ताश का आशियाना - भाग 40 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 40

"आपने हा क्यों कहा?"
" हमारे पास और कोई रास्ता नहीं।"
"और कोई रास्ता नही का क्या मतलब?2,00,000 भरने है जी!"
"मेरे लिए सिद्धार्थ को ठीक करना ज्यादा जरुरी है।"
"वो ठीक ही जायेंगे, जी डॉक्टर ने गोलियां तो लिख कर दी है ना!"
"पर वो जब तक गोलियां है तब–तक बाकी फिर?"
नारायणजी ने पूछा तो गंगाजी के पास जवाब नही था।
जब तक गोलियां थी सब अच्छा था। पूरा एक हफ्ता।
गोलियां देते तो सिद्धार्थ ठीक रहता। खाना, पीना,सोना यही उसका काम हो गया था। लेकिन गोलियां इतनी हाई डोसाज की थी की सिद्धार्थ का खुद पर कुछ कंट्रोल नही था।

जो काम मां बचपन में किया करती थी वो काम उन्हे सिद्धार्थ के जवानी में भी करना पड़ रहा था, जब सिद्धार्थ खुदके मल–मूत्र पर नियंत्रण खो बैठा था। नारायणजी ने उसको नेहलाने की जिम्मेदारी ले ली थी।
तुषार भी उन दोनो को थोड़ी बहुत मदद कर देता जो की वो अभी भी सिद्धार्थ के घर में ही रुका हुआ था।


बाकी, सिद्धार्थ पड़ा रहता, बिस्तर पर एक पुतला बनकर।
कुछ चीखता नही, चिल्लाता नही, नाही उसमे कुछ भावनाएं थी। बस शांति ही शांति....

गंगाजी को उसकी यह हालत देखी नही जाती थी।
फिर भी वो कुछ नही कर सकते थे।

2,00,000 रुपए का इंतजाम अब तक पूरा नहीं हुआ था।
एक दो हफ्ते ऐसे ही चला पर जैसे ही गोलियां खत्म हुई की सब सक्ते में आ गए।


नारायणजी ने, फिर से एकबार गोलियां मेडिकल से लाने की कोशिश की पर नही मिली, डॉक्टर की प्रीसक्रिप्शन जरुरी थी।

और जब, नारायणजी ने डॉक्टर से बात करने की कोशिश की तो डॉक्टर का कुछ ऐसा जवाब था, "वो गोलियां ज्यादा देर तक लेने के लिए नही है। वो काफी हाई डोसाज गोलिया है, जिसके बारे मे मैने पहले ही आपको बता दिया था।
ज्यादा देर तक उन गोलियों का सेवन करना सिद्धार्थ के दिमाग के लिए ठीक नहीं।"
सिद्धार्थ के पिता यह बात जानकर काफी हताश हो गए की अब वो बात को और देर टाल नहीं सकते थे।
और बात टालना सही भी नही था जो की सिद्धार्थ के जिंदगी का सवाल था।



6 महीने का खर्चा कुछ ₹200000 होने वाला था।

दो तरीके से उन्होंने पैसे जमाए......
नारायण जी ने खुद की एफडी तोड़ दी।
और दूसरी और सिद्धार्थ का मेडिकल सर्टिफिकेट दिखाकर बैंक से गुजारिश की वो उन्हे कुछ पैसे निकालने दे जिससे सिद्धार्थ का इलाज हो सके।



इतना आसान नहीं था सिद्धार्थ को रिहैबिलिटेशन सेंटर में भेजना।

अस्पताल से कांटेक्ट करते ही, एडवांस भरने के बाद अस्पताल ने एक एम्बुलेंस घर पर भेज दी।


नारायणजी को लगा जैसे सिद्धार्थ हम लोगों से डर जाता है इस प्रकार वह रिहैबिलिटेशन सेंटर में जाने के लिए नहीं मानेंगा।लेकिन सिद्धार्थ कुछ नहीं बोला।

सिद्धार्थ कभी कबार चिल्लाता, चीखता और कभी कबार चुप ही रह जाता।और इतना चुप रहता कि ऐसा लगता मानो कभी उसे कोई आवाज़ थी ही नहीं।

जो की सिद्धार्थ बेहोशी के धुंध में ही था तो उसे वहा जाने से कोई आपत्ति नही थी।


बहुत से लोग तमाशा देख रहे थे।
जब सिद्धार्थ को पकड़ कर गाड़ी में बैठाया जा रहा था। सिद्धार्थ की हालत के बारे में सबको पता चल गया था।

उन लोगों के साथ एक फैमिली मेंबर को जाना जरूरी था।
तुषार और नारायण जी उसके साथ चले गए।

गंगा को नारायण जी ने वही रोक दिया।

आखिरकार, सिद्धार्थ को रिहैबिलिटेशन सेंटर में भेज दिया गया।


सिद्धार्थ रिहैबिलिटेशन सेंटर में जाने के बाद भी कुछ नहीं बोला।
सिद्धार्थ ने मानो एक चुप्पी पकड़ ली थी।

नारायण जी ने एडवांस पेड किया।

रिहैबिलिटेशन सेंटर में काफी कुछ कलरफुल ही था लेकिन कुछ दीवारें सफेद सफेद थी।
लोगों को सेल में रखा गया था कुछ लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाज ही आ रही थी।

कोई सिर्फ शांति से सो रहे थे।

रिहैबिलिटेशन सेंटर से फिनायल का एक सुगंध आ रहा था मानो वह अभी-अभी साफ हुआ है सफेद टाइल्स चमक रहे थे।

रिहैबिलिटेशन सेंटर में जहां रिसेप्शनिस्ट बैठी थी उसके पीछे फोटो लगा हुआ था।

रिहैबिलिटेशन सेंटर में बहुत से कमरे थे।

एक बहुत बड़ा हॉल भी था जहां काफी सारे AC लगे हुए थे। वहां अध्यात्म की कुछ बातें चल रही थी।

अलग-अलग प्रकार के लोग थे नारायण जी और तुषार थोड़ा डर गए थे।

सिद्धार्थ को एक कमरे में भेजा गया।

ने नारायणजी की चिंता देखते हुए कहा, "आप चिंता मत कीजिए। आपका बेटा सही जगह पर आया है। बहुत लोगो को इन्होंने ठीक किया है।"

“उसे मिलने आ सकते हैं?”

“हां! आप उसे मिलने आ सकते हैं।
सोमवार से शुक्रवार विजिटिंग हवर्स, सुबह: 9:00 से 11
श्याम: 4 से 6"

“शनिवार में कुछ गेस्ट आते हैं जो इन जैसे लोगों के जिंदगी में रोशनी डालने की कोशिश करते हैं।”

“भाई को यहां पर कोई प्रॉब्लम नहीं होगा ना।”

“नहीं बिल्कुल नहीं उल्टा उनके जैसे कई लोगों उन्हे यहां मिल जाएंगे।”

नारायण जी ने सारी फॉर्मेलिटी पूरी की आखरी बार सिद्धार्थ से मिलने की इच्छा जताई।

सिद्धार्थ काफी चुप था लेकिन नारायणजी के पास जाते ही
शैतान–शैतान कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

वहां के मेल नर्स जल्दी भाग कर अंदर आए। एक मेल नर्स ने उसे संभाल कुछ इंजेक्शन दिए और सुला दिया।

दूसरे नर्स ने उन्हें बाहर लाकर समझाने की कोशिश की,"ऐसा कोई भी काम मत कीजिएगा। जिससे पेशंट पैनिक हो जाए, बाकी लोग भी है यहां। अभी सोने का समय है, पेशेंट का।
जब तक वो आपसे बात करने की इच्छा ना जताए तब तक आप उनसे दूर रहे तो ही अच्छा है और एक महीना तो मिलने आना भी नही, पेशंट की प्रोग्रेस जीरो पर आ जाती है।"

यह बात सुन पिता का दिल टूट गया पर वो मान गए आखिरकार।

सिद्धार्थ के रिहैबिलिटेशन सेंटर जाते ही पूरा परिवार लोगों की
सिंपैथी में आ गया था।

नारायणजी–गंगाजी लोगो को बेचारे लगने लगे थे।
उनकी की अलग-अलग बातें सुनाई मिलती थी।

हर रोज अलग-अलग आवाजे सुनाई मिलती थी दोनो को, एक नया तमाशा!

नारायणजी जब भी कभी बाहर निकलते तब उन्हें यही सुनने को मिलता, "अच्छा खासा बेटा था इनका। पता नहीं क्या हो गया?"

पहली औरत : “अरे ऐसा बेटा होने से अच्छा, तो ना हो पहले।
इतने साल गायब रहा और अब आया है तो माता-पिता को तकलीफ दे रहा है।”

दुसरी औरत : “सुना है, बहुत बड़ा ट्रैवलर है।
पहली औरत : “ट्रेवलर है तो क्या हुआ?क्या दिया है उसने अपने मां-बाप को? हमारा बेटा देखो, एक बड़े स्कूल में प्रोफेसर है।”
तीसरी औरत : "हां हां, हमारा भी बेटा दुकान चलाता है लेकिन खुश है। सुना है शादी के चक्कर में यह सब हुआ है।"


नारायण जी को भी नहीं पता कि सिद्धार्थ की शादी टूटने के बाद इन लोगों को कैसे पता चली।
लेकिन मोहल्ला बहुत छोटा था इसलिए यह बात आगे बढ़ना तय था।

पहली औरत : "अरे कौन करेगा इस निट्ठले से शादी जो अपने मां-बाप को तक खुश नहीं रख सकता।"

कभी-कभी नारायण जी और गंगा जी दोनों भड़क जाते लोगो पर लेकिन कितने लोगों पर भड़का जाए कभी कभार शांत रहकर सब सुन लेते।





दूसरी तरफ
रागिनी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रही थी। बनारस छोड़ते ही फिर से एक बार उसने सेमिस्टर के लिए अप्लाई कर दिया था।


इस साल वो अपना इंटर्नशिप खत्म कर ही लेंगी ऐसा उसे विश्वास था।

बनारस से आते ही वह थोड़ा सा शांत–शांत सी हो गई थी।

रागिनी को ज्यादा घुलते मिलते ना देख एक दिन माइकल ने उससे बात छेड़ दी।
What happened Ragini?
You look so gloomy to me since you arrived.

No no everything is fine don't worry

No Ragini there is something Major issue in your life that you don't want to talk about.
You consider me as a friend, right? Then tell me what happened in India.

(क्या हुआ से रागिनी से बात शुरू हुई। रागिनी ने, कुछ नहीं। ऐसा कहने पर भी माइकल नही माने। लेकिन दोस्ती का वास्ता देकर माइकल ने बाते निकाल ही ली।)

माइकल सारी बातें जानकर थोड़ा शौक सा हो गया।
माइकल के अनुमान कुछ ऐसे थे......
रागिनी को प्यार हुआ भी तो एक मरीज से।

एक औरत जिसने रागिनी से यह गुहार की , वह उनके बेटे को ठीक कर दे। वही बेटा जिसकी रागिनी के साथ शादी होने वाली थी। और शादी तय होने के दिन ही वह भाग गया था क्योंकि उसे शादी नहीं करनी थी।
और इतने एफर्ट्स डालने पर भी आखिरकार उस लड़के ने रागिनी को रिजेक्ट कर दिया था।
उस बात पर आगबबुले हुए माइकल का जवाब कुछ ऐसे थे,
Don't worry Ragini. You don't have to feel regret for him or his mother.

It's not your responsibility, it's the job of a psychiatrist not a neuropsychologist.

it is common to fall in love with someone who is different from you.

Maybe I feel it's your attachment not love cause he is your first patient.

रागिनी इन बातो से काफी असहज हो चुकी थी।
रागिनी की हातो पर हाथ रखते हुए, "he is just your patient. remember it."

काश माइकल ने जो भी बात की वो सही होती। “अच्छा होता जब वो सिर्फ एक मरीज होता।”

क्या सच में वो पहला मरीज है इसलिए मुझे अटैचमेंट हुई उससे।
और उस बात का क्या? जिस हर एक बात में मैने उसे खुदके लिए बेस्ट समझा है।

मेरा प्यार सिर्फ एक सिंप्थी है? या कर्ज जो उसने मुझे उस रात बचा कर किया था?

शायद यही सही हो, वो मेरा पेशेंट ही हो।
लेकिन मेरे दिल का क्या? जो उसे ही सबकुछ मान कर बैठा।

मेरे हालातो का क्या जो उसे अच्छा जीवन साथी मान बैठा है?

उसका क्या? जब वो मेरे जैसा ही है जब वो मेरी ही परछाई है।

उस दिन के बाद रागिनी ने अपने दिमाग में यह बात बैठा ली की सिद्धार्थ उसके एक लिए मरीज था और कुछ नही।


पर उसका दिल कभी कबार सिद्धार्थ को याद कर लेता जब जाने–अनजाने सही बनारस की बात निकल आती।

बनारस की बातो में, यादों में सिद्धार्थ एक बहुत खूबसूरत याद थी। जिसने बिना छुए भी रागिनी को छू लिया था।


एक महीने बाद:

इन 1 महीने में तीनो सिद्धार्थ को बहुत याद कर रहे थे।

हां!! सिद्धार्थ को जाकर एक महीना होने को आया था।

नारायण जी ने डॉक्टर से उसकी कंडीशन के बारे में पूछा तो डॉक्टर ने कहां, सिद्धार्थ ने पूरी तरह बात करना बंद कर दिया है।
वह किसी से घुलने मिलने की कोशिश नहीं करता ,खुद में खोया रहता है।
कभी कबार चिल्ला उठता है। लेकिन फिर चुप रह जाता है।
कभी-कभी 18 घंटे सोता है, तो कभी-कभी सोता ही नहीं।
हमने उसे मेडिटेशन सेशन में डाल दिया है देखते है अभी।
हमारे यहां अलग- अलग सेशन होते रहते है।
सोशल टॉक, स्पोर्ट, योगा और सोशल टॉक में जब हमने सिद्धार्थ को डाला तो ज्यादा कुछ प्रोग्रेस नही किया।
लेकिन कल जब भगवत गीता पाठ हुआ तब उसने थोड़ा उसमे इंट्रेस्ट दिखाया। इसलिए हम उसे अध्यात्म की और भेज रहे है।

धैर्य रखिए, मिस्टर शुक्ला ठीक हो जाएगा सिद्धार्थ।