बढ़ते तलाक और उसके दुष्परिणाम S Sinha द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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बढ़ते तलाक और उसके दुष्परिणाम


                                                                  बढ़ते तलाक और उसके दुष्परिणाम                                         


आजकल दुनिया में तलाक के मामले  बढ़ते जा रहे  हैं  . भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है हालांकि अभी भी भारत में तलाक का दर दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है  . देश में  पिछले दो दशकों में तलाक के दर में काफी वृद्धि हुई है  . 2019 के आंकड़े के अनुसार देश में तलाक का दर लगभग 1 % रहा है  . पर यह दर भी पिछले दो दशकों में करीब 350 % बढ़ा है  . 

देश के महानगरों में पिछले कुछ वर्षों में तलाक दर बहुत बढ़ा है  . 2014 - 17 में मुंबई में डाइवोर्स  रेट 40 % बढ़ा है और 1990 - 2012 में दिल्ली में 36 % बढ़ा है  .  53 % से ज्यादा तलाक युवाओं ( 24 - 35 वर्ष ) ने लिया है  . ज्यादातर डाइवोर्स पुरुष लेते हैं , यह एक गलतफहमी है  . 2019 में दिल्ली में 65 % महिलाओं ने तलाक की पहल की है  . 

सम्भव है कुछ मामलों में तलाक का फैसला सही हो पर अक्सर तलाक के बाद लोगों को आगे चल कर पछतावा भी हुआ है  . 

एक नजर वैश्विक तलाक दर पर - कुछ अपवादों को छोड़ कर दुनिया भर में विगत बीस वर्षों में तलाक दर में वृद्धि हुई  है  . पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में यह संख्या बहुत ही कम रही है  . विश्व में सर्वाधिक डाइवोर्स रेट  पुर्तगाल का है -  94 % है  . उसके बाद स्पेन 85 % .  अमेरिका और  यूरोप के देशों में यह करीब 50 %  . वियतनाम में यह करीब 7 % है  . नेपाल , श्रीलंका , बांग्लादेश , पाकिस्तान आदि एशियाई देशों में भी तलाक दर पश्चिम की तुलना में बहुत कम है  . 

 तलाक के मुख्य कारण -   

1 . महिलाओं का स्वतंत्र या आत्मनिर्भर होना -  हालांकि इसे गलत नहीं कहा जा सकता है फिर भी यह एक प्रमुख कारण है  . विगत दो / तीन दशकों में महिलाओं में शिक्षा दर में काफी वृद्धि हुई है जिसके चलते उन्हें नौकरी मिली है और वे आर्थिक रूप से सिर्फ पुरुष पर निर्भर नहीं हैं  . अगर वे अपने रिलेशनशिप से खुश नहीं हैं तो वे  तलाक का विकल्प चुनने में सक्षम हैं  . 

2 . संबंधी या मित्रों द्वारा हस्तक्षेप - आजकल लाइफ स्टाइल , सोच विचार , परस्पर रिकॉग्निशन या सहयोग में काफी बदलाव देखने को मिलता है  . कभी महिलाओं के विचार / फैसले को मान्यता नहीं मिलती  है  या कभी इसके विपरीत पुरुषों को  . ऐसी स्थिति में आजकल के जेनरेशन में परस्पर बर्दाश्त और समझौता करने की शक्ति अपेक्षाकृत बहुत कम हो गयी है   . ऐसे में दोस्तों या संबंधियों का हस्तक्षेप आग में घी डालने का काम करता है और वे तलाक लेने से नहीं हिचकते हैं  .   

3  . परस्पर विश्वास में कमी और व्यभिचार - किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए  परस्पर विश्वास बहुत जरूरी है  . अगर एक बार यह टूट गया तो दुबारा पहले जैसा नहीं रह जाता है और उसमें गांठ आ जाती है . आपसी भरोसे में कमी से कुछ वर्षों में आगे चल कर पहले जैसा शारीरिक और भावनात्मक आनंद नहीं रह जाता है . दोनों को एक दूसरे में वही पुरानी दिलचस्पी नहीं रह जाती है जिसके चलते वे रिश्ते में बंधे रहें और नतीजा तलाक . 

4 . टेकेन फॉर ग्रांटेड ( Taken for granted ) - विवाहोत्तर शुरू के कुछ वर्षों में एक दूसरे में काफी आकर्षण रहता है , दोनों साथ  में ज्यादा समय बिताते हैं और एक दूसरे का ख्याल रखते हैं  . परिवार में वृद्धि होने से उनके कर्तव्य और जिम्मेदारियों का दायरा बदल जाता है  . ऐसे में कुछ लोग ( पुरुष / स्त्री ) एक दूसरे से पहले जैसा अपेक्षा रखते हैं जिसे पूरा नहीं किया जा सकता है और रिश्ते में खटास आती है  . 

5 . आत्मीयता ( इंटिमेसी ) में कमी - किसी भी रिश्ते को लम्बे समय तक कायम रखने के लिए इंटिमेसी भी जरूरी है , इंटिमेसी का अर्थ सिर्फ सेक्स नहीं है  . घरेलू , सामाजिक , देश विदेश आदि विषयों पर वार्तालाप , साथ में वॉक पर जाना , कभी लॉन्ग ड्राइव पर जाना आदि भी इंटिमेसी के उदाहरण है  . 

6 . शहरीकरण और महिला सशक्तिकरण - विगत दो तीन दशकों में देश में अरबनाइजेशन  ( शहरीकरण ) और महिला सशक्तिकरण में काफी वृद्धि हुई है  . हालांकि इसे सर्वथा गलत नहीं कहा जा सकता है फिर भी इसके चलते देश के शहरों खास कर महानगरों में तलाक का  दर बढ़ रहा  है  . 

7  . सोशल मीडिया - तलाक दर में वृद्धि के लिए सोशल मीडिया के प्रभाव  को नकारा नहीं जा सकता है  .  सोशल मीडिया ने अपनी निजी अधिकारों और  सिंगल पेरेंटिंग के उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाया है  .

8 . पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव - आजकल तेजी से आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण हो रहा है जिसके चलते पाश्चात्य सभ्यता का नकल करना आसान हो गया है , खास कर महानगरों में या मल्टीनेशनल कंपनियों और विदेश में काम करने वालों के लिए  . 

9  . ईगो या अहंकार - कभी पति या पत्नी में मतभेद होने कारण उनका ईगो क्लैश करता है और दोनों में कोई भी अपने ईगो से समझौता करने को तैयार नहीं होता है  . ईगो के चलते परस्पर सहानुभूति और संवेदनशीलता नहीं रह जाती है  . ऐसे में रिश्ते में तनाव और खटास आना स्वाभाविक है और  कभी रिश्ता  टूट भी सकता है  .  

तलाक का कारण चाहे जो भी हो ऐसे में रिश्ते में शामिल हर किसी को (  पति , पत्नी और बच्चे  यदि हैं ) मानसिक या भावनात्मक या  शारीरिक , या आर्थिक रूप से तकलीफ होती है . भारतीय समाज में तलाक को अक्सर अभी भी एक कलंक समझा जाता है  . 

तलाक से किसे ज्यादा दुख होता है - जैसा कि ऊपर कहा गया है तलाक से सभी  दुखी होते हैं ( अस्थायी या स्थायी रूप से )  . सुना जाता है कि तलाक के चलते पुरुषों का ज़ख्म ज्यादा गहरा होता है और उन्हें ज्यादा क्षति होती है पर पुरुष और स्त्री इसे अलग तरीके से  अनुभव करते हैं  . 

पुरुष - देखा गया है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष मानसिक या भावनात्मक रूप से ज्यादा पीड़ा महसूस  करते हैं  . अक्सर महिलायें  मन की  पीड़ा को मित्र / रिलेशन / परिवार के अन्य सदस्यों के बीच ज्यादा शेयर कर लेती हैं  और कुछ हद तक इस से उभर सकती हैं  जबकि पुरुषों  में ऐसा कम देखा गया है  . तलाकशुदा महिलाओं को समाज / परिवार  में ज्यादा सहानुभूति और संबल प्राप्त है  .  पुरुष अपना गम कम करने के लिए घर से बाहर ज्यादा समय देते हैं - दफ्तर , क्लब या बार आदि में  . कुछ शराब या अन्य गंदी आदतों के आदि हो जाते हैं  . भोजन के लिए पति पत्नी पर ज्यादा निर्भर करता है इसलिए उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है  . अक्सर कानूनन बच्चों का संरक्षण ( कस्टडी ) माँ को मिलती है जिसके चलते पुरुष बच्चों से ज्यादा समय दूर रहते हैं और अकेलेपन का सामना करना पड़ता है  . निर्वाह खर्च ( alimony ) और चाइल्ड सपोर्ट के चलते पुरुषों पर आर्थिक बोझ बढ़ सकता है  . 

महिला - पुरुषों की तुलना में महिलाएं भावनात्मक  रूप से मित्रों और परिवार से ज्यादा नजदीक रहती हैं इसलिए उन्हें उनकी  सहानुभूति और संबल ज्यादा प्राप्त है  . उपरोक्त कथनानुसार वे मन की भड़ास / पीड़ा  दूसरों से बाँट लेती हैं  .  उनका समय और मन बच्चे के पालन पोषण में लग जाता है  .  दूसरी तरफ बच्चे की जिम्मेदारी के चलते वर्किंग वीमेन को  कार्यक्षेत्र में समझौता करना पड़ सकता है - मन लायक काम न करना , छोटे शिफ्ट में काम करना या कम वेतन में काम करना  .  अगर वर्किंग वीमेन नहीं हैं तो एलीमोनी में ही खर्च चलाना  पड़ता है  .  

बच्चे - तलाक का कुप्रभाव बच्चे ( यदि हुए ) पर भी पड़ता है  .  तलाक के पहले घर में माता पिता में  हुए वाद विवाद , झगड़े या तनाव का असर आगे चल कर बच्चे पर भी पड़ता है  .  उनके स्वाभाव में चिड़चिड़ापन या रूखापन आ सकता है , उनकी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ सकता है , उनके शारीरिक और भावनात्मक ग्रोथ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है , स्कूल में दोस्तों के बीच अप्रिय बातों का सामना करना या कभी बुरी संगत या आदत का शिकार होना भी सम्भव है  .  

तलाक का असर समाज पर भी - शोध में देखा गया है कि बढ़ते तलाक का कुप्रभाव समाज पर भी पड़ता है  .  इसके चलते समाज में आपराधिक घटनाएं देखी गयीं हैं , खासकर बच्चों में  .  सामाजिक,  सांस्कृतिक , परंपराओं ,  अपनों से दुराव , धार्मिक कार्य में बदलाव भी देखा गया है  .  समाज में फॅमिली बैकग्राउंड पर भी असर पड़ता है   . 

बॉटमलाइन - तलाक के बाद अकेलेपन , ख़ुशी में कमी ( स्थायी या अस्थायी  ) , आर्थिक स्तर में कमी या बदलाव , कार्यक्षेत्र में प्रतिकूल  असर , भावनात्मक , मानसिक और शारीरिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है  . कोई जरूरी नहीं कि भविष्य का नया जीवनसाथी पहले वाले / पहले वाली से बेहतर ही हो  . ऐसे में शेष जीवन में  अशांति और पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है  .