किस्मत कहां है! Sudarshan Vashishth द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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किस्मत कहां है!

किस्मत कहां है!

बाल कथाएं

सुदर्शन वशिष्ठ

किसी गांव में एक युवक रहता था। उसे बहुत सा धन कमाने और बड़ा बनने की बड़ी इच्छा थी। वह बड़ा आलसी था। वह गांव छोड़ शहर में आ गया। शहर में उसे छोटी मोटी नौकरी भी मिल गई किंतु जिस तरह वह अपनी किस्मत एकदम बदल देना चाहता था, वह न हुआ।

आखिर वह पुनः गांव चला गया और एक साधु की शरण में गया। साधु को उसने अपनी कहानी सुनाई और पूछाः ‘‘महाराज! मेरी किस्मत कहां है!''

साधु ने युवक को गौर से देखा। युवक सुंदर, हृष्ट पुष्ट और आकर्षक था। साधु ने कहाः‘‘ बेटा! तुम्हारी किस्मत यहां नहीं है। वह समुद्र के पार है। अपनी किस्मत खोजने के लिए तुम्हें समद्र पार जाना होगा।‘‘

वह तुरंत ही अपनी किस्मत को पाने के लिए उतावला हो गया और समुद्र पार जाने के लिए सफर शुरू कर दिया।

चलते चलते उसने कई नदियां और पहाड़ लांघ दिए। आखिर वह एक सुरम्य मैदान में जा पहुंचा जहां एक ओर मीठे पानी का झरना बह रहा था। उसने झरने का पानी पिया और हरी घास पर लेटते ही उसे नींद आ गई।

काफी देर सोने के बाद वह जागा तो उसे मैदान में एक सुंदर युवती दिखाई दी। युवती ने पूछाः ‘‘ तुम कहा जा रहे हो!‘‘ युवक ने उत्तर दियाः‘‘ मैं तो अपनी किस्मत की खोज में निकला हूं।‘‘

युवती ने कहाः‘‘ मुझे भी अपनी किस्मत की प्रतीक्षा है। मेरा विवाह नहीं हो रहा है। यदि तुम्हें मेरी किस्मत मिले तो पूछना कि मेरा विवाह कब होगा।‘‘

‘‘अच्छा! मैं पूछ लूंगा और वापिसी पर बता दूंगा, पर आपसे मेरी मुलाकात कहां हो पाएगी।'' युवक ने पूछा।

‘‘ मैं तुम्हें इसी मैदान में मिलूंगी।‘‘

युवक कुछ आगे गया तो उसे एक सुंदर सजीला घोड़ा दिखा। युवक ने सोचा, उसके पास ऐसा घोड़ा होता तो वह पलक झपकते ही समुद्र के किनारे पहुंच जाता। उसने घोड़े पीठ थपथपाई और साथ चलने को कहा। घोड़े ने कहा उसकी पीठ पर आज तक कोई सवार नहीं बैठा है, पर तूझे जाना कहां है! युवक ने बताया कि वह अपनी किस्मत की तलाश में जा रहा है। घोड़े ने कहाः'' भैया! मैं भी तो किस्मत का मारा हूं कि मुझे आज तक कोई सवार नहीं मिला। तुम मेरी किस्मत का भी पता करना कि मुझे सवार कब मिलेगा!''

कुछ आगे जाने पर उसे एक बहुत बड़ा पेड़ मिला। पेड़ आकार में तो बड़ा था पर आधा सूखा हुआ था। वह थका तो था ही, कुछ क्षण उस पेड़ के नीचे बैठ गया। पेड़ ने पूछाः ‘‘मुसाफिर! कहां जा रहे हो! बहुत थके मांदे लगते हो।‘‘ युवक ने उत्तर दियाः

‘‘ भाई बहुत दूर से आया हूं। अपनी किस्मत लाने जा रहा हूं जो समुद्र के पार है।‘‘

‘‘अच्छा! किस्मत लाने जा रहा हो, बड़ी लगन है भाई। मैं तो चल नहीं सकता, नहीं तो तुम्हारे साथ चलता। तुम देख रहे हो, मेरी शाखाएं सूख रही हैं। तुम मेरी किस्मत के बारे में भीे पता करना। मैं हरा कैसे बनूंगा।‘‘

आखिर चलते चलते बहुत दिनों बाद वह समुद्र के किनारे पहुंच ही गया। वहां एक मगरमच्छ पेट दर्द से कराह रहा था। मगरमच्छ को जब उसने समुद्र पार जाने का प्रयोजन बताया तो वह बड़ा खुश हुआ। उसने कहाः‘‘ भाई! तुम मेरे बारे में भीे पता करना। मेरे पेट में बहुत दर्द है। न कुछ खाया जाता है, न कुछ पी सकता हूं।‘‘

‘‘तुम मुझे पीठ पर बिठा कर ले चलो। मैं जरूर पता करूंगा।‘‘ युवक ने कहा।

वह मगरमच्छ पर सवार हो कर समुद्र के पार पहुंच गया। समुद्र के पार बहुत भटकने के बाद आखिर उसे एक साधु मिला। उसने साधु से अपनी सारी कहानी सुनाई और अपनी किस्मत का पता पूछा।

साधु ने कहाः‘‘बच्चा! तुम्हारी किस्मत तो तुम्हारे ही पास है। तुमने इतना सफर किया है, इतनी मेहनत की है। तुम्हें तो सब कुछ मिला है।‘‘

उसे कुछ कुछ बात समझ में आने लगी। हिम्मत कर उसने फिर पूछाः

‘‘महाराज! मेरी किस्मत तो मेरे ही पास होगी किंतु रास्ते में मुझे बहुत से लोग मिले हैं जिन्होंने अपनी अपनी किस्मत के बारे मुझ से पूछा है। वह सुंदरी, वह घोड़ा, वह पेड़, वह मगरमच्छ......।‘‘

साधु ने रहस्योद्‌घाटन कियाः‘‘ मगरमच्छ ने रानी का नौलखा हार निगल रखा है। इस कारण उसके पेट में दर्द है। तुम उसे उल्टी करने को कहना। हार पेट से निकल जाने पर वह ठीक हो जाएगा। पेड़ की जड़ों में चारों कोनों में धन गड़ा है, इस कारण वह सूख रहा है। घोड़ा, बांके सवार के बिना और सुंदरी बांके वर के बिना अधूरी है।‘‘

वह साधु के चरणों में गिर पड़ा और प्रणाम कर वापिस हो लिया। मगरमच्छ ने पूछा तो उसने कहा, पहले पार तो चलो, फिर बताता हूं। मगरमच्छ ने उसे पुनःपार पहुंचा दिया।

समुद्र पार पहुंचने पर उसने मगरमच्छ को उलटी करने को कहा। रानी का नौलखा हार बाहर आ गिरा और मगरमच्छ ठीक हो गया। उसने हार अपने पास रख लिया। पेड़ के पास आकर उसने बताया कि तुम्हार जड़ों में चारों कोनों में धन गड़ा है। पेड़ ने अनुरोध किया कि भाई तुम ही इसे निकालो और कौन निकाल पाएगा! उसने धन निकाल लिया और आगे बढ़ गया।

मैदान में घोड़ा दिखाई दिया। वह जाते ही उस पर सवार हो गया। घोड़े को बांका सवार मिला गया। झरने के किनारे खड़ी सुंदरी उसकी इंतजार कर रही थी। उसने सुंदरी से विवाह का प्रस्ताव रखा तो वह तुरंत मान गई। सुंदरी को घोड़े पर बिठा वह धन धान्य सहित वापिस अपने गांव पहुंच गया।

9418085595 ‘‘अभिनंदन‘‘ कृष्ण निवास

लोअर पंथा घाटी शिमला—171009