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हमसे पंगा मत लेना

हमसे पंगा मत लेना

वह लेखक संयोग से विद्रोही किस्म का था, वरना आजकल ऐसी नस्ल मिलती कहाँ है? आजकल मनोरंजनप्रधान लेखक पाए जाने लगे हैं, लेकिन वो लेखक 'कबीर' और 'निराला'वगैरह को भूलवश पढ़ गया था. तब से उसके लेखन की चाल ही बदल गयी थी. उसी शहर में रहने वाले एक नेताजी उसके ठीक उलट थे. यानी वे बिलकुल उसी टाइप के नेता थे, जैसे अक्सर पाये जाते हैं, 'देख लूँगा', ''निपटा दूंगा' वालीशैली के.
लेखक जब भी कुछ अच्छा लिखता, नेताजी को पता नहीं क्यों बड़ा बुरा लगता। एक दिन लेखक ने लिखा, ''हमारे शहर में एक झूठा आदमी रहता है. वह बड़ा ही खतरनाक है. कब किसे निबटा दे, पल्टा दे, कहा नहीं जा सकता। ''
नेताजी भड़क गए. फ़ौरन लेखक के घर जा पहुँचे और बोले, ''क्यों भोले, आज तुमने फिर मेरे बारे में लिख मारा ? देखो मिस्टर, तुम हद से आगे जा रहे हो. सुधर जाओ, वरना निबटा दूंगा। तुम मुझे नहीं जानते। मुझसे पंगा मत लेना वरना शहर में दंगा हो जायेगा।''
लेखक चौंका, ''आपके खिलाफ क्या लिख दिया जी ? मैंने तो एक झूठे आदमी की कथा कही थी? आप तो शायद सज्जन नेता हैं, फिर अपने ऊपर क्यों ले रहे हैं? आप वैसे तो हैं नहीं हैं ?''
नेताजी कुटिल मुस्कान के साथ बोले, ''हम क्या हैं, वो हम अच्छे-से जानते हैं. तुम मुझे ही गाली दे रहे हो?'' लेखक ने कहा, ''ऐसा कैसे कह सकते हैं आप? ज़रा मुझे भी समझाइये न? मैंने तो आपका नाम ही नहीं लिया''. नेताजी बोले, ''तुमने लिखा है कि शहर में एक झूठा आदमी रहता है. वह बड़ा ही खतरनाक है. कब किसे निबटा दे, पलटा दे, कहा नहीं जा सकता।'' लेखक बोला, ''तो क्या आप ऐसे ही हैं?'' नेताजी हड़बड़ा गये,'' न..न. नहीं। मैं ऐसा नहीं हूँ, लेकिन लगता है इशारा मेरी तरफ है. .''

लेखक मुस्कराया, ''तब फिर क्यों टेंशन पाल रहे है. मुझ गरीब पर कीचड़ उछाल रहे हैं? हो सकता है ये इशारा आपके विपक्षी की तरफ हो?''
नेताजी गंभीर हो कर बोले,''हौ, जे बात भी सही है. लेकिन मुझे लगता है तुमने मुझ पर लिखा है. देखो, मैं सब समझता हूँ. तुम वकील की तरह तर्क मत करो और मेरा कहा मानो। अंट-शंट मत लिखा करो. यार, तुम चुटकुल्ले-फुट्कुल्ले क्यों नहीं लिखते? उसे पढ़ कर मज़ा भी आता है. बुरा भी नहीं लगता। ऐसा लिखने वाले सम्मान भी पाते है. तुम भी वैसा लिखा करो, तुम्हारी बल्ले-बल्ले हो जायेगी. तुम्हारा सम्मान करा दूँगा . मैंने देखा है, तुमको कोई घास भी नहीं डालता।''

लेखक हंस कर बोला, ''शेर घास नहीं खाता न इसलिए । मुझे घास की ज़रुरत नहीं। मै सच लिखता हूँ. लोगों को आईना दिखता हूँ.''

नेताजी बोले, ''लगता है तुमको अपनी जान प्यारी नहीं है? मेरा मतलब ये हैं कि जो सच-सच कहता है, वो मारा जाता है या 'अन्दर' करा दिया जाता है इसलिए तुम ऐसा कुछ मत करो. वरना।''

लेखक बोला, ''आप धमकी दे रहे? मैं डरने वाला नहीं। एक दिन तो सबको मरना है.''
नेता समझ गया कि लेखक सिरफिरा है. नहीं मानेगा. इसे सबक सिखाना ही पड़ेगा।

नेताजी बोले, ''ठीक है. चलता हूँ. समझ गया कि तुम सुधरने से रहे. अब मुझे उंगली टेढ़ी करनी होगी।''
लेखक भी पंगा लेने के मूड में था, बोला, ''नेताजी देखिये, ये वाक्य आपको पसंद आयेगा, 'एक नेता था और वो चोर नहीं था'. ये तो चलेगा न? मैंने साफ-साफ लिखा है कि नेता था, मगर चोर नहीं था.''

नेताजी कुटिल मुस्कान के साथ बोले, ''सब समझता हूँ कि तुम कहना चाहते है कि नेता चोर होते हैं. अब तो तुम्हारा कुछ-न-कुछ बंदोबस्त करना ही पड़ेगा।''

नेताजी गुस्से में भड़कते हुए चले गए. लेखक ने मुस्कराते हुए अपना वाक्य पूरा किया, ''एक नेता था, वो चोर नहीं था. लोग उसे डकैत मानते थे.लोग उनसे पंगा लेने से डरते थे''

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