मुनस्यारी( उत्तराखंड) यात्रा: महेश रौतेला द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुनस्यारी( उत्तराखंड) यात्रा:

मुनस्यारी( उत्तराखंड) यात्रा:

ऊँचे पर्वतों से बीच-बीच में बात करने को मन करता है। हिमालय देखने के लिए मन चाहिए, गगनचुम्बी। बंगाल के बहुत पर्यटक दिख रहे हैं। जागेश्वर में देवदार वृक्ष नहीं कटे हैं यह देखकर अच्छा लगा। कहा जाता है आस्था उनकी तुलना शिवजी की जटाओं से करती है। मेरे विचार से जो रास्ता मन्दिर तक अभी जाता है वह पर्याप्त है आस्तिकों के लिए। कुछ महिनों पहले चर्चा थी कि सड़क चौड़ी करने के लिए एक हजार देवदार पेड़ों को काटने के लिए चिह्नित किया गया है। स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। लोगों ने "एक्स" पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को लिखा भी था। एक स्थायी शान्ति वहाँ पर मिलती है, आस्था और प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण। लगभग १२४ छोटे-बड़े मन्दिरों के बीच आप अपनी अनुभूतियां जगा सकते हैं।  कसारदेवी क्षेत्र को विशिष्ट चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है ऐसे क्षेत्र पृथ्वी में केवल तीन हैं। माँ दुर्गा अपने एकरूप में यहाँ स्थापित है। मन्दिर विशाल पत्थर पर बना है।

कौसानी में दो महिलाएं घास ले जा रही थीं,सिर पर रखकर। उसमें से एक महिला ने कहा,"पहाड़क जीवन यसै हय पै!" मैंने कहा," बचपन में हमने भी ये सभी काम किये हैं।" फिर वह बोली फिर तुम भ्यार न्है गनाला!( फिर तुम बारह चले गये होगे!) मैंने कहा ,"होय"(हाँ)।--

"जन्म पहले से है

मृत्यु भी पहले से है,

बचपन,यौवन,बुढ़ापा उनसे निकल

घरों के आसपास रहते हैं।

झील की मछलियां

किनारे आती हैं,

नाव का नाविक

कुछ कहता रोजगार पर

उसे भी भय है बेरोजगारी का।

कौसानी की महिला

कह डालती है-

पहाड़ का जीवन "यसै हय पै"

उसके सामने हिमालय है

वह रोज का है,

उसके आसपास पहाड़ हैं

वे भी हर रोज के हैं,

घास की गठरी सिर पर रख

वह कहती है-

"पहाड़क जीवन यसै हय पै"

( पहाड़ का जीवन ऐसा ही हुआ)

मैं सोचता हूँ-

हाँ, श्रम में ही जीवन है

जन्म से मृत्यु तक।

सुबह नन्दादेवी आदि के दर्शन होते हैं। गरुड़ घाटी में धान कट चुके हैं।

कौसानी सुमित्रानन्दन पन्त जी का जन्मस्थान है। गाँधी जी यहाँ १४ दिन रहे थे, उन्होंने इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से की थी। ब्रिटिश महिला( बाद में भारतीय नागरिक) सरला देवी का आश्रम यहाँ है। हिमालय के दर्शन यहाँ से होते हैं। सुबह साफ दिखायी देने की संभावना होती है जैसे-जैसे दिन चढ़ता है बादल उसे घेरने लगते हैं।  पचास साल पहले बाजार सिमटा था आज विस्तृत लगता है। गरुड़ और टीट बाजार एक हो चुका है।

बैजनाथ मन्दिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। बागेश्वर मन्दिर शिवजी से जुड़ा है। और मालूशाही-राजुला के जन्म- वरदान से संदर्भित लोककथाओं में वर्णन मिलता है। कपकोट-भराड़ी का बाजार आपस में मिल चुका है। वहाँ गेठी की सब्जी के साथ किया नाश्ता भुलाये नहीं भूलता है, स्वादिष्ट। कार मोड़ों को पार करती सरपट दौड़ रही थी। बिर्थी झरना अपने सौन्दर्य को भरपूर छलका रहा था। सोचा लौटते समय यहाँ रूकेंगे। झरने की ऊँचाई लगभग १४० मीटर है। ऊँचाई पर कार का चलना स्तब्ध करता है। मुनस्यारी में खरस्यु ( स्थानीय नाम)के वृक्ष बहुतायत में हैं। ट्रेकिंग में विदेशी लोग भी दृष्टिगत हो रहे थे। वे वहाँ दो-तीन दिन विश्राम भी करते हैं। पंचाचूली आदि हिमालय की चोटियां सुबह सुनहरी से श्वेत होती दिख रही हैं। मनोरम दृश्य होता है। पंचाचूली को पांडवों के स्वर्गारोहण से जोड़ा जाता है। होम स्टे लोगों ने खोल रखे हैं। स्थानीय खाना एक दिन पहले बताने से उपलब्ध हो जाता है। शाम को मुनस्यारी बाजार घूमने निकला । रास्ते में बच्चे खेल रहे थे। उनके पास से गुजरा तो नमस्कार की प्रिय ध्वनि सुनायी दी। और मुझे अचम्भा भी हुआ। मैंने उनसे पूछा कितने में पढ़ते हो? वे बोले हम पाँच में हैं, ये कक्षा-६ में हैं। लड़के-लड़कियां लगभग बराबर थीं। एक पुलिस अधिकारी(सेवानिवृत्त) से सुबह भेंट हुयी। बोले मुनस्यारी में पैतृक आवास है और माँ के नाम पर होटल खोल रखा है। पहले दस कमरों का था अब बीस कमरों का बना दिया है। नैनीताल में दुकान है।भीमताल में भी जमीन ले रखी है। पत्नी नैनीताल में रहती है। -------