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neem hakim dr pyare

नीमहकीम डॉ प्यारे

डॉ प्यारे छोटे कस्बे के मशहूर डॉ थे, सभी बीमारियों का इलाज़ था डॉ प्यारे के पास इसलिए सभी तरह के मरीज देखते थे एवं उनका इलाज़ भी करते थे। लोगों मे विश्वास इतना था कि पूरे दिन मरीज़ों की भीड़ लगी रहती थी। जले कटे से लेकर हड्डी जोड़ना, नाक कान छेदना, दांत उखाड़ना, बुखार, जिगर, गुर्दा, पेट, पीठ, सिर से संबन्धित कोई भी बीमारी हो, सबका इलाज़ डॉ प्यारे करते थे। छोटे कस्बे के मशहूर डॉ होने के कारण आस पास के गाँव से भी काफी मरीज डॉ प्यारे के पास इलाज़ कराने आते थे। बस अड्डे पर ही एक छोटी सी दुकान थी जिसमे दवाइयाँ एवं चिकित्सा से संबन्धित औज़ार रखते थे। मरीज़ों को देखने के लिए बाहर ही कुर्सी मेज़ डाल रखी थी, एक स्टूल मरीज के बैठने के लिए एवं अन्य मरीज़ों के लिए बेंच डाल रखी थी, बाकी लोग डॉ साहब का घेरा बनाकर खड़े रहते थे। लड़कियो के नाक कान छिदवाने वाले भी प्रतिदिन आते रहते थे। लड़कियो के नाक कान छिदवाने लड़की की माँ, बुआ या दादी ही आती थी।

बस स्टैंड पर दुकान होने के कारण मरीज़ों को ज्यादा परेशानी भी नहीं होती थी, वही बस से उतर कर डॉ को दिखाकर वापस बस पकड़ लेते थे। डॉ प्यारे दोनों हाथों से काम करते थे। अगर एक मरीज के पैर मे पट्टी कर रहे हैं तो दूसरे हाथ से दूसरे मरीज की नब्ज़ देखते रहते थे या किसी लड़की का नाक या कान छेद देते थे। एक आदमी के पैर मे घाव था तो पट्टी करवाने आया था, वह बड़ी जल्दी मे था और ज़ोर ज़ोर से बोल रहा था डॉ साहब पहले मेरी पट्टी कर दो। डॉ साहब दूसरे मरीज़ों मे व्यस्त थे तो उस व्यक्ति को चुप करने के लिए डॉ साहब ने एक खाली बोतल उसके हाथ मे थमा दी और कहा की इसे सूंघते रहो थोड़ा आराम आ जाएगा, मरीज बोला की बोतल तो खाली है, तब डॉ साहब बोले की इसमे दवाई डाल रखी है और इसे सूंघने से आराम मिलेगा। अब वह व्यक्ति उस बोतल को हाथ मे लेकर बैठ गया एवं शांति से उस बोतल को सूंघने लगा।

थोड़ी देर मे जब भीड़ छंट गयी और डॉ साहब खाली हो गए तो उस व्यक्ति को बुला कर उसकी पट्टी कर दी। अगले दिन जब वही मरीज पट्टी करवाने आया तब डॉ साहब के पास ज्यादा भीड़ नहीं थी अतः थोड़ी देर बाद ही उस मरीज को पट्टी करने के लिए बुला लिया अब वह कहने लगा कि डॉ साहब पहले मुझे वह सूंघने वाली दवा दे दो उससे काफी आराम मिला है। अब डॉ साहब समझ गए और वही खाली बोतल उस व्यक्ति को देकर बेंच पर बैठा दिया। बेंच पर बैठ कर वह व्यक्ति बड़ी आस्था से उस बोतल को सूंघ रहा था। इस विश्वास के साथ कि इसे सूंघने से आराम आता है। डॉ प्यारे दूसरे मरीज को देखने लगे और मन ही मन बड़बड़ाने लगे कि कल तो यह व्यक्ति बड़ी जल्दी मे था मैंने उसे खाली बोतल देकर बैठा दिया था कि शोर न करे परंतु आज तो यह खुद ही खाली बोतल लेकर आराम से सूंघ रहा है। इसी उधेड़ बुन मे एक बच्चे के पैर कि पट्टी करने लगे। बच्चे के बाएँ पैर मे चोट लगी थी परंतु डॉ साहब दायें पैर मे दवा लगा कर पट्टी बांधने लगे। बच्चे का पिता जो बच्चे के साथ ही खड़ा था कहने लगा डॉ साहब इसके बाएँ पैर मे चोट लगी है। बच्चे को गिर कर बाएँ पैर मे गुम चोट लगी थी जो बाहर से दिखाई नहीं दे रही थी। दवा लगने के बाद आराम आना चाहिए था लेकिन बच्चा फिर भी रोये जा रहा था। बच्चे के पिता ने डॉ साहब से फिर कहा कि डॉ साहब आप गलत कर रहे हैं, चोट बाएँ पैर मे लगी है और आपने दवा दायें पैर मे लगा दी है इस पर डॉ प्यारे ने डांट कर उस व्यक्ति को अलग हटा दिया और कहने लगे कि डॉ तुम हो या मैं, मुझे पता है कि क्या गलत है क्या सही है, बच्चा अभी भी ज़ोर ज़ोर से रोये जा रहा था तब डॉ प्यारे ने बच्चे से पूछा कि आराम आया कि नहीं तो बच्चे ने बाएँ पैर पर हाथ लगा कर बताया कि मेरे यहाँ चोट लगी है। अब डॉ साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ एवं बच्चे के बाएँ पैर मे दवा लगा कर पट्टी कर दी। अब बच्चे को थोड़ा आराम आने लगा था एवं उसका रोना भी बंद हो गया था। बोतल सूंघने वाले मरीज को बोतल सूंघते बहुत देर हो गयी थी, डॉ साहब ने उसको भी बुलाकर उसके घाव की पुरानी पट्टी खोली, घाव साफ किया, दवा लगाई व पट्टी कर दी।

तभी एक महिला ज़ोर ज़ोर से चिल्लाती हुई आई, मेरा बच्चा जल गया पहले इसे देख लो। डॉ प्यारे ने स्टूल पर बैठा कर बच्चे का पूरी तरह निरीक्षण किया लेकिन वह कंही से भी जला हुआ नहीं था। डॉ प्यारे ने कहा कि बच्चा तो ठीक है कंही से भी जला हुआ नहीं है, तब बच्चे कि माँ ने भी उसको गौर से देखा, वास्तव मे बच्चा कंही से जला हुआ नहीं था। बच्चे कि माँ को गुस्सा आ गया एव अपना हाथ ज़ोर से उसकी कमर पर मारने के लिए उठा लिया और एवं कहने लगी जब तू जला नहीं था तो रोया क्यो था। बच्चा माँ का थप्पड़ देख कर डर गया था लेकिन डॉ साहब ने उस महिला को इस तरह बच्चे पर हाथ उठाने से रोक लिया। जब डॉ प्यारे ने बच्चे से प्यार से पूछा तो वह रोते रोते बताने लगा कि भैया जल गया था इसलिए मैं भी रोने लगा था, तब उस महिला को अपनी गलती का एहसास हुआ और समझ मे आया कि जलने वाला बच्चा तो घर पर ही रह गया है। महिला कहने लगी कि यह रोने लगा तो मैंने सोचा कि यह जल गया है और मैं इसे लेकर भागी चली आई अब इसे छोडकर उसे लेकर आती हूँ। घर जाकर महिला अपने दूसरे बच्चे को लेकर आ गयी तो डॉ साहब उसको दवा लगाने लगे। उस बच्चे का इलाज़ करते करते शाम हो गयी, एक मरीज दर्द से कराहता हुआ आया और कहने लगा कि मेरे दाँत मे बड़ा दर्द है। डॉ साहब ने उसको स्टूल पर बैठाकर तसल्ली से उसकी तकलीफ के बारे मे पूछा और उसके दाँत का निरीक्षण करके उसे निकलवाने के लिया कहने लगे। मरीज भी दर्द से काफी परेशान था इसलिए उसने भी दाँत निकलवाने के लिए हाँ कह दी। डॉ प्यारे ने एक इंजेक्शन उसके दाँत के पास के मसूड़े मे सुन्न करने के लिए लगा दिया एवं दुकान से दाँत निकालने के औज़ार लेने अंदर चले गए। क्योंकि इंजेक्शन सुन्न करने के लिए था अतः थोड़ी देर मे मरीज को दर्द मे आराम आने लगा तभी बस अड्डे पर उसके गाँव की आखिरी बस आकार खड़ी हो गयी। चूंकि उसको दाँत दर्द मे आराम मिल गया था तो उसने विचार किया कि दाँत निकलवाने मे देर हो जाएगी और मेरे गाँव की आखिरी बस भी निकल जाएगी, अगर देर हो गयी और मेरे गाँव की आखिरी बस भी निकल गयी तो रात मे यहाँ कहाँ रहूँगा, और सोचा कि आज ही चला जाता हूँ कल आकार दाँत निकलवा लूँगा। अतः वह मरीज बस मे बैठ कर चला गया। एक मरीज जिसे बुखार था दवाई लेने आया था, वह वहाँ आकर उस स्टूल पर बैठ गया। डॉ साहब दुकान से दाँत निकालने के लिए जमूड लेकर पूरी तैयारी करके आ गए और उस मरीज को जो स्टूल पर आकर बैठ गया था, मुँह खोलने के लिए कहने लगे। मरीज कहने लगा कि डॉ साहब मुझे तो बुखार है, डॉ प्यारे बोले कि हाँ इसमे बुखार तो हो ही जाता है, तुम अपना मुँह तो खोलो। अब मरीज ने सोचा कि डॉ साहब जीभ देखना चाह रहे होंगे तो उसने मुँह खोल दिया। जैसे ही मरीज ने मुँह खोला तो डॉ साहब ने जमूड उसके मुँह मेँ डालकर दाँत को कस कर पकड़ कर ज़ोर लगाकर बाहर खींच दिया। मरीज चिल्लाता रहा दर्द से कराहता रहा। दर्द सहन न कर पाने से मरीज बेहोश होकर गिर पड़ा, बुखार तो पहले से ही था और दांत निकालने का दर्द सहन नहीं कर पाया अतः बेहोश हो गया और डॉ ने सोचा कि ये तो मर गया। अब डॉ ने आव देखा न ताव, अपना समान समेट कर और दुकान बंद करके वहाँ से भाग गया। वहाँ पर भीड़ जमा हो गयी, उन्होने मरीज को उठाया, पानी के छींटे मारे और उसे होश मे लाये।

होश मे आने पर उस व्यक्ति ने बताया कि मुझे बुखार था, मैं बुखार कि दवा लेने आया था लेकिन डॉ साहब ने मेरा दाँत ही उखाड़ दिया, मेरा दाँत तो ठीक था।

सामने कि दुकान मे बैठा पनवाड़ी यह नजारा देख रहा था। पनवाड़ी भी उठ कर वही आ गया और कहने लगा कि मैं बताता हूँ आप लोगो को कि यह सब कैसे हो गया है। डॉ प्यारे जिस व्यक्ति का दाँत निकालने के लिए इंजेक्शन देकर स्टूल पर बैठा कर गए थे, वह तो बस मैं बैठ कर चला गया एवं यह व्यक्ति उसकी जगह आकार बैठ गया। और डॉ साहब समझे कि यह वही व्यक्ति है जिसकी दाड़ निकलनी है और डॉ साहब ने गलती से इसकी दाड़ निकाल दी। डॉ घबरा गया और दुकान बंद करके भाग गया। डॉ साहब को ढूंढ कर बुलवाया एवं सारा किस्सा समझाया। अब डॉ को अपनी गलती समझ आई। उस व्यक्ति को बेंच पर लिटाकर उसका सही ढंग से इलाज़ किया और आराम आने पर दवा देकर उस व्यक्ति को उसके घर छोड़ा।

वेद प्रकाश त्यागी

एफ 18, ईस्ट ज्योति नगर,

दिल्ली – 110093

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