पंडित दीनदयाल और छुआछुत Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पंडित दीनदयाल और छुआछुत

प. दीन दयाल और छुआछूत

भीकू प. दीन दयाल उपाध्याय जी के गाँव का एक सफाई करने वाला था। वह पूरे गाँव को साफ रखता था, सब के घरों का गोबर कूड़ा उठाकर उनके खत्तों मे डालता था। सबके अलग अलग खत्ते बने हुए थे जिन में भीकू सभी के घरों का गोबर व कूड़ा लाकर डालता था और इस तरह पूरा गाँव साफ सुथरा रहता था। सभी के खत्ते गाँव से बाहर थे जिससे गंदगी व गंदगी से आने वाली दुर्गंध गाँव से बाहर ही रहती थी। पूरे गाँव का गोबर कूड़ा उठाने वाले, पूरे गाँव को साफ रखने वाले और पूरे गाँव को गोबर कूड़े से होने वाली दुर्गंध से बचाने वाले इस व्यक्ति को लोग अछूत कहते थे। कोई उसको अपने पास नहीं बैठाता था, अपने कुएं से पानी नहीं भरने देता था और अपने मंदिर में भी नहीं जाने देता था। भीकू का एक ही बेटा था राम प्रसाद, जिसे वह पढ़ाना चाहता था इसलिए उसने अपने बेटे को स्कूल मे दाखिला दिला दिया था। राम प्रसाद नाक-नक्श से सुंदर था एवं उसका रंग भी साफ था। प्रतिदिन नहाकर धुले हुए कपड़े पहन कर ही स्कूल आया करता था लेकिन गुरुजी उसको सभी बच्चों से अलग थोड़ी दूरी पर बैठाया करते थे। बालक दीन दयाल भी उसी कक्षा मे पड़ते थे। सभी बच्चे साथ-साथ बैठ कर पढ़ते थे, आपस में बातें करते थे, हँसते थे, खेलते थे मगर राम प्रसाद अलग-थलग रहता था। राम प्रसाद से न तो कोई बात करता था और न ही उसके साथ कोई खेलता था। गुरुजी भी इस पर ध्यान नहीं देते था, अगर वह दूसरे बच्चों की तरह अपनी तख्ती या स्लेट दिखाने गुरुजी के पास जाता था तो गुरुजी उसे दूर ही खड़ा रखते एवं उसकी तख्ती व स्लेट को हाथ नहीं लगाते थे, दूर ही से देख उसे उसकी गलतियाँ समझा देते थे। वैसे तो राम प्रसाद गलतियाँ बहुत कम करता था और एक बार के समझाने पर ही समझ भी जाता था। पढ़ने की लगन उसके अंदर थी यह बात गुरुजी भी जानते थे। कभी-कभी गाँव का ही कोई आदमी आकार उसका मनोबल गिराने वाली बात कह जाता था जैसे कि ये पढ़ कर क्या करेगा, इसने तो गोबर कूड़ा ही उठाना है या फिर गुरुजी से कहता था कि इसको क्यों पढ़ा रहे हो, पढ़ लिख जाएगा तो हमारा गोबर कूड़ा कौन उठाएगा। लोगों कि इस तरह कि बातें राम प्रसाद को परेशान तो करती थी मगर विचलित नहीं कर पाती थी।

राम प्रसाद को प्यास लगी थी लेकिन वह स्कूल के पानी से पानी नहीं पी सकता था उसने गुरुजी से पानी मांगा तो गुरुजी ने डांट दिया कि मैं तुझे पानी पिलाऊंगा? और कह दिया कि वहाँ सामने जाकर तालाब से पानी पी ले और इस तरह राम प्रसाद पूरे दिन प्यासा ही रहा। बालक दीन दयाल ने गुरुजी से पूछ ही लिया कि आप राम प्रसाद को सबसे अलग क्यो बैठाते है और पानी भी नहीं दिया तो गुरुजी ने एक सीधा सा उत्तर दिया कि वह अछूत है इसलिए अलग बैठाया जाता है। अब बालक दीन दयाल ने गुरुजी से दूसरा प्रश्न किया कि यह अछूत क्या होता है तब गुरुजी ने समझाया कि जो छोटी जाति से हो, गंदा रहता हो उसे अछूत कहते हैं यानि कि हम उसे छूते नहीं है अन्यथा हम भी गंदे ही जाएंगे। बालक दीन दयाल सोचने लगा कि राम प्रसाद अछूत कैसे हुआ वह तो हम सब से साफ सुथरा रहता है प्रतिदिन नहा कर स्कूल आता है, साफ कपड़े पहनता है और हमारी तरह मिट्टी मे खेलता भी नहीं है फिर इसको गुरुजी ने गंदा क्यो कहा। यही बात बालक दीन दयाल ने घर जाकर भी पूछी वहाँ से भी उसको यही उत्तर मिला साथ मे यह और बता दिया गया कि राम प्रसाद का बाप पूरे गाँव कि गंदगी साफ करता है इसलिए ये लोग गंदे हुए। बालक दीन दयाल फिर सोचने लगा कि पूरे गाँव को साफ रखने वाले को हम गंदा कह रहे हैं उसको अछूत कह कर अपने पास भी नहीं आने देते और यह बात बालक दीन दयाल को अच्छी नहीं लगी।

अगले दिन बालक दीन दयाल अपना अग्रणी स्थान छोड़कर राम प्रसाद के पास जाकर बैठ गया। गुरुजी ने उसको वापस अपने स्थान पर आने को कहा परंतु बालक दीन दयाल ने कहा कि मैं आज से राम प्रसाद के साथ ही बैठूँगा, साथ पढ़ूँगा एवं इसके साथ ही खेलूँगा। यह बात पूरे गाँव मे फैल गयी, लोग तरह-तरह कि बातें करने लगे एवं बालक दीन दयाल के घर वालों पर दबाव बनाने लगे कि वह अपने बेटे को समझाये कि वह वर्षों से चली आ रही परम्परा को भंग न करे, पंडित कुल में जन्म लेकर अछूत लोगो के साथ न बैठे। घर के सभी लोगों ने बालक दीन दयाल को यह बात समझाने की पूरी कोशिश कि लेकिन वह तो इस छुआछूत को मानने को तैयार ही नहीं था। जब बात बहुत बढ़ गयी और गाँव के सभी उच्च लोगो को लगने लगा कि यह तो सरासर उनकी अवमानना है, और यह अवमानना उस अछूत भीकू के अछूत लड़के राम प्रसाद के कारण हो रही है तो लोगों ने इकठ्ठा होकर स्कूल मे गुरुजी पर दबाव डाला कि राम प्रसाद को ही स्कूल से निकाल दिया जाए, न राम प्रसाद स्कूल में पढ़ने आएगा और न ही दीन दयाल इसके साथ बैठेगा। सबके दबाव के सामने गुरुजी को झुकना पड़ा और गुरुजी ने रामप्रसाद को स्कूल से निकाल दिया। बालक दीन दयाल को जब यह बात पता चली तो उसे बहुत दुख हुआ। राम प्रसाद पढ़ाई में भी होशियार था अतः बालक दीन दयाल को उसका इस तरह पढ़ाई से वंचित कर देना उचित नहीं लगा।

बालक दीन दयाल ने इसका विरोध करने का विचार किया। घर जाकर बालक दीन दयाल ने सबसे कह दिया कि मैं भी स्कूल नहीं जाऊंगा और जब तक राम प्रसाद को स्कूल में सबके साथ बैठ कर पढ़ने कि अनुमति नहीं मिलेगी मैं कुछ खाऊँगा भी नहीं। इस तरह बालक दीन दयाल ने शुरू कर दिया अपना अनशन एक ऐसे बच्चे के लिए जो पंक्ति में सबसे पीछे खड़ा था। घर के सभी लोग परेशान हो गए, बालक को मनाने की कोशिश करने लगे परंतु कोई हल नहीं निकला। बालक दीन दयाल अछूत बच्चे के साथ हुए अन्याय से बहुत दुखी था एवं उसको न्याय दिलवाना चाहता था। ये सब बातें उस बालक की आयु से बहुत बड़ी थी लेकिन थी विचारणीय। यह बात गाँव मे आग की तरह फैल गई, स्कूल मे गुरुजी को पता चला तो गुरुजी भी बालक को समझाने चले आए लेकिन दीन दयाल नहीं माना, उसका एक ही कहना था की राम प्रसाद को सब के साथ बैठ कर पढ़ने की अनुमति दी जाए। अगले दिन दूसरे बच्चे भी स्कूल नहीं गए रहे एवं आकर बालक दीन दयाल के पास ही बैठ गए। इन बच्चों ने भी स्कूल जाना बंद कर दिया एवं खाना भी छोड़ दिया। गाँव के सभी बच्चों को इस तरह अनशन करता देख लोगों को क्रोध आया एवं सभी लोग बालक दीन दयाल के घर वालों को भला-बुरा कहने लगे। उन लोगों ने भीकू को भी पकड़ कर डराया धमकाया और कहा हमारे बच्चे तेरे बच्चे के कारण बिगड़ रहे है अब तू जाकर बच्चों को समझा दे कि वे सब खाना खाएं और स्कूल जाना शुरू करें, अगर भूख से हमारे किसी बच्चे को कुछ हुआ हम तुझे और तेरे परिवार को इसकी कड़ी सजा देंगे एवं परिवार सहित तुझे गाँव से भी निकाल देंगे। भीकू ने आकर बालक दीन दयाल एवं दूसरे बच्चों को समझाने कि काफी कोशिश की और अपने लिए दया याचना भी की। उसने, उसकी बीवी एवं स्वयं राम प्रसाद ने छोटे-छोटे बच्चों के पैर भी पकड़े एवं यह कहकर कि अगर आप लोग अपना अनशन जारी रखेंगे तो मुझे परिवार सहित यह गाँव छोडकर जाना पड़ेगा, सभी बच्चों को मनाने की कोशिश की लेकिन बच्चे नहीं माने। बालक दीन दयाल ने भीकू से कहा की काका इन लोगों ने अगर आपको एवं आपके परिवार को इस गाँव से निकाला तो हम सब बच्चे भी आपके साथ चलेंगे और हम सब वंही रहेंगे जहां आपका परिवार रहेगा, यह बात सभी गाँव वाले और घर वाले भी सुन रहे थे। बच्चे अपनी जिद पर अड़े थे। बात को बिगड़ते देख सभी गाँव वालों ने आपस मे सोच विचार किया एवं फैसला लिया कि राम प्रसाद को स्कूल मे सब के साथ बैठ कर पढ़ने एवं खेलने कि अनुमति दे दो जाएगी। इस तरह बालक दीन दयाल ने अपने गाँव से छुआछूत हटाने का कार्य बचपन मे ही शुरू कर दिया था और यही बाद में अन्तोदया एक विचार बन गया कि पंक्ति मे सबसे पीछे खड़े होने वाले को भी विकास का लाभ मिले।

वेद प्रकाश त्यागी

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