Pipal paani aur vaitrani paar books and stories free download online pdf in Hindi

पीपल पानी और वैतरणी पार

पीपल पानी और वैतरणी पार

मुझे उनके पीपप पानी में जाना था। कुमाऊं में मृत्यु के बारवे दिन पीपल पानी की प्रथा संपन्न की जाती है।लोग श्रद्धा से पीपल में, पानी में कुछ बूंदें दूध की मिलाकर चढ़ाते हैं। इस प्रथा में धर्म का प्रकृति से अविच्छिन्न संबन्ध स्थापित किया गया है।

पीपल को कलियुग का कल्पवृक्ष माना जाता है जिसमें देवताओं के साथ-साथ पितरों का भी वास है, ऐसा कहा जाता है।

श्रीमद्भागवत गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है “अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:” अर्थात, “मैं वृक्षों में पीपल हूँ। जिसके मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी का साक्षात रूप विराजमान रहता है।"

सुबह पांच बजे की उड़ान है। रात एक बजे नींद टूट गयी है। बैठे-बैठे एक विचार घुमड़ता आया।

"मेरी नींद फिक्रमंद हो जाती है

जब सुबह की उड़ान पकड़नी होती है

कितनी कोशिश करो आती नहीं,

समझो, वे प्यार के दिन, दोहरा जाती है।"

सुबह सात बजे दिल्ली पहुंच गया हूँ। सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करने का एक अलग आनंद है। बगल की सीट में बैठे व्यक्ति से धीरे-धीरे बातचीत होने लगती है। मेरे बगल में एक ठेकेदार बैठा है, जो पुल बनाने के ठेके लेता है। वह बीच-बीच में फोन में बता रहा कि कितना कट्टा सीमेंट और बालू भेजना है। वह अपने काम के बारे में बता रहा है और मैं उन बातों का रस ले रहा हूँ। राजमार्ग पर अब अच्छे-अच्छे ढाबे बन गये हैं। जिस ढाबे पर बस रूकी है,उसका शौचालय एअरपोर्ट के वासरूम जैसा साफ सुथरा है। खाना भी जी खुश करने वाला है। हल्द्वानी पहुंच कर हम अपने-अपने गंतव्य की ओर चल दिये। शाम हो चुकी है। दूसरे दिन दिवंगत आत्मा का पीपल पानी है। पता नहीं कितने लोग पीपल पानी का अर्थ समझते हैं! मैं भी इंटरनेट पर इसके बारे में पढ़ता हूँ। पंडित जी भी किसी को इसके बारे में कुछ नहीं बताते हैं। परंपरा के रूप में इसका अनुसरण हो रहा है। पीपल में पानी डालने से पहले पंडित जी क्रिया कर्म घर में और घर पर आवश्यक पूजा- पाठ करते हैं। जजमान जब दक्षिणा देते हैं तो पंडित को दक्षिणा कम लगती है तो वह कहता है," दक्षिणा कम है, इतनी दक्षिणा में दिवंगत की आत्मा वैतरणी पार नहीं कर पायेगी।" पंडित वैतरणी का डर दिखाकर जजमान की आस्था का दोहन कर रहा है। हमें बचपन में पढ़ाया जाता था कि शादी और मृत्यु संस्कारों में अवांछित धन खर्च नहीं करना चाहिए। पर समाज में अधिकांशत: ऐसा नहीं होता है।

वे गायत्री परिवार, हरिद्वार से जुड़े थे। मृत्यु से तीन दिन पहले उन्हें जब गायत्री की याद दिलायी गयी तो उन्होंने कहा," गायत्री तो हमारी प्राण ठैरी।" बीमारी और नब्बे साल की उम्र में भी उनकी याददाश्त अच्छी लग रही थी। गायत्री परिवार में सभी अनुष्ठान सादगी से होते हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि सब व्यक्ति तक सीमित है। और परंपरागत लोभ,मोह दिखायी दे रहा है। वैतरणी दिवंगत आत्मा पार होगी या नहीं,यह तो पता नहीं, लेकिन पंडित का लोभ उसे वैतरणी से उलझा कर रख रहा है।एक दिन पंडित की आत्मा को भी वैतरणी पार करने जाना होगा। पहले मुट्ठी में भरकर दक्षिणा दी जाती थी।अब सामने गिना जाता है और साथ में लोभ की वैतरणी बहती रहती है। लोग अपने पसंद के विषयों पर चर्चा कर रहे हैं। किस अस्पताल की क्या नीति है, कहाँ कितना बिल आता है। ईलाज का व्यवसायीकरण। इस बीच अच्छे डाक्टर भी हैं। इन्हीं प्यार, लड़ाई, झगड़े, दया, करुणा, संघर्ष के बीच मनुष्य होने का एहसास होता है। ये बात भी उठती है कि अस्पताल दस हजार का बिल देता है, लेकिन बाहर लोग बोलते हैं तीस हजार रुपये खर्च आया। धन की जड़ में मित्रता और वैमनस्य दोनों होते हैं। सच कहने का रिवाज कम होते जा रहा है।मरीज की सेवा किसने कितनी की उसके भी अपने-अपने मापदंड हैं। अंत में कह दिया जाता है," ऊपर वाला देख रहा है।" पीपल में पानी देने के बाद खाना खाते हैं। पानी और खाना मृतक की आत्मा को श्रद्धांजलि के रूप में दिया जाता है। टीका लगा कर रिश्तेदारों को विदा किया जाता है। आजकल एक कहावत भी प्रचलित है।

" मरे माँ-बाप को दाल-भात, जिन्दा माँ-बाप को मारे लात।" बूढ़े माँ-बाप जब कभी नाराज होते हैं तो इस लोकोक्ति को दोहराते हैं। यह चक्र चलता रहता है। देहांत के बाद आत्मा को प्रथम नौ दिन प्रेत योनि में क्यों डालते हैं, पता नहीं। शायद हमारी सांसारिक गलतियों के लिए। जैसे एक झूठ के लिए युधिष्ठिर को नरक के रास्ते ले जाया गया था, ऐसा कहा जाता है। आधुनिक क्रियाक्रम पर बातें हो रही हैं। क्रिया-घर में दो गाय के बछड़े हैं हर मृतक के लिए उन्हीं का प्रयोग होता है। पंडित भी एक जजमान से प्राप्त बिस्तर, चारपायी को कई मृतकों के अन्तिम संस्कार में प्रयोग करते हैं और उनके बदले में नकद रुपये जजमानों से ले लेते हैं।

पीपल पानी के दिन मैंने शाम को दिल्ली की बस पकड़ी है। बगल में उच्चतम न्यायालय में वकालत करने वाले एक वकील बैठे हैं। वे लगभग सप्ताह में दो दिन नैनीताल उच्च न्यायालय आया करते हैं। कभी अपनी कार से, कभी सार्वजनिक परिवहन से। मैं भी अपना परिचय देता हूँ। बातें बस की गति के साथ बढ़ती जाती हैं।वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य से लेकर संयुक्त परिवार आदि तक। उसने पूछा," एअरपोर्ट कैसे जायेंगे?" मैंने कहा टैक्सी से। उन्होंने कहा," टैक्सी वाले वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं को टार्गेट करते हैं। एक बार मेरी पत्नी ने उच्चतम न्यायालय के लिए टैक्सी ली और टैक्सी वाला उसे नौयडा की ओर ले जाने लगा। उसने पुलिस को खबर की। तब से वह सार्वजनिक यातायात से ही चलती है। एक डर मन में बैठ गया है।" आनंद विहार में उतरकर हमें विदा ली और मैं टैक्सी से एअरपोर्ट पहुंचा हूँ। मेरी उड़ान एअर इंडिया से है। अन्तर्राष्ट्रीय टर्मिनल से। पहले गेट 9 बताया गया। फिर बदलकर गेट 17 किया गया। अन्त में गेट 4 हुआ। लम्बे-चौड़े टर्मिनल पर अच्छी खासी कसरत करा दी है। इस उड़ान के सब यात्री परेशान दिख रहे हैं। वरिष्ठ नागरिक और लचक-लचक कर चलते बूढ़े यात्रियों को अधिक परेशानी हो रही है। बैटरी से चलने वाले वाहन दो ही दिख रहे हैं। एक बार में एक गाड़ी चार यात्रियों को ही ले जा सकती है।

जहाज उड़ान भर रहा है, आसमान में और मैं सोच रहा हूँ, उन्होंने वैतरणी पार की होगी या नहीं।

- मेरे अनुभव

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