हर अन्याय का अंत होता है, ग़लत कार्य करने वालों को सज़ा मिलती है। देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं चलता। गलत पर सत्य की जीत ही असली युगांतर होता है। इस उपन्यास में नशाखोरी राजनीति की शह पाकर फलती-फूलती है, लेकिन अंत इस उम्मीद से होता है कि युगांतर आ रहा है। धरातल पर यह अभी सपना है और युगांतर की उम्मीद हर कोई कर रहा है।

Full Novel

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युगांतर - भाग 1

शहर से दूर, गाँव से बाहर, महलनुमा हवेली यादवेन्द्र की है। यह सिर्फ भूगौलिक रूप से ही गाँव व से अलग नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से भी यह गाँव और शहर से कटी हुई है। क्यों कटी हुई है ? शायद इसका कारण यही है कि समाज उनके लिए है, जो समाज के लिए हैं। जो समाज के विषय में नहीं सोचते, समाज उनके विषय में क्योंकर सोचे, लेकिन यादवेन्द्र को इसकी कोई चिंता नहीं। लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, इसकी उसे परवाह नहीं। वह तो अपनी धुन में मस्त है। वह अपने ढंग से कमाता ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 2

शिक्षा तो तपस्या है और तपस्या करनी ही पड़ती है, खरीदी नहीं जाती। धन पुस्तकें खरीद सकता है, ज्ञान हाँ, कभी-कभार डिग्रियाँ भी पैसे के बल पर मिल जाती हैं, लेकिन डिग्रियाँ प्राप्त करने और शिक्षित होने में जमीन-आसमान का अन्तर है। जो लोग डिग्रियाँ खरीदते हैं, उनकी तो छोड़ो, जो पढ़कर डिग्रियाँ हासिल करते हैं, वे भी सारे-सारे शिक्षित हो गए हों, ऐसा नहीं होता। यदि किसी को सिन्धुघाटी, न्यूटन, त्रिकोणमिति आदि का ज्ञान है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह बुद्धिमान है। परीक्षा में अंक प्राप्त करना और जीवन में सफल होना दो अलग-अलग बाते हैं। ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 3

स्कूल के अध्यापक को फटकारने के उद्देश्य से वह अगली सुबह स्कूल जा धमका। शिष्टाचार की रस्म को निभाना तो बेटे ने उचित समझा और न ही बाप ने। मास्टर जी तब बैठे काम कर रहे थे। प्रतापसिंह उनके पास जाकर गरजे, "आपने मेरे बेटे को क्यों मारा?"मास्टर जी ने यादवेन्द्र की तरफ देखा, जो अपने पिता की ऊँगली पकड़े मुस्करा रहा था और फिर प्रतापसिंह को ओर देखते हुए बोले, "एक तो यह कभी भी घर से स्कूल का काम करके नहीं लाता, दूसरा इसने कल एक लड़के को मारा।""तो बच्चों की लड़ाई में आपको दखल देने की ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 4

जब जवानी का जोश और अमीरी का नशा हो, तब पढ़ना कौन चाहेगा? फिर यादवेन्द्र के लिए तो यह आफत के सिवा और कुछ थी ही नहीं, इसलिए उसका बैल के सींग पकड़ना दुश्कर ही लग रहा था लेकिन उसने यह दुस्साहस भी कर ही लिया, क्योंकि उन दिनों 2 स्कूल और कॉलेज दोनों में होती थी और उसने सुन रखा था कि कॉलेज में स्कूलों की तरह न पढ़ने पर मार नहीं पड़ती, अनुशासन भी उतना सख्त नहीं होता और इसी बात को ध्यान में रखते हुए, उसने 10 1 के लिए कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 5

कॉलेज के चुनावों में आम चुनावों अर्थात लोकसभा, विधानसभा, नगरपालिका, पंचायत आदि के चुनावों की तरह वोट खरीदे नहीं क्योंकि कॉलेज के विद्यार्थी जागरूक होते हैं। वे वोट बेचने को अपनी शान और अपने अधिकार दोनों के खिलाफ समझते हैं, लेकिन कॉलेज के चुनावों पर भी अन्य चुनावों की तरह ही खूब खर्च होता है, क्योंकि वोटरों के लिए पार्टियों आदि का आयोजन होता है, इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से वोट खरीदे जाते हैं। कुछ उन पागल विद्यार्थियों का, जो दूसरी पार्टी के समर्थक हैं, अपहरण भी करना पड़ता है। अपहृत किए हुए विद्यार्थियों से बुरा व्यवहार करना कॉलेज ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 6

किसी भी विधायक को मंत्री बनने के बाद अपने सहयोगियों का उद्धार करने की सोच ज़रूर रखनी चाहिए। उसका उद्धार तो उसी दिन हो जाता है, जिस दिन वह चुनाव जीतता है, लेकिन जिन सहयोगियों ने उसकी जीत को मुमकिन बनाया होता है, उनका उद्धार तब तक नहीं हो पाता, जब तक नेता जी अपना आशीर्वाद उन्हें प्रदान नहीं करते। आमतौर पर सभी नेता मलाई मिलते ही अपने सहयोगियों को भी थोड़ा-बहुत हिस्सा देना शुरु कर देते हैं। आखिर इन्हीं सहयोगियों की मदद से तो वे यहाँ तक पहुँचते हैं। फिर ये सहयोगी अपना घर-बार चौपट करते हैं, तो ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 7

रास्ते भर विचारों का ज्वार-भाटा उसके मस्तिष्क में उठता रहा। उसने पिताजी से पूछने की बात कही थी, लेकिन से पहले वह खुद भी इस निर्णय से सहमत होना चाहिए था। वह खुद से पूछ रहा था कि क्या यह उचित है ? एक पल वह सोचता कि इसमें खतरा है, लेकिन अगले ही पल वह खुद को समझाता कि सरकार अपनी है। कभी वह सोचता कि यह अनैतिक है और कभी उसे लगता कि इसमें पैसा है। यादवेन्द्र जो अपनी आर्थिक हालत से इस वक्त बौखलाया हुआ है, वह जानता है कि 'गरीबी तेरे तीन नाम, झूठा, पाजी, ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 8

चिंता और जीवन का तो चोली दामन का साथ है। जीवन रूपी सागर में चिंता रूपी लहरें उठती ही हैं। प्रतापसिंह भी इसका अपवाद नहीं । उसे भी हर वक्त कोई-न-कोई चिंता लगी ही रहती है। वैसे कोई भी चिंता स्थायी नहीं होती। यह भी प्रकृति का एक नियम है। हर कोई इस सच को जानता है, फिर भी हम तनावमुक्त रह नहीं पाते। चिंताओं से घबराना हमारी आदत बन गयी है। जिन्दगी के लम्बे सफर में अनेक चिन्ताओं पर अपनी विजयपताका लहराने वाला प्रतापसिंह अब भी चिंतित है। अब उसकी चिन्ताएँ पहले वाली चिंताओं से कुछ भिन्न प्रकार ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 9

कारण जो भी हो, परिणाम यह है कि शादी का दिन आ गया। 'शादी पर खर्च न हो' यह होने वाली बात नहीं । हम खर्च कम नहीं कर सकते, भले ही हमें इस खर्चे से निपटने के लिए चोरी करनी पड़े या डाका डालना पड़े। इस परिवार ने धन कैसे कमाया था, यह बात भूलकर खर्च, इस तर्क के साथ कि और कमाए किस दिन के लिए जाते हैं, बड़ी दरियादिली से किया जा रहा है। सारी हवेली बिजली के बल्बों से चमचमा रही है। लाईट का प्रबन्ध रहे, इसके लिए एक जरनेटर भी चल रहा है। जनरेटर ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 10

मायके जाने का ख्याल भले उसे आया, लेकिन उसे पता था कि इस प्रकार मायके जाना अच्छी बात नहीं। में अगर तकरार हो जाए तो मायके का रौब नहीं दिखाना', यही तो सिखाया था उसकी माँ ने। वह खुद भी समझती थी कि रूठकर मायके जाने से रिश्ता नहीं निभ सकता। पति अब कैसा भी काम करता हो, अब उसका पति है। पत्नी के नाते वह पति से हर बात जानना चाहती है। पति की उसे चिंता है, इसीलिए वह पति से बात करना चाहती थी, उसे समझाना चाहती थी कि वे गलत कार्य न करें क्योंकि गलत कामों ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 11

राजनीतिज्ञों की जिन्दगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज है चुनाव। राजनीतिज्ञ चाहे छोटा हो या बड़ा, चुनाव के समय हर हर गम को भूल जाया करता है। चुनावों के दिनों में सोते जागते बस यही एक बात ध्यान में रहती है कि कैसे जीता जाए, कैसे वोट हासिल किए जाए। तिकड़मबाजी के इस क्षेत्र में अपना कौशल दिखाने का समय फिर आ गया है। यादवेन्द्र अपने माँ-बाप की मृत्यु के गम को भुलाकर चुनावों के लिए प्रचार अभियान में जुट गया। उनकी सरकार ने पाँच वर्ष तक राज्य चलाया था। पहले चार वर्ष तो सरकार वालों ने अपने घर भरे ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 12

शांति जानती थी कि बड़ी मंजिल पाने से पहले छोटे-छोटे मोर्चे फतेह करने पड़ते हैं। वह सरकारी नौकरी करती लेकिन नौकरी तक सीमित रहना उसका मकसद नहीं था। उसका पहला पड़ाव था अपने महकमें में धाक जमाना, लेकिन उसका अफसर मि. चोपड़ा थोड़ा खडूस किस्म का था। नियमों पर चलता था और शांति का लावण्य उस पर असर नहीं दिखा रहा था। शांति अपनी सुंदरता के इस अपमान को सहन नहीं कर पा रही थी, इसलिए वह अपनी फरियाद लेकर यादवेंद्र के पास पहुँची। वैसे भी वह जब से शहर में आई थी, यादवेंद्र से मिलना चाह रही थी। ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 13

यादवेंद्र यहाँ क्लीवेज को देख रहा था, वहीं परेशान होने का अभिनय भी कर रहा था। "आप तो गहरी में पड़ गए।" - शांति ने धीरे से उनका हाथ अपने नाजुक हाथो में लेकर सहलाते हुए कहा। "सबूत तो चाहिए ही, भले झूठा ही हो।" - यादवेंद्र ने अपनी परेशानी का कारण बताया। आँखों के मयखाने में चतुराई का जाम भरते हुए शांति बोली, "अगर आप चाहें तो हम खुद ही सबूत बन जाएँ।" यादवेन्द्र ने शांति की गर्म साँसो को अपने करीब अनुभव करते हुए और उससे आनन्दित होते हुए कहा, "हम तो चाहेंगे ही।" शांति ने अपने ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 14

पुरुष की सबसे बड़ी कमजोरी है औरत और औरत का सबसे सबल पक्ष है उनका औरत होना। शांति एक जवान औरत है, उसकी अदाएँ और उसकी मुस्कान, उसकी मनमोहक आवाज़ उसके हथियार हैं और अपने गुणों से पुरुषों की कमजोरी का लाभ उठाना भी वह बखूबी जानती है। मि. चोपड़ा उसके लिए बड़ी समस्या नहीं थी। वह तो सिर्फ यादवेंद्र तक पहुँचना चाहती थी क्योंकि उसको पता था कि वर्तमान में उनके इलाके की प्रमुख हस्ती यादवेंद्र है और इसी सीढ़ी के सहारे उसे काफी आगे तक बढ़ना है। उसका जादू चला भी और यादवेंद्र अब उसकी मुट्ठी में ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 15

शांति आज हार न मानने की ठान कर आई थी, इसलिए उसने नया तर्क दिया, "एक गलती को छुपाने लिए दूसरी गलती करना तो उचित नहीं।" उधर यादवेन्द्र भी आसानी से मानने वाला कहाँ था। वह उसके तर्क का भी तोड़ प्रस्तुत करते हुए कहता है, "उचित है, क्योंकि यही संसार का नियम है, एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं, एक गलती को छुपाने के लिए सौ गलतियाँ करनी पड़ती हैं। तुम्हें तो सिर्फ एक गलती और करनी है। तू हाँ कह, सारी व्यवस्था हो जाएगी और किसी को कानो-कान खबर भी नहीं होगी।" ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 16

यह दिल भी न जाने कैसी चीज है, जो पहले गलतियाँ करवाता है और गलती हो जाने पर परिणाम डर दिखा-दिखाकर सताता है। यादवेन्द्र भी इस दिल का शिकार है। शांति उसके पास चलकर ख़ुद आई थी और वह उसको सिर्फ मन बहलावे का साधन मानता था। दिमाग के अनुसार ऐसे लोगों के बारे में ज्यादा सोचना ठीक नहीं होता, लेकिन दिल तो दिल होता है और दिल कह रहा है कि जिसके साथ इतना समय गुजारा हो, जो उसकी खुशी का कारण रहा हो, उसे ऐसे ही कैसे छोड़ा जा सकता है। उसे शांति की चिंता सताती है। ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 17

यादवेन्द्र सोच रहा है कि उसे रमन के सामने अब बात रखनी ही होगी। इसकी भूमिका कैसे बाँधनी है, बात शुरू करनी है, रास्ते भर वह यही सोचता आया है। जब वह घर पहुँचा तो रमन साढ़े तीन वर्ष के यशवंत को अपने हाथों से खाना खिला रही है। यादवेन्द्र बेटे की पीठ पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोला, "अब तो तुम बड़े हो गए हो, अपने हाथों से खाया करो बेटा।" रमन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया होती न देख फिर बोला, "चलो यही कुछ दिन हैं प्यार मिलने के" "क्यों, फिर क्या होने वाला है।" रमन ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 18

यादवेंद्र के मन मुताबिक भूमिका बन चुकी थी या कहें कि जितना उसने सोचा था, उससे बेहतर प्लेटफार्म उसे चुका था। वह भी रमन के पीछे ही चल पड़ा। रसोईघर के पास जाकर उसने पानी माँगा और साथ ही कहा, "रमन! मैं सोच रहा हूँ कि हम बेटी गोद ले लें।" "क्यों, मुझे नहीं पालना किसी का बच्चा।" - रमन ने हैरानी और गुस्से भरे लहजे में कहा। थोड़ा चुप रहकर वह फिर बोली, "बच्चा गोद तो वे लें, जिनके अपने बच्चा न होता हो। हमारे तो बेटा है। अगर दूसरा बच्चा चाहिए तो वह अपना होगा। ऐसे नहीं ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 19

रश्मि के घर आने के बाद रमन को तो जैसे नया जीवन मिल गया। यशवंत का स्कूल में दाखिला दिया गया। यशवंत के स्कूल जाने के बाद वह रश्मि को संभालने में व्यस्त रहती। यशवंत के आने के बाद भी कोई समस्या नहीं थी क्योंकि घर के काम के लिए नौकरानी थी ही। उसकी दस साल की बेटी भी साथ आ जाती थी। रमन ने तो पहले भी उसको लाने से मना नहीं किया था और वह उस लड़की को खाने-पीने के लिए वह सब देती थी, जो घर में बनता था। अब उसने नौकरानी को कहा कि अपनी ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 20

शंभूदीन ने बदले हुए हालात देखकर यादवेन्द्र को नेक-सलाह दी थी कि तुमने काफी रूपए कमा लिए हैं, अब मुझे अपने व्यवसाय को बंद कर दो और साथ में यह भी कहा कि जो माल गोदाम में है उसे जल्दी से जल्दी निकाल देना। यादवेन्द्र 'सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी' जैसे इस व्यवसाय को छोड़ने के लिए तैयार न था, वह बोला, "इतनी जल्दी इतना माल कैसा निकाला जाएगा।""उसकी तुम चिंता न करो, मैं सारा माल ठिकाने लगवा दूँगा।" - शंभू ने उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए कहा।यादवेन्द्र के इस विषय को टालने के लिए कहा, "अभी इतनी ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 21

यादवेंद्र को सज़ा मिलने के डर से ज्यादा डर सताता है रमन की प्रतिक्रिया का। बात-बात पर उसके व्यवसाय लेकर ताने मारने वाली रमन अब तो उसका जीना हराम कर देगी, लेकिन जब जमानत मिलने के बाद वह घर आया तो रमन ने कुछ नहीं कहा। दिन-पर-दिन बीत रहे थे और रमन इस मुद्दे को छेड़ नहीं रही थी। यादवेंद्र खुश होने की बजाए परेशान था, उसे लगता था कि न जाने कब विस्फोट हो जाए। वह चाहता था, जो भी होना है, वह जल्दी हो जाए, लेकिन रमन की तरफ से कोई पहल होती न देखकर एक दिन ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 22

खुशियाँ मनाने का अवसर जल्द ही मिल गया। रश्मि का पहला जन्म दिन आ गया था। जन्म दिन को से मनाने का फैसला किया गया, जिसमें सभी रिश्तेदारों को बुलाया जाएगा। रश्मि के जन्म प्रमाण पत्र पर माँ-बाप के कॉलम में रमन-यादवेंद्र का नाम था। यूँ तो बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र उसी समय तैयार हो जाता है, जब बच्चे का जन्म होता है, लेकिन उस समय यादवेंद्र सत्ताधारी दल का प्रमुख वर्कर था, ऐसे में जन्मपत्री को रमन से हरी झंडी मिलने के बाद ही फाइनल किया गया। इसके बावजूद रिश्तेदार तो जानते ही थे कि बच्ची गोद ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 23

समय का काम है चलते रहना और वह निरंतर चलता जा रहा था। कुछ तो सत्ता में न होने कारण और कुछ घर का माहौल बढ़िया होने के कारण यादवेंद्र घर में ज्यादा समय व्यतीत करने लगा। यूँ तो यशवंत स्कूल वैन पर आता-जाता था, लेकिन कई बार पार्टी दफ्तर जाते समय उसे साथ ले जाता और कई बार उसकी छूट्टी के समय स्कूल से ले आता। उसकी मर्जी की चीजें खिलाता, खिलौने दिलाता और शाम को अपने साथ ही लेकर आता। रमन कहती कि आप बच्चे को बिगाड़ रहे हो। यादवेंद्र बिगाड़ने का अर्थ जानता था। वह अपने ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 24

चुनाव हुए और चुनावों का नतीजा उम्मीद मुताबिक ही था। यादवेंद्र की पार्टी 'जन उद्धार संघ' सत्ता में आई। दल का नेता चुनने में ज्यादा विरोध नहीं हुआ, क्योंकिं विरोध करने वाले कुछ तो पार्टी छोड़ गए थे और जो वापिस आए थे उनको अपनी औकात का अहसास हो चुका था। पुराने नेता राम सहाय मुख्यमंत्री बने और उनके मुख्यमंत्री बनने का अर्थ था, शंभूदीन का मंत्री बनना क्योंकि वह तो मुख्यमंत्री महोदय का दाहिनी हाथ था। जब पार्टी सत्ता में नहीं थी, तब शंभूदीन की वफादारी ने और ज्यादा प्रभावित किया था। यादवेंद्र के लिए अब करने को ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 25

संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा, जिस पर कभी कोई मुसीबत न आई हो। हाँ, मुसीबतों की संख्या हो सकती है और यह भी कहा जा सकता है कि मुसीबतें बड़ी-छोटी भी हो सकती हैं। वैसे मुसीबत को बड़ी-छोटी मापने का कोई पैमाना नहीं। एक व्यक्ति जिस मुसीबत को बहुत बड़ी समझ लेता है, दूसरा उसे उतनी बड़ी नहीं समझता और इसका कारण है कि हर व्यक्ति की मनोस्थिति अलग-अलग होती है और अलग-अलग मनोस्थितियों के चलते ही कोई व्यक्ति मुसीबत आने पर टूट जाता है, तो कोई निखर जाता है। मुसीबतें व्यक्ति पर कैसा प्रभाव डालेंगी यह ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 26

यादवेंद्र की सोच अब विरोधी पार्टी के पूर्व विधायक महेश जैन से दोस्ती गाँठने की थी, लेकिन इसके लिए किया जाए, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। महेश जैन के बारे में प्रचलित धारणा यही थी कि वह सैद्धांतिक आदमी है, लेकिन यादवेंद्र को लगता था कि बाहरी छवि और असलियत में अंतर ज़रूर होगा। पिछली बार जब उनकी पार्टी सत्ता में आई थी, तब महेश जैन को पार्टी में कोई विशेष भूमिका नहीं मिली थी। वह न तो अपने कोई विशेष काम निकाल पाया था और न ही इलाके के काम करवा पाया था, इसलिए जनता उनके ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 27

यादवेंद्र को इंतजार था, महेश जैन के फैसले का। कई दिन बीत जाने के बाद वह दोबारा जाने की ही रहा था कि उनकी तरफ से किसी का फोन आया कि विधायक जी आपको याद कर रहे हैं। मिलने का समय तय कर लिया गया और निश्चित समय पर वह उनकी कोठी पर जा पहुँचा, लेकिन इस बार उनका स्वागत महेश जैन की बजाए उनके पुत्र सन्नी ने किया। सन्नी ने बड़े अदब से उनके चरण स्पर्श किए, जिससे यादवेंद्र गदगद हो उठा। उसने कहा, "बेटा जी विधायक जी कहाँ हैं।" "पापा को अचानक काम हो गया, इसलिए उन्होंने ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 28

परिणाम की घोषणा के दो दिन बाद यादवेंद्र शंभूदीन की कोठी पर पहुँचा। वहाँ मौजूद अमित ने व्यंग्य किया, जल्दी आए यादवेंद्र।""महेश को बधाई देने गए होंगे।" - दूसरे वर्कर ने तंज कसा। शंभूदीन ने न तो अपने वर्करों को तंज करने से रोका और न ही साथ दिया। उसने यादवेंद्र को बैठने के लिए कहा और पूछा, "कहाँ रह गए थे यादवेंद्र।""अचानक पत्नी का पथरी का दर्द ज्यादा बढ़ गया था। उसका ऑपरेशन करवाना पड़ा। आप गिनती में गए हुए थे, आपसे उस समय बात न हो पाई और फिर पत्नी को संभालने वाला मेरे सिवा कौन था, ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 29

आदमी भी विचित्र जीव है। किसी सिद्धांत पर स्थिर रहना उसकी फितरत नहीं, अपितु वह तो सिद्धांतो को मनमर्जी तोड़ता-मरोड़ता रहता है। यादवेंद्र भी इसका अपवाद नहीं। वह तो पेंडलुम की तरह एक छोर से दूसरे छोर तक घूमता रहता है। कभी उसे नशे का धंधा अनैतिक लगता है, तो कभी लगता है कि अगर वह यह धंधा न करेगा, तो कौन सा देश में नशा बिकना बंद हो जाएगा। जब किसी-न-किसी ने यह कार्य करना ही है, तो क्यों न वह ही बहती गंगा में हाथ धो ले। वह सिर्फ हाथ धोने में कहाँ यकीन रखता है, अपितु ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 30

यूँ तो हम भगवान की भक्ति करते हैं, लेकिन असल में भगवान को नौकर समझते हैं। भगवान हमें ये दो, हमारे लिए ऐसा कर दो। भगवान को धन्यवाद तो कभी देते ही नहीं, जबकि भक्ति का संबन्ध माँगने से नहीं, धन्यवाद करने से है। हमें जैसा जीवन मिला, क्या हम इसके योग्य हैं? क्या जो कुछ हमने पाया है, वह हमारी योग्यता की अपेक्षा किसी परम सत्ता की कृपादृष्टि नहीं? कोई भी धन्यवाद नहीं देता कि हे भगवान तेरी कृपा से हम इस हालत में हैं, वरना इससे बुरी हालत में भी हो सकते थे। हम अंधे, लूले, लँगड़े ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 31

यूँ तो हर नेता यही कहता है कि वह सेवा के लिए राजनीति में आया है, लेकिन ऐसा होता क्योंकि सेवा तो निष्काम भाव से की जाती है, जबकि नेताओं में पद प्राप्ति के लिए मारामारी होती है। चुनाव जीतने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपनाए जाते हैं। अगर मकसद सेवा हो तो जीत की भी क्या ज़रूरत? सेवा तो हार कर भी हो सकती है, लेकिन हार कर पद नहीं मिलता, पॉवर नहीं मिलती और इसी पद-पॉवर के लिए हर कोई राजनीति में आता है। चुनाव में जीतना तो बाद की बात है, पहले चुनाव लड़ने के ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 32

'जन चेतना मंच' द्वारा उठाया गया नशे का मुद्दा भी सबसे ज्यादा शंभूदीन को प्रभावित कर रहा था। भ्रष्टाचार आरोप तो पूरे राज्य में सभी दलों के लगभग सभी नेताओं पर लग रहे थे, लेकिन नशे को राज्य में लाने का आरोप सिर्फ 'जन उद्धार संघ' के उम्मीदवारों पर ही था। यादवेंद्र का नाम तो उछलना ही था, क्योंकि उससे नशा पकड़ा गया था और वह केस अदालत में चल रहा था। यादवेंद्र के कारण शंभूदीन भी सबके निशाने पर था। टी.वी. चैनलों पर होने वाली बहस में अकसर यादवेन्द्र का नाम उछलता। दूसरी पार्टी के लोग यह भी ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 33

ग़म का अँधेरा खुशियों के उजाले को लील जाता है। यशवंत का बाहर आना-जाना बंद कर दिया गया, लेकिन उसे नशा नहीं मिलता, तो वह तड़पता और उसे तड़पते देख माँ का कलेजा फटता, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी। न उससे बेटे को तड़पते देखा जाता और न ही बेटे को नशा खाने की छूट दी जा सकती थी। यशवंत ने उसे नशा मुक्ति केंद्र में दाखिल करवाने का फैसला किया। जिस दिन उसे नशा मुक्ति केंद्र छोड़ना था, रमन भी साथ गई। नशा मुक्ति केंद्र को देखकर वह और दुखी हुई। बड़े लाड़-प्यार से पला और ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 34

उतार-चढ़ाव तो हर किसी के जीवन में लगे रहते हैं, लेकिन किसके जीवन में कितना उतार आता है और चढ़ाव और इससे जीवन कितना बदलता है, यह निश्चित नहीं। यादवेंद्र का जीवन बेटे को नशे की लत लगने से पूरी तरह से बदल गया है। यादवेंद्र अब बेटे को संभालने में इस कद्र व्यस्त हुआ है कि बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है, उसे कुछ नहीं पता। उसका धंधा उसके साथी ही चला रहे थे। पहली बार वह जब बेटे को नशा मुक्ति केंद्र छोड़कर आया था, तो उसे लगा था कि उसका बेटा नशे से मुक्ति पा ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 35

दुख आदमी को चिंतन करने पर मजबूर करता है। दुखी होकर आदमी अपनी उन गलतियों को याद करता है, करने से वह बच सकता था। दुख में वह उनके बारे में भी सोचता है, जिनके बारे में उनकी सोच ज्यादा बेहतर नहीं रही होती। रमन से उसके संबन्ध उस समय से बढ़िया थे, जबसे उसने रश्मि को स्वीकार कर लिया था, लेकिन शुरुआत में वह रमन के स्वभाव से परेशान रहता था। रमन का स्वभाव अब भी उसे हैरान कर रहा है। वह सोच रहा है रमन उससे लड़ती क्यों नहीं? बेटे के मौत को वह इतनी आसानी से ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 36

जब जीने का कोई मकसद हो, तब जीना बड़ा आसान हो जाता। कोई मुसीबत फिर आपको रोक नहीं सकती। की मौत के बाद यादवेंद्र बिल्कुल टूट गया था। उसकी पत्नी रमन ने उसे तसल्ली दी, नशे के दानव को समाज से मार भगाने के लिए बेटी का साथ देने के लिए प्रेरित किया। बेटी का लॉ का अंतिम वर्ष था। उसने वकालत की पढ़ाई शुरू ही इसलिए की थी कि वकील बनकर वह नशे के व्यापारियों को सलाखों के पीछे पहुँचा सके, क्योंकि उसने अपने भाई को तड़पते देखा था और जब भी वह घर आती, भाई की दशा ...और पढ़े

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युगांतर - भाग 37

हर काम की शुरुआत मुश्किल होती है और जब किसी काम की शुरुआत हो जाती है, तो रास्ता अपने बनना शुरू हो जाता है। स्मैक के आम होने से हर आदमी दुखी था। सबको डर सताता था कि कहीं उनके बच्चे इसके आदी न हो जाएँ। बहुतों के हो चुके थे। स्मैक के कारण लूट-पाट भी बढ़ी थी। पुलिस को इसकी खबर न होगी, यह हो ही नहीं सकता, लेकिन वह चुप थी। चुप्पी का कारण भी सबको पता था कि पुलिसवालों तक उनका हिस्सा यथासमय पहुँच रहा था। इतना होने के बावजूद कोई खुलकर सामने नहीं आ रहा ...और पढ़े

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