गले को विश्राम मिला
नेताजी के बारे में लोग अब बोलने लगे है कि ये शख्स बोलता ही क्यों है?
इधर बोला नहीं कि उधर विवाद शुरू। लेकिन नेताजी का दिल है कि मानता नहीं, लगे रहते हैं मुन्नाभाई की तरह. जबरन बोलने की ऐसी बीमारी लगी है कि मत पूछिए। वैसे मीडिया को भी मज़ा आता है, उनसे कुछ-न-कुछ उगलवा लो, और कुछ दिन तक मज़ा लेते रहो. नेताजी भी अपनी इस प्रतिभा को समझ गए है. इसलिए बीच-बीच में अंट-शंट बोल देते है.
इधर नेताजी कुछ बोले, उधर मीडिया की दुकान जमी. शाम को दो-चार टीवी चैनल नेती जी की बात को पकड़ कर बहस शुरू कर देते है कि उन्होंने ऐसा कहा तो क्यों कहा.कई बार ऐसा भी हुआ कि नेताजी कुछ दिन खामोश रहे तो किसी मीडिया वाले ने ही फोन कर के याद दिलाया कि
''सर, कुछ बयान तो दीजिये, ऐसे मौन रहेंगे तो हम लोगो की रोजी-रोटी कैसे चलेगी?'' हमारी टीआरपी का सवाल है'.
चैनल के चक्कर में नेताजी घनचक्कर बनकर अंट-शंट बोलते रहे और पार्टी बेचारी 'बैकफुट' पर जाती रही.
आखिर एक दिन पार्टी को आत्मज्ञान हुआ की पार्टी के ग्राफ गिराने का असली कारण क्या है.
हाई कमान ने नेताजी को फ़ौरन बुलाया और कहा - ''आपसे अनुरोध है कि अपना मुंह बंद रखा करें.''
निर्देश को सुन कर नेता जी उखड गए, ''ये कैसे हो सकता है? मैं पार्टी का प्रवक्ता हूँ। आपने ही बनाया है. हम तो बोलूंगा''
हाईकमान मुस्काया, ''आप प्रवक्ता हैं नहीं, थे. हम लोगों ने तय किया है कि आपको कोई दूसरी बड़ी ज़िम्मेदारी दी जाएगी. अब प्रवक्ता पद पर ''कखजी' को दे दिया गया है.''
नेता जी ने कहा, ''लेकिन वो तो मुझसे भी बड़ा बकर है. उससे पार्टी को ज़्यादा नुकसान होगा ।''
हाईकमान ने नेताजी की बात पकड़ ली, ''मतलब आप ये मानते है कि आपके कारण पार्टी को नुकसान तो हुआ है?''
नेता जी को काटो तो पानी नहीं (कहावत है 'काटो तो खून नहीं', मगर अब खून पानी हो गया है),
वे चुप हो गए, आकाश की तरफ निहारते रहे. फिर बोले, ''ठीक है, मेरा नया काम क्या है?''
हाईकमान ने कहा, ''काम यही है कि आप घर पर आराम से बैठे और आत्ममंथन करें की हम पार्टी को आगे कैसे ले जाएँ। ''
नेता जी समझ गए की उनकी बयानबाज़ियाँ उनको ले डूबी,
वे धीरे से बोले, ''आपकी बातो से लग रहा है कि मुझसे बड़ी गलती हुयी, जब -जब मैंने कुछ कहा, पार्टी के वोट कम होते गए, मुझे लगता था कि उत्तेजित हो कर, जोर-जोर से बोलने से जनता पर असर होता है, लेकिन यहां तो उलटा हो गया. अब से ध्यान रखूंगा.''
हाईकमान ने सर थामते हुए कहा, ''पहले ही ध्यान रख लेते तो पार्टी की बुरी हालत न होती. खैर, देखते है अब ''कखगजी' क्या गुल खिलाते हैं. अभी तो आप आराम फरमाएं। अपने गले को विश्राम दें।''
नतीजे ने उस दिन तीसरी कसम खाई कि अब मौन ही रहेंगे।