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balak deen dayal aur saanp

बालक दीन दयाल और साँप

गाँव से स्कूल दूर होता है तो ज़्यादातर बालक पैदल जाया करते थे, या किसी ग्रामीण वाहन से अगर मुफ्त बैठ कर जाने को मिल जाए तो उससे चले जाते थे। बालक दीनदयाल भी अन्य बालकों की तरह पैदल स्कूल जाया करते थे। कभी कभी गाँव की ट्रैक्टर ट्रौली स्कूल की तरफ जाते मिल जाया करती थी तो वह ज़्यादातर बलकों को ट्रौली मे चड़ा लेते थे, इस तरह रास्ता थोडा सुगम हो जाता था, लेकिन यह सुविधा कभी कभी मिलती थी। गाँव की ही एक ट्रौली रात मे भट्टे पर इंटे भरने गयी और ईंट भर कर वंही खड़ी कर दी। सुबह ट्रैक्टर ले जाकर उस ट्रौली को भट्टे से लेकर आ रहे थे तो रास्ते मे देखा कि बच्चे स्कूल जा रहे है। उन्होने ट्रैक्टर रोक कर सभी बच्चो को ट्रौली पर चड़ा लिया और बच्चे ईंटों के ऊपर ही बैठ गए। ट्रैक्टर ट्रौली धीरे धीरे आगे बड़ रही थी और सभी बच्चे मस्ती मे एक दूसरे से बातें कर रहे थे। स्कूल की ही एक बच्ची जो ट्रौली के एक कोने की तरफ ईंटों पर ही बैठी थी, उसके सामने एक साँप निकल कर अपना फन उठा कर खड़ा हो गया। बच्ची बुरी तरह घबरा गयी, न ही वह हिल डुल सकती थी और न ही वह कुछ बोल पा रही थी। डर के कारण बच्ची पसीना पसीना हो गयी थी तभी ट्रैक्टर पर बैठे एक व्यक्ति की नजर उस दृश्य पर पड़ी और उसने ड्राईवर से इसका जिक्र किया।

रात मे ईंट भरने के बाद ट्रौली भट्टे पर खड़ी रही तो वहीं किसी खेत मे से साँप निकल कर ट्रौली मे भरी ईंटों के बीच मे छिप गया होगा। ट्रौली चलने के बाद जब झटके लगने लगे तो साँप को असहज महसूस हुआ एवं वह ईंटों के बीच से निकल कर ऊपर सतह पर आ गया। सतह पर जहां बच्ची बैठी थी उसके सामने फन उठा कर खड़ा हो गया। ड्राईवर ने बहुत धीरे से ट्रैक्टर को एक किनारे लगा कर रोक लिया, एवं धीरे से सभी बच्चों को उतार लिया लेकिन वह लड़की वही बैठी रही क्योंकि उसके हिलते ही साँप उसको काट लेता, जैसा की साँप का स्वभाव होता है। सभी बच्चे डर गए थे एवं वहाँ से भाग खड़े हुए की कंही साँप उनको न काट ले। बालक दीनदयाल वहीं खड़ा रहा और किसी तरह साँप से बच्ची को बचाने की तरकीब सोचने लगा। ट्रैक्टर वाले दोनों व्यक्ति भी यही सोच रहे थे कि कैसे बच्ची को साँप से बचाया जाये। एक ने कहा की लाठी से इसको मार देते है, लेकिन दूसरा बोला की अगर लाठी का वार चूक गया तो साँप बच्ची को अवश्य काट लेगा। दूसरे ने सुझाव दिया की साँप के ऊपर चादर फेंक देंगे जिससे वह उसमे उलझ जाएगा, परंतु उससे भी यही डर था की अगर चादर सही से साँप के फन पर नहीं पड़ी तो साँप तुरंत बच्ची को काट लेगा। बच्ची डर के कारण पीली पड़ गयी थी, उसे अपनी मृत्यु सामने दिखाई दे रही थी या ये कहें के उसके लिए तो उस समय मृत्युतुल्य योग बना हुआ था और वह उसी तरह के मानसिक कष्टो से गुजर रही थी, न हिल सकती थी और न ही कुछ बोल सकती थी। बालक दीनदयाल उसकी अवस्था से भली भाँति अवगत हो चुका था, अब बस किसी तरह उस साँप से बच्ची को बचाने की तरकीब सोच रहा था। इसी सोच मे उसने ट्रौली के एक दो चक्कर लगाए और फिर कुछ सोचने लगा। अब बालक दीनदयाल ने बड़ी फुर्ती से साँप के पीछे जाकर उसके फन को नीचे से कस कर पकड़ लिया एवं उसकी पूंछ को ईंटों के बीच मे दबाकर बैठ गया। उसने तुरंत ही बच्ची को वहाँ से भाग जाने को कहा तो बच्ची ट्रौली से नीचे कूद गयी। साँप को बालक दीनदयाल ने बड़ी मजबूती से पकड़ा हुआ था एवं उसके बाकी शरीर को भी ईंटों व पैरों के नीचे दबा रखा था। साँप भी मुक्त होने के लिए पूरा ज़ोर लगा रहा था और बालक दीनदयाल को भी पता था की अगर साँप पर उसकी पकड़ कमजोर हुई तो साँप छूट जाएगा एवं सबसे पहले उसे ही काटेगा इसलिए उसने अपनी पकड़ और मजबूत बना ली। साँप भी तिलमिला गया था एवं भयंकर तरीके से जीभ निकालता और जहर थूक रहा था लेकिन बालक दीनदयाल उसके पीछे था। ट्रैक्टर वाले दोनों व्यक्ति बच्चे की इतनी बहदुरी और सूझ बूझ देखकर दंग रह गए और कहने लगे की इस बच्चे ने बच्ची की जान बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी। उन दोनों व्यक्तियों ने साँप को कस कर पकड़े रखने की सलाह दी एवं कहा की घबराना नहीं हम अभी कुछ करते है।

उन व्यक्तियों मे से एक ने बहादुरी दिखाते हुए साँप के पास जाकर उसकी पूंछ को कसकर पकड़ लिया एवं उसको सीधा करते हुए एक ज़ोर का झटका दिया। इस तरह साँप को झटका देने से उसको रीड की हड्डियाँ अलग हो जाती है एवं साँप का शरीर निष्क्रिय हो जाता है। अब उस व्यक्ति से बालक दीनदयाल से साँप का मुंह छोड़ कर कूद जाने को कहा तो बालक दीनदयाल ने वैसा ही किया। अब उस व्यक्ति ने बड़ी फुर्ती से साँप को घुमाकर दूर फेंक दिया। साँप का शरीर निष्क्रिय हो चुका था एवं अब सभी सुरक्षित थे।

दोनों व्यक्ति बालक की प्रशंसा करने लगे और कहने लगे की अगर तुमने बहादुरी न दिखाई होती तो ये साँप उस बच्ची को अवश्य ही काट लेता। उन लोगो ने पूछा की जब सब बच्चे डर कर भाग गए थे तो तुम्हें डर नहीं लगा तब बालक दीनदयाल ने कहा की किसी कमजोर और असहाय को मुसीबत मेँ छोड़ कर भागना मुझे अच्छा नहीं लगा और यही बालक दीनदयाल जीवनपर्यंत कमजोर और असहाय लोगों के लिए ही कार्य करते रहे एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से सुप्रसिद्ध हुए।

--लेखक वेद प्रकाश त्यागी

फ-18, ज्योती नगर ईस्ट,

दिल्ली-110093

मोब न. 9868135464

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ईमेल vptyagii@yahoo.co.in

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