​ ने जवाब दिया - संजय चिड़ियाखाना में बेटा और बहन के साथ हूँ। घर से ही आलू पराठा ,सेंडवीच,मालपूआ आदि बनाकर लायी हूँ। यहीं खाने की तैयारी कर रही हूँ। फिर पूछा - आपने खाया।
​मैं भी खाने के लिए होटल राॅयल बंगाल में बैठा हूँ। यहीं वाशरुम से ही छिपकर बातें कर रहा हूँ। अच्छा बताओ ,तुम्हारे लिए क्या लाऊँगा।
शिल्पी​ ने कहा - जो तुम्हारी पसन्द हो । मैं वही लूंगी।
​तो ठीक है, यह सरप्राइस मैं पटना आने पर ही दूंगा। अभी कुछ नहीं कहूंगा। ओके। बाय।
दार्जिलिंग के सुपर मार्केट में लगे ज्वेलरी शाॅप में अनिमेश ने गोल्ड इयरिंग एवं सिल्वर ’’की-रिंग’’ ली। ’’की-रिंग’’ पर हैप्पी न्यू ईयर एवं का नाम खुदवाया।शिल्पी के लिए विशेष रुप से ख़रीदी इस गिफ्ट को अनिमेश ने पत्नी की आँखें बचाकर अपने बैग के इनर वैलेट में रख दिया।
​अनिमेश दार्जिलिंग से लौटने के बाद पत्नी-बच्चों को बेगूसराय में छोड़ अगले दिन पटना चला आया। कार्यालय में सबों ने बारी-बारी से अनिमेश को नववर्ष पर ’विश’ किया। जब अनिमेश अपनी कैबिन में बैठ गया और कुछ देर फाइलों पर काम किया। तब शिल्पी भी कुछ फाइलों के साथ पहुँची। फाइल टेबिल पर रखकर बोली - सबसे अन्त में मेरा ’न्यू हैप्पी ईयर। आई विश यू दी-बेस्ट न्यू ईयर आॅफ योर लाइफ। फिर हाथ आगे बढ़ाई।
​अनिमेश ने हाथ मिलाते हुए कहा - वेस्ट फ्रेंड का विश स्वीकार किया। अब अपना गिफ्ट स्वीकार करो। अपने जैकेट की जेब से ’’ईयरिंग’’ और ’’की-रिंग’’ का डब्बा थमाया।
शिल्पी​ लेती हुई, अपने देह पर ओढ़े ’षाॅल’ के अन्दर छिपा ली। जल्दी-जल्दी अपनी सीट पर आयी और वेनाइटी बैग में बिना कुछ देखे रख ली। पर मन में ऊथल-पुथल और रोमांच था। उसे गिफ्ट देखने की बैचेनी थी। जैसे तैसे दिन बीता। षिल्पी अनिमेष से केबिन में जाकर ’बाय’ की और निकल गयी कार्यालय से।
​जैसा कि रात में एक तरह से समय निर्धारित था।दस बजे रात के करीब अनिमेश को मोबाइल काॅल आया। दूसरी और शिल्पी ही थी। उसने कहा - ’’थैंक्स फाॅर सुपर गिफ्ट। आइ लव यू अनिमेश।’’ इस गिफ्ट को अपने प्यार की याद में संभालकर रखूंगी।
​अनिमेश ने जवाब दिया - मुझे तुम पर विश्वास है, तुम मुझे नही भूलोगी।
​फिर दार्जिलिंग के सैरसपाटे के बारे में बात करते रहे। अन्त में शिल्पी ने दर्द भरी आवाज में कहा - ’’मेरे नसीब में घूमना-फिरना तो लिखा नहीं।’’
​किसके भाग्य में क्या लिखा है, यह कोई नहीं जानता - अनिमेश भी गंभीर हो गया।
​दोनों ने आपस में ’गुडनाइट’ कहकर फोन डिस्कनेक्ट कर लिया।
​अनिमेश के प्रभाव में शिल्पी इतनी अधिक मुग्ध थी कि अनिमेश कभी कभार जोर से भी डांट देता तो वह जवाब नहीं देती। हँसकर बोलती - अभी तक मुझे कोई डांटने वाला नहीं था। मैं बदमाश बन गयी हूँ। अनिमेश के लिए मधुर भाषी शिल्पी कार्यालय के लिए एक झुगडालू, चरित्रहीन, मनबढ़ू औरत के रुप में चर्चित थी। अपने साथियों के समझाने के बावजूद अनिमेश उससे अलग नहीं हो पा रहा था। हालांकि राजकुमार के पास शिल्पी का खुलेआम आना-जाना एवं बैठना ,अनिमेश से अंतरंग निकटता के बावजूद वदस्तूर जारी था।
​अनिमेश शिल्पी के दोहरे चरित्र को समझ नहीं पा रहा था। वह सोचता-आखिर मेरे साथ प्रगाढ़ अपनापन दिखाने वाली शिल्पी, राजकुमार के सामने भींगी बिल्ली क्यों बन जाती है। कोई राज तो अवश्य है। इस राज को जानना और शिल्पी से उगलवाना जरुरी है।
​आज एक निर्णय के साथ अनिमेश आॅफिस आया था। आज उस पर्दे को हटाना चाहता था। उस सवाल का जवाब चाहता था जो सम्पूर्ण कार्यालय का था। कुछ दिनों से उसके मन मस्तिष्क को भी झकझोर रहा था।
कंपकपाती ठंडक के कारण मोटे ऊलेन कार्डिगन पर शाल ओढ़े शिल्पी खांस रही थी। अनिमेश को देखते ही बोल पड़ी- जल्दी से ’’टेबिल हीटर’’ आॅन करिये सर। मुझे बहुत ठण्ड लग रही है।
​अनिमेश केबिन में बैठते ही ’हीटर’ आॅन कर दिया।
शिल्पी केबिन में आकर हीटर की गर्मी में हाथ सेंकने लगी।
​अनिमेश उसकी हथेली अपने हाथ में लेकर रगड़ने भी लगा। दस-पन्द्रह मिनट में शिल्पी की कंपकंपाहट कम हुई। अनिमेश ने कुछ देर और बैठने कहा शिल्पी को।
​शिल्पी बैठ गयी।
​यही मौका था कि अनिमेश अपना सवाल पूछ सकता है। अनिमेश ने कहा - तुमसे पहला और अन्तिम प्रश्न पूछना चाहता हूँ। यह सवाल मेरा भी है और अन्य सहकर्मियों का भी है। जवाब दोगी तो भी ठीक, नहीं दोगी तो भी ठीक। मैं दुबारा न तो पुछूंगा ना दबाव दूंगा।
शिल्पी​ ने कहा - पूछिये।
​अनिमेश ने पूछा - राजकुमार ना तो तुम्हारा रिश्तेदार है ना ही आॅफिस का एसिस्टेन्ट। फिर भी तुम उसके साथ घण्टों बैठती हो। राजकुमार के साथ तुम्हारी इस नजदीकी का क्या कारण है ?
​शिल्पी ने जवाबी प्रश्न पूछा - यह कौन सा सवाल है। यह क्यों पूछ रहे हैं।
​इसलिए पूछ रहा हूँ कि तुम्हारे अतिरिक्त यहाँ छह और महिलाएं कार्यरत हैं। दर्जन भर पुरुष भी आॅफिस में पदस्थापित हैं। उन सबों की नजरों के सामने एक गैर विभागीय व्यक्ति के साथ तुम्हारा बेशर्मी से घण्टों बतियाना, उठना-बैठना तुम्हारे चरित्र पर प्रश्न चिन्ह है शिल्पी। अन्य महिलाएं तो कभी नहीं जाती उसके पास।
शिल्पी​ ने कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया। वह अनिमेश के सामने से उठकर चली गयी।
​दो घण्टे बाद अपनी संचिकाएं लेकर पुनः आयी। शिल्पी फाइल रखते हुए बोली - कोई त्रुटि मिले तो बुला लेंगे मुझे। फिर तुरन्त लौट गयी।
​शिल्पी के व्यवहार से अनिमेश को जवाब मिल गया था। राजकुमार से हुए बर्ताव के बाद, पुनः आज दूसरी बार शिल्पी के मौन बर्ताव पर वह उद्विग्न हो गया था। काम में मन नहीं लग रहा था। इसलिए थोड़ी देर बाद कार्यालय से निकल पटना ’’कैलेक्ट्रियट गंगाघाट’’ की सीढ़ियों पर जाकर बैठ गया। मन में विचारों की विश्रृंखलित एवं डरावनी लहरें उठ गिर रही थी। शिल्पी ने अनिमेश के अस्तित्व को क्षत-विक्षत कर दिया था। अब घोर अवसाद में पहुँच गय अनिमेश।
शिल्पी​ वास्तव में दोहरा चरित्र जी रही है। एक तरफ अनिमेश से झूठे प्रेम का ढ़ोंग कर रही है, दूसरी तरफ राजकुमार के इशारों पर नाच रही है। कोई तो बड़ी वजह है। यक्ष प्रश्न पुनः अनिमेश के जेहन में उभरा। अब वह उस ’वजह’ पर केन्द्रित हो गया जिसने शिल्पी को मजबूर बनाकर रख दिया है। ऊहापोह की स्थिति में अनिमेश लौटकर आॅफिस नहीं आया,सीधा अपने क्वार्टर चला गया। क्वार्टर पहुँचने के बाद अनिमेश शिल्पी को काॅल किया। पर उसने काॅल काट दिया। तब मैसेज किया - मैं जानता था कि तुम मेरा काॅल काटोगी। अब जब भी मुझे मैसेज या काॅल करोगी। समझ बूझकर करना।
​दो घण्टे बाद नये नम्बर से एक काॅल आया। फोन पर शिल्पी थी। शिल्पी ने कहा - बोलिये।
​अनिमेश ने जवाब दिया - क्या बोलूं।
​शिल्पी ने पुनः पूछा - रिंग किये थे ना आप ,दो तीन घण्टा पहले।
​अनिमेश ने कहा - हाँ, उस समय बोलता, अब बोलने के लिए कुछ भी नहीं है। परन्तु ,तुम्हारे फोन का यह नया नम्बर है ? इसके पहले तो इस नम्बर से कभी बात नहीं हुई है।
शिल्पी​ ने ’हाँ’ कहते हुए बताया - मैं टेलीफोन बूथ से बात कर रही हूँ। मुझे अपने मोबाइल से काॅल करने एवं मैसेज करने में प्राॅब्लम है।
​अनिमेश चौंक उठा ।उसे जरा भी यह समझने में देर नहीं लगी कि इसके पीछे राजकुमार का ही हाथ होगा। उसने शिल्पी से पूछ लिया - आखिर हुआ क्या है तुम्हें।
शिल्पी​ ने जवाब दिया - सब बताऊँगी, पर अभी नहीं।
​अनिमेश ने जोर देकर पूछा - तुम्हें बताना होगा।
पर बूथ से आया काॅल कट गया।
​अगले दिन आॅफिस में नये साल के प्रथम सप्ताह की चहल पहल थी। घूम-घाम कर कर्मचारी लौटे थे। इसलिए न्यू ईयर की हँसी खुशी, घूमने फिरने, पिकनिक मनाने की बातें एक दूसरे को सुना रहे थे।
परन्तु अनिमेश गुमसुम था। उसकी नजर शिल्पी पर थी। वह काफी सहमी हुई थी। दो-तीन बार राजकुमार उसके पास आया था। वह कुछ फुसफसा रहा था। अचानक शिल्पी उठी और अपनी महिला सहकर्मी ’’रीना’’ की बगल में जाकर बैठ गयी।
​राजकुमार भी उसी के सामने की कुर्सी पर शिवशंकर की बगल में बैठ गया। वह शिल्पी को जलती आँखों से घूरने लगा। इसी बीच ’एकाउण्ट आॅफिसर’ ने अनिमेश को अपने चैम्बर में बुलाया। अनिमेश ने चैम्बर में प्रवेश कर अभिवादन किया।
​एकाउन्ट आॅफिसर ब्रजेश ने बैठने का इशारा किया। फिर बोला - राजकुमार मेरे आदेश पर इस कार्यालय में आता है। यहाँ के कार्य में मदद करता है। इसलिए उसको आप कुछ नहीं कहेंगे। समझ गये ना।
उतरा चेहरा लिए अनिमेश एकाउन्ट आॅफिसर के निकट से लौटकर अपनी केबिन में आ गया । थोड़ी देर बाद देखा कि राजकुमार शिल्पी के कम्प्यूटर को उठाकर रीना के निकट के खाली स्थान पर रख दिया और केबुल से जोड़ने का काम करने लगा। ज्वाइनिग दिन से शिल्पी इसी जगह बैठती रही थी, पर अचानक उसके बैठने की जगह बदल गयी।
​शिल्पी जल्दी-जल्दी अपने सभी जरुरी पत्रादि एवं संचिकाएं नयी जगह पर रख रही थी। सबसे अन्त में अपने ड्रावर की चाभी जब चंदन के हाथ में थमायी तो उसके बाजू में बैठने वाला डाटा आॅपरेटर राजन, अनिता व संतोष ने एक स्वर में टोका - मैडम, क्यों जा रही हैं, हमलोगों से कोई गलती हुई क्या ? उधर बैठने मत जाइये। हम सब आपका कम्प्यूटर फिर से यहीं लाकर सेट कर देते हैं।
शिल्पी​ ने सपाट शब्दों में जवाब दिया - अब मैं यहाँ नहीं बैठूंगी।
​उसी वक्त अनिमेश भी वहाँ पहुँच गया और पूछा - तुम किस कारण से जा रही हो, बताओ ।
शिल्पी​ ने अनिमेश की ओर देखे बिना सबों को सम्बोधित करते हुए कहा - आप सबों से कोई कष्ट नहीं। मैं यों ही वहाँ जा रही हूँ। मैं तो कार्यालय से भी चली जाऊँगी।
​अनिमेश स्तब्ध था। पर इतना तो विश्वास हो गया है कि जो कुछ भी हुआ है, वह राजकुमार के दबाव में ही हुआ है। अनिमेश को ऐसा सदमा लगा कि अब वह शिल्पी से बोलना ही बंद कर दिया।
​रीना की बगल में शिल्पी को बिठाकर राजकुमार काफी ख़ुश था। वह जब चाहता शिल्पी की बगल में बैठकर कम्प्यूटर चलाने के बहाने बातें करता। शिल्पी भी खूब बतियाती।
​इस घटना क्रम के ठीक अगले दिन फिर ’’टी-ब्रेक’’ में अनिमेश को रमेश शुक्ला, मिथिलेश ,शिवशंकर, उमेश शर्मा चाय पीने के लिए कैंटिन ले गये। चाय पीने के दौरान उमेश ने कहा- मेरी बात याद कीजिए अनिमेश सर। दो सप्ताह पहले मैंने कहा था ना कि चरित्रहीन औरत है। वह राजकुमार की चंगुल में है। उसके साथ अवैध संबंध है। उसके सिवा जिस भी किसी से हँसती -बोलती है, वह मात्र दिखावा है। देखा ना आप, किस तरह अंगूठा दिखाकर अपने यार के इशारा पर निकल गयी आपको छोड़। आप का घुलना-मिलना राजकुमार को बर्दास्त नहीं हुआ। राजकुमार ने आपको दिखा दिया कि शिल्पी सिर्फ उसी के हाथों की कठपुतली है। वह उसी के ’पिंजड़ा’ में कैद चिड़ियां है।
​ अनिमेश जवाब नहीं दे सका।वह कैसे कहे कि शिल्पी एकांत क्षणों में उसकी गोद में सिर रखकर प्रेम की क़समें खा चुकी है। परन्तु ,यह भी सत्य है कि राजकुमार के बारे में पूछने पर भी कुछ नहीं बताया। उसने उस क्षण को भी याद किया, जब राजकुमार से आॅफिस ऑवर में खुलेआम मिलने का कारण पूछा था।इस प्रश्न के बाद शिल्पी में परिवर्तन साफ दिखने लगा। और कल की घटना ने तो सबकुछ आयना के समान साफ कर दिया।
चाय पीकर सभी लौट आये। सामने गेट पर ही शिल्पी और राजकुमार ठठाकर हँस रहे थे।
​अनिमेश ग्लानि महसूस कर रहा था। अपने केबिन में बैठा वह सोच रहा था - एक धूर्त ने उसे हरा दिया। शिल्पी का कोई गहरा राज उसके पास दफ़्न है। इसलिए शिल्पी मजबूर है। उसकी चंगुल से निकलना बहुत मुष्किल है। अनिमेष गुमसुम रहने लगा। कार्यालय कार्य के अतिरिक्त किसी से कोई बातचीत नहीं करता। इस कार्यालय में उसका बने रहना अब असह्य हो गया निदेशक से मिलकर अपनी डेपुटेशन भागलपुर में फिर से करवा ली।अब वह शीघ्र यहाँ से विरमित हो जाना चाहता था। कार्यालय आदेश निकला। और अनिमेश उसी दिन पटना कार्यालय को अलविदा कह दिया। शिल्पी को ना तो टोका ना उसकी ओर देखा।
शिल्पी को जैसे ही यह जानकारी मिली कि अनिमेश पटना से पुनः भागलपुर डायरेक्टर के आदेश पर जा रहा है, तो उदास हो गयी, चेहरा मुरझा गया। अब वह अनिमेश से मिलने को बेताव थी। अनिमेश के क्वार्टर पहुँचने का रास्ता जानती थी। एक बार अनिमेश की जिद पर उसके क्वार्टर को देखने गयी थी। हालांकि शिल्पी क्वार्टर के कमरे में नहीं गयी थी, ना अनिमेश उसे अन्दर ले गया था। शिल्पी कार्यालय बंद होने से कुछ मिनट पहले ही निकल गयी। गांधी मैदान स्थित मोना सिनेमा के निकट के स्टैंड से आॅटो रिजर्व की और नेहरु नगर स्थित अनिमश के क्वार्टर तक पहुँच गयी।
​अनिमेश क्वार्टर में अपने सामान समेट कर पैकिंग करने में व्यस्त था। क्वार्टर में ज्यादा सामान नहीं था। प्लाईवुड का फोल्डिंग काॅट , दो फोल्डिंग चैयर और टेबिल ही था। विछावन को होल्डआॅल में समेट लिया था।
​ शिल्पी धरधराते हुए अन्दर पहुँच कर अनिमेश के सामने खड़ी हो गयी।
​अचानक शिल्पी को देख अनिमेश हतप्रभ रह गया। पर मुँह से कोई शब्द नहीं निकला।
​शिल्पी दो मिनट मौन रही। उसके आँखों से आंसू छलछलाने लगे। उसने बेलौस कहा - आपने मेरे कारण यहाँ से ट्रांसफर कराया है। आपने मेरे कारण एक मक्कार और फरेबी से हार खायी है। यह हार आपकी नहीं मेरी भी है। मैंने सच्चे दिल से आपको अपना माना है। पर मैं ऐसी मजबूरी में हूँ कि अब जीवन से मुक्ति चाहती हूँ। आपने पूछा था ना कि खुलेआम तुम राजकुमार के पास बेशर्म की तरह क्यों बैठती हो, हँसती बोलती हो। उस दिन मैंने आपको जवाब नहीं दिया था। पर अब आप यहाँ से जा रहे हैं तो मैं सब कुछ बताऊँगी। ताकि आपके मन में मेरे प्रति जो भी दुर्भावनाएं व धारणाएं है, वह मिट जाए।
​ शिल्पी ने कहा, सुनिये - मैं जब पहले-पहल योगदान दी तो कम्प्यूटर की कोई जानकारी नहीं थी। राजकुमार कम्प्यूटर के रख-रखाव का ठेका लिए था। उसने मुझे कहा, चिन्ता नहीं करें, मैं कम्प्यूटर चलाना सिखा दूँगा। इसी कारण वह मुझे कम्प्यूटर सिखाने के नाम पर अपने कमरे में बिठाने लगा। उसने लालच दी और अपना वर्चस्व प्रदर्शित करते हुए बताया कि एकाउन्ट आॅफिसर मेरा दोस्त है। आपको अच्छी अच्छी संचिकाएं प्रभार में दिलवा दूंगा।
​एकाउन्ट आॅफिसर अरुण कुमार से उनके क्वार्टर पर मिलवाने तथा कार्य प्रभार दिलाने का आश्वासन देकर मुझे साथ ले गया। राजकुमार स्वंय शादीशुदा दो बच्चों का बाप है।
​रास्ते में उसने बताया - साहब अभी क्वार्टर पर नहीं है। शाम में लौटेंगे। तब तक चलो मेरे घर में रुकना। मेरी पत्नी के साथ समय बीताना।
​शिल्पी ने आगे कहा - मैंने उसकी बात मान ली। राजकुमार की पत्नी के साथ थोड़ा समय काटने में कोई परेशानी नहीं थी। उसके घर पहुँचने पर कमरे में ताला लटका मिला।
​राजकुमार ने अनभिज्ञता प्रकट करते हुए कहा - अरे, मालती कहाँ चली गयी। रुको मैं फोन से पता करता हूँ। उसने फोन पर हाय हैल्लो किया फिर जेब से चाभी निकाली और ताला खोलते हुए कहा, मेरी पत्नी मालती अचानक अपनी बहन शान्ति के यहाँ राजेन्द्र नगर चली गयी है। शान्ति की नवजात बेटी की तबीयत थोड़ी बिगड़ गयी थी। वह भी आ जाएगी, तबतक तुम कमरे में बैठो। मैं कुछ नाश्ता ले आता हूँ। मुझे बिठाकर राजकुमार निकल गया। आधे घण्टे बाद आया तो एक पतोले में जलेबियां और समोसे ले आया। मेरे सामने खुद ही प्लेट में चार जलेबियां और दो समोसे रख दिया। और साथ-साथ खाने बैठ गया। मेरी बगल में जब राजकुमार बैठा तो उसके मुँह से शराब की गंध आ रही थी। मैं सकपका गयी और सशंकित भी हो उठी। पर उसे यह भान नहीं होने दिया। एक जलेबी खाने को उठायी तो उसका हरा रंग देखकर चौंकते हुए राजकुमार से पूछ ली, जलेबी का रंग क्यों हरा-हरा है ? जवाब में उसने कहा - खा लो, तब स्वाद बताना। यह माखन हलुआई की दुकान की प्रसिद्ध जलेबी है। स्वादिष्ट लगी तो मैंने एक नहीं चारो जलेबियां खा ली। समोसा नहीं खाया। जलेबी खाने के पांच मिनट बाद मेरा सर घूमने लगा। राजकुमार अपनी बांहों में लेते हुए ललाट सहलाने लगा। धीरे-धीरे उसके हाथ मेरे बदन और हर अंग पर चलने लगा। मुझे अति आनन्द आने लगा। लगभग दो वर्षों से मैं पुरुष संसर्ग से दूर थी। राजकुमार का स्पर्श पाकर मैं भूल गयी कि विधवा हूँ। राजकुमार और मैं एक दूसरे में समा गये। मुझे कुछ होश नहीं रहा। उस रात मैं राजकुमार के ही घर में रही। शातिर राजकुमार नशा में धूत होकर रातभर कई बार मेरा यौन शोषण किया। पर यह भी सच है कि मैं उसका विरोध भी नहीं कर सकी। काम सुख में डूबती गयी। सुबह जब मैं होश में आयी तो पूरा शरीर टूट रहा था। राजकुमार अर्द्धनग्न मेरे बगल में बेड पर सोया था। मैंने झटपट अपने को संभाला, पर मैं लुट चुकी थी। अपने बेटा को छोड़ रात भर मैं घर से गायब थी। मेरा हाल बयान लायक नहीं था। मैं सोचने लगी कि आखिर यह सब हुआ कैसे ? मैं तुरन्त राजकुमार के घर से निकल कर अपने घर आ गयी। और अपनी बहन को यह समझाने में असफल रही कि अपनी आॅफिस की सहेली के घर रात में रुकी थी। मेरा बेटा पुष्पम भी जोर-जोर से रो रहा था। मुझे देखते ही बहन सबकुछ समझ चुकी थी। उसने स्पष्ट कहा - तुमने किसी के साथ मुंह काला किया है। मैं ’हाँ’ में सिर हिलाकर पूरी घटना बतायी।
मेरी बहन माला ने कहा - तुम्हारी जलेबियों में भाँग मिलाया हुआ था। इसलिए हरी थी। ’भाँग’ एक नशीला पौधा है जिसकी पत्तियों के चूर्ण खाने से नशा आता है।
मैं अपराध बोध में डूबी थी। पर उस घटना के बाद राजकुमार मुझे अपनी जागीर समझने लगा। उसने मोबाइल पर मेरी नंगी तस्वीर भी ले ली थी। जब मन होता, वह मेरे साथ आॅफिस में भी यौन शोषण करता। मैं उससे मुक्त होने का मार्ग ढूंढकर थक चुकी हूँ, पर मेरी नियति ’पिंजड़ा में कैद चिडियां’की हो गयी है। वह मेरा किसी अन्य मर्द के साथ हँसना-बोलना बर्दास्त नहीं कर पाता है। आपके साथ मेरी नजदीकियां देखकर आगबबूला हो गया है। फिर अपनी पीठ दिखायी और बोली ,मेरी पीठ पर निशान देखिये। मुझे उसने स्टीक से पीटा है और धमकी दी कि अनिमेश की बगल से तुरन्त हटो वरना तुम्हारी नंगी तस्वीर कार्यालय के सभी कर्मियों के मोबाइल पर ’’एम एम एस’’ कर बर्बाद कर दूंगा तुम्हें ।मैं काँप उठी औैर उसकी बात मान कर रीना के बगल में बैठने चली आयी। मेरा यही सच है, शायद राजकुमार के पिंजडे़ से निकलने के लिए एक मात्र रास्ता आत्महत्या ही है। पर छोटी उम्र का पुष्पम, उसका क्या होगा। यही सोचकर राजकुमार की कुत्सिक हरकत स्वीकारने को मजबूर हूँ। आपके साथ मुझे सच्चा प्रेम हो गया है। सच्चे प्रेम के बदले में मुझे जो सजा देनी हो दीजिए। मैं अपराधी हूँ।आपका दिल दुखाया है।
​अनिमेश शिल्पी की पूरी कहानी सुनकर स्तब्ध था।आँखें डबडबा गयी । सामाना समेटना छोड़ गले लगा लिया।
​अनिमेश ने दृढ़ता से कहा - अब राजकुमार जेल जाएगा ।सुबह मेरे साथ चलकर थाना में प्राथमिकी दर्ज कराओगी ।अब मैं तेरा साया हूँ । तुम आज से ही पिंजड़ा से आजाद हो गयी है।

•मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह
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