मानस के राम भूमिकाराम भारत भूमि की पहचान हैं। इस देश के कण कण में राम समाए हुए हैं। हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा में राम हमारे साथ जुड़े रहते हैं। भारत को आध्यात्म की भूमि माना जाता है। राम आध्यात्म का केंद्र हैं। परम सत्य को जानने की चाह रखने वालों के लिए राम ही मार्ग हैं और राम ही गंतव्य। सारा सच एक शब्द राम में समाया हुआ है।राम शब्द संस्कृत की दो
Full Novel
मानस के राम (रामकथा) - भूमिका
मानस के राम भूमिकाराम भारत भूमि की पहचान हैं। इस देश के कण कण में राम समाए हुए हैं। हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा में राम हमारे साथ जुड़े रहते हैं। भारत को आध्यात्म की भूमि माना जाता है। राम आध्यात्म का केंद्र हैं। परम सत्य को जानने की चाह रखने वालों के लिए राम ही मार्ग हैं और राम ही गंतव्य। सारा सच एक शब्द राम में समाया हुआ है।राम शब्द संस्कृत की दो ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 1
मानस के राम भाग 1राम का जन्मस्वर्गलोक में देवताओं की एक सभा आयोजित की गई। जिसमें ब्रह्मा जी भी सम्मिलित थे। देवता परेशान थे। वह ब्रह्मा जी से शिकायत कर रहे थे कि उन्होंने लंकापति रावण को ऐसा वरदान क्यों दिया जिसकी शक्ति से वह अपराजेय हो गया है। अपने वरदान के मद में चूर रावण ने उत्पात मचा रखा है। देवताओं का स्वर्ग में शांति पूर्वक रहना दूभर हो गया है। ब्रह्मा जी से अमर होने ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 2
मानस के राम भाग 2महर्षि विश्वमित्र का आगमनराजा दशरथ अपने पुत्रों के गुणों को देख कर बहुत प्रसन्न हुए। सबसे अधिक राम ने उन्हें प्रभावित किया। वह राम से सबसे अधिक प्रेम करते थे। अक्सर वो राम से धर्म नीति आदि विषयों पर चर्चा करते थे। उन्हें राम के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता था। एक दिन जब महाराज दशरथ अपने दरबार में बैठे राज काज के विषय में अपने मंत्रियों से ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 3
मानस के राम भाग 3दोबारा तप का आरंभत्रिशंकु को सदेह स्वर्ग भेजने के लिए राजर्षि कौशिक ने तपोबल से संचित अपनी समस्त शक्तियां समाप्त कर दी थीं। इसलिए वह दोबारा कठिन तप करने के उद्देश्य से राजर्षि कौशिक पश्चिम दिशा की तरफ पुष्कर में तप करने के लिए चले गए। कई वर्षों की कठिन तपस्या रंग लाई। ब्रह्मा जी ने राजर्षि कौशिक को ऋषि होने का वरदान दिया। इस वरदान के मिलने से भी कौशिक ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 4
मानस के राम भाग 4 गंगा के अवतरण की कथाविश्वामित्र के आश्रम में दोनों राजकुमारों ने कुछ दिन तक विश्राम किया। उसके बाद विश्वमित्र उन्हें लेकर विदेह राज्य की राजधानी मिथिला नगरी की ओर चले। विश्वामित्र ने उन्हें बताया कि राजा जनक एक विद्वान शासक हैं। जनक वेदों के ज्ञाता और दार्शनिक थे। साथ ही वो बहुत शूरवीर थे। एक राजा होते हुए भी उनमें ब्राह्मणों जैसी ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 5
मानस के राम भाग 5सीता के जन्म की कथादोनों राजकुमारों को लेकर मिथिला नगरी को जा रहे थे। राजा जनक एक प्रजा पालक राजा थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत खुश थी। उनकी पत्नी सुनयना एक धर्म परायण स्त्री थी। राजा जनक दो पुत्रियां थीं। बड़ी पुत्री का नाम सीता था और छोटी पुत्री का नाम उर्मिला।सीता के जन्म की कथा भी बहुत रोचक है। एक बार राजा जनक ने यज्ञ का आयोजन किया। ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 6
मानस के राम भाग 6भगवान परशुराम का आगमनभगवान परशुराम महेंद्र पर्वत पर बैठ कर ध्यान कर रहे थे। उस भीषण गर्जना को सुन कर उनका ध्यान टूट गया। वह समझ गए कि किसी ने भगवान शिव के धनुष पिनाक को भंग कर दिया है। वह दिव्य धनुष भगवान शिव ने उन्हें दिया जिसे उन्होंने राजा जनक को दिया था। परशुराम बहुत क्रोधित हुए। उनके पास पलक झपकते ही कहीं भी आने जाने की शक्ति ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 7
मानस के राम भाग 7मंथरा द्वारा कैकेई को भड़कानासारी अयोध्या में दीपोत्सव मनाया जा रहा था। अयोध्यावासी राम के राज्याभिषेक की तैयारी करने में जुटे थे। सभी तरफ हर्षोल्लास था। जिसे भी देखो वह राम के राजा बनने की ही बातें कर रहा था। इन सबके बीच मंथरा मन ही मन कुढ़ रही थी। जब वह राजमहल में आई तो वहाँ भी हर तरफ राम के राजा बनाने के तैयारी चल रही थी। वह बड़बड़ाती ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 8
मानस के राम भाग 8राम को वनवासकैकेई ने सुमंत को संदेशा भेजा कि वह राम से कहें कि वह उसके महल में आकर महाराज से मिलें। संदेश सुन कर राम तुरंत कैकेई के महल में पहुँचे। अपने पिता को भूमि पर पड़े तड़पते देख कर वह विचलित हो गए। उन्होंने कैकेई से पूंँछा,"क्या हुआ माता ? पिता जी इस प्रकार भूमि पर क्यों लेटे हैं ? राजवैद्य को क्यों नहीं बुलाया, मैं अभी राजवैद्य ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 9
मानस के राम भाग 9अयोध्या वासियों का राम के साथ जानाराम के वन गमन की बात जब अयोध्या वासियों को मालूम हुई तो चारों ओर शोक का वातावरण छा गया। सभी तरफ लोग अफ़सोस कर रहे थे। कैकेई के प्रति लोगों में गुस्सा था। स्त्रियां उसे कोस रही थीं। लोग आपस में बात कर रहे थे कि कैसे दोनों राजकुमार और जानकी वन के कष्टों को सह पाएंगे। वो बात कर रहे थे कि राम के ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 10
मानस के राम भाग 10राम का चित्रकूट की तरफ प्रस्थानगंगा पर कर जब राम सीता और लक्ष्मण उस पार पहुँचे तो तीनों पहली बार अकेले थे। राम ने लक्ष्मण से कहा,"यहाँ से हमारा वनवास पूर्ण रूप से आरंभ हो रहा है। अब हम तीनों ही एक दूसरे के सुख दुख के साथी हैं। सीता हमारे साथ है। उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है। हम दोनों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि हर ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 11
मानस के राम भाग 11भरत की अयोध्या वापसीआठवें दिन जब भरत और शत्रुघ्न अयोध्या पहुँचे तो वहां के वातावरण में एक अजीब सी ख़ामोशी थी। पहले की भांति ना तो सडकों और बाज़ारों में चहल पहल थी और ना ही किसी घर से कोई मंगल ध्वनि सुनाई पड़ रही थी। यह सब किसी अशुभ का संकेत थे। भरत और शत्रुघ्न को अब पूरा यकीन हो गया था कि बात बहुत गंभीर है। जब वह दोनों महल में ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 12
मानस के राम भाग 12भरत का अपने दल के साथ प्रस्थानवन जाकर राम को वापस लाने की सारी तैयारियां हो चुकी थीं। बस अब सही समय पर कूच करना बाकी था। कौशल्या के महल में सुमित्रा उनके साथ इसी विषय पर बात कर रही थीं। सुमित्रा ने कैकेई से कहा,"दीदी भरत को राजगद्दी का तनिक भी लोभ नहीं है। राम को कितना प्रेम करता है। उसे वापस लाने के लिए हम सबको लेकर वन में ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 13
मानस के राम भाग 13भरत का चित्रकूट प्रस्थानअगले दिन प्रातःकाल भरत और उनका दल चित्रकूट की तरफ प्रस्थान के लिए तैयार था। भरत ने जब चलने की आज्ञा मांगी तो भारद्वाज ऋषि ने उन्हें चित्रकूट का मार्ग समझाते हुए कहा,"यहाँ से ढाई योजन दूर मंदाकिनी नदी के किनारे एक वन है। उस वन में चित्रकूट नाम का एक पर्वत है। उसी चित्रकूट पर्वत की दक्षिणी ढलान पर राम अपनी पत्नी और भाई के साथ ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 14
मानस के राम भाग 14दल का चित्रकूट में पड़ाव डालनाचारों भाई और तीनों माताएं एक साथ एकत्र थे। भरत के साथ आए सभी लोगों को पूरा यकीन था कि अब राम अपना वनवास छोड़कर अयोध्या वापस जाने को तैयार हो जाएंगे। सुमंत और निषादराज सारे दल के विश्राम व भोजन की व्यवस्था करने लगे। यह तय हुआ कि भोजन और विश्राम के बाद सभा बुलाई जाएगी। जिसमें भजन राम के समय अपनी प्रार्थना रखेंगे। महाराज दशरथ की मृत्यु ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 15
मानस के राम भाग 15महाराज जनक का स्वागतमंदाकिनी नदी के तट पर राम अपने भाइयों एवं महर्षि वशिष्ठ के साथ राजा जनक और उनकी पत्नी सुनयना का स्वागत करने पहुँचे। राजा जनक ने पत्नी सहित महर्षि वशिष्ठ के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। राम ने भी अपने भाइयों के साथ पहले राजा जनक के साथ आए शतानंद के चरण स्पर्श किए। उसके बाद राजा जनक एवं उनकी पत्नी सुनयना के पैर छुए। राजा जनक ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 16
मानस के राम भाग 16सुतीक्ष्ण ऋषि से भेंटसरभंग ऋषि की सलाह पर राम, सीता और लक्ष्मण के साथ सुतीक्ष्ण ऋषि से भेंट करने के लिए आगे बढ़ने लगे। राम और लक्ष्मण पर अब उस प्रदेश में रहने वाले आश्रमवासियों की सुरक्षा का भार था। सीता इस बात से कुछ चिंतित थीं। जब एक स्थान पर वह लोग विश्राम करने के लिए रुके तो उन्होंने राम को समझाया,"आप इस वन प्रदेश में अपने पिता के ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 17
मानस के राम भाग 17पंचवटी में निवासऋषि अगस्त्य की आज्ञा मानकर राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ पंचवटी की ओर प्रस्थान किया। पंचवटी की तरफ बढ़ते हुए उन लोगों को कई मनोहारी दृश्य दिखाई पड़े। मार्ग में जब कोई स्थान उनका मन मोह लेता तो तीनों वहाँ पर रुक जाते। शीतल जल धाराओं में स्नान करके तरोताजा होते। वहाँ उपलब्ध कंद मूल फल खाते। विश्राम करने के बाद पुनः अपने मार्ग पर आगे बढ़ ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 18
मानस के राम भाग 18लंकापति रावणत्रिकूट पर्वत के ऊपर बसी थी सुंदर और वैभवशाली नगरी जिसका नाम था लंका। लंका पर रावण नामक राक्षस का राज था। रावण बहुत ही शक्तिशाली और विद्वान था। वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता था। शिव का परम भक्त था। ऋषि विशर्वा और राक्षस कन्या कैकसी का पुत्र रावण अत्यंत प्रतिभाशाली था। अपने पिता से उसने वेदों और शास्त्रों का अध्यन किया। उसने शस्त्र विद्या में भी निपुणता प्राप्त ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 19
मानस के राम भाग 19रावण का मारीचि से मिलनारावण को मारीचि की याद आई। मारीचि उसका मामा था। वह ताड़का का पुत्र था। जब मारीचि ने अपने भाई सुबाहू के साथ विश्वमित्र के यज्ञ में बाधा डालने का प्रयास किया था तो राम के एक बाण ने उसे कई योजन दूर लंका पहुँचा दिया था। तब से मारीचि एक कुटिया बना कर एकांत में रहता था। वह भगवान शिव की आराधना करता था। मारीचि के ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 20
मानस के राम भाग 20जटायु का बलिदानसीता को पुष्पक विमान में बैठा कर रावण लंका ले जा रहा था। सीता सहायता के लिए पुकार रही थीं। उनकी करुण पुकार जटायु को सुनाई दी। वह तुरंत सीता की सहायता के लिए पहुँचा। उसे देख कर सीता ने सहायता के लिए पुकारा,"यह दुष्ट मुझे हरण कर ले जा रहा है। मेरी सहायता करो।"सीता की यह दशा देख कर जटायु का रक्त खौल ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 21
मानस के राम भाग 21सीता को अशोक वाटिका भेजनासीता को महल में छोड़ने के बाद उसने अपने कुछ गुप्तचरों को इस आदेश के साथ जनस्थान भेजा कि वह पता करें कि सीता के वियोग में राम की क्या दशा है। गुप्तचरों को आदेश देकर वह पुनः सीता के पास आया और उन्हें मनाने के लिए अपने ऐश्वर्य का बखान करने लगा,"हे सीता तुम त्रिपुर सुंदरी हो। मैं भी अतुल संपदा का स्वामी हूँ। यह नयनाभिराम ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 22
मानस के राम भाग 22किशकिंधा नरेश बालीकिषकिंधा का राजा बाली सुग्रीव का बड़ा भाई था। उसका विवाह वैद्यराज सुषेन की पुत्री तारा के साथ हुआ था। उसे अपने पिता इंद्र से ब्रह्मा द्वारा अभिमंत्रित एक स्वर्ण हार मिला था। उसे यह वरदान था कि जब वह यह स्वर्ण हार पहन कर युद्ध भूमि में किसी का सामना करेगा तो उसके शत्रु की आधी शक्ति उसे मिल जाएगी। अपने इस वरदान के कारण वह अजेय हो ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 23
मानस के राम भाग 23राम द्वारा सात वृक्षों को एक तीर से गिरानासुग्रीव को उसका राज्य वापस दिलाने के लिए आवश्यक था कि बाली का वध किया जाए। किंतु सुग्रीव को आशंका थी कि क्या राम बाली का वध कर सकेंगे। हनुमान के समझाने पर भी सुग्रीव का संशय दूर नहीं हुआ। वह राम की शक्ति का परीक्षण करना चाहता था। लेकिन वह जानता था कि सीधे सीधे यह बात राम से कहना उचित ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 24
मानस के राम भाग 24बाली का प्राण त्यागनाजब बाली के वध का समाचार किषकिंधा पहुँचा तो वानरों में अफरा तफरी मच गई। अपने व्यक्तिगत दुख को भुला कर तारा ने वानरों को शांत कराया। वानरों को तसल्ली देने के बाद वह उस स्थान पर गई जहाँ बाली का शव पड़ा था। बाली को भूमि पर गिरा हुआ देख कर तारा उसके समीप बैठ कर विलाप करने लगी,"हे प्राणनाथ आपने अपने जीवन में कितने बलशाली योद्धाओं ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 25
मानस के राम भाग 25वानर दलों का सीता की खोज में जानासुग्रीव की योजना सुनकर राम प्रसन्न होकर बोले,"आपने एक सच्चे मित्र का कर्तव्य निभाया है। मैं सीता के विषय में सोंच कर बहुत चिंतित था। किंतु आपने मेरी समस्त चिंता को इस प्रकार हर लिया जैसे सूर्य अंधकार को निगल जाता है। अब मुझे पूर्ण विश्वास है कि रावण का विनाश होकर रहेगा।"जब राम सुग्रीव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहे थे तभी ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 26
मानस के राम भाग 26संपाती से भेंटकुछ ही दूर एक पहाड़ी पर बैठा संपाती नामक गिद्धों का राजा यह सब देख रहा था। संपाती अपने पंख खो चुका था। अतः वह शिकार करने के लिए दूर नहीं जा सकता था। आस पास जो मिलता था वही खा लेता था। सही भोजन ना मिल पाने के कारण वह दुर्बल हो गया था। जब उसने इतने सारे वानरों को प्राण त्यागने के संकल्प से बैठे देखा तो ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 27
मानस के राम भाग 27हनुमान का लंका पहुँचनासारी बाधाओं को पार कर हनुमान लंका के तट पर पहुँच गए। वहाँ नारियल तथा केले के बहुत से पेड़ थे। चारों तरफ घने जंगल तथा पहाड़ थे। लंका बहुत ही सुंदर व समृद्ध नगरी थी। वह एक पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए। वहाँ से उन्हें त्रिकूट पर्वत पर बसी लंका नगरी साफ दिखाई दे रही थी। हनुमान उसकी भव्यता को देख कर दंग रह गए। ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 28
मानस के राम भाग 28रावण का सीता के पास आनासीता अपने दुख में नज़रें झुकाए बैठी थीं। वह मन में सोच रही थीं कि आखिर उनसे क्या भूल हुई है जो विधाता उन्हें इस प्रकार दंडित कर रहे हैं। उन्होंने मन ही मन प्रार्थना की कि ईश्वर उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति दें। राम उन्हें लेने के लिए जल्दी ही आ जाएं। रावण ने अपने दल के साथ अशोक वाटिका में प्रवेश किया। अपने स्थान पर छिपे हुए ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 29
मानस के राम भाग 29हनुमान द्वारा अशोक वाटिका का ध्वंसराम की मुद्रिका देखकर सीता का सारा संशय समाप्त हो गया था। उन्होंने हनुमान से कहा,"मुझे अब तुम पर पूर्ण विश्वास हो गया है। किंतु एक बात समझ में नहीं आती है कि मेरे स्वामी ने इतना विलंब क्यों कर दिया। क्या वह मुझसे किसी बात पर रुष्ठ हैं। पुत्र हनुमान उनसे जाकर कहना कि उनके वियोग में मेरे लिए एक एक पल काटना कठिन हो रहा है। ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 30
मानस के राम भाग 30हनुमान का रावण को समझानाहनुमान रावण के वैभव को देखकर अचंभित अवश्य हुए थे। लेकिन उनके मन में रावण के लिए कोई भय नहीं था। हनुमान रावण के दरबार में थे। रावण के ह्रदय में अपने पुत्र की हत्या का दुख था। उसने अपने पुत्र इंद्रजीत से कहा,"इस साधारण वानर में ऐसा क्या है कि तुम को इस पद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना पड़ा ?"इंद्रजीत ने कहा,"पिताश्री यह वानर देखने में ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 31
मानस के राम भाग 31हनुमान की राम से भेंटकिष्किंधा वापस आते ही वानरों का दल महाराज सुग्रीव की वाटिका मधुबन में घुस गया। अपनी सफलता के मद में चूर वानरों ने मधुबन में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। उन्होंने अंगद से अनुमति लेकर मधुबन का मीठा शहद पीना आरंभ किया। हनुमान ने कहा,"वानर साथियों आज जी भर कर शहद पिओ। मीठे फल खाओ। हमने प्रभु राम का काम कर लिया है। सीता माता का ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 32
मानस के राम भाग 32विभीषण द्वारा रावण को समझानारावण जब अपने दरबार में पहुँचा तो उसे गुप्तचरों द्वारा सूचना दी गई कि राम एक विशाल वानर सेना के साथ समुद्र तट पर आ चुके हैं। इस सूचना को सुनकर रावण जोर से हंस कर बोला,"समुद्र तट तक आ चुके हैं। पर समुद्र पार कर लंका कैसे पहुँचेंगे ? कितने दिनों तक समुद्र के किनारे डेरा डाले रहेंगे ? मान लो कि अगर किसी तरह ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 33
मानस के राम भाग 33राम द्वारा विभीषण का राज्याभिषेकराम के आदेश के अनुसार सुग्रीव विभीषण को राम के पास लेकर चले। जब विभीषण राम के शिविर की तरफ जा रहे थे तो वह बहुत अधिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहे थे। उन्होंने राम के बारे में बहुत कुछ सुना था। उनके मन में विचार आ रहा था कि आज वह उन श्री राम से मिलेंगे जो अपने पिता के वचन को निभाने के लिए ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 34
मानस के राम भाग 34शुक का रावण के पास वापस जानासुग्रीव के शिविर से निकल कर शुक लंका वापस चला गया। वह सारी घटना के बारे में बताने के लिए रावण के दरबार में उपस्थित हुआ। रावण ने उससे कहा,"शुक बताओ क्या समाचार लेकर आए हो ? मेरे उस कुलघाती भाई का क्या हाल है ?"शुक ने रावण को प्रणाम कर कहा,"महाराज वहाँ उपस्थित लंका के गुप्तचरों से मैंने बात की। उन्होंने बताया कि ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 35
मानस के राम भाग 35रावण का दरबारियों से मंत्रणा करनारावण ने मंदोदरी को शांत कराने के लिए अपनी शक्ति का गुणगान किया था। लेकिन मन ही मन वह भी बहुत चिंतित। मंदोदरी के महल से वह सीधे अपने दरबार पहुँचा। उसने वहाँ उपस्थित मंत्रीगणों को सारी बात से अवगत कराया। सब जानकर इंद्रजीत ने कहा,"आश्चर्य की बात है उस साधारण वनवासी राम की सेना लंका के तट तक आ गई।"एक मंत्री ने कहा,"ऐसा लगता है ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 36
मानस के राम भाग 36शुक व सारण द्वारा राम का संदेश लेकर जानादोनों गुप्तचर बार बार अपने किए की क्षमा मांग रहे थे। राम ने उन्हें समझाते हुए कहा,"तुमने जो कुछ भी किया वह तुम्हारा कर्तव्य था। तुम लंका के राजा रावण के आधीन हो। अतः उनकी आज्ञा का पालन करना ही तुम्हारा धर्म है। तुमने अपने धर्म का पालन किया है। अब यहांँ से जाओ और अपने कर्तव्य को पूरा करो। यहांँ तुमने ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 37
मानस के राम भाग 37राम की छावनी में युद्ध की रणनीति पर चर्चावानर सेना की छावनी में भी सभा बैठी थी। इस सभा में राम और लक्ष्मण के अलावा वानर राज सुग्रीव, जांबवंत, हनुमान और अंगद उपस्थित थे। विभीषण के विश्वासपात्र मंत्रियों ने लंका में चल रही गतिविधियों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां लाकर दी थीं। विभीषण ने कहा,"मेरे विश्वासपात्र मंत्री पनस, अनल, संपाती और प्रवृति लंका से लौटकर आए हैं। उन्होंने बताया है ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 38
मानस के राम भाग 38अंगद का दूत बनकर जानाअंगद राम का संदेश लेकर रावण के दरबार में जाने को तैयार था। राम ने समझाया,"अंगद तुम्हारे ऊपर एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य के निर्वहन का दायित्व है। तुमको मेरा संदेश लेकर रावण के पास जाना है। संदेशवाहक दूत का काम बहुत दायित्व का होता है। तुमको ना केवल हमारा संदेश देना है बल्कि इस प्रकार देना है कि अपनी बात रखते हुए भी तुम लंका के ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 39
मानस के राम भाग 39अंगद का शक्ति प्रदर्शनअंगद ने अपना पांव एक खंभे की तरह भूमि पर जमा रखा था। उसकी चुनौती से सारे दरबार में खलबली मच गई थी। अंगद ने पूरे आत्मविश्वास के साथ वहाँ उपस्थित लोगों को चुनौती दी थी कि यदि कोई भी उसके पांव को हिला देगा तो श्री राम अपनी सेना के साथ वापस चले जाएंगे। उसकी चुनौती सुनकर रावण ने कहा,"वानर अपनी वाचालता में तूने बहुत बड़ी ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 40
मानस के राम भाग 40रावण द्वारा राम की झूठी मृत्यु का समाचार सीता को देनारावण किसी भी प्रकार हार मानने को तैयार नहीं था। वह विचार कर रहा था कि यदि सीता अपनी इच्छा से उसे स्वीकार कर ले तो राम के लिए यहाँ रहकर युद्ध करने का कोई प्रयोजन नहीं रह जाएगा। उसके मस्तिष्क में एक उपाय आया। उसने विद्युत जिह्वा नामक राक्षस को बुलवाया जो माया से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं रच ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 41
मानस के राम भाग 41मकराक्ष का वधप्रहस्त की मृत्यु से एक बार फिर वानर सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई थी। राम ने अपने अनुज लक्ष्मण की प्रशंसा करते हुए कहा,"लक्ष्मण प्रहस्त जैसे वीर का वध करके तुमने शत्रु पक्ष में हलचल मचा दी है। रावण के लिए अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार अत्यंत दुखदाई होगा।"लक्ष्मण ने कहा,"हाँ भ्राता श्री प्रहस्त निसंदेह ही एक वीर योद्धा था। उसकी मृत्यु का समाचार शत्रु ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 42
मानस के राम भाग 42रावण का रथहीन होनाजांबवंत ने सलाह दी थी कि रावण का सामना करने राम स्वयं जाएं। राम जब पहुँचे तब हनुमान रावण के साथ भिड़ रहे थे। हनुमान को देखकर रावण ने उन्हें अपनी गदा के वार से भूमि पर गिरा दिया। हनुमान 'जय श्रीराम' का नारा लगाकर उठकर खड़े हो गए। उन्होंने अपनी मुष्टिका से रावण के वक्ष पर प्रहार किया। उनके प्रहार से रावण डगमगा गया। फिर स्वयं को ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 43
मानस के राम भाग 43कुंभकर्ण और रावण की भेंटकुंभकर्ण अपने भाई रावण के समक्ष प्रस्तुत हुआ। हाथ जोड़कर उसने अपने भाई को प्रणाम किया और बोला,"भ्राता लंका पर आई विपदा के बारे में सुनकर अत्यंत कष्ट हुआ। रणभूमि में आपके साथ जो कुछ भी हुआ वह मेरे लिए बहुत कष्टदायक है।"रावण ने कहा,"राम और उसकी सेना ने मकराक्ष और प्रहस्त जैसे वीर योद्धाओं को मार दिया। यह जानकर लंका के निवासियों में एक भय का ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 44
मानस के राम भाग 44कुंभकर्ण की मृत्यु से रावण का आहत होनाकुंभकर्ण की मृत्यु से वानर सेना में फिर से उत्साह की लहर दौड़ गई। लेकिन विभीषण अपने बड़े भाई की मृत्यु पर दुखी हो रहे थे। राम ने उनके पास जाकर कहा,"मैं आपके दुख को समझता हूंँ महाराज विभीषण। किंतु आप इस प्रकार शोक ना करें। आपके भाई कुंभकर्ण ने अपने अग्रज लंकापति रावण के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है। वह एक ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 45
मानस के राम भाग 45धन्यमालिनी का शोक करनाअपने पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुनकर रावण दुखी अवस्था में अपने महल में बैठा था। जो उत्साह उसके मन में जागा था वह अपने पत्रों की मृत्यु का समाचार सुनकर फिर से समाप्त हो गया था। रावण भीतर ही भीतर छटपटा रहा था। अपने कुटुंबियों एवं अपनी जाति का विनाश अपनी आंँखों के सामने होते देखना उसके लिए तनिक भी सरल नहीं था। परंतु अब वह ऐसे ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 46
मानस के राम भाग 46राम तथा लक्ष्मण का नागपाश में बंधनाइंद्रजीत लक्ष्मण के आने की प्रतीक्षा कर रहा था। राम से विजय का आशीर्वाद प्राप्त कर लक्ष्मण युद्धभूमि में पहुँचे। उन्हें देखकर इंद्रजीत ने कहा,"आज तुम्हारी मृत्यु तुम्हें युद्धभूमि में खींचकर लाई है। मैं तुमसे अपने भाई अतिकाय के वध का प्रतिशोध लेने आया हूँ।"लक्ष्मण ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा,"मैं भी अपने भ्राता का आशीर्वाद प्राप्त कर तुम्हारे अहंकार को अपने ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 47
मानस के राम भाग 47लक्ष्मण को शक्ति लगनालक्ष्मण इंद्रजीत का सामना करने युद्धभूमि में पहुँचे। इंद्रजीत ने कहा,"नागपाश के बंधन से मुक्त हो गए किंतु आज मैं तुम्हें मृत्यु की गोद में सुलाकर ही जाऊँगा।"लक्ष्मण ने कहा,"शब्दों के बाण नहीं वास्तविक बाण चलाओ। मैं भी अब तुम्हें दंड देकर ही यहाँ से जाऊँगा।"एक बार फिर दोनों के बीच भयंकर युद्ध होने लगा। लेकिन कुछ ही देर में इंद्रजीत माया का प्रयोग करने लगा। वह ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 48
मानस के राम भाग 48कालनेमि द्वारा हनुमान का रास्ता रोकनारावण ने अपने दूत शुक को सारी बातों का पता लगाने के लिए भेजा था। वहाँ जो कुछ हुआ उसके बारे में बताने के लिए वह रावण के दरबार में उपस्थित हुआ। उसने रावण को सब कुछ बता दिया। सब सुनकर इंद्रजीत ने ज़ोरदार अट्टहास कर कहा,"सुषेण वैद्य ने जो उपाय बताया है उसका पूरा होना असंभव है। अब लक्ष्मण की मृत्यु तय है। उसके ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 49
मानस के राम भाग 49इंद्रजीत द्वारा यज्ञ करनासंजीवनी बूटी के प्रयोग से लक्ष्मण के प्राण बच गए थे। वानर सेना में उत्साह की एक लहर दौड़ गई थी। सभी बहुत खुश थे। सुषेण वैद्य ने हनुमान से कहा कि वह द्रोणागिरी पर्वत को वापस उसके स्थान पर रख आएं। हनुमान उनकी आज्ञा मानकर पर्वत को दोबारा उसके स्थान पर पर रख आए।रावण को जब यह समाचार मिला कि शक्ति लगने के बावजूद लक्ष्मण के ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 50
मानस के राम भाग 50इंद्रजीत की मृत्यु पर शोकजब इंद्रजीत की मित्र का समाचार लंका पहुँचा तो लंका वासियों में हलचल मच गई। एक तरफ तो उनमें अपने युवराज की मृत्यु का शोक था तो दूसरी ओर इस बात का भय था कि राक्षस जाति का विनाश अब निकट है। जिसने इंद्रजीत जैसे वीर योद्धा का वध कर दिया वह साधारण नर नहीं हो सकते हैं।रावण ने जब यह समाचार सुना तो वह अंदर ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 51
मानस के राम भाग 51रावण का लक्ष्मण से सामनादोनों पक्ष पूरे जोश से एक दूसरे का सामना करने के लिए युद्धभूमि में आमने सामने थे। एक तरफ जय लंकेश तो दूसरी ओर हर हर महादेव के नारे लगाए जा रहे थे। दोनों ही पक्ष अब युद्ध का परिणाम निकालने के लिए उद्धत थे। रावण ने युद्धभूमि में आते ही अपने धनुष की प्रत्यंचा की टंकार से इस बात की घोषणा की कि अब वह युद्ध ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 52
मानस के राम भाग 52युद्ध समापन से पूर्व की रात्रिदोनों ही सेनाएं अपने अपने शिविरों में लौट गई थीं। आज युद्ध में दोनों ही पक्षों को बहुत क्षति हुई थी। कई योद्धा घायल थे। जिनका उपचार किया जा रहा था।लक्ष्मण राम के घावों पर औषधि का लेप कर रहे थे। पर राम के घावों को देखकर उनका ह्रदय द्रवित हो रहा था। वह इस युद्ध के लिए स्वयं को दोष दे रहे थे। उनका मानना ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 53
मानस के राम भाग 53रावण का वधरावण महाबलशाली था। तीनों लोकों में उसकी वीरता का डंका बजता था। राम भी शक्ति और पराक्रम में उससे कम नहीं थे। दोनों वीर योद्धा के बीच के महासंग्राम को समय भी सांस रोक कर देख रहा था।दोनों योद्धा बराबरी से एक दूसरे को टक्कर दे रहे थे। एक के बाद एक शक्तिशाली बाण चलाए जा रहे थे। युद्धभूमि में एक भयंकर कोलाहल था।रावण ने जब देखा कि ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 54
मानस के राम भाग 54रावण की अंत्येष्टिराम की उदारता पर माल्यवंत बहुत ही आदर के साथ हाथ जोड़कर बोले,"हे रघुकुल के गौरव आप अत्यंत ही उदार हैं। आपके स्थान पर अन्य कोई होता तो लंका की इस अकूट संपदा पर अधिकार कर लंका के सिंहासन पर आरूढ़ हो जाता। परंतु आपमें लेशमात्र भी लोभ नहीं है। आपने सबकुछ विभीषण को सौंप दिया। आप धन्य हैं।"राम ने कहा,"मैं अपने पिता के वचन का सम्मान करने ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 55
मानस के राम भाग 55सीता की अग्निपरीक्षालक्ष्मण के ह्रदय में एक भूचाल सा था। राम के शब्द उन्हें पीड़ा पहुँचा रहे थे। उन्हें क्रोध आ रहा था। उन्होंने कहा,"भ्राताश्री आपके कहने का तात्पर्य है कि भाभीश्री को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा। यह तो सर्वथा अन्याय है। उनके जैसी पतिव्रता स्त्री ने इतने कष्ट सहे। रावण की अकूट संपदा को अस्वीकार कर बंदिनी बनकर रहना स्वीकार किया। उन्हें अपने सतीत्व की परीक्षा देनी पड़ेगी। यह ...और पढ़े
मानस के राम (रामकथा) - 56 - अंतिम
मानस के राम भाग 56 (अंतिम)हनुमान का ब्राह्मण रूप में भरत के पास जानापुष्पक विमान से सभी लोग भारद्वाज मुनि के आश्रम में पहुँच गए। राम ने हनुमान से कहा,"पवनपुत्र हम भारद्वाज मुनि के आश्रम में जाएंगे। उसके बाद मैं अपने मित्र निषादराज गुह से भेंट करूँगा। सीता को वहाँ मांँ गंगा की पूजा करनी है। तुम यहांँ से सीधे नंदीग्राम जाकर भरत से मिलो। परंतु सीधे जाकर उसे मेरी वापसी का समाचार मत बताना। तुम ब्राह्मण ...और पढ़े