एक मुलाकात आँखों से
आपकी आँखें छोटी हैं पर काम बड़े करती हैं , बिना इनके जीवन अंधकारमय है . आँखों का विजन , देखने की शक्ति , का उम्र के साथ घटना एक सामान्य प्रक्रिया है . इसलिए समय समय पर आँखों का टेस्ट कराते रहना जरूरी है और यदि उपचार की जरूरत है तब डॉक्टर की सलाह का अनुकरण करें ताकि आँखों का सामान्यतः जरूरी विजन बना रहे .
एस्टिग्मेटिज्म ( Astigmatism ) - साधारण शब्दों में एस्टिग्मेटिज्म का मतलब है आँखों की कॉर्निया या लेंस का पूर्ण रूप से गोल न होना . आमतौर पर अधिकांश लोगों में कम या ज्यादा मात्रा में यह देखा जाता है . इसके चलते चीजें धुंधली दिखती हैं या सरदर्द या आईस्ट्रेन होता है .यह बचपन में भी हो सकता है . इसका सही कारण तो पता नहीं है पर यह अनुवांशिक हो सकता है या फिर आँखों में चोट लगने या किसी अन्य बिमारी या सर्जरी के चलते हो सकता है .इसकी जांच करवा कर इसका उपचार चश्मा , कांटेक्ट लेंस या सर्जरी से होसकता है .
35 वर्ष की उम्र से सतर्कता जरूरी - आमतौर पर 35 साल होते होते हमें प्रेज़बॉयोपिया ( presbyopia ) या हाइपरोपिया ( farsightedness ) होने लगता है यानि किताबें या समाचार पत्र के छोटे अक्षर पढ़ने में दिक़्क़त होती है .
नार्मल विजन - 20 / 20 विजन को नार्मल कहा जाता है . स्नेलेन या टम्ब्लिंग चार्ट पर जब कोई डॉक्टर हमारी आँखों का टेस्ट कर कहे कि आपका विजन 20 / 20 है तो इसका अर्थ यह हुआ कि हम चार्ट के अक्षरों की अंतिम पंक्ति 20 फ़ीट की दूरी से उतने ही ठीक से पढ़ सकते हैं जितना कोई नार्मल स्वस्थ आँखों वाला . इसे 6 / 6 भी कहा जाता है ( 6 मीटर = 20 फ़ीट ) . अगर हमारा विजन 20 / 40 है इसका मतलब जिस पंक्ति को हम 20 फ़ीट की दूरी से पढ़ सकते हैं उसे नार्मल विजन वाला व्यक्ति 40 फ़ीट की दूरी से पढ़ लेगा .
प्लस और माइनस पावर - 35 की उम्र के आसपास हमारी आँख का लेंस कठोर हो जाता है और इसके चारों ओर के मसल्स भी कमजोर हो जाते हैं जिसके चलते प्रेसबायोपिया होता है और नजदीक की चीजों पर आँखें ठीक से फोकस नहीं कर पाती हैं . ऐसे में उपरोक्त टेस्ट के बाद डॉक्टर हमें प्लस ( + ) लेंस या चश्मा लेने की सलाह देते हैं .
इसके अतिरिक्त कभी आँखें दूर की चीजें ठीक से नहीं देख पाती हैं जिसे मायोपिया ( shortsightedness ) कहते हैं . इसके चलते धुंधला दिखता है और सर दर्द करता है . मायोपिया में आँखों की पुतलियां नार्मल से बड़ी हो जाती हैं या कॉर्निया वक्र ( curve ) हो जाती हैं , तब डॉक्टर माइनस पावर के लेंस की सलाह देते हैं .
अक्सर मायोपिया अनुवांशिक होता है और बचपन में शुरू होता है और किशोरावस्था तक बढ़ सकता है . आँखों का पावर चश्मा , कांटेक्ट लेंस या सर्जरी द्वारा ठीक हो जाता है . मायोपिया बहुत बढ़ जाने से ग्लूकोमा होने का या रेटिना अलग होने ( डिटैच ) का खतरा रहता है .
40 - 60 की उम्र में आँखों की देखभाल - साधारणतः इस दौरान प्रति दो से तीन साल के अंतराल पर आँखों को टेस्ट कराना उचित है . डॉक्टर दवा देकर आँखों को डायलेट करते हैं जिससे पुतलियां फ़ैल जाती हैं और डॉक्टर अंदर तक ठीक से आँखों की जांच कर सकते हैं . इससे डॉक्टर ग्लूकोमा या बढ़ती उम्र या शुगर के चलते कुछ अन्य रोगों , जिनके होने का कोई पूर्व संकेत नहीं मिलता है , का पता लगा कर उनका उपचार कर सकते हैं .
फ्लोटर्स और फ्लैशेस - हमारी आँखों की पुतली और रेटिना के बीच एक प्रकार का जेल ( gel ) होता है . अक्सर करीब 60 साल की उम्र तक यह सिकुड़ जाता है या बिखरने लगता है जिसके चलते हम आँखों के सामने तैरते हुए लाइन्स या अन्य आकार देखते हैं जिन्हें फ्लोटर्स कहते हैं . फ्लोटर्स आते जाते रहते हैं और आमतौर पर इनसे कोई खतरा नहीं है .कभी सर या आँखों में चोट लगने के कारण या जेल के रेटिना से चिपकने के कारण आँखों के सामने स्पार्क दिखते हैं , विशेष कर अँधेरे में .ऐसे में रेटिना के डिटैच होने का खतरा है .समय रहते इसका इलाज हो सकता है .
आँखों से संबंधित कुछ अन्य सामान्य बातें -
प्रति मिनट 15 बार पलक झपकना - आमतौर पर हमारी आँखें की पलकें प्रत्येक 4 सेकंड में एक बार झपकती हैं यानि प्रति मिनट 15 बार .
100 / 50 - साधारणतया हमारी ऊपरी पलक पर 100 बरौनी और नीचे में 50 बरौनी ( eyelashes ) होती हैं .
पुतली का व्यास - आमतौर पर एक वयस्क की आँखों की पुतली का व्यास ( diameter ) प्रकाश में 2 - 4 mm इंच होता है और अन्धकार में 4 - 8 mm ( मिलीमीटर ) होता है . आमतौर पर दोनों आँखों की पुतली का साइज बराबर होता है .
20- 20- 20 व्यायाम -यदि दिन भर में हम 8 घंटे सोते हैं तो बाकी के 16 घंटे हमारी आँखें काम करती रहती हैं जिसके चलते उनपर स्ट्रेस होता है . उन्हें रिलैक्स कर आराम देने के लिए हर 20 मिनट में एक बार कंप्यूटर या आँखें जो भी देर से देख रही हैं वहां से नजर हटा कर 20 फ़ीट की दूरी पर स्थित किसी चीज पर उनको 20 सेकंड तक देखना चाहिए . यह आँखों के लिए एक सहज व्यायाम है जिससे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम , आई स्ट्रेन और सरदर्द में आराम मिलता है .
आँखें रोयें गम और ख़ुशी दोनों में - आमतौर पर जब हम दुःख की घड़ी में रोते हैं तब आँखों से आंसू निकलते हैं . पर अक्सर ज्यादा ख़ुशी मिलने पर भी आँखें रोती हैं . जब हम रोते हैं तब दो हॉर्मोन बनते हैं - एंडोर्फिन और ऑक्सीटोसिन . ये हॉर्मोन स्ट्रेस और दर्द कम करते हैं . आंसू निकट मौजूद लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है जिस से अन्य लोग भी दुःख और खुशी शेयर कर सकें और उसे कंफर्ट और सपोर्ट का अहसास हो .
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