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मुंह में चुटकीभर शक़्कर

मुंह में चुटकीभर शक़्कर


ज़ख्मी शेर काफी खूंखार हो जाता है। उसी तरह पराजित दल और उसके हारे हुए प्रत्याशी भी पगला जाते है । उनकी हरकतें देखने लायक रहती हैं। हरकतें ऐसी कि टिकट लगा कर दिखाई जायें तो सरकार की अच्छी खासी कमाई हो जाए। यह पारम्परिक सत्य है कि जो जीतता है वह सिकंदर हो जाता है और जो हारता है वह चुकंदर हो जाता है, और कुछ दिनों के बाद कटखना बदंर हो जाता है। वह उछलकूद करके आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करने लगता है। वह खिसियानी बिल्ली की तरह खम्भा भी नोंचने लगता है। हारा आदमी नेता और कुछ नहीं तो हरे राम.. हरे राम तक जपने लगता है। कुल मिलाकर हारा हुआ नेता कुछ भी कर सकता है। यह उसकी तासीर पर निर्भर करता है कि वह क्या करे, क्या न करे।
हारे हुए नेता को आप गौर से देखिए। वह बड़बड़ा रहा होता है। जैसे दौरा पड़ा हो। कान लगाकर सुनने की कोशिश कीजिए, तो कुछ शब्द आपको सुनाई पड़ेंगे, जैसे- 'मेरे साथ धोखा हुआ है... एक-एक से निपट लूँगा... चुनाव में धाँधली हुई है... मतगणना गलत हुई है... चुनावी आचार संहिता का पालन नहीं हुआ है... इसमें गड़बड़ी हुई है... उसमें गड़बड़ी हुई है।.ऐसा नहीं होना था... वैसा नहीं होना था... इसकी जाँच हो... उसकी जाँच हो। ये हो... वो हो... कुछ न कुछ हो।'
यही विपक्ष का पुनीत धर्म है कि वह कुछ न कुछ आरोप लगाकर सुर्खियों में बना रहे। हारने के बाद और कुछ करना भी तो शेष नहीं रह जाता। करें भी क्या। नीतिगत निर्णय ले नहीं सकते। कोई महत्वपूर्ण घोषणा कर नहीं सकते। किसी बड़ी जन समस्या का समाधान कर नहीं सकते। सत्ता हाथ में हो तब तो कुछ करें न! अब सत्ता है नहीं, हाथ खाली तो क्या किया जाए? नारे लगाओ- ''सत्ता पक्ष हाय-हाय! हमारी माँगें पूरी हो, चाहे जो मजबूरी हो। जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है।''
विपक्ष की नारेबाजी सुनकर एक सज्जन ने पूछा- ''क्यों भई, सरकार को बने तो अभी चार दिन भी नहीं हुए और आप सरकार को निकम्मा साबित करके इसे बदलने की मांग क्यों कर रहे हैं ? क्या फिर से चुनाव कराने का इरादा है ?'' विपक्षी नेता बोले-''हमारा बस चले तो हम चाहेंगे फिर से चुनाव हो जाए। शायद इस बार जोड़-तोड़ करके हम जीतने में सफल हो जाएँ। फिर भाई साहब, 'यह सरकार निकम्मी है' वाला नारा तो पूरे पाँच साल तक चलाना है। 'गोयबल्स' हमारा मार्गदर्शक है। उसने वर्षों पहले कभी कहा था एक झूठ को बार-बार दुहराओ तो वह सच समझा जाने लगता है। हम जनता के बीच सरकार को निकम्मा कहते रहेंगे और एक दिन ऐसा आएगा, जनता मान ही लेगी कि सरकार निकम्मी है।
इस बीच सरकार की हरकतें भी रहेंगी निकम्मों की तरह। यह तो सरकार का चरित्र है। भाषण-वादे धुआँधार करो और काम-धाम कुछ नहीं। हम लोग सरकार में थे, तो हम लोग भी यही करते थे। हर सरकार यही करती है। यह सरकार भी ऐसा करेगी। एक दिन हमारा आरोप सच साबित होगा और पाँच साल बाद जब चुनाव होंगे, हमारा निकम्मा वाला आरोप सरकार को पलटाने में काम आ जाएगा।''
हारे हुए विपक्षी नेता के सपने देखकर सज्जन हँसने लगे। बोले- 'नेता जी संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।' विपक्षी नेता हौसले से भर गया। फिर अचानक दुखी होकर बोला- ''भैया अब तो पाँच साल तक संघर्ष ही तो करना है। कभी डंडे खाएँगे, कभी जेल जाएँगे, कभी धरना देंगे। कुल जमा यह कि हमें वह सब कुछ करना है जो किसी भी हारे हुए विपक्ष की नियति होती है।''
विपक्षी नेता की पीड़ा सज्जन से देखी न गयी। वह बोले-'' धीरज धरो। पाँच साल तो यूँ ही बीत जाएँगे। भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं।''

नेता जी गदगद -''आपके मुँह में चुटकी भर शक्कर।'' सज्जन ने चुटकी भर शक्कर ही स्वीकार कर ली ।

पराजित नेता चुटकी भर शक्कर की बात कर रहा है, मतलब बड़ी बात है क्योंकि किलो भर शक्क र तो जीता हुआ नेता ही खिला सकता है।

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