होलिका का सच एवं दो लघु कथाएँ Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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होलिका का सच एवं दो लघु कथाएँ

होलिका का सच

होलिका प्रहलाद की बुआ थी, हिरण्यकश्यप की बहन। हिरण्यकश्यप एक क्रूर निरंकुश एवं अत्याचारी राजा था, जिसका विरोध उसका अपना पुत्र प्रहलाद ही करता था, अतः राजा अपने ही पुत्र प्रहलाद को राजद्रोही मान कर दंड देता था। राजा को भय था कि अगर प्रहलाद इसी तरह विरोध करता रहा तो प्रजा मे गलत संदेश जाएगा, और हो सकता है कि प्रहलाद कि देखा-देखी और लोग भी विद्रोह करने लगे। प्रजा मे विद्रोह पैदा हो तो उससे पजले ही जड़ को मिटा दिया जाए, भले ही वह अपना पुत्र हो और ऐसा ही सोचकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को ऐसे अमानवीय दंड दिये जिनसे उसकी मृत्यु तय थी लेकिन फिर भी वह बच जाता था। इस बार राजा ने आदेश दिया कि प्रहलाद को लकड़ियों के ढेर मे दबा कर आग लगा दी जाए, जिससे प्रहलाद के बचने की कोई संभावना ही न रहे। होलिका राजा की बहन थी और प्रहलाद की बुआ, जब होलिका ने राजा हिरण्यकश्यप के इस आदेश के बारे मे सुना तो वह सन्न रह गयी लेकिन विचलित नहीं हुई। बुआ प्यार का पर्याय होती है और बुआ अपने भतीजों से जितना प्यार करती है उतना शायद माँ भी नहीं कर सकती क्योंकि जब माँ को क्रोध आता है तो बह बच्चे को दंड भी देती है लेकिन ऐसा कोई उदाहरण समाज मे नहीं मिला कि बुआ ने भतीजे को दंड दिया हो। होलिका भी अपने भतीजे प्रहलाद से बहुत प्यार करती थी लेकिन अपने भाई हिरण्यकश्यप के डर से वह अपना प्यार दिखा नहीं सकती थी। होलिका सदैव प्रहलाद को हिरण्यकश्यप के क्रोध से बचाती रहती थी उसकी नजरों में आए बगैर।

होलिका ने जब हिरण्यकश्यप का आदेश सुना तो वह अपने भाई के पास गयी एवं उससे कहा कि अगर आपने प्रहलाद को लकड़ी के ढेर मे बैठा कर आग लगाई तो हो सकता है वो बच जाए, जैसे पहले भी कई बार बच गया है इसलिए होलिका ने हिरण्यकश्यप के सामने एक प्रस्ताव रखा कि मैं प्रहलाद को लेकर लकड़ियों के ढेर मे बैठूँगी और आग लगने पर उसको बच कर भागने नहीं दूँगी, इस आग से मेरा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि मेरे पास तो अग्नि देवता का दिया हुआ अग्निरोधक शाल है, मैं अपने चारों ओर उस शाल को ढक कर रखूंगी जो मुझे आग मे जलने से बचाएगा। होलिका का सुझाव हिरण्यकश्यप को अच्छा लगा और उसने आदेश पारित कर दिया कि आने वाली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका प्रहलाद को अपनी गोद मे लेकर लकड़ियों के ढेर के बीच मे बैठेगी और लकड़ियों को पूरे विधि-विधान एवं पूजन के साथ आग लगाई जाएगी।

फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका सभी प्रजा जनों एवं राजा की उपस्थिति मेँ अपना अग्निरोधक शाल ओढ़ कर, प्रहलाद को अपने अंक मेँ भरकर बैठ गयी। उनके चारों ओर लकड़ियों का ढेर लगा दिया गया जिसमे वे दोनों पूरी तरह ढक गए। पूजा आरंभ हुई और ढ़ोल नगाड़ों के बीच उस लकड़ी के ढेर मेँ आग लगा दी गयी। लकड़ी के ढेर मे आग लगने से पहले ही होलिका ने प्रहलाद को अग्निरोधक शाल मेँ भली-भांति लपेट दिया एवं सुनिश्चित कर लिया कि अब आग प्रहलाद का कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी और प्रभु का ध्यान लगाकर स्वयं को अग्नि मेँ भस्म करने के लिए बैठ गयी। वही हुआ जो वह चाह रही थी प्रहलाद का उस आग मेँ बाल भी बांका न हुआ परंतु होलिका जल कर भस्म हो गयी। इस तरह होलिका ने अपना बलिदान देकर अपने भतीजे प्रहलाद को बचाकर साबित कर दिया कि बुआ प्यार का पर्याय होती है। लेकिन लोग यह सोचते है कि होलिका अपने भाई के कहने पर प्रहलाद हो आग मे जलाने के लिए लेकर बैठी थी।

होलिका के इस बलिदान ने होलिका को सदा के लिए अमर कर दिया एवं उसको देवी का रूप दे दिया। आज जब सभी पुत्रवती स्त्रियाँ होलिका का पूजन करती है अपने पुत्र के शुभ के लिए, अपने पुत्र कि दीर्घायु के लिए, तब हमे ज्ञात होता है एक बुआ का बलिदान। इसलिए ही फाल्गुन मास कि पूर्णिमा के दिन होलिका का विधिवत पूजन करना एवं ढ़ोल नगाड़ों के साथ उसका दहन करना युगों से चला आ रहा है जिससे उस देवी को, उस स्त्री को हम उसका सम्मान उसकी मान्यता दे सकें, जिस सम्मान की वह हकदार है।

अक्ल की दवाई

बस में खड़े होकर वह ज़ोर-ज़ोर से आवाज लगा रहा था, दवाई ले लो, अक्ल की दवाई सिर्फ दो रुपये में। बस स्टैंड पर जैसे ही बस आकर रुकती तो वह अपनी दवाई बेचने के लिए बस में चढ़ जाता था और फिर क्या हाथों हाथ उसकी सारी पुड़िया बिक जाती थी। उसने छोटी-छोटी कागज की पुड़िया बना कर अपने बैग मे भर रखी थी। बस में उसका पूरा बैग खाली हो जाता तो दूसरी बस के लिये फिर वह बड़े बैग से छोटे बैग में पुड़िया भर लाता था। उसका पूरा परिवार इसी काम में लगा था, कोई अखबार सीधा करके उसको पुड़िया बनाने लायक छोटे टुकड़ो में काटता था तो कोई उन कागजों को फैलाकर रखता था। इतना काम तो बच्चे ही कर लेते थे। अब बच्चों की माँ चम्मच से उन कागजों पर बराबर मात्रा मे दवाई डालती थी एवं कागज पर दवाई डालने के बाद माताजी बहुत सुंदर ढंग से उनकी पुड़िया बांध देती थी। दो रुपये मे अक्ल की दवा ले जाओ खुद भी खाओ और अपने बच्चों को भी खिलाओ, घर वालों के लिए भी लेकर जाओ, इस तरह की आवाज नीरज हर बस में लगाता था। वह ज़्यादातर दूर-दराज की बसों मे ही यह दवा बेचता था। जो एक बार दवा ले जाता था तो दवाई खाने के बाद उसको तो अक्ल आ ही जाती थी अतः वह दोबारा दवाई खरीदता नहीं था और दूर-दराज की बसों मे रोज नई सवारियां आती थी जो नीरज के झांसे में आ जाया करती थी। एक दिन बस स्टैंड पर चलते हुए चार लड़कों ने उसे रोक लिया और पूछने लगे कि तेरी दवाई से अक्ल कैसे आती है। महेश ने कहा कि दो रुपये की पुड़िया है, ज्यादा महंगी भी नहीं है, चारों एक एक पुड़िया खा कर देख लो, खुद ही पता चल जाएगा कि अक्ल कैसे आती है। लड़कों ने एक दूसरे को देखा और फिर उनमे से एक ने दस रुपये का नोट नीरज की तरफ बढ़ा दिया। नीरज ने उनको चार पुड़िया दवाई की देकर, दस रुपये में से आठ रुपये काट लिए एवं दो रुपये लौटा दिये। लड़को ने पुड़िया खोल कर देखी तो देखने मे उन्हे चीनी जैसी लगी। लड़के कहने लगे कि भाई यह तो चीनी लग रही है। अब एक लड़के ने कहा कि भाई इसको खाकर देखते है कैसी दवा है और चारों ने एक साथ पुड़िया की दवाई अपने अपने मुँह मे डाल ली। मुँह मे दवा डालते ही उनको पता चल गया कि यह तो वास्तव में चीनी ही है। अब वह चारों वापस दौड़ कर उस दवाई बेचने वाले के पास आए और कहने लगे कि इस पुड़िया में तो चीनी है। दवाई वाले नीरज ने उनसे पूछा कि तुम्हें कैसे पता चला कि यह चीनी है, तब उन्होने बताया कि पुड़िया खाकर पता चल गया। महेश बोला कि दवाई खाकर पता चल गया कि यह चीनी है यानि कि अक्ल आ गयी न अब, और दो रुपये में क्या लोगे, दो-दो रुपये की दवाई खाकर अक्ल आ गयी, इतनी सस्ती अक्ल की दवाई और कहाँ मिलेगी, यह कहकर वो अपनी दवाई के बैग के साथ सामने वाली बस में चढ़ गया, जो अभी अभी आकार बस स्टैंड पर रुकी थी।

शेर की दहाड़

लोमड़ी ने अपनी चालाकी से जंगल में सत्ता परिवर्तन करवा कर गीदड़ को राजा बनवा दिया। गीदड़ के राजा बनते ही जंगल के अराजक तत्व स्वछंद हो गए एवं मनमानी करने लगे। पानी गंदा करना, फसलें उजाड़ना, कमजोर और छोटे जानवरों को तंग करना, दूसरे जानवरों के मन में भय उत्पन्न करना यह उनकी दिनचर्या बन गयी।

भोलू सियार चतुर भालू से कहने लगा कि भाई अब तो इस जंगल में रहना मुश्किल हो गया है, हमें तो शेर ही ठीक था, सब कि रक्षा तो करता था, ये सारे अराजक तत्व शेर के डर से दिन में तो अपने बिलों मे घुसे रहते थे, सिर्फ रात में बाहर आते थे। कल मैंने उस भेड़िये को पानी गंदा करने से रोका तो मुझे ही मरने को दौड़ पड़ा। चतुर भालू भी बताने लगा कि सभी बंदर मिल कर पेड़ और फल तोड़ रहे थे, मैंने मना किया तो सारे बंदर मेरे पीछे दौड़ पड़े। गिलहरी व खरगोश भी उनकी बातें सुन रहे थे और बीच मे ही बोल पड़े कि हमें तो ये बड़े जानवर कुछ समझते ही नहीं, नित्य दो-चार को मार कर खा जातें हैं, हमारी तो संख्या भी घट कर आधी रह गयी है। जंगली भैंसे, हिरण, नील गाय और सूअर तो फसलों को इस तरह उजाड़ रहें हैं जैसे ये आतंकवादी हों और पूरे जंगल में आतंक फैलाना चाहतें हों। इन सबका नतीजा तो बड़ा ही खतरनाक होगा, किसान लाठी बंदूक लेकर बैठेंगे अपने खेतों, बाग-बगीचों में और उनके सामने जो भी आएगा वो हो मारा जाएगा। पानी इतना गंदा हो जाएगा कि पीने लायक ही नहीं रहेगा, यदि किसी ने पिया भी तो वह बीमार हो सकता है। धीरे-धीरे बाकी जानवर भी, जो शांति से जी रहे थे और शांति से जीना चाहते थे, इन दोनों कि बातें सुनकर इकठ्ठा हो गए। सभी ने अपनी-अपनी समस्या बताई एवं तय किया कि हम सब मिलकर शेर के पास चलते हैं और दोबारा शेर को ही राजा बनाने के लिए मना लेतें हैं।

जंगल में बढ़ते आतंकवाद और फैली अराजकता को देखते हुए, जंगल के सभी शान्तिप्रिय जानवरों ने एकमत होकर शेर को फिर से अपना राजा चुन लिया। राजा बनने के बाद शेर अपनी गुफा से बाहर आया एवं एक ऊंचे पहाड़ कि चोटी पर चढ़ कर ज़ोर से दहाड़ा। शेर कि दहाड़ पूरे जंगल में फैल गयी। जो पानी मे घुस कर पानी गंदा कर रहे थे, या जो पेड़ पर चड़कर फल व पेड़ तोड़ रहे थे या जो फसलों को बर्बाद कर रहे थे वे सभी जानवर जाकर अपनी अपनी खोह में छुप गए। जंगल में पूरी तरह सन्नाटा छा गया, कहीं से कोई भी आवाज नहीं आ रही थी। किसान जो बंदूक और डंडे लेकर जानवरों को मारने आए थे, वे सब वापस अपने घरों को चले गए। कुछ बाहरी जानवर जो ज्यादा उत्पात मचाते थे और कमजोर राजा के कारण इस जंगल मे घुस आए थे, वे भी जंगल छोड़ कर भागने लगे थे। एक बार दहाड़ कर शेर ने सभी जानवरों को संदेश दे दिया कि जाओ अब तुम्हें कोई नहीं सताएगा। सभी जानवर अपने-अपने घरों को वापस चले गए और शेर भी अपने स्थान पर चुपचाप बैठ गया। जंगल कि बिगड़ी व्यवस्था को ठीक करने के लिए शेर का दहाड़ना ही काफी था।

छोटा बासु मम्मी के साथ यह कहानी टीवी पर देख रहा था। कहानी खत्म होने के बाद ढेर सारे सवाल उसके मन मे उमड़ रहे थे जो वह मम्मी से पूछना चाह रहा था। बासु का संयुक्त परिवार था, उसके मम्मी-पापा, चाचा-चाची, बुआ, दादी सब साथ-साथ रहते हैं। बासु पूछने लगा मम्मी जो जानवर जंगल में आतंक फैला रहे थे वो शेर कि दहाड़ सुनकर ही छुप गए या भाग गए, शेर ने किसी को कोई दंड तो नहीं दिया, फिर भी सब डर गए। मम्मी ने बासु को समझाया कि यह अनुशासन है जो शेर की एक दहाड़ से ही बना रहता है उसे किसी को दंड देने की जरूरत ही नहीं पड़ती, जैसे जब तुम्हारे बड़े पापा घर पर आ जाते है तो सब चुप होकर अपने-अपने काम में लग जाते है। बासु बोला अच्छा मम्मी मैं समझ गया, अनुशासन बनाए रखने के लिए हमें अपनों को दंडित करने की जरूरत नहीं होती बस एक दहाड़ ही काफी होती है और बासु बड़े ज़ोर से शेर की तरह दहाड़ा, घर के सभी लोग हंसने लगे एवं बड़े पापा जो कभी खुलकर नहीं हँसते थे वह भी ज़ोर से हंस पड़े।

वेद प्रकाश त्यागी

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