मानस के राम (रामकथा) - भूमिका Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मानस के राम (रामकथा) - भूमिका





मानस के राम

भूमिका



राम भारत भूमि की पहचान हैं। इस देश के कण कण में राम समाए हुए हैं। हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा में राम हमारे साथ जुड़े रहते हैं।
भारत को आध्यात्म की भूमि माना जाता है। राम आध्यात्म का केंद्र हैं। परम सत्य को जानने की चाह रखने वालों के लिए राम ही मार्ग हैं और राम ही गंतव्य। सारा सच एक शब्द राम में समाया हुआ है।
राम शब्द संस्कृत की दो धातुओं रम् और घम् के संयोग से बना है।
रम् का अर्थ है रमना या निहित होना। अर्थात जो विद्यमान हो।
घम् का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान। अर्थात शून्य।
दोनों धातुओं के संयोग से बने राम ‌शब्द का अर्थ हुआ वह जो सर्वव्यापी है। जो सकल ब्रह्मांड के सभी चर व अचर वस्तुओं में विद्यमान है। वह जो इस समस्त ब्रह्माण्ड का आधार है।
राम ही ब्रह्माण्ड के होने का कारण हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है जो राम ना हो। वह सभी वस्तुओं को घेरे हुए हैं और सभी में समाए हैं। राम परम ब्रह्म हैं। शा‌स्त्र में कहा गया है,
“रमन्ते योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते”
योगीजन परम सत्य को जानने के लिए जिस ब्रह्म का ध्यान करते हैं वह राम हैं।
संत कबीर दास के अनुसार राम घट घट में रमने वाले हैं। फिर भी हम राम को पहचान नहीं पाते हैं।
कस्तुरी कुंडल बसै, मृग ढूढ़ै वन माहि
ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि।
जिस तरह मृग की नाभि में कस्तुरी होता है। वह उसकी खुशबू को अनुभव करता है। पर इस सत्य से अनभिज्ञ वह जंगल में ढूंढ़ता रहता है। उसी प्रकार इस विश्व के आधार राम हमारे भीतर और बाहर सर्वत्र विद्यमान हैं परंतु हम उन्हें देख नहीं पाते हैं।
राम हमारे भीतर का प्रकाश हैं जो हमें अंधकार में सही राह दिखाते हैं। आवश्यकता है अपने भीतर उन्हें खोज कर सबमें उन्हें देखने की।
राम रोम रोम में बसते हैं। राम हमारे जीवन को गति प्रदान करते हैं। वह हमारे मन का उत्साह हैं, उमंग है, प्रसन्नता हैं। हमारे मन के जितने भी अच्छे भाव हैं जैसे प्रेम, करुणा, दया आदि सभी राम हैं। इनके विपरीत के भाव हमें राम से दूर ले जाते हैं। अतः राम को पाना है तो अपने मन को क्रोध, ईर्ष्या, लालच जैसे भावों से दूर रख कर सकारात्मकता के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।
राम का चरित्र भारतीय जनमानस के लिए सदैव अनुकरणीय रहा है। राम हमारे अाध्यात्म का ही नहीं वरन लोकाचार का भी केंद्र रहे हैं। आज भी कई जगह जब हम एक दूसरे से मिलते हैं तो राम-राम कह कर ही मिलते हैं। कोई गलती हो जाने पर या अनहोनी होने पर हमारे मुंह से निकलता है हाय राम। जब हम किसी बात को देखकर दुविधा में होते हैं तो कहते हैं राम जाने। मृत्यु होने पर शव को श्मशान ने जाते समय राम नाम सत्य है कहा जाता है।
इस तरह देखा जाए तो इस देश की पहचान राम से है। यहाँ के जनमानस के हृदय में राम बसते हैं। राम सर्वसाधारण के हैं। इसलिए राम का नाम हमारे जीवन में उसी प्रकार समाया है जैसे गन्ने में मिठास।
राम का चरित्र हमें सदा से ही आकर्षित करता रहा है। राम कथा को सदियों से गाया सुना और पढ़ा जाता रहा है।
सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि द्वारा राम चरित्र को रामायण के नाम से लिखा‌। रामायण संस्कृत भाषा का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके 24,000 श्लोक रघुवंश में जन्मे राम की संपूर्ण गाथा प्रस्तुत करती है। रामायण का समय त्रेतायुग माना जाता है। रामायण का उल्लेख अग्निपुराण, गरुड़पुराण, हरिवंश पुराण, स्कन्द पुराण, मत्स्यपुराण, महाकवि कालिदास रचित रघुवंश, भवभूति रचित उत्तर रामचरित, वृहद्धर्म पुराण जैसे अनेक प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है।
संस्कृत भाषा में अतुलनीय साहित्य है। पर यह भाषा केवल विद्वानों की भाषा के रूप में ही पनपी। रामायण संस्कृत में लिखी गई थी। अतः जनसाधारण तक इसकी वैसी पहुँच नहीं थी। अतः राम कथा का मंचन कर इसे जनमानस तक पहुँचाया जाता रहा।
राम तो सर्वसाधारण के हैं। अतः इस बात की आवश्यकता महसूस हो रही थी कि उनकी कथा भी जनसाधारण द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं में लिखी जाए। अतः राम कथा को भारत की कई भाषाओं में लिखा गया है।‌
इनमें सबसे प्रसिद्ध है गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस। तुलसीदास जी ने इसकी रचना उत्तर भारत में प्रचलित हिंदी भाषा की बोली अवधी में की गई। पर इसका पाठ भारत के कई भागों में किया जाता है। श्रीरामचरितमानस की रचना सोलहवीं सदी में हुई थी।
ऋषि कंबन द्वारा तमिल भाषा में कंब रामायण की रचना की गई। कंब रामायण का प्रचार प्रसार केवल तमिलनाडु में ही नहीं, उसके बाहर भी हुआ। यह तमिल साहित्य की सर्वोत्कृष्ट कृति एवं एक बृहत ग्रंथ है।
बंगाली भाषा के आदिकवि माने जाने वाले कृत्तिवास ओझा ने श्रीराम पाँचाली के नाम से राम के जीवन पर आधारित ग्रंथ की रचना की। इसकी रचना पन्द्रहवीं सदी में की गई।
इसके अलावा असम में असमी रामायण, उड़िया में विलंका रामायण, कन्नड़ में पंप रामायण, कश्मीर में कश्मीरी रामायण, मराठी में भावार्थ रामायण की रचना हुई।
राम धर्म, जाति और देश की सीमाओं में बंधे हुए नहीं हैं। इन सभी की सीमाओं को तोड़कर राम का नाम दूर-दूर तक व्याप्त है। भारत देश के अतिरिक्त राम का चरित्र चीन, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा, नेपाल, लाओस, कंपूचिया और थाईलैंड आदि देशों की लोक संस्कृति व ग्रंथों में भी पाया जाता है। इन सभी देशों में राम कथा गाई और पढ़ी जाती है। कई जगहों पर नृत्य नाटिकाओं के रूप में भगवान राम की कथा का मंचन होता है।
मलेशिया में राम कथा हिकायत सेरीराम के नाम से प्रचलित है। पर एक अद्भुत बात है। यहाँ राम कथा की शुरुआत रावण के जन्म से होती है। शायद इसीलिए मलेशिया को रावण के नाना के राज्य के रुप में माना गया है।
इंडोनेशिया के जावा में राम कथा की प्राचीनतम कृति 'रामायण काकावीन' है। काकावीन की रचना जावा की प्राचीन शास्त्रीय कावी भाषा में हुई है। श्रीलंका में 'जानकी हरण' के रूप में रामकथा प्रचलित है।
थाईलैंड में राम कथा रामकियेन के नाम से जानी जाती है। रामकियेन वस्तुत: एक विशाल कृति है जिसमें अनेकानेक उपकथाएँ सम्मिलित हैं।
पश्चिमी देश भी राम कथा से अछूते नहीं रहे। पश्चिमी देशों में बाल्मीकि रामायण का अनुवाद कई लोगों ने किया। जिससे वहाँ राम कथा का प्रचार हुआ। मिशनरी जे. फेनिचियो ने वर्ष 1609 में लिब्रो डा सैटा नाम से राम कथा का अनुवाद किया था।
ए. रोजेरियस ने 'द ओपेन रोरे' नाम से डच भाषा में राम कथा का अनुवाद किया।
जेवी टावर्निये ने 1676 में फ्रेंच में राम कथा का अनुवाद किया।
वानश्लेगेन द्वारा 1829 में रामायण का लैटिन में अनुवाद किया गया।
1840 में सिंगनर गोरेसिउ ने इटैलियन में राम कथा का अनुवाद किया।
अंग्रेज़ी भाषा में विलियम केटी ने 1806 अनुवाद काम शुरू किया था, जिसे बाद में मार्शमैन, ग्रिफिथ, व्हीलर ने पूरा किया।
रूसी विद्वान वारान्निकोव ने 20वीं सदी में रामचरितमानस का रूसी भाषा में अनुवाद किया था।

बेल्जियम के फादर कामिल बुल्के रामायण और राम कथा से इतने अधिक प्रभावित हुए कि खुद भारत आकर रहने लगे। यहाँ रहकर 'रामकथा का विकास' विषय पर शोध भी किया। फादर कामिल बुल्के ने अपने शोध ग्रंथ ‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’ में रामायण और रामकथा के एक हजार से ज्यादा प्रतिरूप होने की बात कही है। उनके अनुसार राम वाल्मीकि के कल्पित पात्र नहीं वरन इतिहास पुरूष हैं।
समझने वाली बात है कि राम का चरित्र क्यों इतना अधिक प्रसिद्ध है। रामायण का सीधा संबंध भारत वर्ष से है। फिर क्यों सारी दुनिया में किसी ना किसी रूप में राम के चरित्र ने लोगों को प्रभावित किया। राम कथा जो नाना प्रकार से ना जाने कितनी बार पढ़ी, सुनी और देखी गई है आज भी उतना ही आकर्षण रखती है। ना जाने कितनी पीढ़ियां बीत गईं राम कथा की लोकप्रियता कम नहीं हुई।
इस प्रश्न का उत्तर राम के चरित्र में है। राम का चरित्र एक आदर्श चरित्र है। जब लोग उसे पढ़ते हैं तो स्वयं को उन मानकों के आधार पर परखने की कोशिश करते हैं जो राम के चरित्र द्वारा स्थापित किए गए हैं। राम के रूप में वह सदैव एक आदर्श पुत्र, पति, भाई को देखते हैं। एक ऐसा पुत्र जिसने अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए खुशी खुशी चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार कर लिया। अपनी पत्नी सीता के सम्मान की रक्षा के लिए रावण जैसे त्रिलोक विजयी से युद्ध किया। सदैव अपने छोटे भाइयों का ख्याल रखा।
राम आज भी इस देश में आदर्श प्रशासक का उदाहरण हैं। जब हम पक्षपात से दूर न्यायपूर्ण राज्य व्यवस्था के बारे में सोचते हैं तो उसे रामराज्य का ही नाम देते हैं।
राम भगवान विष्णु के अवतार थे पर उन्होंने देवत्व की जगह अपने पुरुषार्थ को अधिक महत्व दिया। इस तरह उन्होंने साधारण जनता को यह सीख दी कि पुरुषार्थ से बड़ी से बड़ी समस्या को हल किया जा सकता है।
मैं आपके समक्ष मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र का चरित्र लाने का प्रयास कर रहा हूँ। ऐसा कार्य स्वयं भगवान श्री रामचंद्र की कृपा से ही पूरा हो सकता है। मेरी प्रार्थना है कि प्रभु रामचंद्र मुझे इतनी शक्ति और समझ दें कि मैं उनकी कथा को आप लोगों तक सही प्रकार से पहुँचा सकूँ।

जय श्री राम

आशीष कुमार त्रिवेदी