मानस के राम (रामकथा) - 40 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मानस के राम (रामकथा) - 40




मानस के राम

भाग 40




रावण द्वारा राम की झूठी मृत्यु का समाचार सीता को देना


रावण किसी भी प्रकार हार मानने को तैयार नहीं था। वह विचार कर रहा था कि यदि सीता अपनी इच्छा से उसे स्वीकार कर ले तो राम के लिए यहाँ रहकर युद्ध करने का कोई प्रयोजन नहीं रह जाएगा। उसके मस्तिष्क में एक उपाय आया। उसने विद्युत जिह्वा नामक राक्षस को बुलवाया जो माया से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं रच सकता था। उसने उससे कहा कि वह अपनी माया से राम का कटा हुआ सिर बनाए।
विद्युत जिह्वा ने रावण के आदेश का पालन करके राम के सिर की प्रतिकृति बना दी। रावण वह सिर लेकर अशोक वाटिका सीता के पास गया और बोला,
"तुम सोचती थी कि वह वनवासी आकर तुम्हें यहाँ से ले जाएगा। लेकिन अब तुम्हारी वह झूठी आशा भी समाप्त हो गई। राम हमारे हाथों मारा गया। प्रमाण तुम्हारे सामने है।"
कहकर रावण ने माया से रचा गया राम का सिर सीता के सामने रख दिया। सीता ने उस पर दृष्टि डाली। पहले तो सीता उस सिर को देखकर दुखी हुईं। उनकी आँखों में आंसू आ गए। रावण ने कहा
"अब तुम्हारा राम तुमको लेने के लिए कभी नहीं आएगा। इसलिए अब अपना हठ त्याग कर मेरी पटरानी बनकर लंका के वैभव का सुख भोगो।"
रावण की बात सुनकर सीता ने कहा,
"ऐसा कदापि नहीं हो सकता है। तेरे जैसे नीच अधम की बात कभी नहीं मानूँगी। यदि मेरे स्वामी जीवित नहीं हैं तो मैं जीवित रहकर क्या करूँगी। मैं भी अपने प्राण त्याग दूँगी।"
सीता दुखी थीं। वह ईश्वर से प्रार्थना कर रही थीं कि अब उनके प्राण भी ले लें। तभी माया से बना राम का सिर लुप्त हो गया। सीता समझ गईं कि रावण उनके साथ छल कर रहा है।
अपनी चाल विफल होने पर रावण खिसिया कर लौट गया।
त्रिजटा ने सीता को समझाया कि वह घबराएं नहीं। राम की सेना लंका आ चुकी है। उन्होंने एक शांतिदूत भेजा था जिसने यह प्रस्ताव दिया था कि रावण तुमको तुम्हारे पति राम के पास सुरक्षित पहुँचा दे। जिससे रक्तपात ना हो। पर रावण ने शांति प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। अब राम लंका पर आक्रमण कर तुम्हें ले जाएंगे।


युद्ध का आरंभ

सूर्योदय होने पर राम ने सबसे पहले सूर्य को प्रणाम कर उनसे आशीष मांगा कि वह इस युद्ध में विजय प्राप्त करें। उसके पश्चात उन्होंने सेना को उसी प्रकार से तैनात होने का आदेश दिया जैसा तय हुआ था।
'हर हर महादेव' और 'प्रभु रामचंद्र की जय' 'महाराज सुग्रीव की जय' के नारे सब तरफ गूंजने लगे। राम की सेना ने लंका के चारों द्वारों पर एक साथ आक्रमण कर दिया। अपने हाथों में बड़े-बड़े पत्थर लेकर वानर उछाल कर उन्हें परकोटे के उस तरफ फेंकने लगे। राक्षस सेना उनके नीचे दब कर आहत होने लगी।
वानरों ने बड़े बड़े पेड़ और पत्थरों की सहायता से लंका के द्वारों और प्राचीर पर भयानक प्रहार आरंभ कर दिया। राक्षस सेना में खलबली मच गई।
रावण के पास यह समाचार पहुंँचा कि वानर सेना ने उग्र रूप से लंका पर आक्रमण आरंभ कर दिया है। उन्होंने चारों द्वारों पर एक साथ धावा बोला है। इंद्रजीत जो राक्षस सेना का प्रधान सेनापति था उसने सुझाव दिया कि पहले पश्चिम का द्वार खोलकर राक्षस सेना को इस आक्रमण का जवाब देना चाहिए। रावण ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा,
"यह उचित सुझाव है। पहले पश्चिम द्वार खोलकर उन वानरों पर आक्रमण करो। जब वह पश्चिम द्वार की तरफ अपनी शक्ति लगा दें तब सारे द्वार खोलकर उन पर आक्रमण कर दो। ‌ इस प्रकार वानर सेना घिर जाएगी।"
रावण का आदेश पाकर पश्चिमी द्वार खोलकर राक्षस सेना ने वानरों पर आक्रमण कर दिया। दोनों दल एक दूसरे पर टूट पड़े। 'हर हर महादेव' और 'जय लंकेश' के नारों से आसमान गूंजने लगा। रणभेरी और युद्ध के नगाड़ों से समस्त पृथ्वी गूंज उठी थी।‌
इसके बाद बाकी के द्वार खोलकर पास सेना ने वानरों पर आक्रमण कर दिया।
भयंकर युद्ध हो रहा था। राक्षस वनरों पर भयंकर प्रहार कर रहे थे। वानर भी अपने अस्त्र शस्त्रों से राक्षसों को क्षत विक्षित कर रहे थे। कुछ ही समय में युद्धभूमि रक्त से लाल हो गई थी।
दोनों पक्षों के वीर योद्धा आपस में द्वंद्व कर रहे थे।

वज्रमुष्टि का वध

राक्षसों की सेना का सेनापति वज्रमुष्टि था। सुग्रीव ने उसके पास जाकर उसे ललकारा,
"अपनी शक्ति का प्रयोग तुम वानर सेना के साधारण सैनिकों पर क्यों कर रहे हो ? क्या यही तुम्हारी सामर्थ्य है। यदि तुम्हारे अंदर हिम्मत हो तो मुझसे युद्ध करके दिखाओ।"
सुग्रीव की ललकार सुनकर वज्रमुष्टि ने क्रोध में फुंफकारते हुए कहा,
"मेरी शक्ति का सामाना करने का तुम्हारा बहुत मन कर रहा है। मुझे भी तुम्हें मारने में बहुत मजा आएगा। आज इस सुग्रीव की ग्रीवा को तोड़कर मैं उसे भूमि पर पटक दूंँगा।"
"सिर्फ बातें करने से कोई युद्ध नहीं जीतता है। उसके लिए अपनी शक्ति से शत्रु को पराजित करना होता है। इसलिए बातें करने की जगह मेरे साथ युद्ध करो।"
"ठीक है तो आज यह वज्रमुष्टि तुम्हें अपनी मुष्टिका का दम दिखाकर चित कर देगा।"
यह कहते ही वह सुग्रीव की तरफ दौड़ा। उन दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया। दोनों एक दूसरे पर जोरदार प्रहार कर रहे थे। कभी वज्रमुष्टि के प्रहार से सुग्रीव आहत होते तो कभी सुग्रीव की गदा से वज्रमुष्टि। दोनों एक दूसरे पर भारी पड़ रहे थे। कोई किसी से कम नहीं था। बहुत देर तक उन दोनों के बीच युद्ध होता रहा। अंत में दोनों अपने अस्त्र छोड़कर एक दूसरे के साथ द्वंद करने लगे।
देर तक द्वंद चलने के बाद अंततः वज्रमुष्टि सुग्रीव के हाथों मारा गया।
वज्रमुष्टि के वध से वानर सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। वह एक वीर योद्धा था। उसकी मुष्टिका में इंद्र के वज्र के समान शक्ति थी।
रावण के पास जब वज्रमुष्टि के वध का समाचार पहुंँचा तो वह बहुत आश्चर्यचकित हुआ।

दुर्मुख व रावण पुत्र प्रहस्त का वध

वानर सेना ने राक्षस सेना को बहुत अधिक क्षति पहुँचाई थी। इस क्षति से रावण बहुत परेशान हो गया था। उसने अपने पुत्र प्रहस्त से कहा,
"तुम एक वीर योद्धा हो। युद्ध भूमि में जाओ और उन वनवासी भाइयों को हमारी लंका पर आक्रमण करने के लिए उचित सबक सिखाओ।"
प्रहस्त ने उत्साह के साथ कहा,
"आप तनिक भी चिंता ना करें। मेरे बाणों की वर्षा में वानर सेना का नाश हो जाएगा।"
प्रहस्त जीत का संकल्प लेकर युद्ध भूमि की तरफ चल दिया।

युद्ध भूमि में हनुमान का दुर्मुख नामक राक्षस से सामना हुआ। हनुमान को देखकर दुर्मुख ने कहा,
"आज इस युद्ध भूमि में मैं तुम्हें उस उद्दंडता का सबक सिखाऊँगा जो तुमने लंका दहन करके की थी।"
"तुम मुझे दंड दोगे ? मुझे तो तुम्हारे स्वामी लंकापति रावण भी दंडित नहीं कर पाए।"
"क्योंकी उनसे एक भूल हो गई थी। उन्हें तुम जैसे उद्दंड को मृत्युदंड देना चाहिए था। लेकिन उस दिन की भूल आज मैं तुम्हारे प्राण लेकर सुधारूँगा।"
यह कहकर दुर्मुख हनुमान पर टूट पड़ा। हनुमान ने भी आगे बढ़कर उसके वार का प्रत्युत्तर दिया। दोनों के बीच घमासान युद्ध होने लगा।

दूसरी तरफ प्रहस्त ने युद्धभूमि में आते ही बाणों की वर्षा आरंभ कर दी। ऐसा लग रहा था जैसे कि वानर सेना के संहार के लिए आसमान रक्षस सेना के साथ मिलकर बाणों की वर्षा कर रहा है। इस बाण वर्षा में वानरों के कई झुंड मारे जाने लगे।
यह देखकर लक्ष्मण ने विभीषण से पूँछा कि यह कौन सा योद्धा है जो इस तरह बाणों की वर्षा कर वानर सेना का संहार कर रहा है। विभीषण ने बताया कि यह रावण का पुत्र प्रहस्त है। लक्ष्मण ने अपना धनुष संभाला और प्रहस्त के बाणों का सामना करने के लिए उसके सम्मुख प्रस्तुत हो गए। उसके पास पहुंँचकर उन्होंने कहा,
"इस प्रकार वाहनों की वर्षा करके तुम निरीह वानरों को क्यों मार रहे हो ? यदि धनुर्विद्या का प्रदर्शन करना है तो मेरे साथ युद्ध करो।"
"मैं भी युद्धभूमि में तुम्हें और तुम्हारे भाई राम को हमारी लंका पर चढ़ाई करने के लिए दंड देने के लिए आया हूंँ। अब तुम दोनों भाईयों को उनकी धृष्टता के लिए अपने प्राणों की बलि देनी होगी।"
"यदि ऐसा है तो पहले मुझे मेरे किए का दंड दो। तत्पश्चात मेरे भ्राता राम को दंड देना।"
प्रहस्त ने एक बाण चलाया। उसके उत्तर में लक्ष्मण ने भी बाण चलाया। दोनों के बाण टकराए। प्रहस्त का बाण विफल हो गया। उसके पश्चात लक्ष्मण ने एक बाण चलाया। इस बार प्रहस्त ने अपने बाण से उसे नष्ट कर दिया। इस प्रकार दोनों के बीच धनुर्युद्ध आरंभ हो गया।

दुर्मुख और हनुमान के बीच भयंकर द्वंद हो रहा था। दोनों एक दूसरे पर भीषण प्रहार कर रहे थे। हनुमान ने अपनी गदा से कई बार दुर्मुख को धूल चटाई थी। लेकिन दुर्मुख भी लगातार अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था। उसने भी हनुमान पर कई प्रहार किए थे।
दुर्मुख गर्जना करते हुए हनुमान की तरफ लपका। हनुमान ने उसे पकड़ कर भूमि पर पटक दिया। उसके बाद उसकी छाती पर चढ़कर अपनी मुषंटिकाओं का प्रहार किया। उसके बाद अपने घुटने से दबाकर उसकी गर्दन तोड़कर उसे मार दिया।
रावण के दरबार में जब दुर्मुख के वध का समाचार पहुंँचा तो एक बार पुनः दरबार में सभी को बहुत आघात पहुंँचा। दुर्मुख के वध का समाचार सुनाते हुए संदेशवाहक ने कहा,
"महाराज दुर्मुख बहुत साहस और शक्ति के साथ लड़े। लेकिन अंततः उसी वानर के हाथों वह मारे गए जिसने लंका में उत्पात मचाकर स्वर्ण निर्मित लंका में आग लगाई थी।"
रावण ने क्रोध में कहा,
"उस उद्दंड वानर को मृत्युदंड ना देकर हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई थी। उसने हमारे एक वीर योद्धा को मार डाला। किंतु अभी मेरा पुत्र प्रहस्त युद्ध भूमि में है। वह उन दोनों भाइयों और उनकी वानर सेना को उनके किए का दंड देकर ही आएगा।"

युद्ध भूमि में लक्ष्मण और प्रहस्त के बीच संग्राम जारी था। दोनों तरफ से बाणों की बौछार हो रही थी। प्रहस्त भी एक वीर योद्धा था। लक्ष्मण के बाणों का वह पूरी शक्ति के साथ सामना कर रहा था।
प्रहस्त ने कई बाण चलाए। लक्ष्मण उन्हें ध्वस्त कर देते थे। किंतु उसका वध नहीं कर पा रहे थे। अंत में लक्ष्मण ने एक बाण का संधान कर लक्ष्य साधा। वह बाण जाकर प्रहस्त की छाती में लगा। उसकी मृत्यु हो गई।
प्रहस्त की मृत्यु का समाचार सुनकर रावण को बहुत आघात पहुंँचा। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका पुत्र प्रहस्त इस प्रकार वीरगति को प्राप्त हो जाएगा।
इंद्रजीत भी अपने भाई के वध का समाचार सुनकर हिल गया। वह अपने भाई प्रहस्त की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए छटपटाने लगा।