radhika Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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राधिका

माँ मैं विवाह नहीं करूंगी, अगर मैंने भी विवाह कर लिया तो तुम अकेली रह जाओगी, तुम्हारी देखभाल कौन करेगा, इसीलिए मैंने सोचा है कि जीवन भर आपके साथ ही रहूँगी। मगर बेटा मेरा क्या भरोसा आज मैं हूँ कल नहीं रहूँगी तो फिर तू अकेले कैसे इतना लंबा जीवन बिताएगी, देख बेटा राकेश बहुत अच्छा लड़का है, तुझे चाहता भी बहुत है, कल आया था मेरे पास तेरा हाथ मांगने, मैंने तो उसे हाँ कह दी है। राधिका भी राकेश से बहुत प्यार करती थी लेकिन शादी विवाह की बात चलते ही वह बेचैन हो उठती थी, मन मे बस एक ही विचार आता था कि मेरे पीछे माँ की देख भाल कौन करेगा, माँ ने भी तो पूरा जीवन मुझे पालने मे ही लगा दिया। राधिका और रुक्मणी दोनों ही एक दूसरे के लिए पूरा संसार थे। माँ बेटी के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन होम कर रही थी और बेटी भी माँ के बिना नहीं रह सकती थी। राकेश पड़ोस के शर्मा जी का बेटा राधिका से दो साल बड़ा था लेकिन दोनों साथ खेलते हुए ही बड़े हुए। राकेश बड़ा होने के नाते खुद को राधिका से ज्यादा जिम्मेदार समझता था और उसका हर तरह से ख्याल रखता था। राधिका को कंपनी की तरफ से गोवा जाना पड़ा तो साथ मे माँ और राकेश भी चल दिये। पणजी मे कंपनी का गेस्ट हाउस खूबसूरत जगह पर था जहां से पूरा समुद्र दिखाई देता था, रात के समय चाँद की चाँदनी मे नहाई हुई समुद्र किनारे की रेत चाँदी की तरह चमक रही थी। रात का भोजन करने के पश्चात राधिका ने रुक्मणी से आग्रह किया कि चलो माँ समुद्र किनारे घूमने चलते हैं, रुक्मणी बोली कि बेटा मैं थक गयी हूँ और तुम दोनों के साथ ज्यादा दूर नहीं चल सकूँगी अतः अच्छा रहेगा कि मैं यही आराम कर लूँ और तुम दोनों घूम आओ। राकेश और राधिका समुद्र किनारे घूमने चले गए, और भी बहुत से लोग वहाँ घूम रहे थे, कुछ सुकून से बैठे थे समुद्र भी शांत था जैसे सुकून से बैठे लोगों का साथ दे रहा हो। साफ आसमान मे पूरा चमकता हुआ चाँद और अथाह सागर मन को मोह रहे थे। राधिका कहने लगी, राकेश मन करता है कि हाथ बढ़ा कर इस चाँद को तोड़ कर अपने पास सजा लूँ। राकेश बोला कि तुम्हें चाँद तोड़ कर सजाने की क्या जरूरत है, तुम तो चाँद से कहीं ज्यादा खूबसूरत हो, देखो राधिका ये चाँद भी इस आकाश की दुल्हन का चेहरा है और ये रात उसकी चुनरिया जिस पर अनगिनत तारे झिलमिला रहे हैं। आकाश जब अपनी दुल्हन की चुनरी धीरे धीरे उसके मुख से सरकाता है तो उसका चेहरा थोड़ा थोड़ा करके सामने आता रहता है और आज उसने पूरा घूँघट हटाया है तभी तो आज चाँद पूरा नजर आया है। पूरे चाँद की सुन्दरता को देखकर प्रेमी अपनी सुधबुध खो बैठते हैं। आकाश भी अपनी दुल्हन को देख कर कहीं खो गया है और बस दिखाई दे रहा है तो चाँद और उसकी तारों जड़ी चुनरी। राधिका कहने लगी अच्छा तो तुम भी आज चाँद को देख कर पागल हो गए हो तब राकेश बोल पड़ा हाँ, लेकिन उस चाँद को देखकर नहीं इस चाँद को देखकर। पूर्णिमा की रात होने से समुद्र मे लहरें उठना शुरू हो गयी थी शायद ज्वार आने वाला था, इसीलिए समुद्र इतना शांत हो गया था। ज्वार आने से पहले ही समुद्र किनारे की भीड़ छँटने लगी, राकेश और राधिका भी वापस गेस्ट हाउस आ गए। रुक्मणी को आज भूषण की बहुत याद आ रही थी हनीमून पर वे दोनों पणजी मे ही ठहरे थे और यहीं पर समुद्र किनारे घूमने का आनंद लिया था।

भूषण से शादी के बाद जब रुक्मणी ससुराल आई तभी गर्भवती हो गयी थी और उसने भूषण से कहा था की अगर लड़की हुई तो हम उसका नाम राधिका रखेंगे। बहुत प्यार करता था भूषण रुक्मणी से, घर मे उसकी जरूरत का सभी सामान और दो नौकर भी लगा रखे थे। अपने घर को रुक्मणी ने बड़े करीने से सजाया था। भूषण की विदेश जाकर नौकरी करने और वंही बस जाने की बड़ी इच्छा थी जिसके लिए वह पूरी कोशिश कर रहा था। भूषण की कोशिश रंग लायी और एक दिन नासा से भूषण को नियुक्ति पत्र मिल गया जिसमे उसको सहायक रिसर्च ऑफिसर का पद दिया गया था। सभी ने भूषण को यह मौका न छोडने की सलाह दी, रुक्मणी भी भारी मन से राजी हो गयी क्योंकि भूषण के भविष्य और इच्छा का प्रश्न था। राधिका के जन्म से पहले ही भूषण अमेरिका चला गया मगर जाते समय कह कर गया कि रुक्मणी तुम चिंता मत करना, मैं जल्दी ही तुम्हें लेने आऊँगा।

भूषण को अमेरिका की खुली हवा एवं स्वछंद वातावरण बहुत भा गया था, समय मिलने पर अपने घर पर भी वह फोन पर बात कर लेता था। भूषण के जाने के बाद रुक्मणी के सास ससुर साथ ही रहने आ गए थे अतः अकेलापन तो नहीं था लेकिन भूषण के बिना अधूरा अधूरा सा लगता था। भारतीय मूल की अमेरीकन लड़की यामिनी जेम्स भी भूषण के साथ ही नासा मे सहायक रिसर्च ऑफिसर के पद पर कार्य कर रही थी। यामिनी अमेरिका मे पल कर बड़ी हुई, अतः काफी स्वछंद विचारों की लड़की थी, माँ बाप से अलग अपना खुद का घर ले कर रह रही थी। उसके घर मे काफी जगह थी अतः उसने भूषण को अपने ही घर मे रहने के लिए कह दिया। धीरे धीरे भूषण और यामिनी एक दूसरे की तरफ खिंचते चले गए, भारत मे भूषण की रुक्मणी से बात होनी कम होती चली गयी। राधिका भी पैदा हो चुकी थी और वह तुतला कर बोलने भी लगी थी। कभी कभी स्काइप पर भूषण को अपनी तोतली जबान मे कुछ कुछ कहती थी जो किसी की भी समझ मे नहीं आता था। भूषण का यमिनी संग प्रेम दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था और एक रात तो उन्होने अपनी सारी सीमाएं पार कर दी, उसके बाद भूषण किसी भी हाल मे यामिनी को खोना नहीं चाहता था और सब कुछ भुला कर उसी के साथ अपना जीवन बिताना चाहता था। लेकिन यामिनी जो स्वछंद वातावरण मे पल कर बड़ी हुई थी उससे भारतीय नारी जैसी अपेक्षा करना भूषण की भूल थी और इसी बात को लेकर उनमे दिन प्रतिदिन झगड़े होने लगे थे। वह भूषण को घर पर अकेला छोड़ कर दूसरे दोस्तों के साथ घूमने चली जाती भूषण के ऐतराज करने पर बड़े प्यार से भूषण के गालों को सहला कर कह देती टेक इट ईज़ी डार्लिंग, इट हेपेंस इन अमेरिका, इट्स नॉट इंडिया एंड डोंट एकस्पेक्ट मी देट ट्रेडीशनल वाइफ़, आई एम फ्री टु मूव विद एनी बॉडी एंड यू आल्सो मे गो विद एनी बॉडी आइ हैव नो ऑबजेक्शन। यमिनी जेम्स की इतनी बातें सुनने के बाद भूषण पर तो वज्रपात हो गया एवं वह सोचने लगा कि क्यो मैंने रुक्मणी का तिरस्कार किया, अब किस मुंह से उसके पास जाऊ। यमिनी से पीछा छुड़ाना भी इतना आसान नहीं था, रोज रोज की तू-तू मैं-मैं ने धीरे धीरे भयंकर रूप धारण कर लिया और उस दिन तो बस हद ही हो गयी जब यमिनी ने भूषण के सामने ही अपने दोस्त के साथ इतनी शराब पी कि दोनों को कोई होश ही नहीं रहा एवं दोस्ती की हदों को पार करते हुए भूषण के सामने ही आपत्तीजनक स्थिति मे आ गए। भूषण से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और उसने अपना रास्ता बदलने का मन बना लिया तत्क्षण उसने अपना सभी सामान उठाया और होटल मे रहने चला गया एवं कुछ दिन वहाँ रहने के बाद अपने लिए एक घर का इंतजाम करके अपने घर मे आ गया। वहाँ से वह उस सभी भारतियों की मदद करने लगा जो अपना देश छोड़ कर अमेरिका की चकाचौंध से प्रभावित होकर वहाँ आ रहे थे। भूषण को लगने लगा शायद यही मेरा प्रायश्चित होगा।

राधिका बड़ी होने लगी, रुक्मणी के सास ससुर भी गुजर गए तो रुक्मनी अकेली रह गयी, कोशिश करके एक नौकरी कर ली। राधिका को स्कूल भेज कर वह अपने काम पर चली जाती, अब उसने भूषण की उम्मीद छोड़ दी थी, भूषण को भी बात किए हुए काफी दिन हो गए थे। रुक्मणी मन लगा कर काम करती एवं चुप रहती, कार्यालय मे सभी उसके बारे मे जानने की कोशिश करते रहते, मगर उसने कभी किसी को कुछ नहीं बताया। बेटी राधिका जब भी रुक्मणी से अपने पापा के बारे मे पूछती तो वह चुप हो जाती। धीरे धीरे दिन गुजरते गए, राधिका बड़ी हो गयी, अब स्कूल से कॉलेज मे पहुँच चुकी राधिका मानवाधिकार पर रिसर्च कर रही थी। राकेश भी राधिका को उसके कार्य मे सहयोग करता रहता था, जब भी कार्य के लिए कहीं भी बाहर जाना होता तो राकेश राधिका साथ ही जाते। राधिका ने एक गाँव को अपना कार्यक्षेत्र बनाया हुआ था, जहां पर प्रत्येक घर से किसी न किसी ने आत्महत्या की थी और वहाँ रहने वाले लोग सदैव अवसाद मे ही रहते थे। अवसाद का कारण क्या था और कैसे उसे दूर कर सकते हैं इसी विषय का अध्ययन करके राधिका को अपनी डॉक्टरेट की उपाधि के लिए अपना प्रोजेक्ट तैयार करना था। तभी राधिका ने मातृभारती पर वेद प्रकाश त्यागी द्वारा लिखित कहानी “आत्महत्या के बाद” पढ़ी और उस कहानी ने राधिका को काफी प्रभावित किया। राधिका ने कहानी राकेश को सुनाई एवं उससे विचार विमर्श किया कि अगर इस कहानी पर हम एक डोकुमेंटरी फिल्म बनाकर लोगों को दिखाएँ तो काफी हद तक आत्महत्याएँ रुक सकती हैं। अपनी मेहनत और लगन से राधिका ने डोकुमेंटरी तैयार कर ली अब राधिका और राकेश गाँव मे प्रतिदिन साँय के समय हर गली, नुक्कड़ व मोहल्ले मे उस फिल्म को दिखाने लगे जिसका परिणाम यह निकला कि उस गाँव मे आत्महत्याएँ रुक गयी। प्रशासन को जब इसका पता चला तो उन्होने इस डोकुमेंटरी को देखा और देखकर यह फैसला लिया कि इसे सभी गाँव, शहर और नगर मे दिखाया जाए। डोकुमेंटरी दिखाने का परिणाम देख कर प्रशासन हतप्रभ रह गया। आत्महत्याएँ एकदम रुक गईं थी और लोग अवसाद से बाहर आ रहे थे। स्थानीय प्रशासन ने डोकुमेंटरी के बारे मे भारत सरकार को लिखा तो भारत सरकार ने उस फिल्म को देखकर राष्ट्रीय स्तर पर उस डोकुमेंटरी को सभी सिनेमाघरों और टेलिविजन पर चलाने के आदेश दे दिये। उस डोकुमेंटरी फिल्म को उस वर्ष की बेहतरीन राष्ट्रीय डाकूमेंटरी पुरस्कार से सम्मानित किया। राधिका को राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार लेते हुए बड़ा गर्व महसूस हो रहा था। उसने अपनी माँ को भी अपने साथ ही स्टेज पर बुला लिया एवं पूरी सभा से परिचय करवाया कि आज मैं जो भी हूँ अपनी माँ की मेहनत से ही हूँ।

भारत सरकार ने इस डोकुमेंटरी फिल्म को ऑस्कर अवार्ड के लिए भेज दिया और वहाँ भी वह सबसे अच्छी डोकुमेंटरी चुनी गयी। अब राधिका को अमेरिका जाना था अवार्ड लेने के लिए तो उसने अपनी माँ और राकेश के लिए भी अनुमति ले ली। भूषण जूरी का सदस्य था और राधिका ने अवार्ड भूषण के ही हाथों लेना था। जब वह अवार्ड लेने स्टेज पर गयी तो उसने अपनी माँ को भी वहीं बुलाने की अनुमति चाही। भूषण ने राधिका की माँ को स्टेज पर आने की अनुमति दे दी और वह अपनी माँ को लेकर बड़े गर्व से स्टेज पर चढ़ गयी। भूषण और रुक्मणी का आमना सामना हुआ और दोनों की आंखो से निर्झर आँसुओ का सैलाब बह चला, भूषण कह उठा रुक्मणी तूने तो हमारी बेटी का ऐसा लालन पालन किया है कि वह सभी ऊंचाइयों को छू रही है और मैं तो कुछ भी नहीं कर पाया, जिसके लिए तुम लोगों को छोड़ा था वही मुझे छोड़ कर चली गयी, फिर वापस भारत तुम लोगों के पास आने की मेरी हिम्मत ही नहीं हुई। आज अचानक हमारी बेटी के कार्यों ने हमे मिलवा दिया है अगर तुम मुझे माफ कर सको तो मैं वापस तुम्हारे और राधिका के पास रहना चाहता हूँ। रुक्मणी का हृदय बहुत बड़ा था उसने भूषण को माफ कर दिया, राधिका ने भी अपने पिता को माफ कर दिया। राधिका ने राकेश को अपने पिता से मिलवाया। अब सभी थोड़ा सहज महसूस कर रहे थे कि रुक्मणी ने राधिका से पूछ लिया अब तो तू राकेश से शादी कर लेगी, अब तो तेरी माँ को अकेले नहीं रहना पड़ेगा, राधिका शर्मा गयी। भूषण और रुक्मणी ने बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी की एवं अपने सभी आशीर्वाद देकर नम आँखों से बेटी को विदा किया।

वेद प्रकाश त्यागी

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