नैनीताल-1
इस बार २०१७ में नैनीताल गया गया तो बहुत विस्मय में पड़ गया, नैनी झील को देखकर। काफी पानी कम हो गया है, इनारे किनारे नंगे लग रहे थे, पानी के बिना। "बिन पानी सब सून।" इस हालत में इस झील को कभी नहीं देखा था। एक आस्ट्रेलिया के नागरिक ने कुछ समय पहले कहा था," यदि नैनीताल की गंदगी को नजरअंदाज कर दें, तो यह दुनिया का सबसे सुन्दर शहर है, जितने शहर मैंने देखे, उनमें। " एक स्थान से ही पूरे शहर को देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं। झील को सूखा करने में आधुनिक विकास का हाथ है या भूमिगत छिजन का, पता नहीं। फिर भी उसे अनुभव कर सकते हैं अपने पुराने साथियों की यादों के साथ जो हवा के झोंके से आते हैं और क्षणभर में अस्त हो जाते हैं। क्योंकि हमारे उपनिषद में कहा गया है-" चरैवेति"। चलो, पहाड़ों पर,नदियों में,पुलों पर, वृक्षों के साथ,बर्फ में,झीलों में,रास्तों पर। नहीं जा सकते हो दूर तो, आंगन में चलो, घर पर चलो, नहीं तो मन से चलो, लेकिन चलना है। मल्लीताल में एक अंधा व्यक्ति दिखा जो अस्त होते सूरज को महसूस कर रहा था। ऐसा लगा वर्षों पहले भी उसे यहाँ देखा था। तब वह विकलांग की श्रेणी में था और अब दिव्यांग की श्रेणी में। समाज में बोला जाता है," प्यार अंधा होता है। " प्यार विकलांग या दिव्यांग होता है ऐसा कोई नहीं बोलता है। वैसे कहते हैं अंधे को अंधा नहीं कहना चाहिए। उस अंधे की मुद्राओं से लग रहा था कि वह सूरज को खुशी खुशी विदा कर रहा था। ध्यानावस्था में हम स्वयं ही आँखें बंद कर विराट को अनुभव करने की चेष्टा करते हैं। इतने में किसी ने मेरा हाथ पकड़ा। मैं पलटा और उससे कहा," मैं तुमसे प्यार करता हूँ। " और उसे उठाकर गोद में बैठा लिया। ऐसा लगा जैसे चालीस साल पहले का समय मेरी पीठ थपथपा रहा है। हवा में प्यार भरी ठंडक थी। कुछ इसे महसूस कर रहे थे और कुछ नहीं।
दूसरे दिन घूमते घूमते मल्लीताल पहुंचा। वह अंधा फिर दिख गया। वह उगते सूरज को महसूस कर रहा था। सूखती नैनी झील उसके सामने थी। लगा जैसे वह अंधा व्यक्ति उस सूखती झील के दर्द को समझ रहा था और हम आँख होते हुये अंधे बने हुये हैं। मैं बेंच पर बैठा और स्मार्ट फोन पर लिखने लगा-
" इतनी बड़ी दुनिया में
ढूँढना पड़ा है प्यार,इतने अनंत समय मेंढूँढना पड़ा है शुभ समय,इतने बड़े संसार मेंढूँढना पड़ा है रास्ता,इतने बड़े वांग्मय मेंढूँढनी पड़ती है भाषा,इतनी बड़ी आस्था मेंढूँढना पड़ा है ईश्वर,इतनी बड़ी जनसंख्या मेंढूँढना पड़ा है इंसान। "
***" जब आँखों से आ रहा था प्यारतो आने क्यों नहीं दिया,जब पैरों से चल रहा था प्यारतो चलने क्यों नहीं दिया,जब मन में झूम रहा था प्यारतो नाचने क्यों नहीं दिया,जब हाथों से निकल रहा था प्यारतो बढ़ने क्यों नहीं दिया,जब गीतों में आ रहा था प्यारतो गाने क्यों नहीं दिया,जब देश के लिये उठ रहा था प्यारतो फहरने क्यों नहीं दिया,जब आँखों से आ रहा था प्यारतो कह क्यों नहीं दिया। "
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नैनीताल-2
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मई का महीना है। शाम के छ बज चुके हैं। मल्लीताल से तल्लीताल को रिक्शे बंद हो गये हैं। आठ बजे तक यह नियम लागू रहेगा। सोचा पैदल ही तल्लीताल चला जाय। मालरोड पर काफी भीड़ है। पर्यटक खरीदारी भी कर रहे हैं। ठंड है। गरम भुट्टे भी कुछ कुछ दूरी पर बिक रहे हैं। एक भुट्टा लिया और खाते खाते चलने लगा। भुट्टा बाहर से पका है और अन्दर से हल्का कच्चा। एक जगह पर बेंच पर बैठता हूँ। सामने सुलभ शौचालय है जिस पर लिखा है सार्वजनिक शौचालय। शुल्क है 5रुपये। एक व्यक्ति वहाँ के कर्मचारी से बहस कर रहा है कि सार्वजनिक लिखा है। कर्मचारी शुल्क जहां लिखा है उस ओर इशारा करता है। उठ कर आगे बढ़ता हूं। एक छोटा सा पार्क आता है, झील के किनारे। हल्का अंधेरा गिरने लगा है। पार्क में पांच छ लोग बैठे हैं। एक जोड़ा प्यार कर रहा है, जो फिल्मी लग रहा है। और लोगों को असहज कर रहा है। एक आदमी उनसे बोलता है," ये सार्वजनिक स्थान है। " लड़की बोलती है," आपको अच्छा नहीं लग रहा तो आँखें बंद कर लो। " इतने में लड़का अपने मोबाइल को देखता दूर जाकर बैठ जाता है। विचार आता है दिल्ली की घटना का जो समाचारों में है, जहां एक ई रिक्शा वाला सार्वजनिक स्थान पर पेशाब करते लड़के को जब पेशाब करने को मना करता है तो वह अपने साथियों को बुला कर ई रिक्शे वाले को इतना मारते हैं कि उसकी मृत्यु
हो जाती है।
आगे-
तब प्यार के बारे में बहुत सोचता था,
हंगामा मन में रुका हुआ था
जो समुद्र की तरह उछलता-गिरता था,
पर तब समुद्र नहीं देखा था,
इधर से उधर चलता था,
पहाड़ी के उस पार उसे देखा था,
आत्मा में अद्भुत हलचल हुई थी,
तब तक गौतम बुद्ध को पढ़ा था,
राधा-कृष्ण को जाना था,
महाभारत तक नहीं आया था,
इसीलिए प्यार के बारे में बहुत सोचता था।
नैनीताल-3
प्रिय,मैं तुम्हारी याद में सूखे जा रही हूँ। कहते हैं कभी सती माँ की आँखें यहाँ गिरी थीं। नैना देवी का मंदिर इसका साक्षी है। कभी मैं भरी पूरी रहती थी। तुम नाव में कभी अकेले कभी अपने साथियों के साथ नौकायन करते थे। नाव में बैठकर जब तुम मेरे जल को छूते थे तो मैं आनन्द में सिहर उठती थी। मछलियां मेरे सुख और आनन्द की सहभागी होती थीं। बत्तखों का झुंड सबको आकर्षित करता था। " वक्त" फिल्म का गाना" दिन हैं बहार के...। " तुम्हें अब भी रोमांचित करता होगा। प्रिय, अब मैं तुम्हारे कार्य कलापों से दुखी हूँ। तुमने गर्जों,गुफाओं में बड़े-बड़े होटल और कंक्रीट की सड़कें बना दी हैं। मेरे जल भरण क्षेत्रों को नष्ट कर दिया है। गंदगी से आसपास के क्षेत्रों को मलिन कर दिया है। यही गंदगी बह कर मुझमें समा जाती है। प्रिय, यह सब दुखद है। मेरे मरने का समय नहीं हुआ है लेकिन तुम मुझे आत्महत्या को विवश कर रहे हो। मैं मर जाऊँगी तो तुम्हारी भावनाएं, प्यार अपने आप समाप्त हो जाएंगे और तुम संकट में आ जाओगे। जो प्यार मेरे कारण विविध रंगी होता है, वह विलुप्त हो जायेगा। प्रिय, मेरे बारे में सोचो। अभी मैं पहले की तरह जीवंत हो सकती हूँ, यदि भीड़ , गंदगी और अनियंत्रित निर्माण को समाप्त कर दो। तुम मेरे सूखे किनारों से भयभीत नहीं हो क्या? मैंने बहुत सुन्दर कहानियां अतीत में कही हैं और बहुत सी शेष हैं। मैं जीना चाहती हूँ , यदि
तुम साथ दो।
तुम्हारी प्यारी नैनी झील, नैनीताल