इस कहानी में लेखक पीपल पानी की प्रथा के बारे में बता रहे हैं, जो कुमाऊं में मृत्यु के बारवे दिन संपन्न की जाती है। इस प्रथा में श्रद्धा के साथ पीपल में दूध मिलाकर पानी चढ़ाया जाता है, जो धर्म और प्रकृति के संबंध को दर्शाता है। पीपल को कलियुग का कल्पवृक्ष माना जाता है, जिसमें देवताओं और पितरों का वास होता है। लेखक अपनी यात्रा का वर्णन करते हैं, जिसमें सुबह की उड़ान, दिल्ली पहुंचना, और सार्वजनिक परिवहन में यात्रा का आनंद शामिल है। वे एक ठेकेदार से बातचीत करते हैं और यात्रा के दौरान के अनुभव शेयर करते हैं। अंत में, लेखक पीपल पानी की परंपरा के बारे में सोचते हैं और यह सवाल उठाते हैं कि कितने लोग इसका सही अर्थ समझते हैं। पंडित जी इस प्रक्रिया में पूजा-पाठ करते हैं, और जब जजमान दक्षिणा देते हैं, तो पंडित कम होने पर शिकायत करते हैं कि इतनी दक्षिणा में दिवंगत आत्मा वैतरणी पार नहीं कर पाएगी। पीपल पानी और वैतरणी पार महेश रौतेला द्वारा हिंदी आध्यात्मिक कथा 5 3k Downloads 16.5k Views Writen by महेश रौतेला Category आध्यात्मिक कथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण मुझे उनके पीपप पानी में जाना था। कुमाऊं में मृत्यु के बारवे दिन पीपल पानी की प्रथा संपन्न की जाती है।लोग श्रद्धा से पीपल में, पानी में कुछ बूंदें दूध की मिलाकर चढ़ाते हैं। इस प्रथा में धर्म का प्रकृति से अविच्छिन्न संबन्ध स्थापित किया गया है। पीपल को कलियुग का कल्पवृक्ष माना जाता है जिसमें देवताओं के साथ-साथ पितरों का भी वास है, ऐसा कहा जाता है। श्रीमद्भागवत गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है “अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:” अर्थात, “मैं वृक्षों में पीपल हूँ। जिसके मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी का साक्षात रूप विराजमान रहता है। सुबह पांच बजे की उड़ान है। रात एक बजे नींद टूट गयी है। बैठे-बैठे एक विचार घुमड़ता आया। मेरी नींद फिक्रमंद हो जाती है जब सुबह की उड़ान पकड़नी होती है कितनी कोशिश करो आती नहीं, समझो,वे प्यार के दिन, दोहरा जाती है। सुबह सात बजे दिल्ली पहुंच गया हूँ। सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करने का एक अलग आनंद है। बगल की सीट में बैठे व्यक्ति से धीरे-धीरे बातचीत होने लगती है। मेरे बगल में एक ठेकेदार बैठा है, जो पुल बनाने के ठेके लेता है। वह बीच-बीच में फोन में बता रहा कि कितना कट्टा सीमेंट और बालू भेजना है। वह अपने काम के बारे में बता रहा है और मैं उन बातों का रस ले रहा हूँ। राजमार्ग पर अब अच्छे-अच्छे ढाबे बन गये हैं। जिस ढाबे पर बस रूकी है,उसका शौचालय एअरपोर्ट के वासरूम जैसा साफ सुथरा है। खाना भी जी खुश करने वाला है। More Likes This शब्दों का बोझ - 2 द्वारा DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR स्वामी प्रभुपाद द्वारा Ankit अलौकिक दीपक - 1-2 द्वारा kajal Thakur भगवद गीता क्या है और इसे क्यों पढ़ना चाहिए - अध्याय 1 द्वारा parth Shukla एक औरत की ख़ामोश उड़ान - 1 द्वारा Mohini समरादित्य महाकथा - 1 द्वारा Kapil Jain श्री दुर्गा सप्तशती- आचार्य सदानंद – समीक्षा छन्द 1 द्वारा Ram Bharose Mishra अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी