aatmhatya ke baad Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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aatmhatya ke baad

आत्महत्या के बाद

अब और तनाव मैं नहीं सहन कर सकता बहुत हो गया अब तो बस मुझे आत्महत्या करनी ही पड़ेगी, मन मे ऐसा विचार करके आनंद ने कमरे के अंदर से कुंडी बंद कर ली। एक रस्सी जो उसने पहले से ही ला रखी थी उसका फंदा बना कर पंखे मे बांध दिया और पलंग पर स्टूल रख कर उस पर खड़ा हो गया, रस्सी को अच्छी तरह से खींच कर देखा कि मजबूती से बंधी है और फंदा अपने गले मे फंसा लिया। दिमाग मे बस यही बात घूम रही थी कि रोज रोज के तनाव से तिल-तिल करके मरने से तो अच्छा है कि एक बार ही मर जाए और छूट जाए इस तनाव भरी ज़िंदगी से, यह सोच कर उसने फंदा अपने गले मे कस कर अपने पैर से स्टूल को हटा दिया। आनंद का शरीर फंदे पर झूल गया एवं थोड़ी ही देर मे उसका सूक्ष्म शरीर उसके स्थूल शरीर से निकल कर बाहर आ गया। आनंद की आत्मा अब स्वच्छंद हो चुकी थी वह किसी भी बंधन से मुक्त थी, दीवार और दरवाजे उसको रोक नहीं सकते थे वह उनके आर पार कहीं भी आ जा सकती थी। आत्मा बंद कमरे से निकल कर बाहर आई और देखा कि सभी घर वाले गहरी नींद मे सो रहे हैं सब को सोते हुए छोड़ कर वह घर से बाहर निकल गयी और उसको लगने लगा कि अब वह पूर्ण स्वतंत्र है पूरे ब्रह्मांड मे कहीं भी आ जा सकती है। परंतु मरने के बाद तो आत्मा को यमदूत लेने आते हैं और यमलोक मे ले जाते हैं फिर सोचने लगी मेरे मरने पर वे क्यो नहीं आए। आनंद की आत्मा ये सोचते हुए स्वछंद घूम रही थी कि उसका सामना एक विशालकाय काले साये से हो गया और उसने उसे अपने आगोश मे कस कर जकड़ लिया जिससे वह हिल भी नहीं सकती थी। यह एक प्रेत आत्मा थी जिसने अपने सहस्त्र पंजो से पूरे आकाश क्षेत्र को ढक रखा था, पूरे प्रेतलोक मे उसका राज चलता था और उसके साथ और भी बहुत सी डरावनी एवं क्रूर आत्माएं सेना के रूप मे थी जो सभी आत्माओ को अपने अपने ढंग से यातनाएं देती थी। आनंद ने उससे पूछा कि तुम कौन हो और मेरे साथ ये अत्याचार क्यो कर रहे हो तो उस भयंकर प्रेतात्मा ने कहा यह प्रेतलोक है और मैं यहाँ का राजा हूँ अब तुम हमारे गुलाम हो जो भी नई आत्मा अपनी शरीरी आयु पूरी किए बिना यहाँ पर आती है वह हमारी गुलाम बनती है अब जब तक तुम्हारी वास्तविक आयु पूरी नहीं होगी तुम्हें हमारा गुलाम बन कर इस प्रेतलोक मे ही रहना पड़ेगा। उसको एक गंदे बदबूदार गुप अंधेरे स्थान पर बांध कर तरह तरह की यातनाये दी जाने लगी। प्रेतराज ने उसको बताया कि किसी भी आत्मा को उसकी वास्तविक आयु पूरी होने से पहले यमदूत नहीं ले जा सकते चाहे वह अपने शरीर से अलग क्यों न हो जाए, वह यमलोक मे न जाकर प्रेतलोक मे आ जाती है। इस तरह की सभी आत्माओं को अपनी वास्तविक आयु पूरी होने तक हमारा गुलाम बन कर रहना पड़ता है। उसके आस पास ऐसी और भी बहुत सारी आत्माए बंधी हुई थी जिनकी असमय मृत्यु, किसी दुर्घटना मे या आत्महत्या के कारण हुई थी। जो आत्माए दुर्घटना के कारण अपने शरीर से अलग हुई थी उनके साथ प्रेतराज एवं उसके क्रूर सैनिक थोड़ा अच्छा व्यवहार कर रहे थे, लेकिन आत्महत्या करने वालों को अलग अलग तरह के दंड दिये जा रहे थे। प्रेतराज ने आदेश दिया कि आनंद अपने परिवार को बेसहारा रोते बिलखते छोड़ कर आया है अतः इसको एक हज़ार कोड़े लगाओ। प्रेतराज का कोड़ा जैसे ही आनंद की आत्मा के सूक्ष्म शरीर पर पड़ता तो बिजली सी कौंध जाती और आत्मा दर्द से कराह उठती थी। कोड़ो की मार के बाद जख्मी आत्मा को प्रेत भट्टी पर रख कर उसके सभी जख्मो को आग मे जला रहे थे। प्रेतलोक मे प्रेतराज का विस्तृत संसार था, चारों तरफ प्रेत आत्माओ का पहरा था कोई भी बच कर नहीं जा सकता था। आनंद को लगा की वह तो अत्महत्या करके फंस गया है, अगर पता होता कि आत्महत्या के बाद इतनी यातनाएं झेलनी पड़ेंगी तो मेरे जीवन के वो कष्ट ही अच्छे थे उनसे निकलने का तो कोई न कोई रास्ता मिल ही जाता अगर मैं जिंदा रहता और अपने परिवार का सहयोग लेकर चलता लेकिन इस यातना भरे प्रेत राज के चंगुल से निकलना तो असंभव है। अब आनंद को अपनी पत्नी और बच्चे याद आ रहे थे, वह इस प्रेतराज के चंगुल से निकलने का मौका ढूंढने लगा। एक भली आत्मा के सहयोग से उसे वहाँ से निकलने का रास्ता मिल गया। उस भली आत्मा ने समझाया कि इससे पहले कि तेरा स्थूल शरीर नष्ट कर दिया जाए तू किसी भी तरह कोशिश करके उसमे दोबारा प्रवेश कर जा नहीं तो यहाँ की यातनाये बहुत भयंकर हैं। वह शरीफ आत्मा जिस व्यक्ति की थी, वह उस बस्ती मे अध्यापक था और उसका बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था, क्योंकि वह व्यक्ति गरीबों, बीमारों, लाचारों और बेसहारा लोगों की सदैव मदद करता रहता था। उसका इस तरह कमजोरों को सहारा देना, उन्हे सक्षम बनाना, कुछ लोगों को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उनकी कमाई ही बंद हो गयी थी। वह आत्मा भी अपनी आयु पूरी न होने की वजह से प्रेतलोक मे आई क्योंकि यमलोक मे जा नहीं सकती थी। प्रेतलोक के दूतों को सब ज्ञात था अतः उन्होने उस आत्मा के बारे मे सब कुछ प्रेतराज को बता दिया अतः प्रेतराज ने उस आत्मा को अपने लोक मे एक अच्छी जगह दे दी थी एवं सभी से कह दिया था कि इस आत्मा को कोई भी किसी भी तरह की यातना नहीं देगा। कई बार यह भी देखा गया कि प्रेतराज उस आत्मा की सलाह भी मान लेता था। न जाने क्यो प्रेतराज को उस आत्मा से लगाव हो गया था। सबसे ज्यादा यातनाये तो उन आत्माओं को दी जाती थी जो आत्महत्या करके अपना शरीर आयु पूरी किए बिना छोड़ आती थीं और ऐसा ही आनंद ने भी किया था अतः आनंद को भयंकर यातनाएं देने का आदेश प्रेतराज ने दे दिया था। मास्टर जी की शरीफ आत्मा को न जाने क्यो आनंद की आत्मा पर दया आ गयी थी और उसने सलाह दे दी कि वापस शरीर मे प्रवेश कर जा। उसको प्रेतलोक से निकालने के लिए उस शरीफ आत्मा ने प्रेतराज से बात की और समझाया कि अगर आनंद अपने शरीर मे घुसने मे नाकाम रहता है तो इसको वापस प्रेतलोक ही लौट आना होगा। प्रेतराज ने उसकी बात मान ली एवं आनंद को एक मौका दे दिया वापस अपने शरीर मे घुसने का। इस तरह उस शरीफ आत्मा की मदद से आनंद को एक मौका मिल गया अपना शरीर को वापस पाने का।

वह वहाँ से निकल कर सीधा अपने घर आ गया। उसके स्थूल शरीर को फंदे से नीचे उतार लिया गया था, पुलिस आ चुकी थी। आनंद की पत्नी व बेटी का रो रो कर बुरा हाल था, छोटे बेटे की समझ मे ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है क्योंकि इस सब को समझने के लिए बहुत छोटा था। दो साल पहले ही तो पत्नी व बच्चों को लेकर आनंद गाँव से शहर आया था, छोटी सी नौकरी कर ली थी, उसी से घर का गुजारा चलता था, दो कमरे का एक मकान किराए पर ले रखा था, सब ठीक ही चल रहा था सब खुश थे कि फ़ैक्टरी मालिक ने एक दिन फ़ैक्टरी बंद कर दी और आनंद की नौकरी चली गयी। काफी कोशिशों के बाद भी कोई नौकरी नहीं मिल पा रही थी। घर का खर्च, मकान का किराया इन सब के लिए धन की जरूरत थी लेकिन आनंद कहाँ से लाता, और कोई काम भी नहीं था उसके पास नौकरी के अलावा जो अब छूट चुकी थी। मकान मालिक, दूध वाला और राशन वाला घर आकर उसकी बेइज्जती करते एवं पत्नी की तरफ बुरी नजर डालते थे। आनंद अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता था और उसकी पत्नी भी उसे जान से ज्यादा चाहती थी, बच्चे तो अभी छोटे ही थे लेकिन वे भी अपने पापा के बिना नहीं रह सकते थे। आनंद की पत्नी उसके मृत शरीर से लिपट कर बुरी तरह रो रही थी और पूछ रही थी कि ऐसा करने से पहले ये तो सोच लिया होता कि हमारा क्या होगा, अब क्या हम भी आत्महत्या कर लें। पुलिस ने आनंद की पत्नी को आनंद के मृत शरीर से अलग हटाया एवं आनंद के शरीर को एक सफ़ेद कपड़े मे लपेट कर पंचनामा करके पोस्ट मार्टम के लिए भेज दिया।

अब आनंद को अपने अत्महत्या के फैसले पर दुख होने लगा एवं वह अपने स्थूल शरीर मे पुनः प्रवेश करने की कोशिश करने लगा लेकिन उसको कोई भी रास्ता नहीं मिल पा रहा था जिससे वह वापस अपने शरीर मे घुस सके। उसके मृत शरीर को एक एम्ब्युलेन्स में रख कर निकट के हस्पताल में ले जाया गया जहां से उसे वंही के मुर्दाघर में रखने के लिए ले जाना था। आनंद अपने फैसले पर पछता रहा था एवं बार बार अपने शरीर में वापस घुसने की कोशिश कर रहा था लेकिन हर बार नाकाम हो रहा था। इसी बीच एम्ब्युलेन्स हस्पताल पहुँच गयी और उसके शरीर को उतार कर आपातकाल में डॉ के सामने रख दिया गया। डॉ ने परीक्षण करके उसको मृत घोषित कर दिया एवं मुर्दाघर मे रखवाने का आदेश दे दिया। वार्ड बॉय ने आनंद के शरीर को ले जाकर मुर्दाघर मे रखवा दिया और उसकी एक पर्ची लाकर उसकी पत्नी को दे दी। आनंद की आत्मा अभी भी अपने शरीर में घुसने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह अभी भी असफल हो रही थी।

आनंद की मृत्यु का संदेश गाँव में भी भिजवा दिया गया था, गाँव से सभी भाई बंधु आकर मुर्दाघर के सामने ही डेरा डाल कर बैठ गए। सभी लोग आनंद की पत्नी को सांत्वना दे रहे थे एवं वापस गाँव चलने की सलाह दे रहे थे। घर पर भाभी ने बच्चों को संभाल रखा था, उन्हे प्यार से अपनी गोद मे बैठा कर थोड़ा सा कुछ खिला रही थी। सब इसी इंतज़ार में थे कि जल्दी से जल्दी पोस्ट मार्टम हो जाए और लाश को लेकर गाँव चला जाए वहीं पर अंतिम संस्कार करेंगे जिससे सभी घर वाले और गाँव वाले भी शामिल हो सकेंगे। लेकिन जैसे जैसे समय बीत रहा था आनंद की आत्मा को चिंता सता रही थी कि अगर पोस्ट मार्टम हो गया और शरीर नष्ट हो गया तो मुझे फिर वापस प्रेत राज के पास ही जाना होगा और वहाँ पर तो इतनी कष्टदायक यातनायेँ, प्रेतराज का अत्याचार पता नहीं कब तक सहना पड़ेगा। वह एक बार फिर से अपने शरीर मे घुसने की कोशिश करने लगा। सभी रिश्तेदार आकर देख कर अपनी संवेदना व्यक्त कर रहे थे। आनंद का साला नरेश संदेश मिलते ही रोता बिलखता अपने जीजा के अंतिम दर्शन के लिए आ गया और देखने के लिए मुर्दाघर में घुस गया। जब वह बड़े गौर से देख रहा था तो उसे आनंद के पैर की उंगली हिलती हुई दिखाई दी, जैसे ही उसने देखा कि उसके जीजा के पैर की उंगली हिल रही है तो वह बड़े ज़ोर से चिल्लाया डॉ. यह तो जिंदा है। उसके चिल्लाने से सभी स्टाफ वाले एवं घर वाले वहाँ आ गए और वह अपने जीजा की जो उंगली हिल रही थी उसको पकड़ कर डॉ. को दिखाने लगा कि यह उंगली हिल रही थी। तभी आनंद की आँख खुल गयी और उसने देखा कि उसकी पत्नी सुबह की चाय लेकर आई है एवं पैर की उंगली हिला कर उसे उठाने की कोशिश कर रही है।

आनंद उठा, उठकर फ्रेश हुआ और चाय पीने लगा, तभी पत्नी ने पूछ लिया कि अब कैसा लग रहा है, रात तो आप बहुत तनाव में थे तो आनंद बोल उठा कि अब में बिलकुल ठीक हूँ क्योंकि उसको पता चल चुका था कि आत्महत्या के बाद तनाव कम नहीं होता बल्कि यातनाए और बढ़ जाती हैं और वह कह उठा कि मैं कभी सोचुंगा भी नहीं आत्महत्या के बारे में क्योंकि मैंने देख लिया कि आत्महत्या समस्या का हल नहीं बल्कि और भी भयंकर एवं यातनापूर्ण समस्याओं की शुरुआत है। इस एक सपने ने आनंद के जीवन को अवसाद से निकाल कर नई राह दिखाई एवं बाद में तो आनंद ने और भी कई अवसादग्रस्त लोगों की सहायता करके उनके जीवन को सुगम बनाया।

वेद प्रकाश त्यागी

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