Yuvak din dayal aur rastriy dhvaj books and stories free download online pdf in Hindi

युवक दीन दयाल और राष्ट्रीय ध्वज

राष्ट्रीयध्वज और प. दीन दयाल उपाध्याय

बात उन दिनों की है जब मैं प्राइमरी मे पड़ता था, मेरा स्कूल सड़क के किनारे ही था। सुबह सात बजे स्कूल पहुँचते ही प्रार्थना होती थी, उसके बाद सभी बच्चों को व्यायाम करवाया जाता था। व्यायाम मे ही पी. टी. डंबल लेजम सब सिखाये जाते थे एवं बच्चे इस ढंग से करते थे कि सड़क पर जाने वाले लोग रुक कर बच्चों के कार्यक्रम देखने लगते थे। उसके बाद सभी बच्चों को गुड चना या उबले चने का नाश्त करवाया जाता था। इन सब को देख कर वो बच्चे भी स्कूल आने कि जिद करने लगते थे जो स्कूल नहीं आते थे या किसी कारणवश उनके माँ बाप उन बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते थे। उस समय स्कूल की फीस भी न के बराबर ही थी और उन गरीबो के लिए वो भी माफ हो जाती थी। लेकिन बच्चों के माँ बाप का तर्क यह था कि वह हमारे साथ खेत मे काम करते है, अगर इन्हे स्कूल भेज दिया तो हमारे साथ खेत मे काम कौन करवाएगा। हमारे स्कूल मे 26 जनवरी, 15 अगस्त व 2 अक्तूबर को विशेष कार्यक्रम होते थे। सुबह पाँच बजे सभी बच्चे तैयार होकर स्कूल पहुँचते थे और फिर पूरे गाँव मे प्रभात फेरी करते थे। पूरा गाँव बच्चों के नारो से गुंजायमान हो जाता था, सभी लोग घरों से निकाल कर बच्चों को देखने के लिए खड़े हो जाते थे। बच्चों का मनोबल और भी बड़ जाता था फिर वे और ज़ोर से भारत माता की जय का नारा लगाते थे, चलते हुए वंदे मातरम गाते थे और रुक कर नारे लगाते थे। गाँव वाले भी अपनी फसल से चने निकाल कर एक हिस्सा स्कूल मे भेज दिया करते थे और उन्ही चनों को गुरुजी एक गोदाम मे जमा करके रखते थे, थोड़े भुनवा कर या उबलवा कर बच्चों को नाश्ते के लिए देते थे, गुड भी गाँव वाले भिजवा देते थे।

उस वर्ष हम स्वतंत्रा दिवस मना रहे थे, प्रभात फेरी के बाद ध्वजारोहण एवं राष्ट्रगान होना था तदुपरान्त एक भाषण, कुछ खेल एवं नाश्ता। राष्ट्रीय पर्व पर गाँव का ही कोई गणमान्य व्यक्ति बच्चों के लड्डू बनवा दिया करता था और वही उस दिन का नाश्ता भी होता था। प्रभात फेरी करने के उपरांत सभी बच्चे स्कूल प्रांगण मे कक्षानुसार पंक्ति बनाकर खड़े थे एवं गुरुजी ध्वजारोहण की तैयारी मे लगे थे। स्कूल का प्रांगण सड़क के बिलकुल किनारे पर था। गुरुजी ने ध्वज दंड मे पहनाकर लगा दिया था और ध्वज लहराने लगा था। लहराते ध्वज को देखकर बच्चों के मन मे देश भक्ति हिलोरे मरने लगी थी मगर यह क्या, एक संभ्रांत युवक सड़क से दौड़ कर हमारे स्कूल मे आ गया था। यह युवक हमारे गाँव का तो नहीं था, लेकिन कौन था और इतनी तेजी से दौड़ कर हमारे स्कूल मे क्यों आया, हम सभी की जिज्ञासा इसमे बढ़ रही थी, गुरुजी भी आश्चर्यचकित थे, तब तक राष्ट्रगान शुरू नहीं किया था।

युवक सीधा गुरुजी के पास गया, उसने गुरुजी से कहा कि आपने राष्ट्रीयध्वज उल्टा लगा दिया है, कृपा इसको उतार कर सीधा कर लीजिये, तभी राष्ट्रगान करना। गुरुजी ने देखा तो वास्तव मे राष्ट्रध्वज उल्टा ही लगा था। गुरुजी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होने राष्ट्रध्वज उतार कर सीधा किया एवं फिर से दंड मे लगा कर लहरा दिया। हम सभी ने राष्ट्रध्वज को प्रणाम किया फिर सभी ने राष्ट्रगान गाया। राष्ट्रगान के बाद सभी बच्चे अपने अपने स्थान पर बैठ गए, गुरुजी अपनी कुर्सी पर बैठते उससे पहले उन्होने एक और कुर्सी मँगवाई एवं आगंतुक युवक से उस कुर्सी पर विराजमान होने का आग्रह किया। गुरुजी ने अपनी कुर्सी पर बैठ कर ही सब बच्चों को स्वांत्रता दिवस का महत्व बताया एवं आगंतुक युवक से आग्रह किया अपना परिचय दे एवं बच्चों को अपनी तरफ से कोई संदेश देना चाहे तो स्वागत है।

आगंतुक युवक ने बताया कि लोग मुझे प. दीनदयाल उपाध्याय के नाम से जानते है, मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सेवक हूँ एवं भारत भ्रमण पर निकला हूँ। मैं यहाँ से गुजर रहा था तो आप लोगो से परिचय हो गया और अब आप सब के बीच हूँ। प. दीनदयाल उपाध्याय जी ने हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के बारे मे जो व्याख्या की वह मुझे जीवनपर्यंत याद रहेगी। उन्होने बताया की हमारा राष्ट्रध्वज तीन रंगो से मिलकर बना है। केसरिया जो हमारे साहस एवं वीरता का प्रतीक है, हवन की अग्नि के रंग वाला केसरिया हमारे राष्ट्रध्वज मे सबसे ऊपर रहता है जिसका अर्थ है की हमारा साहस एवं वीरता सर्वोपरि होनी चाहिए। सफ़ेद धवल रंग शांति का प्रतीक है और शांति वही स्थापित कर सकता है जो वीर एवं साहसी हो। जो वीर है, साहसी है और शान्तिप्रिय है उसके खेत हमेशा हरे भरे लहलहाते रहते है और हमारे राष्ट्रध्वज का तीसरा रंग है हरा, हमारी खुशहाली का प्रतीक। हमारे राष्ट्रध्वज के बीच मे है धर्म चक्र जो 24 भागों मे विभक्त है और यह हमे 24 घंटे धर्म की राह पर चलने का संकेत देता है। यह धर्म चक्र हमने महान सम्राट अशोक के स्तम्भ से लिया है। जब दीनदयाल जी राष्ट्रध्वज के बारे मे समझा चुके तो मैंने प्रश्न किया कि श्रीमान जी आप राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक है अतः हमे इसके बारे मे भी कुछ बताए, चूंकि थोड़ी देर मे ही युवक ने सभी बच्चों को ऐसा मंत्र मुग्ध कर दिया था कि वे अपने से लगने लगे थे इसीलिए मेरा साहस प्रश्न करने का हो पाया था। पहली बार मैंने प. दीनदयाल उपाध्याय के श्रीमुख से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे मे जाना और मन मे विचार किया कि मैं भी एक स्वयं सेवक बन कर राष्ट्र की सेवा करूंगा और मेरा यह सपना पूरा हुआ जब मैं अपने नगर सहारनपुर मे पढ़ने गया एवं वहाँ लगने वाली शाखा मे अविलंब जाना प्रारम्भ कर दिया। आज भी जब पंडितजी के बारे मे कोई प्रसंग आता है या कंही पर विवेचना होती है तो मेरे सामने उनकी वही छवि घूम जाती है एक तेजवान साधारण मिलनसार युवक जो अपने कर्तव्यपथ पर अकेले ही सम्पन्न राष्ट्र का सपना लिए हुए चले जा रहे थे।

वेद प्रकाश त्यागी

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