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कठपुतली



'कठपुतली‘
मेनका की शादी की लगभग सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थी। आज की रात ही मेनका की शादी थी। मेनका की शादी उसके पिता ने अपनी पसंद से तय की थी।
मेनका का होने वाला पति इंजीनियर था। लड़का के पिता कमलेश्वर जाने माने सर्जन थे। लड़के वाले कुल मिलाकर काफी धनी थे। मेनका का जीवन आनन्दमय बीतेगा यही सोचा था योगेश बाबू ने।
योगेश बावू भी आयकर विभाग में आयुक्त थे। लड़की की शादी काफी धूमधाम से हो रही थी ,खर्च की कोई सीमा नहीं थी।
शाम ढ़लने से पूर्व बारात गांव आ गयी। डा॰ कमलेश्वर भी अपनी शान के मुताबिक ठाठ बाट से बारात लाये थे। नाच गान का भी इंतज़ाम था।लगभग आठ बजे योगेश बावू और डा॰ कमलेश के आपस में गले मिलकर समधी मिलन हुआ। पटाखे और लौकियों की तो उस समय बाढ़ आ गयी थीं।आकाश रंग बिरंगी रोशनी से नहा गया।पर धुआँ के ग़ुबार से वायु प्रदूषित ज़रूर हो गयी।
"वरमाला‘‘ का शहरी रश्म पूरा हुआ। आधुनिक लड़की से भिन्न सिकुड़ी मेनका का दिल धौंकनी के समान धकधक कर रहा था। उसकी शादी माँ बाप के द्वारा ढूँढे वर से हो रही थी ।आज अनजाने मर्द के साथ जिन्दगी भर के लिए बंधेगी। शादी के बाद वह सम्पूर्ण उसकी हो जायगी। ससुराल वाले किस स्वभाव के होंगे ? पति किस प्रकृति का होगा?इत्यादि बातें सोचती हुई वह सहम उठी थी।
मेनका स्नातक थी। परन्तु आधुनिक नहीं थी। उच्च सोसायटी में पलकर भी वह उनमुक्त नहीं थी। अजीब रूढ़िग्रस्त संस्कारों से लदी थी। फैशन से परहेज, पुरूषों से बातचीत में सकुचाहट होती।प्रत्येक दिन एक से दो घंटे देवी देवताओं की पूजा करने में लगी रहती।रामायण पाठ उसकी आदतों में शामिल था। बेदाग-चरित्र वाली मेनका अन्तर्मुखी थी। महाविद्यालय की सह शिक्षा में पढ़ लिखकर भी लड़कों के प्रति उपेक्षा की एक सीमा रेखा खींचकर तेईस वर्षों की हुई थी। डैडी की खोज शेखर आज उस सीमा रेखा को पार कर उसके करीब आयगा पति के रूप में। सामाजिक मान्यताओं एवं विवाह संकल्पों के अनुसार पति नारी के लिए परमेश्वर माना जाता है।बस अब तो शेखर के लिए मरना और उसी के लिए जीना कर्तव्य है जिसे व्रत के समान पालन करना है। धीरे-धीरे शेखर के प्रति एक अपना सा आकर्षण जन्म लेने लेगा।
रात भर विवाह रश्मों के बीच शेखर के संग मंत्रोच्चारण करती मेनका एक विवाहित औरत बन गयी। मांग में लाल सिन्दूर पुत गया और गले में मंगलसूत्र लटक गया। शेखर के प्रति समर्पण और अपनापन ही उसकी पूंजी होगी। बाइसवीं सदी में भी समाज पुरूष की प्रधानता पर टिकी है।
हर्ष -विषाद के मिश्रित वातावरण में घर के लोगों ने मेनका को ससुराल के लिए विदा किया। मेनका सुबकती हुई अंजानों की टोली के संग सजी धजी कार में बैठ ससुराल चल पड़ी। कार की पिछली सीट पर उसकी बगल में जीवन साथी शेखर बैठ गया । नवदम्पति के सिवा कार में ड्राइवर था।
ड्राइवर मुख्य सड़क पर आते ही कार तेजी से चलाने लगा। कार की पिछली सीट पर बैठी मेनका घूंघट सरका कर सिर उठाया। पहले कुछ क्षणों तक शेखर को अपलक देखती रही। लव खुलने को ही थे कि एक जोरदार झटके के साथ कार खड्ड में गिरकर उलट गयी।
शेखर का सिर बुरी तरह कुचल गया था। उसके प्राण पखेरू तत्क्षण उड़ गये थे। बगल में बैठी मेनका के शरीर पर हल्की चोट थी, परन्तु वह भी बेहोश थी। उसे लेकर कुछ लोग अस्पताल चले गये।
डोली की जगह अर्थी पहुँचते ही घर में कुहराम मच गया। शेखर की माँ पछाड़ खाकर गिर पड़ी। सम्पूर्ण घर में क्रन्दन होने लगा। इस अशुभ शादी का दोष हर कोई मेनका पर मढ़ रहे थे। अस्पताल में कुछ घंटों के बाद होश आने पर मेनका व्यग्रता से शेखर के बारे में पूछ रही थी। सबों के चहरे को पढ़कर वह समझ गयी कि शेखर अब नहीं रहा ।अचानक जोर से चीखी वह, फिर बिल्कुल गुम हो गयी।
घटना की खबर मिलते ही योगेश बावू और उनका छोटा भाई जयंत अस्पताल आये और अपनी विधवा पुत्री को लेकर घर आ गये।
मेनका की मांग का सिन्दुर धुल गया। अब मेनका सहानुभूति की मूर्ति बन गयी। हर जगह गांव की गली-चैपाल में उसी के दुख और दुर्घटना की चर्चा होने गली। मेनका सूनी आँखों में एक टक छत को घूरती रहती, कभी सुबकियां लेने लगती और बेहोश हो जाती।शेखर से दो शब्द बोल भी तो नही सकी, फिर उसकी कौन सी याद वह दुहराये। रात भर का विवाह रश्म उसे विधवा बना गया।
ससुराल वालों के लिए मेनका एक अपशकुन बन गयी। परन्तु, मेनका इस वैधव्य का दोष किसे दे। उसके अंदर चलने वाली आंधी का अहसास किसी को नहीं था। वह विधवा शब्द सुनकार विक्षिप्त होने लगी। बाईस -तेईस वर्ष की मेनका के पति के रूप में स्वर्गीय शेखर का नाम जुड़ गया था।
गूंगी बनी मेनका चुपचाप एक कमरे में पड़ी रहती, ना खाने की सुध ना सोने की चिन्ता। एकाकी एकांत मेनका को वैधव्य की पीड़ा ने बिल्कुल हिला दिया था।
एक दिन उसके काॅलेज की कई सहेलियाँ दुखद सामाचार सुनकर उससे मिलने गांव आ गयीं। मेनका की सभी सहेलियां उच्चाधुनिक, प्रगतिशील विचारों की थी। एक मात्र रूढ़िग्रस्त थी तो मेनका ही जिसके साथ नियति ने भी क्रूर मजाक किया था। वह रीति रिवाजों के सलीब पर लटकी थी।
मेनका की एक अभिन्न सहेली रागिनी ने कहा-मेनका !तू अपनी हालत सुधार। तुम्हें विद्रोह करना होगा, इस समाज के खिलाफ, रीति रीवाजों के खिलाफ। तू क्या जानती है उस पति के बारे में जिसका साथ एक दिन का नहीं रह सका। उतार ये मनहूस साड़ी। तोड़ दे समाज के खोखले बंधनों को, लिजलिजे मान्यताओं को, दोगली नीतियों को। पत्नी मर जाये तो पुरूष सभी बंधनों से मुक्त रहे और अगर पति मर जाये तो औरत सभी बंधनों से जकड़ी रहे। तू शिक्षित लड़की है जिसे अपना भविष्य स्वयं तय करना है। कठपुतली बनकर समाज की उँगलियों पे मत नाच। अब अगर चुप रहेगी ,तो तेरी जिन्दगी उजड़ जायगी। सभी सहेलियों ने मेनका के शरीर पर से साड़ी उतार सलवार सूट पहना दिये। माथे पे बिंदी, आँखों में काजल, बालों में फूलों का गजरा लगा दिया। कुछ दिन साथ रहकर मेनका के दिलो दिमाग से वैधव्य का भय निकाल दिया सबों ने।
घरवालों ने कोई विरोध नहीं किया। वे सभी मेनका को खुश देखना चाहते थे।
धीरे-धीरे मेनका अपने एक दिन के पति और ससुराल वालों को भूलने में सफल हो गयी। वह कुंवारी लड़की सी रहने लगी। उसे अब अहसास ही नहीं रहा कि वह विधवा है। घरवाले उसे कभी नहीं छेड़ते क्योंकि वे सभी मेनका का अंधकार पूर्ण भविष्य जानते थे। मेनका इस बात से बेखबर थी। वह नयी राह पर नयी उम्मीद से आगे बढ़ रही थी। राह में पड़ने वाले ठोकरों को पार करने को दृढ़ हो चुकी थी।
शनैः शनैः घटना के तीन साल बीत गये।
एक रात मेनका सोने ही वाली थी कि अचानक उसके कानों में मां-बाप की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। "कमलेश्वर बाबू की चिठ्ठी आयी है। उनके छोटे पुत्र की शादी है। वह 12 जून को मेनका को अपने घर लिवा ले जायेंगे।"
मम्मी शान्ति तीखे अंदाज में बोल रही थी -‘‘नहीं जाएगी मेनका। उस परिवार से रिश्ता रखकर क्या करेंगे ? हम मेनका की दूसरी शादी करेंगे। वहाँ जाने का मतलब है मेनका को फिर विधवा के रूप में लाना। यह सब मैं दुबारा नहीं होने दूंगी।‘‘
योगेश बाबू भड़क उठे -"पागल तो नहीं हो गयी हो। समाज से बड़ा नहीं हैं हम। कितनी मेनकाएँ यहाँ विधवा जिन्दगी जी रही हैं ।फिर हम कैसे कर दें मेनका की दूसरी शादी।मेनका हमारी लाडली बेटी है, उसका दुख तो मेरा दुख है। उसकी दूसरी शादी करने की हार्दिक इच्छा मुझे भी है ,पर सारा समाज हमसे रिश्ता नाता तोड़ लेगा। विधवा विवाह यहाँ कलंक माना जाता है। फिर अगर हम दो कदम आगे बढ़ने की हिम्मत भी करें तो वह लड़का कहाँ मिलेगा जो विधवा से विवाह कर ले। शान्ति ,हम सबों को परिणाम भुगतना ही होगा। मेनका पर हमलोगों का कोई अधिकार नहीं है।"बोलते-बोलते रो पड़े ।
आज तीन वर्षों बाद कमलेश्वर बाबू ने मेनका को ले जाने की चिठ्ठी क्यों लिखी ? मेनका पर अपना अधिकार जता दिया है उन्होंने कि हम नहीं भूले हैं। मेनका उनकी पुत्रवधू है। वे ले जायेंगे।
मां-बाप की धीमी आवाज की बहस चुपचाप सुनती रही मेनका।महीनों बाद आज मेनका रात भर सो नहीं सकी। तीन सालों बाद एक बार फिर उसकी शान्त जिन्दगी में तूफान आ गया। औंधे मुंह पड़ी रोती सुबकती रही। लेकिन अचानक थोड़ी देर बाद कुछ सोचते हुए चुप हो गयी। चेहरा सख्त हो गया ,आंखों के आँसू रूक गये।
सुबह योगेश बावू ने कहा-बेटी तुम्हे 12 जून को सुसराल जाना है। तुम्हारे श्वसुर आ रहे हैं।
‘‘ससुराल ..., कैसा ससुराल ? वहाँ मेरा कौन है ? वह घर मेरा नहीं है। फिर में वहाँ क्यों जाऊँ ? ‘‘मेनका ने प्रश्न भरा जबाव दिया।
‘‘नहीं बेटी, ऐसा नहीं कहते। यह तो समाज का बंधन है तुम्हें जाना ही होगा। तुम्हारा घर वहीं है। ‘‘योगेश बावू ने पुचकारते हुए कहा।
‘‘पापा, मैंने आज तक आपका विरोध नहीं किया है। यहाँ तक कि आपकी पसंद के लड़के से शादी की। पर अब आप किसके सहारे वहाँ भेज रहे है।‘‘ मेनका दृढ़ता से बोल रही थी।
‘‘मैं तुझे जल्दी वापस ले आऊँगा।‘‘ योगेश बाबू ने समझाया।
‘‘मैं अपना मार्ग स्वयं तय करूँगी।‘‘ मेनका ने निर्णय सुना दिया।
अब योगेश बाबू ने अपने बाप होने से अलग हटकर बातें शुरू कर दी।वे समाज के प्रतिनिधि की तरह सामने आये। उनकी स्वार्थपरता जागृत हुई। उन्होंने कहा-‘‘मेरी इज्जत के लिए, अपने भाई परिवार के लिए मान जाओ। अगर तुम नहीं गयी तो इस परिवार की शादियाँ रूक जाएंगी। हमारी जाति के जिस घर में विधवा विवाह होता है उस घर की शदियाँ रूक जाती हैं।तुमसे छोटी एक और बहन है, भाई है। उसके बारे में सोचो। फिर निर्णय दो कि तुम क्या चाहती हो ।अपना पुनर्विवाह या खानदान की इज्जत।‘‘
मेनका कुछ क्षण चुप रही। फिर ससुराल जाने को तैयार हो गयी। उसने कहा-‘‘अगर मेरे विधवा बने रहने से इस खानदान और समाज की इज्जत बचती है,तो मुझे विधवा बने रहना मंजूर है। मैं नारी हूँ, अगर कभी मेरे कदम डगमगा गये और मेरी उजली साड़ी पर काले धब्बे पड़ गये तब इस समाज की जो इज्जत जाएगी, वह दोष मेरा नहीं होगा। मैं इस कलंक से बचे रहने की गारंटी नहीं ले सकूंगी ।क्योंकि मेरी लम्बी उम्र में कितने पड़ाव आयेंगे यह खुद में नहीं जानती।‘‘
कमलेश्वर बाबू के साथ 12 जून को मेनका को विदा किया योगेश बावू ने। माँ शान्ति दहारें मारकर रोती रह गयी। पर कठोर बनी मेनका चुप थी। वह बिल्कुल नहीं रो रही थी। अब तो जीवन भर की लड़ाई और संघर्षमय जिन्दगी को जीने के लिए कमर कस चुकी थी।
ससुराल में शादी के ऐन तीन दिन पहले खबर मिली की शशांक की शादी जिस लड़की से होने वाली थी। वह एक अन्य लड़का के साथ भाग गयी है। वह लड़की उसी उड़का से प्रेम करती थी। उसके पिता ने लड़की की इच्छा के विरूद्ध शशांक से शादी तय कर दी थी। इस खबर से घर के सभी सदस्यों को काठ मार गया था। शादी का निमंत्रण हर जगह भेजा जा चुका था। अब क्या होगा ? यही प्रश्न सबके सामने था। घर के सभी सदस्य घर की इज्जत सरेआम नीलाम हो जाने के डर से समस्या का निदान बड़ी गंभीरता से सोच रहे थे। अचानक कमलेश्वर बाबू की बेटी कामिनी ने सबों के समक्ष अपना विचार रखा-क्यों न मेनका की शादी शशांक से कर दी जाये। यह विचार सबों को बेहद युक्ति संगत लगा।
कामिनी मेनका के पास आयी और बोली, ‘‘भाभी तुम्हें शादी करनी होगी।‘‘
मेनका ने कहा- ‘‘मेरी दूसरी शादी। औरत की शादी जिन्दगी में सिर्फ एक बार होती है।‘‘
‘‘मैं कहती हूँ, तुम्हें शादी करनी होगी‘‘-कामिनी ने कहा।
जिस निर्णय को त्याग कर मैंने इस घर में कदम रखा है, वह कार्य अब मैं हरगिज नहीं कर सकती । मेरी शादी से दोनों घर की शादियाँ रूक जायेंगी। समाज से अलग कर दिये जायंगे सभी। ऐसा कलंकित कार्य मैं नहीं कर सकूंगी कामिनी। मेरी जैसी कई लड़कियाँ यों ही जीवन भर विधवा रह गयी है। मैं भी उसी की एक कड़ी हूँ। मैं विधवा रहूँगी। मेरे भाग्य में वैधव्य लिखा है। मेनका ने दृढ़ता से कहा।
कामिनी ने समझाया- "एक अवसर मिला है।शशांक भैया की शादी जिस लड़की से होने वाली थी वह अपने प्रेमी के साथ भाग गयी है। मेरे प्रस्ताव पर सबों की राय है कि अब तुम्हारी शादी शशांक से कर दी जाय। तुम्हें इसी घर की दुल्हन बननी है।तुम कह दो।"
अब समझ में आयी बात कि क्यों तुम मुझे शादी करने के लिए वाध्य कर रही थी।
तुम्हारी सहेली रागिनी मैनेजमेंट काॅलेज में मेरी रूम मेट है। उसने जब तुम्हारी घटना का जिक्र किया था तो मैंने बताया था मेनका मेरी ही भाभी है। शेखर मेरे बड़ा भाई है।यह जानने के बाद रागिनी ने मुझसे वचन लिया था कि मेनका की शादी एक सुशिक्षित युवक से कराने में तुम्हारा सहयोग चाहिये। मैंने रागिनी से कहा था कि मैं छोटे भैया शशांक की शादी में मेनका भाभी को बुलवाऊँगी। उनको पुनर्विवाह के लिए राजी कर लूंगी। तुम्हें विदाई करा कर लाने की जिद मैंने ही की थी। ताकि तुमसे खुलकर बात हो सके।इसलिए भाभी मुझे गलत मत समझो। मैं भी नारी हूँ। मेरे दिल में वहीं अरमान हैं जो कभी तेरे दिल में थे। मैं तेरे अरमानों का गला घोंटते कभी नहीं देख सकती। तेरी सौगन्ध है, मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। आज मेरे ही घर मौका मिला है। बिना संघर्ष की बात बन रही है ,तो क्यों छोड़ दें। शशांक भैया भी तैयार हैं। बताइये भाभी अब आपका क्या निर्णय है।
मेनका ने हामी भर दी।कठपुतली फिर उँगली पर नाच गयी।
@ मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह।

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