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पंडितजी और तांत्रिक

तांत्रिक एवं बालक दीन दयाल

बचपन से ही प. दीन दयाल उपाध्याय अंध विश्वास के विरुद्ध थे, उनका मानना था की अज्ञानता के कारण ही लोग अंध विश्वास के जाल में फंस जाते है, अगर समाज मे ज्ञान और शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने लगे तो उनको कोई भी व्यक्ति मूर्ख नहीं बना सकेगा।

उनके अपने गाँव का ही एक तांत्रिक था जिसका नाम खजान था और सभी लोग खजान को सयाना कह कर बुलाते थे। किसी को कोई भी बीमारी हो जाए तो खजान के पास झाड़ा लगवा लेता, किसी की भैंस दूध नहीं देती तो वो खजान को बुला लेता भैंस की नजर उतारने के लिए और किसी का कोई सामान खो जाए या चोरी हो जाए तो वह भी खजान से पूछने पहुँच जाता था। बाहर के लोग भी खजान के पास झाड़ा लगवाने या चोरी या गुमशुदगी के बारे मे पूछने के लिए आते रहते थे। खजान तांत्रिक काम करता था, अतः तांत्रिक सिद्धियों के लिए शमशान मे भी रात भर पूजा किया करता था। लोग उससे डरते भी थे क्योंकि उसने लोगो मे भ्रम फैला रखा था कि उसने भूत प्रेत को कैद कर रखा है और वह उनसे अपनी इछानुसार कुछ भी करवा सकता है।

प. दीन दयाल जी के परिवार का एक लड़का किसी को कुछ भी बताए बिना घर से गायब हो गया, उस समय प. दीन दयाल बहुत छोटे थे। घर में मातम जैसा माहौल था, उस लड़के की माँ का तो रो रो कर बुरा हाल था, सभी घर वाले एवं बाहर वाले जो घर पर आ रहे थे उनको ढाड़स बंधा रहे थे। सभी तरह के टोने टोटके भी कर रहे थे, चारों तरफ उसको ढूंढने के लिए भी गए लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। किसी ने सलाह दी की खजान को बुला कर पूछा जाए तो वह सही बता देगा की लड़का कहाँ गया है, कैसा है और कब तक आएगा। जब समस्या आती है तो उस समस्या को हल करने के लिए व्यक्ति सभी तरह के प्रयास करता है ये कहावत भी है कि अगर थाली गुम हो जाए तो घड़े मे भी हाथ डाल कर थाली ढूंढने लगते हैं जबकि पता है कि थाली घड़े में नहीं जा सकती। खजान को बुलाया गया और अपनी समस्या उसको विस्तार से बता दी कि हमारा बेटा बसंत-पंचमी वाले दिन से गायब है, हमने अभी तक इस तरह के उपाय किए हैं, मगर अब तक लड़के का कोई भी सुराग नहीं मिला है, हमे डर है कि कंही लड़के के साथ कुछ गलत न हो गया हो। घर के सभी लोग खजान के पास ही आकार बैठे हुए थे। जिज्ञासावश बालक दीन दयाल जो अभी प्राथमिक कक्षा में ही पढ़ रहा था, वह भी वहाँ आकार बैठ गया।

खजान ने पूजा करना प्रारम्भ किया और ऐसा लगा जैसे किसी अज्ञात शक्ति से बातें कर रहा हो। काफी देर तक पूजा करने एवं अज्ञात शक्तियों से बात करने के बाद खजान ने बताया की आपका लड़का बुधवार को गया है सभी ने हाँ मे सिर हिला दिया। अब खजान को थोड़ा सा अतिविश्वास हो गया और कहने लगा की देखा मेरी शक्तियों ने खोज कर बता दिया की आपका लड़का बुधवार को गया है। बालक दीन दयाल को यह बात समझ आ गयी कि खजान सबको मूर्ख बना रहा है। उन्होने पूछा की बाबा जब आपको पहले ही बता दिया था कि लड़का बसंत-पंचमी को गया है यह बात तो सभी जानते है कि बसंत-पंचमी बुधवार की थी इसमे आपने नया क्या बता दिया है। खजान इस बात से चिढ़ गया एवं यह कह कर चला गया की वह रात को पूरी सिद्धियाँ बुलाकर उनके लड़के को ढूंढने मे लगाएगा।

कुछ दिन बाद गाँव की ही एक औरत प्रेत-पीड़ा से ग्रस्त हो गई, उसका इलाज़ भी खजान कर रहा था। जब बालक दीन दयाल को इसका पता चला तो वह भी इसको देखने वहाँ पहुँच गया। औरत ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर कह रही थी की हम तीन भूतनियाँ इसको सता रही है। खजान ने एक विजयी मुस्कान के साथ घर वालों को कहा कि देखो मैंने तीनों भूतनियों को, जो इसको सता रही है, सबके सामने बुलवा दिया। अब मैं इनके नाम भी पूछता हूँ। खजान ने अपनी मोरपंख वाली झाड़ू उस औरत के सिर पर मार कर कडक आवाज में पूछा तुम तीनों अपना नाम बताओ नहीं तो तुम्हें भस्म कर दूँगा। बालक दीन दयाल भी बड़ी जिज्ञासा से यह सब देख रहा था। उस औरत ने अपने ऊपर की तीनों भूतनियों का नाम बता दिया। बालक दीन दयाल ने बड़ी गौर से उनके नाम सुने और फिर सवाल कर बैठे कि बाबा भूत तो मरने के बाद बनते है पर ये तीनों जिनके नाम इन्होने बताए है, ये तो अभी जिंदा है, तो भूत कैसे बन गई? खजान को थोड़ा गुस्सा आया और वह फिर यही कह कर वहाँ से चला गया की रात में बैठ कर पूजा करूंगा, सभी सिद्धियों को लगा दूंगा इसके भूत भगाने के लिए।

कई बार खजान लोगो के मन में भूत-प्रेत का डर बैठा देता था और कुछ ऐसा करता था कि लोग डर जाएँ। कुछ लोग तो डर कर बिमार हो जाते थे और फिर इलाज़ के लिए भी खजान के पास जाते थे। बालक दीन दयाल को खजान कि ये सभी युक्तियाँ कुछ कुछ समझ आने लगी थीं और वह यह भी समझ गए थे कि खजान लोगों की अज्ञानता और अशिक्षा का लाभ उठा रहा है।

रोशन दूसरे गाँव में काम करने जाया करता था और शाम को वापस आता था। उसे अपनी साइकल से बड़ा प्यार था, हमेशा उसको साफ सुथरी चमकदार बनाए रखता था। खजान की निगाह उसकी साइकल पर लगी थी और वह किसी भी तरह से रोशन की साइकल हथियाना चाहता था। खजान ने पूरे गाँव में अफवाह फैला दी कि सड़क पर सफ़ेद कपड़े वाला भूत रहता है और उसे किसी की बलि चाहिए। रोशन सीधा, शरीफ एवं मेहनती व्यक्ति था घर में उसकी पत्नी एवं एक लड़का था। तीनों खुशी-खुशी रह रहे थे, रोशन कमाता था और तीनों मिलकर खाते थे। रोशन का लड़का मौसम भी बालक दीन दयाल के साथ का ही था और स्कूल मे भी साथ पढ़ते थे। एक दिन रोशन काम से घर वापस आ रहा था कि उसको सड़क पर कोई सफ़ेद चादर ओढ़ कर लेटा हुआ दिखाई दिया। रोशन दयालु प्रवृति का व्यक्ति था अतः उसने सोचा कि इस आदमी को जो सड़क पर सफ़ेद चादर ओढ़ कर लेटा हुआ है, यहाँ से हटा दूँ, नहीं तो बस या ट्रक आएगा और इसको कुचलकर चला जाएगा। अंधेरा घिर चुका था, उस समय सड़क पर वाहनों का आना जाना भी कम हो जाता था। रोशन ने साइकल रोकी और नीचे उतर कर साइकल सड़क के किनारे खड़ी कर दी एवं उस आदमी के पास जाकर उसकी चादर का एक कोना पकड़ कर कहने लगा कि भाई तुम यहाँ सड़क पर क्यो लेटे हो, यहाँ तो खतरा है, कोई भी बस या ट्रक तुमको कुचल देगा और ऐसा कहते कहते रोशन ने पूरी चादर खींच कर हटा दी। उस चादर के नीचे थोड़े से फूल एवं एक हांडी, जिसमे सिंदूर लगा था, रखे हुए थे, रोशन यह सब देख कर डर गया एवं घबरा कर वहाँ से अपनी साइकल लेकर गाँव कि तरफ तेजी से चल पड़ा। घबराहट और डर के कारण वह बार बार साइकल से गिर रहा था। उसे खजान की बात याद आ गई कि सड़क पर सफ़ेद कपड़े वाले भूत का साया है। रोशन को पूरा विश्वास हो गया कि इस चादर मे भूत ही था। किसी तरह गिरते पड़ते रोशन गाँव पहुंचा लेकिन घर तक पहुँचते पहुँचते उसको काफी तेज बुखार हो गया था। रोशन की घरवाली ने जब रोशन को ऐसी हालत में देखा तो वह परेशान हो गयी और खजान को बुलाने बेटे को भेज दिया। खजान ने आकार रोशन को झाड़ा लगाया और थोड़ी सी भभूत खाने को दी जिससे उसको थोड़ा आराम आ गया, बुखार कम हो गया, रात में ठीक से सो भी गया था। परंतु सुबह होते ही रोशन को फिर वही तेज बुखार हो गया। खजान ने आकर फिर झाड़ा लगाया भभूत खाने को दी एवं ध्यान लगा कर बैठ गया।

रोशन किसी को कुछ भी नहीं बता रहा था, चुप चाप लेटा हुआ छत की तरफ देख रहा था। खजान ने आँख खोली एवं बताने लगा कि रोशन को सड़क पर रहने वाला सफ़ेद कपड़ों वाला भूत दिखाई दिया है और वह इसको छोडेगा नहीं, अपने साथ लेकर जाएगा, इस समय वह इसकी साइकल में समा गया है, तुम इस साइकल को यहाँ से दूर कर दो या इसे किसी ऐसे आदमी को दे दो जो भूत प्रेत से डरता न हो। खजान का सीधा सीधा इशारा अपनी तरफ था। उन दिनों साइकल किसी किसी के पास होती थी अतः लोग अपनी साइकल को बड़े प्यार से रखते थे। खजान को भी लोगों के बुलावे पर दूसरे गाँव पैदल चलकर जाना पड़ता था अतः उसने सोचा कि रोशन की साइकल मिल जाएगी तो पैदल नहीं चलना पड़ेगा। इस बात के बारे में मौसम को भी पता चल गया। मौसम को यह बात बहुत बुरी लगीं कि उनकी साइकल खजान ले जाएगा। मौसम था तो छोटा बच्चा ही लेकिन अपने घर की परेशानी अपने दोस्तों को बता दिया करता था। जब मौसम बच्चों को यह सब बता रहा था, बालक दीन दयाल भी सब सुन रहा था। बालक दीन दयाल ने सोच कर यह निष्कर्ष निकाला कि यह सब उस तांत्रिक बाबा खजान ने मौसम के बाप की साइकल हथियाने के लिए किया है। बालक दीन दयाल पहले भी तांत्रिक बाबा को दो बार टोक चुका था और उसकी चतुराई पकड़ भी ली थी लेकिन बच्चा होने के कारण लोग उसकी बात का विश्वास नहीं कर रहे थे। बालक दीन दयाल ने सभी बच्चों के साथ मिल कर तांत्रिक बाबा कि सच्चाई पूरे गाँव के सामने लाने की योजना बनाई एवं अपने एक दोस्त से भूत का नाटक करने को कहा। उस बालक को पूरी तरह समझा दिया और कई बार उससे कहलवा कर देखा। जब सब को विश्वास हो गया तो बच्चों ने पूरी योजना बना ली।

योजनानुसार भूत का नाटक करने वाला बच्चा अपने घर जाकर बड़े ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा एवं उल्टी सीधी हरकतें करने लगा। घर वालों ने पहले तो उसे खुद ही काबू करने का प्रयास किया लेकिन जब उन्हे लगा कि इसके ऊपर किसी भूत प्रेत का साया है तो उन्होने तांत्रिक बाबा खजान को बुला लिया, तब तक वहाँ पर गाँव के कुछ और लोग भी एकत्रित हो चुके थे। सभी बच्चे अपने माता-पिता के साथ एवं बालक दीन दयाल भी योजनानुसार वहाँ आ गए। बच्चों के साथ उनके घर वाले भी थे और मौसम भी अपनी माता एवं पिता को साथ लेकर आ गया था। बच्चा चिल्लाये जा रहा था एवं ज़ोर ज़ोर से सिर हिला रहा था। खजान ने धूप, अगरबत्ती जलायी एवं मोरपंख कि झाड़ू से बालक को झाड़ा लगाना प्रारम्भ कर दिया लेकिन बालक और भी उग्र होता जा रहा था। खजान ने कुछ मंत्र बोले और बालक की तरफ फूँक मार कर पूछा कि कौन हो तुम और तुम्हें क्या चाहिए। तब बालक ने ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर कहा कि मैं सड़क का सफ़ेद कपड़ों वाला भूत हूँ, तूने मुझे बदनाम किया है, मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा और कहने लगा कि खजान तूने रोशन कि साइकल मुफ्त मे लेने के लिए सड़क पर सफ़ेद चादर, फूल और सिंदूर कि हांडी रखी थी और बदनाम मुझे कर दिया। खजान तू बेईमान है, मेरे नाम से लोगों को ठगता है जबकि मैंने तो आज तक किसी भी गाँव वाले को कोई कष्ट नहीं दिया। आज तू अपना अपराध स्वीकार कर गाँव वालों से माफी मांग नहीं तो आज में तुझे अपने साथ लेकर जाऊंगा और इतना कह कर उस बच्चे ने बड़ी तेजी से अपने छोटे से हाथ से खजान कि गर्दन पकड़ने कि कोशिश की मगर घर वालों ने उस को कस कर पकड़ लिया। गाँव वाले उस बच्चे के मुह से यह सब सुन कर अवाक रह गए। खजान अपना भेद खुलते देख, मौका देख कर वहाँ से भागने की कोशिश करने लगा परंतु कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया। तब तक बालक आँखें बंद करके बेहोशी का नाटक करने लगा था तो घर वाले उसको उठा कर कमरे मे ले गए, चारपाई पर लिटा कर उसको पंखा झलने लगे। गाँव वालों ने खजान को ज़ोर डाल कर पूछा तो उसने सारा सच उगल दिया। इस तरह बालक दीन दयाल की सूझ बूझ से एक तांत्रिक का भेद खुल गया । तांत्रिक का भेद खुलने से रोशन के मन का डर भी निकल गया और वह ठीक हो गया। उसकी साइकल भी एक ठग तांत्रिक के पास जाने से बच गई। जिसकी मौसम को बड़ी प्रसन्नता हुई। गाँव के सभी लोग बच्चों कि खास तौर से बालक दीन दयाल कि भूरी भूरी प्रशंसा करने लगे और कहने लगे कि ये बालक दीन दयाल कोई साधारण बालक नहीं है, अवश्य ही बड़ा होकर ये महान कार्य करेगा।

वेद प्रकाश त्यागी

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