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महंगाई का अट्टहास

महंगाई का अट्टहास

चौराहे पर महंगाई अट्टहास कर रही थी और कुछ लोग बुडबक की तरह उसे देख रहे थे. वो पगली की तरह हंसी जा रही थी. बहुत देर हो गयी, तो पास ही खड़े विवेक ने उसे शांत करते हुए कहा-- ''अरे, मान लिया कि कोई भी तुम्हारा बाल-बांका नहीं कर सकता तो इसमें खी -खी करके हंसने की क्या बात है?''

महँगाई बोली- ''काहे न हँसूँ ? मैं तो हँसूंगी। लोग मेरी आड़ ले कर कुर्सी पा जाते है. जो आता है, मुझे कोसता है और विशवास दिलाता है कि 'जैसे ही हम आएंगे, महंगाई डायन को भगा देंगे.बिलकुल सात समंदर पार', वोटर - बोले तो सीधा-सादा जीव - झांसे में आ कर वोट दे देता है. मगर मैं वादा करने वाले को उनकी औकात दिखा देती हूँ और उनके कुर्सी पर काबिज होते ही फिर अपना आकार बढ़ा देती हूँ। अगर तुलसीदास जी आज होते न तो सुरसा नहीं, मेरे बारे में कुछ इस तरह की चौपाइयां लिखते कि ''जस-जस वादा सम्मुख आवा, महंगाई ने बदन बढावा''... महँगाई से पार न पाते, चारोखाने चित हो जाते....जब तक सच्चा राम न आए, महंगाई को रोक न पाए'...कैसी यह महंगाई डायन, समझ न आये तेरा रसायन..'. तो, हमसे जो टकराएगा, फ़ौरन मुंह की खायेगा।''

निराशकुमार हाथ जोड़ कर बोला, '' अरी ललित पवार (हिंदी फिल्मो की एक पुरानी खलनायिका) तू अमरीका काहे नहीं चली जाती, या फिर चीन. क्यों इस देश की गरीब जनता को परेशान करती रहती है? कब आयेगा वो दिन, जब हम तेरे पंजे से मुक्त होंगे?''

महंगाई बोली- ''वो दिन कभी नहीं आएगा जब मैं गाऊंगी 'सायोनारा, सायोनारा, कल फिर आऊँगी सायोनारा', मेरा तो स्थाई गीत है, 'तू जहां-जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा' इसलिए ट्रेन में, बाजार में, धरती पर, आकाश में, हर कहीं मैं ही मैं नज़र आऊँगी, भगवान के बाद केवल मैं सर्वव्यापी हूँ. समझे न?''

निराशकुमार बोला, ''सचमुच तुम्हारे नाम से ही कंपकंपी छूटने लगती है. तुम पहले तो नहीं थी, अचानक कहाँ से टपक पडी माते?''

महंगाई ने मुस्कराते हुए कहा, ''वैरी सिंपल, जब से इस देश के नेता देश को लूटने में लगे, तभी से मैंने अपने लिए जगह बना ली. मैं पहले भी थी, मगर जैसे ही मैं हरकत में आती थी, देश के ईमानदार नेता एक घुड़की देते थे और मैं खामोश हो कर बैठ जाती थी, मगर अब तो बल्ले-बल्ले।एक से एक 'करप्ट' - समझ रहे हो न भ्रष्ट - नेता आ गए है. कोई इस व्यापारी के साथ सांठगांठ कर रहा है, कोई उस उद्योगपति से सेटिंग कर रहा है. कोई जमाखोरों का दलाल है, कोई लुटेरो के पक्ष में कानून बना रहा है, मुझे तो मौक़ा मिलेगा ही न। बस, सतना शुरू कर देती हूँ।''

विवेककुमार बोला, ''आज तू भले ही अट्टहास कर ले मगर कल तुझे बेमौत मरना होगा, जब ईमानदार लोग सत्ता में आएंगे न, तेरी छुट्टी कर देंगे, हाँ.''

यह सुन कर महंगाई भयानक जोर से हंस पडी, और बोली, '' कितने भोले और मासूम है इस देश के लोग, बेचारे, किस्मत के मारे, कितना अच्छा सपना देखते है, वो भी दिन मे. अरे, मेरी छुट्टी हो जाएगी? मेरी? हा हा हा. मेरी छुट्टी हो जाएगी, तो इस देश का विपक्ष क्या करेगा? भूखे नहीं मर जायेगा? महंगाई ही तो उनको एक खुराक देती है. जब तक विपक्ष में रहता है मेरे खिलाफ ही तो जनता को भड़काते रहता है कि 'देखो, सरकार महंगाई पर कंट्रोल नहीं कर रही है. देखो, महगाई डायन बढ़ती जा रही है, हम लोग जब आएंगे महंगाई को रहेंगे', तो बच्चो, महंगाई तो एक हथियार है, एक सीढ़ी है जिसके सहारे लोग सत्ता पा जाते है। विपक्ष को भी पता रहता है कि मुझसे वो पार नहीं पा सकता लेकिन मुझे कोस -कोस कर कुर्सी हथिया लेता है. हर बार यही होता है इसलिए मैं मस्त रहती हूँ, नाचती-गाती हूँ. 'पंछी बनू उड़ती फिरू मस्त गगन में आज मैं आज़ाद हूँ दुनिया के चमन में'' मेरा गाना सुन कर कुरसी कहती है ''हिल्लोरी …ह्ल्लोरी।''.

इतना बोल कर महंगाई डायन सचमुच उड़ गई और...मेरा सुंदर सपना टूट गया.

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