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दादाजी का अफैर

दादाजी का अफैर

सुकन्या नाम की एक चुलबुली लड़की होती है। वह पालन खेत की रहने वाली होती है। अपना स्नातक अभयास पूर्ण करने के बाद हर बार की तरह वह अपने प्रिय दादाजी के फार्म हाउस पर जाने का प्रोग्राम बना लेती है। सुकन्या के पिताजी नेवी मर्चन्ट ओफिसियल होने के कारण अधिकतर घर से बाहर ही रहते हैं। सुकन्या की माँ एक अध्यापिका होती हैं। माँ बाप अपने काम-काज मेन व्यस्त रहते होने के कारण सुकन्या का ज़्यादा तर वक्त घर पर अकेले ही बीतता था।

इस लिए उसके माता-पीता छुट्टियों में हर बार सुकन्या को उसके दादाजी के फार्म-हाउस पर छोड़ आते थे। सच कहा जाए तो सुकन्या की लाइफ में उसका एक ही सच्चा दोस्त था। “उसके दादा जी”। दादाजी उसे ढेर सारा प्यार देते, उसकी हर ख्वाइश पूरी करते।

पर एक बार जब सुकन्या अपनें दादाजी के फार्म पर गई तब उसे एक भयंकर अनुभव से गुज़रना पड़ा था, जिसे वह ज़िंदगी भर नहीं भूल पायी।

एक्जाम का आखरी परचा लिख कर घर आते ही सुकन्यानें अपना सामन पैक कर लिया। उसकी माँ भी जानती थी की वह दादाजी के फार्म-हाउस जाने के लिए उतावली हो रही है। उसी दिन सुकन्या की माँ गाड़ी ले कर उसे अपनें ससुर के फार्म हाउस ले गयी।

पोती और बहू को देख कर दादाजी बहुत खुश हो जाते हैं। शाम तक तीनों ढेर सारी बातें करते हैं, फिर खाना खा कर सुकन्या की माँ घर लौट जाती है। उनकी जॉब थी इस लिए उसी दिन वह घर चली गयी।

रात को करीब 11 बझे सुकन्या अपनें कमरे में सोने चली गयी। और दादाजी भी अपनें कमरे मे सो गए। एकाद घंटा हुआ तो सुकन्या को अचानक थोड़ी सी बे-चैनी महेसूस हुई, उसनें खिड़की का परदा हटा कर बागीचे की और नज़र डाली तो एक दिल दहेला देने वाला नज़ारा दिखा।

वहाँ पर गुलाब के पौधों के बीछ में एक जवान औरत लैटी हुई थी। और उस के हाव-भाव से महेसूस हो रहा था की वह लेटे-लेटे ही किसी से बात कर रही थी। सुकन्या को समझ नहीं आ रहा था की इतनी रात गए वहाँ पर वोह अंजान औरत कर क्या रही थी और किस से बात कर रही थी।

कमरे के बाहर जा कर सुकन्या नें नज़दीक से उसे देखने का फैसला किया। किचन से एक चप्पू ले कर वह दबे पाँव गार्डन की और बढ्ने लगी। अब सुकन्या और उस रहस्यमई औरत के बीछ 10 से 11 मिटर की दूरी थी। सुकन्या नें गौर कीया तो पता चला की गुलाब के पौधो के पीछे कोई सफ़ेद कपड़ों वाला इन्सान बैठा था। और उसी से वह औरत बातें कर रही थी।

अब सुकन्या पड़ताल कर चुकी थी। वह फौरन पीछे हट गयी। चूँकि दो लोगों से वह अकेली लड़ नहीं सकती थी। उसनें फौरन दादाजी को जगाने का फैसला किया। अभी वह वापिस मुड़ ही रही थी तभी उसके पाँव में ज़ोर का काँटा चुभा। और वहीं उसकी चीख निकल गयी।

सुकन्या की आवाज़ सुनते हि उस रहस्यमय औरत की नज़र उस पर पड़ गयी। और वह बिजली की तेज़ी से खड़ी हो गयी। उसके बाल खुले थे, और उसकी आंखेँ बड़ी लाल चमकीली और भयानक थीं। चाँदनी रात में रात के 12 बझे भी सुकन्या को उसकी आंखे इतने दूर से साफ साफ दिख रही थीं।

अब सुकन्या को एहसास हो चुका था की वह कोई इन्सान नहीं पर पारलौकिक जीव है। उसने धीरे धीरे सुकन्या की ओर कदम बढ़ाना शुरू किया। उसे अपनी और आती देख कर सुकन्या के तो रोंगटे खड़े हो गए। वह बावली सी हो गयी और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी। सुकन्या को इस कदर चीखती देख कर वह भयानक औरत उसके सामनें ही अलोप (गायब) हो गयी। अब भी जाड़ियों के पीछे वह सफ़ेद कपड़ों वाला इन्सान मुंढ बन कर बैठा हुआ था।

सुकन्या नें तुरंत दादा जी के रूम का दरवाज़ा खटखटाया पर दादाजी 10 मिनट तक बाहर नहीं आए। फिर वह खुद उनके कमरे में गई तो देखा की दादाजी कमरे में थे ही नहीं। अब सुकन्या का दिल ज़ोरों से धडक रहा था। चुकी उसे बार बार यह लग रहा था की, कहीं वह सफ़ेद कपड़ों वाला इन्सान,,, दादाजी तो नहीं होंगे ना?

सुकन्या फौरन भाग कर बागीचे की और गयी। वहाँ उसनें देखा की गुलाब के पौधों के पीछे बैठा आदमी अब खड़ा हो रहा था। सुकन्या वहीं पास में आड़ ले कर छुप गयी और उसे देखने लगी।

और फिर उसका खौफ हकीकत में बदल गया,,, वह उसके दादाजी ही थे। सुकन्या के दादाजी नें वहाँ उस जगह पर हाथ फेरा जहां वो भयानक पारलौकिक औरत लेटी हुई थी। और फिर उस मिट्टी (ज़मीन) को जुक कर होठों से चूम लिया। यह सब देख कर सुकन्या के पसीने छूट गए, ओर उसकी जान हलक में अटक गयी। इन सब का मतलब था की उसके अपनें पिता के पिता एक भूतनी या चुड़ैल के प्यार में थे।

कुछ देर सुकन्या वहीं छुपी रही। उसके दादाजी उसके पास से गुज़र कर अपने कमरे में चले गए। सुकन्या भी चुपके से अपने कमरे में चली गयी। अगली सुबह सुकन्या सामान बांध कर घर जाने के लिए तैयार थी। उसके दादाजी नें एक बार नहीं कहा की इतनी जल्दी वापिस क्यूँ जा रही हो। उन्होने सिर्फ सुकन्या को इतना कहा की,,, यहाँ की बातें यहीं दफन रहे तो हम सब के लिए अच्छा होगा।

शायद दबी ज़ुबान में वह सुकन्या को चेतावनी दे रहे थे की रात की घटना की कहानी किसी और को मत बताना। और अगर बता दो तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना।

अपनें दादाजी का यह भयानक रूप देख कर सुकन्या का दिल टूट जाता है।

जाने से पहले हिम्मत कर के सुकन्या नें अपनें दादाजी से कहती है की अकेला-पन महेसूस हो रहा था तो दूसरी शादी ही कर लेते। इन खतरनाक पारलौकिक शक्तियों के जमेले में क्यूँ पड़ गए?

सुकन्या के दादा नें उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया। वह सिर्फ मुसकुराते रहे। जैसे की वह बिना बोले कहे रहे हों की,,, इन सब मामलों में बाप के बाप को नहीं सीखाते। कुछ ही देर में सुकन्या की माँ वहां आ गयी।

उसनें नें पूछा की क्या हुआ? इतनी जल्दी घर क्यूँ लौट आना है बेटा? सुकन्या नें कहा की यहाँ से अब दिल भर चुका है। अब कभी यहाँ लौट कर नहीं आना है, और कारण मत पूछना मै बता नहीं पाऊँगी।

इस घटना के बाद सुकन्या और उसकी माँ घर लौट जाते हैं। उसकी माँ रोज़ पूछती रहती की हुआ क्या था, पर सुकन्या उस विषय मेन एक शब्द नहीं बोलती है। उसे अपनें दादाजी की दी हुई मीठी धम्की याद थी।

करीब एक हफ्ता यूं ही गुज़र जाता है। और फिर सुकन्या के घर चौंका देने वाला फोन आता है। उसके दादाजी की मौत हो चुकी होती है। उनके दूध वाले नें कहा की वह गार्डन में गुलाब के पौधों के बीछ मरे पड़े हैं।

सुकन्या के पापा को फौरन फ्लाइट से वापिस बुला लिया जाता है। और यहाँ से माँ-बेटी गाड़ी से वहाँ पहुंच जाते हैं। दादाजी के फार्म-हाउस पर पुलिस आ पहुंची होती है। सुकन्या के दादा अब भी उसी स्पॉट पर पड़े होते हैं जहां,,, वह पारलौकिक औरत लेटी हुई थी।

सुकन्या के दादाजी की लाश को देख कर लग रहा होता है की, उसके सारे शरीर का खून चूस लिया गया है और उसका शरीर काला, फीका पड़ चुका होता है। वहां मौजूद पुलिस भी इस गुत्थी को सुलझा नहीं पाती है की उनकी मौत का असली कारण क्या है।

पर शायद सुकन्या को अंदाज़ा था की उसके दादाजी को अपनी जान से हाथ क्यूँ धोना पड़ा था।

सुकन्या और उसके माँ-पापा 16 दिन तक वहीं रुके रहेते है और दादाजी की सारी अंतिम क्रियाए पूर्ण करते हैं। फिर फार्म-हाउस को ताला लगा कर वह तीनों अपनें घर की और जाने लगते हैं। जाते वक्त आखरी बार सुकन्या उस फार्म-हाउस की और पलट कर देखती है। उसनें तब वहाँ जो देखा उसे देख कर उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

उसने देखा की फार्म-हाउस की छत पर उसके दादाजी और वह रहस्यमई पारलौकिक औरत साथ खड़े होते हैं। और वह दोनों सुकन्या की और देख कर हाथ हिला कर उसे “अलविदा” बोल रहे होते हैं।

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