शायरी - 17 pradeep Kumar Tripathi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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शायरी - 17

हर कसमें, हर वादे, हर वफा, की हमें कीमत मिली।
मौत भी मुझे आई तो कमजर्फ के गलियों में।।

अप तो अपनी जान पहचान पर ध्यान दीजिए
हमसे जो भी एक बार मिला वो तो मेरा हो गया

आप की खामोशी ही वजह है कई जाने लेने की
आप बोलती होती तो सब ध्यान से सुनते

खुशी इस बात की है, कि वो बात करता है मुझसे।
गम इस बात का है, कि सपने देर तक नहीं आते।।

चलो अच्छा हुआ तुम खुद, जा रहे हो छोड़ कर।
जमाने के आंखों में भी तो, हम बहुत खटकते थे ।।

तुम आते तो देखने मैयत मेरी
लोग तो कहते थे बहुत शान से गया है

आप का हर हिसाब चुकाएंगे अगले जनम में
आपने बेटे को तुम्हारे सारे खत दे कर जा रहा हूं

मेरे बाद उसके खतों को भी जला कर राख कर देना
अगर दिल धड़कता रहे तो आदमी मरता नहीं है

लोग पूंछेगे हाल मेरा तो, कहना अच्छा नहीं था।
सारी जिन्दगी अच्छा हूं, यही झूठ बोला है मैं ने।।

जिन्दगी अच्छी नहीं है मैं ने जी कर के देखा
लोग दवा खाने में मिलने आते हैं तो पूछते हैं अच्छे हो न

कभी फुर्सत मिले तो आना मेरी गांव के गलियों में
जिन्दगी आज भी वहां घुटनों के बल चलती है

तुम पूछते हो ठिकाना मेरा,
वहां है जहां दिल का आना जाना मेरा
वो उस गली के उस नुक्कड़ पर जो चाय की टपरी है
बस उसके सामने से आना और गुजर जाना मेरा

मैंने सोचा था कि कल लिखूंगा तुझ पर भी एक शायरी
वर्षों से लिख रहा हूं बस एक शायरी

बड़ी दूर निकल गई है मेरे ख्वाहिशों की बारात
इंतजार तो बस इतना है कि कोई मुड़ कर न देखे

तुम रहना मेरी जिंदगी में सांसों के धड़कनों की एहसास की तरह
बदलने वालों का क्या है साथ तो एक दिन धडकने भी छोड़ देती हैं

आप ख्वाहिश हो मेरी, बस इतना एहसास रहे
छोड़ना है तो शौक से छोड़ो, मुड़ कर देखूंगा नही याद रहे

हमने ऐसा कुछ भी नही लिखा आप के बारे में
लोग यूं ही तारीफों से बाज नही आ रहे हैं

चलते हो हांथ थामे हुए प्रदीप सरे बाज़ार कातिल का
सजा उसको भी मिलती है जुर्म में हांथ जिसके होते हैं

एक ही सक्स ने मुझे है कई बार यूं भी मारा
नजरे उठा कर नजारों से मारा नजरें झुका कर अदाओं से मारा

सफेद हो गया है खून सभी की रगो का।
वरना शेर बूढ़ा भी हो तो भी कुत्ते दूर भागते हैं।।

हमने सीखते सीखते लज्जा और शर्म तलवार और भाला को भुला दिया।
कैसे मां बाप बन गए की अब शर्म आ रही अपनी रानी लक्ष्मीबाई को क्या बना दिया।।

अब रक्षण के लिए फिर रण होगा, अब तो सिर्फ दरिंदो का मरण होगा।।
जो नकाब में आते हैं अब समझना होगा, नकाब छोड़ना होगा या चौराहे में जलाना होगा।।

आप लिखते रहो संसद में बैठ कर नए कानून।
जब हम नहीं होंगे तो कागजों पर लागू करना।।

चले आते हैं लौट कर शाम को घर ले कर घर तक।
कम से कम रात में तो सब मिल कर इसका बोझ उठायेंगे।।

जब मैं जाऊंगा तो आंधियों की तरह जाऊंगा।
मेरे रास्ते में घर तुम्हारा पड़ता है सोच लो।।