मरा हुआ गधा Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मरा हुआ गधा

मरा हुआ गधा

नारायणा गाँव दिल्ली मे हो कर भी उन दिनों थोड़ा अलग-थलग था। सठेड़ी से एक बारात नारायणा गाँव मे आई, तो कुछ बुजुर्ग लोग भी दिल्ली घूमने की सोच कर बारात मे आए हुए थे। उन दिनों बारात तीन दिन रुकती थी, सुबह सवेरे सबके जागने से पहले बारात गाँव के बाहर किसी बाग मे, तालाब किनारे, नदी या नहर के किनारे आकर रुक जाती थी जहाँ सुबह-सुबह सभी बाराती अपने दैनिक कार्यों से निवृत हो लेते थे। लेकिन यह बारात तो गाँव मे सीधे ही पहुंची, चाय नाश्ता हुआ, और दोपहर का खाना खाकर कुछ बारातियों ने दिल्ली घूमने की योजना बनाई। सभी अपने-अपने साथियों के साथ घूमने निकल गए। तीन बुजुर्ग फत्तन, पल्टू और लछमन लाल क़िला देखने के लिए निकल पड़े। नारायणा गाँव से बाहर निकल कर किसी से लाल क़िला जाने वाली बस का नंबर पूछ कर बस मे बैठ गए एवं लाल क़िला जा पहुंचे। शुक्रवार का दिन था, लाल क़िले मे प्रवेश भी नि:शुल्क था अतः तीनों लाल क़िले के अंदर चले गए। लाल किला घूमते-घूमते काफी देर हो गयी, जब देखा कि दिन ढलने लगा है तो वे वापस जाने के लिए लाल किले से बाहर आ गए। लेकिन बाहर आकर वे तीनों ही बस का नंबर भूल गए और साथ में उस गाँव का नाम भी भूल गए जिस गाँव मे वे बारात में आए थे। अब वे तीनों ही बाहर निकल कर लोगों से पूछने लगे कि हम यहाँ बारात मे आए हैं, गाँव का नाम भूल गए हैं, हमे उस गाँव मे जाना है, अगर आप लोग बता सको कि किस गाँव मे बारात आई हुई है और कौन सी बस वहाँ जाएगी तो आपका बड़ा एहसान होगा। जब वे लोग यह सब पूछ रहे थे तो एक आदमी जो उनकी बात सुन रहा था, उन तीनों के पास जाकर कहने लगा कि भाई अब तो तुम्हें कोई बस नहीं मिलेगी और तुम बिना गाँव का नाम जाने जा भी नहीं सकते, अतः तुम अगर ठीक समझो तो मेरे साथ मेरे घर पर चलो, बाहर वाला कमरा थोड़ा साफ करना पड़ेगा, बस उसमे तुम अपनी रात गुजार लेना, हो सकता है सुबह तक तुम्हें गाँव का नाम भी याद आ जाए। फत्तन ने कहा भाई चलो अगर यह आदमी हमे रात भर ठहरने की जगह दे रहा है तो पूरी रात कंही बाहर क्यो धक्के खाएं और तीनों उस व्यक्ति के साथ उसके घर की तरफ चल पड़े। काफी देर पैदल चल कर उसका घर आ गया, उसने घर का दरवाजा खुलवाया एवं तीनों को अंदर ले आया। बाहर वाले कमरे का दरवाजा खोल कर वह इन तीनों से बोला कि मेरा गधा मर गया है, इसको बाहर निकलवा दो फिर मैं इस कमरे को धो दूंगा एवं आप लोगों के लिए चारपाई व बिस्तर बिछा दूंगा, आप आराम से सो जाना। उस आदमी का प्रस्ताव ठीक लगा तो तीनों ने गधे को खींच कर बाहर निकाल दिया। जैसे ही इन तीनों ने खींच कर गधे को बाहर निकाला तुरंत ही उस व्यक्ति ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया एवं काफी आवाजें लगाने और दरवाजा पीटने पर भी उसने दरवाजा नहीं खोला। ये तीनों उस व्यक्ति की धोखाधड़ी का शिकार हो चुके थे, साथ में गधे को खींचने से उनके कपड़े भी खराब हो गए थे। अब वे गधे को वहीं छोड़ कर चलने लगे लेकिन तभी पुलिस वाला जो वहाँ गश्त पर था उसने उन्हे रोक लिया और कहा कि तुम मरे हुए गधे को ऐसे छोड़ कर नहीं जा सकते इसको यहाँ से उठाओ। उन्होने पुलिस वाले को लाख समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना, तब उन्होने सोचा कि थोड़ा आगे जाकर पुलिस वाले से नजर बचा कर छोड़ देंगे, लेकिन जैसे ही मोड़ पर उन्होने गधे की लाश को ले जाकर छोड़ा तो दूसरा पुलिस वाला सीटी बजाता हुआ आ गया और उसने भी गधे की लाश को वहाँ से उठाने को कहा। वे तीनों पूरी रात उस मरे हुए गधे की लाश को खींच-खींच कर बेहाल हो गए, सुबह होने को थी और उस गाँव का नाम भी याद नहीं आ रहा था, पूरी रात सो भी नहीं सके, बस मरे हुए गधे को ही खींचने मे लगे रहे। वह तीनों अपनी किस्मत को कोस रहे थे कि तभी एक पुलिस वाले की नजर उन पर पड़ी। पुलिस वाले ने देखा कि ये तीनों देखने मे तो गाँव के खाते-पीते परिवार के लग रहे हैं लेकिन ये इस मरे हुए गधे के साथ यहा क्या कर रहे हैं। पुलिस वाले को देख कर वे फिर डर गए एवं गधे की लाश को खींचने लगे, पुलिस वाले ने उनसे रुकने के लिए कहा और पूछा कि तुम लोग कौन हो और इस मरे हुए गधे को क्यो खींच रहे हो। तब फत्तन ने सारा किस्सा उस पुलिस वाले को बता दिया, उनकी व्यथा सुनकर पुलिस वाले को बड़ी दया आई लेकिन वह कुछ भी नहीं कर सकता था। उस पुलिस वाले ने उनसे उनके अपने गाँव के नाम पूछे और जिस गाँव से बारात आई थी उसका नाम भी पूछा। जैसे ही उन्होने कहा कि हम गाँव सठेड़ी के ही रहने वाले हैं और वहीं से बारात आई है तो उस पुलिस वाले ने अंदाजे से कहा कि क्या तुम लोग नारायणा आए हो बारात मे। पुलिस वाले ने जैसे ही नारायणा का नाम लिया तो उन तीनों को भी याद आ गया और वे तीनों एक साथ बोल पड़े कि हाँ नारायणा ही है। अब पुलिस वाले ने उनको समझाया कि आप लोगों के पीछे जो कूड़ादान है उसमे इस गधे को पहुंचा कर और थोड़ा आगे जाकर यमुना मे नहा आओ, अपने कपड़े भी धो लेना, यहाँ से यमुना नजदीक ही है फिर सड़क पर आकर 70 नंबर की बस पकड़ लेना जो सीधी नारायणा मे ले जाकर उतारेगी। गाँव का नाम नारायणा और बस नंबर 70 एक कागज पर लिख कर भी पुलिस वाले ने उनको दे दिया। अब उन तीनों ने उस गधे की लाश को खींच कर कूड़े वाले गढ़ढ़े मे डाल दिया और यमुना नदी पर चले गए, वहाँ पर तीनों ने नहाकर और कपड़े धोकर सुखा लिये एवं कपड़े पहन कर सड़क की तरफ चलने लगे। चलने से पहले तीनों ने यमुना जल हाथ मे लिया एवं कसम खायी कि इस रात के बारे मे हम तीनों मे से कोई भी किसी से भी जिक्र नहीं करेगा। यह सबक लेकर वापस चल पड़े कि किसी की भी मीठी-मीठी बातों मे आकर अंजान व्यक्ति पर इतना विश्वास भी नहीं करना चाहिए कि वह तुम्हारे भोलेपन या मजबूरी का गलत फ़ायदा उठा ले।

वेद प्रकाश त्यागी

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