Kamlabag ki chudel ka aatank books and stories free download online pdf in Hindi

कमलाबाग की चुड़ैल का आतंक

कमलाबाग की चुड़ैल का आतंक

मेरा नाम भाविक योगानंदी है और मै सरकारी नौकरी करता हूँ। कुछ ही दिनों पहेले मेरा तबादला लातूर में हुआ था। नए शहर में आए थे तो सर्विस शुरू होने से पहेले थोड़ा घूम फिर लेने का मन किया। हमारे नए पड़ौसी नें हमे कमलाबाग घूमने को कहा। मैंने फौरन वहाँ घूमने जाने का प्लान तैयार कर लिया। कमला बाग घूमने जाने की बात को ले कर बच्चे काफी एक्साईटेड थे। और सुधा भी खुश थी, चूँकि मेरी सरकारी नौकरी की वजह से मुझे घूमने फिरने के लिए काफी कम वक्त मिलता है। मै, सुधा (मेरी पत्नी) और मेरे दोनों बच्चे (अमित और धारा) हम सब अगले दिन सुबह ही वहाँ घूमने के लिए निकल गए। करीब दस बजे हम कमलाबाग के गेट के पास उतरे होंगे।

मेरी पहेली नज़र जब उस उद्यान पर पड़ी तो मेरे मन नें मुझे अजीब सी अगमचेती दी। जैसे कोई बोल रहा हो मुझे की मत जा... अंदर मत जा। मैंने फौरन सुधा से कहा, चलो ना कहीं और चलते हैं। मेरा दिल नहीं कर रहा इस उद्यान के अंदर जाने का। पर सुधा नाराज़ हो गयी। उसे तो कमलाबाग ही घूमना था। मैंने भी ज़िद छौड़ दी और बच्चों को ले कर कमलाबाग के गैट की और बढ़ गया।

गैट के अंदर पहेला कदम रखते ही अचानक मेरी धड़कने इतनी तेज़ हो गयी, की मुझे एक दम पसीना आने लगा। मुझे वहाँ उस उद्यान में अंदर जाने पर अजीब सी बैचेनी हो रही थी। मैंने फिर भी सुधा से कुछ नहीं कहा, चूँकि मै जानता था की अगर कुछ और कहूँगा तो उसे लगेगा की मै वहाँ से जाना चाहता हूँ, इसी लिए नाटक कर रहा हूँ।

उद्यान के अंदर मै और सुधा एक लकड़ी की बैंच पर बैठ गए और बाते करने लगे। अमित और धारा वहीं हमारे पास खेल रहे थे। तभी अचानक मुझे महेसूस हुआ की पैड के पीछे कोई जवान औरत खड़ी है जिसने चमकदार पायल अपने पैरों में पहेनी हुई है। मैंने फौरन सुधा से उस और देखने को कहा, पर सुधा को वहाँ कुछ नहीं दिखा। कुछ देर बाद मुझे थौड़ी और नज़दीक वाले पैड के पीछे वही औरत दिखी। मैंने फिर से सुधा को कहा। अब की बार सुधा को भी वह औरत दिखी।

हम दोनों नें फैसला किया की उस औरत के पास जाते हैं तो पैड के पीछे छुप रही है। हम खुद चल कर उस पैड के पीछे गए। वहाँ सच्ची में एक जवान औरत खड़ी थी। सुधा नें उस से पूछा की आप दूर खड़े हमे छुप कर देख रहीं थी, इस लिए हम आप के पास आए हैं। क्या आप को हमसे कुछ काम है...? उस औरत नें सुधा को कुछ जवाब नहीं दिया। बस वह हम दोनों को टुकुर टुकुर देखे ही जा रही थी। मैंने सुधा से कहा की वापिस चलो शायद वह हमसे बात नहीं करना चाहती। इतना बोल कर हम दोनों वहाँ से अपनी बैंच की और चल दिये।

जैसे ही हम बैंच पर आ कर बैठे तो थोड़ी ही देर में मुझे अजीब सी गरमाहट महेसूस हुई। मैंने फौरन पलट कर देखा तो मेरे हौश उड़ गए। वह पायल वाली रहस्यमय औरत हमारे बैंच के ठीक पीछे आ कर खड़ी हो गयी थी। इस बार वह हमारी और नहीं देख रही थी, वह हमारे खेलते हुए बच्चों की और देख रही थी।

पता नहीं क्यूँ पर जैसे वह मेरे बच्चों की और देख रही थी, मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। अचानक मुझे उस पर गुस्सा आ गया, चूँकि एक तो वह हमारे पीछे आ खड़ी हुई थी और वह अब हमारे बच्चों की और देख रही थी। तो मैंने चिल्लाना शुरू कर दिया। उसे बुरा भला भी कहा। सुधा मुझे रोकने लगी। सुधा नें कहा की वह सिर्फ देख ही तो रही है। जाने दो, अपने आप चली जाएगी। फिर मैंने भी अपने आप को थोड़ा रोक लिया। पता नहीं क्यूँ पर मुझे कुछ बुरा होने की लगातार आशंका सताये जा रही थी।

इस बार मैंने सुधा से कहा की चलो... यहाँ से अभी निकलते हैं, और कोई बात नहीं। मुझे यह जगह कुछ ठीक नहीं लग रही है। इस बार सुधा भी मुझसे सहेमत थी। हम बच्चों को ले कर गेट की और बढ्ने लगे तो वह औरत दौड़ कर हम से पहेले गेट पर जा पहोची। और हमारे सामने खड़ी हो गयी। अब मुझे थोड़ा डर सता रहा था, चूँकि मेरी पत्नी और मेरे बच्चे मेरे साथ थे। जैसे ही गेट पर हम पहुंचे उसने गेट बंद कर दिया। और हमे कमलाबाग के अंदर लोक कर दिया।

इस बार मुझसे पहेले सुधा उस से जगड़ पड़ी, और लगभग उसे मारने ही वाली थी, की उस रहस्यमय औरत नें अपने मुह से गाढ़ा काला धुवा निकाला और वह धुवा सीधा सुधा के चहेरे पर आया। सुधा खड़ी खड़ी चकराने लगी। मै फौरन सुधा की और भागा तो वह भयानक औरत मेरे बच्चों की और जाने लगी। मैंने फौरन उस से लड़ने का फैसला किया। और मैं उसे मारने दौड़ा तो, वह भाग कर उद्यान के बाथरूम में घुस गयी। मैंने बच्चों को संभाला और सुधा की और मूड कर देखा तो मेरे पसीने छूट गए। सुधा ठोकरें खाती हुई, आंखे बंध कर के उसी बाथरूम में जा रही थी, जहां पर अंदर वह भयानक औरत अभी अभी घुसी थी। मै सुधा को रोकने उसके पीछे भागा। पर वह उसके पहेले ही बाथरूम में चली गयी। मै चिल्लाने लगा, और सच कहूँ तो मुझे रोना भी आ गया था।

में रोते रोते अपने बच्चों के पीछे भागा। पर मेरे दोनों बच्चे भी दौड़ कर उस बाथरूम के अंदर चले गए। चूँकि उन्होने सुधा को वहाँ अंदर जाते देखा था। इस बार मै भी दौड़ा और उस बाथरूम में घुसने लगा, पर में अंदर जाऊ उसके पहेले ही बाथरूम के दरवाज़े अपने आप बंद हो गए। मै पागलों की तरह बाथरूम के दरवाज़े पीटने लगा। लातों से घूसों से मैंने उन दरवाज़ों को तौड़ दिया। और उस घूप अंदेरे बाथरूम में घुस गया।

वहाँ मुझे मेरे बीवी बच्चे तो ना मिले पर वह भयानक औरत मेरे सामने आ खड़ी हुई। उसने ठीक वैसा ही काला गाढ़ा धुवा मेरे चहेरे की और भी फेंका, जैसा धुवा उसने सुधा के चहेरे पर फेंका था। मैं फौरन वहीं बेसुध हो कर गिर पड़ा। जब मुझे हौश आया तो हम चारों कमलाबाग उद्यान के बाहर पड़े थे। मैंने, खड़ा हो कर फौरन रिक्षा पकड़ी और उस खौफनाक उद्यान की और नज़र घुमाए बिना अपने परिवार को ले कर में घर लौट आया। – भाविक योगानंदी

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