भाई साहेब Girish Pankaj द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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भाई साहेब


भाई साहब

गिरीश पंकज


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भाई साहब

वह मुझे गेटविक एयरपोर्ट में मिली थी। हम दोनों को पोर्ट अॉॅफ स्पेन के लिए उडान भरनी थी। सुनीता ने मुझे देखा तो अपनी ओर से हाथ बढाते हुए परिचय दिया। वह अंग्रेज़ी बोल रही थी, लेकिन बीच बीच में हिंदी शब्दों का प्रयोग भी करती थी।

उसने अपना नाम सुनीता बताया था। वह भारतीय मूल की युवती थी। उसके पूर्वज डेढ सौ साल पहले गिरमिटिया मज़दूर बन कर दक्षिण अमरीकी देशों में भटकते रहे और अब त्रिनिडाड मे रहते हैं। सुनीता के चाचा सूरीनाम में बस गए हैं।

आप भारत से आ रहे हैं?

जी, और आप? मैं सुखद आश्चर्य के साथ लडकी को देख रहा था, ष्आपकी तारीफ?

मेरा नाम सुनीता राम है। मैं त्रिनिडाड में रहती हूँ। दिवाली नगर के पास और आप?

मैं महेश हूँ। दिल्ली में रहता हूँ। त्रिनिडाड जा रहा हूँ एक कवि सम्मेलन में।

ओह इसका मतलब है आप कवि हैं। अच्छा रहेगा आपके साथ दस घंटे का सफर मज़े से काट जाएगा?

काट जाएगा नहीं, कट जाएगा। बीत जाएगा?

ओह माफ कीजिएगा, मेरी हिंदी कमजोर सी है। थोरा थोरा समझती हूँ। अभी सीख रही हूँ। कोशिश करती हूँ लेकिन त्रिनिडाड में इतना अवसर नहीं मिलता। मजबूरी में इंग्लिश बोलना पडता है।

आप जितनी अच्छी हिंदी बोल रही हैं, उतनी अच्छी हिंदी तो हमारे यहाँ बहुत से हिंदी में एम.ए. करने वाले लोग भी नहीं बोलते।

बात करते करते गेटविक एयरपोर्ट आ पहुँचे। चेक इन किया और डयूटी फ्री शॉप के सामने पहुँच कर खडे हो गए। दो कॉफी का अॉॅर्डर सुनीता ने दिया। दो पौंड भी उसी ने पटाए। कॉफी पीते पीते मैंने और से देखा, सुनीता कहीं से भी वेस्ट इंडियन नहीं लग रही थी। लगती भी कैसे? है तो भारतीय मूल की। थोडी सी सांवली है। लेकिन नाक नक्श आकर्षित करने वाले हैं। सुनीता मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी। फिर बोली, ष्क्या देख रहे हैं? शायद सोच रहे होंगे कि किस ब्लैक गर्ल से पाला पड गया। यहाँ चारों तरफ गोरे गोरे चेहरे नजर आ रहे हैं।

मैंने कहा, ष्आप ब्लैक गर्ल नहीं, ब्लैक ब्यूटी हैं। हमारे यहाँ आप जैसी कोई लडकी दिख जाए तो लोग पागल हो जाएँ।

सुनीता इतनी भी खूबसूरत नहीं थी कि मुझे इतनी बडी बात बोलनी पडे। लेकिन तारी से वह और जीवंत बनी रहती। तारीफ से ऊर्जा मिलती है। ज्यादातर तारीफें झूठी होती हैं। बढा चढाकर की जाती है। सामने वाला भी गलतफहमी में जीना पसंद करता है। यह भी जीवन जीने की अपनी शैली है।

सुनीता जी, अपने बारे में तो कुछ बताइए। क्या कर रही हैं? घर में कौन कौन हैं?

मैं लंदन में एम .बी .ए .कर रही हूँ। पिता की खेती बाडी है। एक फैक्ट्री है। मां हाउस वाइफ है। भाई सूरीनाम में डॉक्टर है। एक छोटी सिस्टर है। अभी पढ रही है।

अच्छा है। छोटा परिवार सुखी परिवार।

आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइए।

मैं . . .क्या बताऊँ। बैंक में हिंदी अधिकारी हूँ। शादीशुदा हूँ। दो छोटे छोटे बच्चे हैं। दिल्ली के बसंत कुंज के फ्लैट में माता पिता साथ रहते हैं। पत्नी दिल्ली विकास प्राधिकरण में अधिकारी है।

मतलब आपका भी छोटा परिवार सुखी परिवार?

मैंने देखा, अब सुनीता के चेहरे पर हल्की सी उदासी नजर आने लगी थी। और वह उदासी छिपाने के लिए रह रहकर मुस्कराने की कोशिश कर रही थी।

क्यों क्या बात है, अचानक फूल सा चेहरा उदास क्यों नजर आने लगा है?

ऐसी कोई बात नहीं, बस घर की याद आ रही है, इसलिए . . .

मुझे लगता है, कुछ और बात है, तुम कुछ छिपा रही हो? सच सच बताओ, तुम्हें मेरी कसम!

इतना बोलकर मैंने सुनीता का हाथ पकड लिया। बस उसकी आँखें भर आईं।

एक बार फिर मेरा सपना टूट गया, इसलिए उदास हो गयी हूँ।

कैसा सपना?

सच बोल दूँ? सुनीता ने मेरी ओर एकटक निहारते हुए कहा, मैं चाहती हूँ कि किसी इंडियन लडके से शादी करूँ और इंडिया में ही कहीं बस जाऊँ। मेरे पूर्वज बिहार से यहाँ आए थे। बिहार का भी कोई लडका मिल जाता। बिहार का न सही, भारत का हो, बस। लेकिन लगता है, यह इच्छा अधूरी रह जाएगी। आपको देखकर सोचा था, आप बेचलर होंगे। लेकिन...

मैंने माफक करने की गरज से यों ही कह दिया अगर आप कहें तो तलाक ले लूँ? सोच लो?

मेरी बात सुनकर सुनीता उदास चेहरा लिए हँस पडी, ना बाबा ना! ऐसा सोचना भी पाप है। अपनी खुशियों के लिए दूसरे का घर उजाड़ना ठीक नहीं है। भले ही मैं मॉडर्न सोसाइटी में रहती हूँ। लेकिन मुझे अपनी जातें पता है। देश छोड दिया तो क्या, हमने अपनी संस्कृति तो नहीं छोडी है। हमारे परदादा अपने साथ रामचरित मानस लेकर यहाँ आए थे। मैंने उसे पढा तो नहीं है, लेकिन उसकी चर्चा सुनती रहती हूँ। वह कितना ग्रेट एपिक है। मैं इंडिया के बारे में सुनती रहती हूँ। सीता, सावित्री, अनुसूया, द्रौपदी, रानी दुर्गा एक से एक करेक्टर... देवियाँ। ऐसे महान देश को याद करती हूँ तो मन करता है इडिया में ही बसूँ। इसीलिए सोचती हूँ कि इंडियन लडके से मैरिज हो जाए, लेकिन हमारा कल्चर यह नहीं सिखाता कि अपने सुख के लिए दूसरों का घर उजाड दो। आपका सुखी जीवन मैं बर्बाद नहीं कर सकती।

मैंने तो बस यों ही मजाक कर दिया था। आपने तो इसे काफी सीरियस ले लिया। मैंने हँसते हुए कहा, खैर, विषय बदलते हैं। आप हिंदी फिल्में तो जरूर देखती होंगी। हिंदी गाने भी खूब सुनती होंगी।

हाँ, मुझे हिंदी गाने बहुत पसंद है। त्रिनिडाड में सात रेडियो स्टेशन हैं, इनमें से पाँच स्टेशन तो सुबह शाम हिंदी गाने ही बजाते रहते हैं। एक सिनेमा हॉल में तो अक्सर इंडियन मूवी लगती रहती है।

सुनीता फिर गंभीर हो गई थी। मैं भी बहुत देर तक चुप रहा। समय काफी हो चुका था। पोर्ट अॉॅफ स्पेन जाने वाला ब्रिटिश विमान काँच के पार साफ साफ दिखाई दे रहा था। एनाउंसमेंट भी शुरू हो चुका था। हमने अपने अपने बैग उठाए और विमान की तरफ बढ चले। सुनीता और हमारी सीटें इकॉनामी क्लास में थी। लेकिन अलग अलग। सुनीता ने मेरे बगल बैठे ब्रिटिश पैसेंजर से आग्रह किया कि वह उसकी सीट में चला जाए तो हम लोग एक साथ यात्रा कर सकेंगे। ब्रिटिश यात्री भला था। वह पता नहीं क्या सोचकर मुस्कुराया और ओक्के, नो प्रॉब्लम बोलकर उठ गया।

सुनीता खिडकी के सामने वाली सीट में बैठ गई। और मुस्कुराते हुए बाहर देखने लगी। फिर मुझसे बोली, खिडकी के पार देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है। ये हवाई जहाज जब पचपन हजार फुट ऊपर उडता है, तब तो और मजा आता है। खिडकी के बाहर जैसे एक माया लोक बनता है। सागर को देखो। बादलों को देखो, एक अनोखी दुनिया से रूबरू होते चले जाते हैं हम।

मैं समझ रहा था कि सुनीता टॉपिक बदल चुकी है। अब शादी वाली बात छेडना ही नहीं चाहती, लेकिन मुझे लग रहा था कि एक बार जिक्र छेडूँ। चाची का लडका है। वह भी अमरीका में पढ रहा है। दो चार साल बाद दिल्ली लौट आएगा। लेकिन बात शुरू करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

मैंने दूसरी बात शुरू की कभी दिल्ली आने का कार्यक्रम बनाओ न। ऐसे ही घूमने। मेरे ही घर आकर रुकना। पत्नी तुम्हें दिल्ली घुमा देगी। पास में आगरा है। ताजमहल भी देख लेना।

ताजमहल का नाम सुनकर सुनीता मुस्कुरा पडी इसे देखने की इच्छा है। मोहब्बत की निशानी है न। पता नहीं कब मौका लगे। बहुत इच्छा है इंडिया घूमने की। लेकिन सपने सपने ही रह जाते हैं। सपने टूटने के लिए ही बनते हैं शायद। लेकिन कभी न कभी जरूर आऊँगी।

बहुत देर तक बातें होती रही। मैंने देखा सुनीता जमुहाई ले रही है। अब मैं खामोश हो गया। थोडी देर बाद सुनीता नींद की आगोश में थी। वह घंटों सोती रही। बीच बीच में वह आँखें खोलकर मेरी तरफ देखती और मुस्कुरा देती। मैं भी मुस्कुरा कर जवाब दे देता।

दस घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला। मेरा पूरा समय नीले सागर को देख देखकर कट गया।

पोर्ट अॉॅफ स्पेन में जब हवाई जहाज उतरा तो शाम हो चुकी थी। मैंने कहा चलो, मेरे साथ युनिवर्सिटी। वहाँ फंक्शन है। उसे अटेंड कर लेना।

सुनीता बोली नहीं, मैं सीधे घर जाऊँगी, भाई साहब। मम्मी डैडी इंतजार कर रहे होंगे। टाइम मिले तो कल घर आइए। हम सबको अच्छा लगेगा।

सुनीता ने अपने घर का पता मेरी ओर बता दिया। विजिटिंग कार्ड पर नाम लिखा था राम कुटीर। यह पढकर बेहद खुशी हुई। इससे भी जयादा खुशी इस बात पर हुई कि सुनीता ने मुझे भाई साहब कह कर संबोधित किया था। मैं रोमांचित हो रहा था। मैंने मुस्कुराते हुए सुनीता का कंधा थपथपाया जरूर आऊँगा। आपके घर आना मुझे अपने घर आने की तरह लगेगा।

चेक आउट करके हम लोग साथ साथ ही बाहर आए। एयरपोर्ट पर सन्नाटा पसरा हुआ था। चारों तरफ मोटे तगडे काले साँवले वेस्ट इंडियनों का देखकर भय लग रहा था। उनकी अंग्रेजी ठीक से पल्ले नहीं पड रही थी। फिर भी मैं टूटी फूटी अंग्रेजी में उन तक अपनी बात पहुँचा सकता था। लेकिन मेरी मुश्किल हल कर दी सुनीता ने। एक टैक्सी ड्राइवर को पास बुलाया। उसका नाम सुखराम था। लेकिन वह हिंदी नहीं बोल सकता था। सुनीता ने उससे अंग्रेजी में ही बात की और कहा इन साहब को युनिवर्सिटी अॉॅफ वेस्ट इंडीया के कैम्पस में पहुँचा देना। जयादा किराया मत लेना। ये हमारे इंडियन गेस्ट हैं।

मैं टैक्सी में बैठ गया। बैठने के पहले सुनीता ने हाथ मिलाया और कहा ष्ओके भाई साहब, अपना ध्यान रखना और टाइम मिले तो घर जरूर आना।

जरूर आऊँगा।

टैक्सी आगे बढ गई। मैंने पलट कर देखा, सुनीता बहुत देर तक हाथ हिलाती रही। शायद तब तक जब तक टैक्सी आँखों से ओझल नहीं हुई।