वह बुद्धू लड़का
हीरापुर गाँव में ज्यादातर गरीब किसान रहते थे . गाँव न ज्यादा छोटा न ज्यादा बड़ा था . करीब 800 लोग उस गाँव में रहते थे . उस गाँव में एक सरकारी मिडिल स्कूल था जहाँ अधिकतर गरीबों के बच्चे पढ़ा करते थे . गाँव से कुछ दूर एक कस्बा था जहाँ एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल था वहां पैसे वालों के बच्चे पढ़ा करते थे .
उस गाँव के स्कूल में सातवीं कक्षा में एक ग़रीब का बेटा रामू भी पढता था . वह पढ़ने लिखने में बहुत कमजोर था इसलिए ज्यादातर बच्चे और स्कूल मास्टर भी उसे बुद्धू कहा करते थे . अक्सर स्कूल के मास्टर से उसे काफी ताने और डांट सुनने को मिलती . दरअसल रामू के पिता कस्बे के किसी गैरेज में मैकेनिक का काम करते थे . छुट्टी के दिनों में रामू भी अक्सर वहां जाया करता और उनके काम को ध्यान से देखता था . रामू अपने पिता का खाना पहुंचाने भी जाया करता क्योंकि उसका स्कूल दोपहर में एक बजे बंद हो जाता था . इस तरह पिता को देख कर उसने भी कार के बारे में कुछ तकनीकी जानकारी हासिल कर ली था .
दो दिनों के बाद स्कूल में शिक्षा मंत्री के आने का कार्यक्रम था . मंत्री के विजिट के पहले जिला के शिक्षा पदाधिकारी ने स्वयं गाँव जा कर स्कूल के प्रिंसिपल और अन्य शिक्षकों और विद्यार्थियों से मिल कर मंत्रीजी के दौरे के लिए तैयारी का जायजा लेते हुए कहा “ आप लोगों ने अपने विद्यार्थियों को तैयार कर दिया है न ? सम्भव है मंत्रीजी अचानक किसी छात्र से पाठ्यक्रम से कुछ प्रश्न कर बैठें ? “
रामू के टीचर ने कहा “ मेरे क्लास में एक बेवक़ूफ़ लड़का है रामू . उसका कोई भरोसा नहीं है . हो सकता है कुछ उटपटांग बक दे .”
“ आप लोग जैसा ठीक समझें रामू को समझा दें . मुझे अभी हाई स्कूल का भी निरीक्षण करने जाना है . “ पदाधिकारी ने कहा और कुछ देर बाद वे वहां से चले गए
“ ठीक है , आप रामू को दो दिनों के लिए स्कूल आने से मना कर दें . उसे तो बिन मांगे मनचाही छुट्टी मिलेगी और वह यह सुन कर खुश होगा .” प्रिंसिपल साहब ने टीचर से कहा
रामू को तत्काल बुला कर स्कूल से दो दिनों के लिए छुट्टी दे दी गयी
उधर स्कूल से छुट्टी मिलने के बाद जब रामू अपने पिता का खाना ले कर गैरेज गया तब उसके पापा ने कहा “ अच्छा किया तुम जल्दी आ गए . मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है . मैं घर जा रहा हूँ . मालिक भी अभी यहाँ नहीं है . वह शाम तक आएगा . तुम उसके आने के बाद ही जाना .” इतना कह कर उसके पिता चले गए
उस दिन शिक्षा पदाधिकारी को गाँव के हाई स्कूल का भी निरीक्षण करना था . शिक्षा पदाधिकारी शाम को चार बजे अपनी कार से वापस जिला मुख्यालय जा रहे थे . कस्बे से कुछ दूर पहले उनकी कार ख़राब हो गयी . कार के ड्राइवर ने अपनी तरफ से कार स्टार्ट करने का पूरा प्रयास किया पर उसे सफलता नहीं मिली . तब ड्राइवर ने कहा “ सर , वो देखिये . पास में ही कुछ दूरी पर एक गैरेज है . मैं वहां से किसी मैकेनिक को बुला कर लाता हूँ . “
ड्राइवर ने गैरेज जा कर रामू से कहा “ यहाँ कोई मैकेनिक है ? “
“ सर जी अभी तो यहाँ सिर्फ मैं ही हूँ . क्या बात है ? कहें , हो सकता है मैं कुछ काम आऊं . “ रामू ने कहा
“ मेरे साहब की कार बंद हो गयी है . मैंने पूरी कोशिश की पर स्टार्ट नहीं हुआ . “ कुछ दूर खड़ी कार की तरफ इशारा कर ड्राइवर ने कहा
“ आप कहें तब मैं आपके साथ चल कर प्रयास कर सकता हूँ . “
“ तुम यहाँ काम करते हो ? “
“ नहीं , मेरे पापा यहाँ काम करते हैं . मालिक भी शहर गए हैं , देर शाम तक आएंगे पापा की तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए उन्होंने मालिक के आने तक मुझे रुकने को कहा है . “
“ तुम्हें कुछ आता भी है ? “
“ इस बारे में मैं क्या कहूँ ? मैं निश्चित तौर पर कुछ कह नहीं सकता हूँ पर पापा को काम करते देख कर उन से कुछ सीखने का प्रयास किया है . आप कहें तो मैं आपके साथ चल सकता हूँ . “
“ ठीक है , तुम चलो मेरे साथ . “
रामू ने दो तीन औजार लिए और ड्राइवर के साथ कार के पास गया . उसने ड्राइवर को कार स्टार्ट करने को कहा पर कार स्टार्ट नहीं हुई . तब उसने बोनट खोल कर जाँच की . ईंधन फ़िल्टर जाम होने के चलते कार की इंजन तक पेट्रोल नहीं पहुँच रहा था . उसने फ़िल्टर साफ कर दुबारा फिट किया और कहा “ अब आप कार स्टार्ट करें . “
कार तुरंत स्टार्ट हुई . पदाधिकारी ने रामू को रुपये दिए . तब तक गैरेज का मालिक भी वहां पहुँच गया . रामू ने रुपये मालिक को देना चाहा तो उसने रुपये लौटाते हुए कहा “ मैं नहीं जानता था कि पापा के साथ तुमने भी काम सीख लिया है . ये रुपये तुम्हारे हैं , इन्हें तुम ही रखो . “
घर आ कर रामू ने यह कहानी पापा को सुनाई . अगले दिन रामू ने पापा से कहा “ मैं भी आपके साथ चलता हूँ . “
“ क्यों , स्कूल नहीं जाना है . “ पापा ने पूछा
“ नहीं मुझे आज स्कूल से छुट्टी मिली है . “ बोल कर उसने इसका कारण बताया तब पापा ने कहा “ बेटा पढ़ाई में भी मन लगाया करो . “
दूसरे दिन मंत्रीजी और पदाधिकारी कार से स्कूल इंस्पेक्शन के लिए जा रहे थे . इत्तफ़ाक़ से उनकी कार भी उसी गैरेज के पास बंद हो गयी . उस दिन पापा के साथ रामू भी कार के पास गया . कार के इंजन और अन्य पुर्जों आदि की जाँच कर रामू ने खुद कार को ठीक कर दिया . पदाधिकारी ने मंत्री को बताया कि उसकी कार को भी रामू ने ही ठीक किया था .
मंत्री ने खुश हो कर कहा “ तुम्हारा नाम क्या है ? तुम पढ़ने नहीं जा कर गैरेज में काम करते हो . अभी तुम्हारी उम्र पढ़ने लिखने की है . “
“ मेरा नाम रामू है और इसी गाँव के स्कूल में पढता हूँ . मैं पढ़ने में कमजोर हूँ और मुझे टीचर और छात्र सभी बुद्धू कहते हैं . इसलिए मंत्रीजी के दौरे के चलते स्कूल नहीं आने को कहा गया है . “
मंत्री ने कहा “ तुम आगे ड्राइवर के पास बैठ कर मेरे साथ स्कूल चलो . “
मंत्री और शिक्षा पदाधिकारी के साथ रामू को देख कर स्कूल के टीचर और विद्यार्थियों को आश्चर्य हुआ . प्रिंसिपल ने कहा “ सर यह बुद्धू आपलोगों को कहाँ मिल गया . “
“ यह बुद्धू नहीं है . यह पढ़ाई में कमजोर जरूर है पर इसके लिए बहुत हद तक टीचर जिम्मेदार हैं . यह बहुत प्रतिभाशाली बालक है . इसकी पढ़ाई पर आपलोग ज्यादा ध्यान दें . “
फिर मंत्री ने रामू से कहा “ तुम मन लगा कर पढ़ो . बारहवीं के बाद तुम आगे डिप्लोमा , डिग्री या जिस ट्रेड में तुम्हारा मन लगता हो उस में आगे बढ़ने का प्रयास करना . तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी . “
फिर मंत्रीजी ने अपने भाषण में कहा “ कोई जरूरी नहीं कि सभी विद्यार्थी डॉक्टर , इंजीनियर आदि ही बनें . समाज को उनके अलावे अन्य ट्रेड के लोगों की भी जरूरत है . व्यावहारिक ज्ञान और जीवन में सफलता सिर्फ स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम या सिलेबस तक सीमित नहीं है . जिस काम में रूचि हो बच्चों का भविष्य उसी दिशा में बेहतर है . “
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नोट - यह एक काल्पनिक लघु कथा है