पेड़ और बच्चे Sudarshan Vashishth द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पेड़ और बच्चे

पेड़ और बच्चे

बाल कथाएं

सुदर्शन वशिष्ठ

एक राजा था। उसकी तीन रानियां थी। वह दो रानियों से तो बड़ा प्रेम करता था किंतु बड़ी रानी से कभी कभार ही बात करता। भगवान की लीला न्यारी। बड़ी रानी गर्भवती हुई और दो बच्चों को जन्म दिया।

इससे दोनाें रानियां जल भुन गइर्ं और उन बालकों को मरवाने की योजना बनाने लगीं।

दोनों रानियों ने बच्चों के बिस्तर में एक बड़ा अजगर छोड़ दिया किंतु अजगर ने उन बच्चों को कुछ नहीं किया और चुपचाप जंगल की ओर चला गया। एक बार दाव लगते ही उन्होंने बच्चों को दूर जंगल में फिंकवा दिया। जिसे बचना है उसे कोई नहीं मार सकता। जंगल में एक साधु न उन्हें जमीन पर पड़ा हुआ देख लिया और अपनी कुटिया में ले गया।

साधु की देख रेख बच्चे बड़े होने लगे। होनहार बच्चों की खबर नगर तक भी जा पहुंची और रानियों को खटका हुआ कि हो न हो ये वहीं बच्चे हाें। उन्होंने अपनी दासियों के पास जहर भरे लड्‌डू भेजे। बच्चे अबोध भाव से लड्‌डू खा गए और खाते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गए। जब साधु कुटिया में वापिस पहुंचा तो बच्चों को मृत देख बेहोश हो गया। अंततः साधु ने कुटिया के पास ही दो गड्‌ढे खोद उन्हें दफना दिया।

कुछ दिनों बाद उन गड्‌ढों में दो नन्हें पौधे उगे और धीरे धीरे बड़े पेड़ बन गए। मौसम आने पर इन पेड़ों में बहुत ही सुंदर और सुगन्धित फूल लगे। एक बार एक कौआ आया और इन फूलों में से दो फूल चोंच में ले कर ले गया। जब कौआ महलों के ऊपर पहुंचा तो क्या देखत है कि राजा अपने महल के बाग में घूम रहा है। कौए ने राजा के पास एक फूल गिरा दिया। राजा ने फूल उठा कर सूंघा तो उसकी महक से बहुत प्रसन्न हुआ और इस फूल के पेड़ों की तलाश शुरू करवा दी।

राजा के सिपाहियों ने पूरा नगर ढूंढा परंतु फूल कहीं न मिले। ढूंढते ढूंढते वे जंगल साधु की कुटिया में जा पहुंचे जहां उन्हें इन फूलों के दो पेड़ मिल गए। वे बहुत खुश हुए। किंतु जैसे ही वे फूल तोड़ने की कोशिश करते, फूल ऊंचे हो जाते। बार बार प्रयत्न करने पर भी वे फल तोड़ नहीं पाए और नगर जा कर उन्होंने राजा को खबर कर दी। राजा बहुत हैरान हुआ और फूलों को देखने के लिए जंगल में जा पहुंचा।

राजा ने पेड़ों से फूल तोड़ने का जैसे ही प्रयास किया उसे एक मधुर आवाज सुनाई दीः ‘‘हे राजा! यदि तू बड़ी रानी को यहां लाएगा तो तेरी साध पूरी हो जाएगी।''

राजा यह बात सुन ठिठक गया। बड़ी रानी को तो उसने छोड़ा हुआ था। आखिर सिपाही भेज बड़ी रानी को बुलवाया गया।

बड़ी रानी की पालकी जैसे ही पेड़ों के पास पहुंची फूल अपने आप नीचे हो गए और वहां से मधुर ध्वनि सुनाई देने लगी। रानी को एकाएक अपने बच्चों की याद हो आई। उस ध्वनि से उसकी ममता उमड़ आई और वह जोर जोर से विलाप करने लगी।

राजा ने सिपाहियों को हुकम दिया कि देखो इन पेड़ों में ऐसा क्या है। सिपाहियों पेड़ों की जड़ों से मिट्‌टी हटाई। जब मिट्‌टी हटाई गई तो क्या देखते हैं कि दो बच्चे अपने मुंह में अंगूठा डाले खेल रहे हैं। रानी ने अपने बच्चों को पहचान लिया और गोद में ले लिया।

राजा ने महलों में पहुंचते ही दोनों छोटी रानियों को निकाल दिया और बडी़ रानी व बच्चों के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

94180—85595 ‘‘अभिनंदन'' कृष्ण निवास लोअर पंथा घाटी शिमला—171009