में और मेरे अहसास - 95 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 95

सर्दी के दिन अपना रंग दिखाने लगे हैं l

लोग घरों में बंध रह दिन बिताने लगे हैं ll

 

सारे बदन को ठंडा किया बेदर्दी मौसम ने l

ठिठुरते है फ़िर भी साथ निभाने लगे हैं ll

 

सूरज आंख मिचोली खेले परेशान हैं लोग l

ऊनी स्वेटर, मफ़लर पहनो सिखाने लगे हैं ll 

 

हाथ और पैर ठिठुर गये हैं ठंड की वजह से l

जहां देखो वहां गर्म चाय को पिलाने लगे हैं ll

 

बाहिर ठंडी घर में भी ठंडी जैसे हो कोहराम l

सर्दी के दिन भैया भीतर से हिलाने लगे हैं ll

१६-१-२०२४ 

 

ग़लत फ़हमी के सिलसिले बढ़ते ही गये l

और दूरीयो की सीडियां चढ़ते ही गये ll

 

यहाँ प्यार दिन बदिन बढ़ता जाता है तो l

ख़त्म न होने वाली मज़बूरी पढ़ते ही गये ll

 

सही ग़लत का फेसला नहीं कर पा रहे l

अजीब सी कशमकश से लड़ते ही गये ll

 

ज़ख्मी होकर भी मुस्कुराते रहते हैं और l

हर लम्हा परिस्थितियों से सहते ही गये ll

 

महज़ ख़ामोश रहकर वक्त बिताते हैं कि l

दर्द को हमराह बनाकर बहते ही गये ll

१७-१-२०२४ 

 

पत्थरों से टकराना आम है जहां ज़िंदगी तमाशा है l

दर्पण में जब भी ओ जहां देखा बस हर दिल झासा है ll

 

पहाड़ों से निकलकर नदियाँ रोज सागर से मिलती है l

ढ़ेर सारा प्यार वो लाती फ़िर भी साहिल प्यासा है ll

 

 

शीत लहरों को चीरती हुईं गहरे समन्दर से मिलने को l 

हवा के साथ बांहें पसारे दूर तक जाने की आशा है ll

 

 

अपना नाम अपना अस्तित्व सब कुछ क़ुरबान

करनके  वो l

मुस्कराती खुद समर्पित होकर भी उसने गाया तराना है ll

 

भावना ओ बाकपन साथ अपने बहा ले जाती है वो l

नदी सोई हुईं अपने ही पानी में चुपचाप बेआवाजा है ll   

१८-१-२०२४ 

 

मासूम ही था दिल जो प्यार कर बैठा l

दिल्लगी को दिल की लगी समज बैठा ll

 

चार दिनों का साथ निभा कर चल दिये l

सही नहीं गई जुदाई और तड़प बैठा ll

 

बशर आदतों से बाज न आया अभी भी l

चंद लम्हों की मुलाकात को तरस बैठा ll

 

बंध दरवाजो को खटखटाया जाता गया l

नादां था वो बहरों के आगे गरज़ बैठा ll

 

सिर्फ़ एक बार लौट कर आएँगे और l

रसीले मिलन की आशा में पनप बैठा ll

१९-१-२०२४ 

 

 

जय जय श्री राम 

निश दिन करू तेरे नाम का जाप l

मासूम सा तेरा चहरा  

सुबह शाम करू तेरे नाम का जाप ll

 

हनुमान के दिलों जान में हो बसते l 

सीता के स्वामी, लक्ष्मण की दुनिया l

भरत के दिल और शत्रुघ्न के भाई l

जन्मोजन्म करू तेरे नाम का जाप ll

 

युगों बाद लौट कर आएं घर वापिस l

अवध में आएं जैसे दिवाली के दिन l

घर घर खुशी के दीपक जलाओ l

सदियों तक करू तेरे नाम का जाप ll

१९-१-२०२४ 

 

इश्क़ के साँसों की महक किताब में छिपे गुलाब की खुशबु से महक रहीं है l

पुरानी सुहानी बातेँ याद करके आशिक की धड़कने आज बहक रहीं है ll

 

फिझाएं भी रश्क करती है जब एक और मुलाकात का पैगाम आया है l

फ़िर प्रिये से रंगीन मुलाक़ातों की बातों से दिल की चिड़िया चहक रहीं हैं ll

 

चाहत का खजाना लुटाने को आज फ़िर बेकरार हुआ है इश्क़ भी l

हवा में भीगी मिट्टी की खुशबु ओ इश्क़ की  मुस्कराहट लहक रहीं हैं ll

२०-१-२०२४ 

 

बाकपन की शरारत याद आती है l

दोस्तों की इनायत याद आती है ll

 

खामोशी का एक अंदाज़ होता है l

मुहब्बत की इबादत याद आती है ll

 

पहली मुलाकात के लम्हे जमा है l

मुहब्बत में रवायत याद आती है ll

 

आँखों ने मजबूरी बयां करी दे l

नजरों में ज़मानत याद आती है ll

 

दिल कितनी ही मंजिलों से गुज़रा l

मय्यसर जमावट याद आती है ll

२१-१-२०२४ 

 

मुहब्बत की आदत ने तमाशा बना दिया l

बेतहाशा चाहतों ने दिवाना बना दिया ll

 

खुद पर विश्वास करके आगे बढ़ते गये l

मंज़िल के जनून ने सितारा बना दिया ll

 

खेल खेल में दिल्लगी दिल की लगी बनी l

दिल की मजबूरी ने बिचारा बना दिया ll

 

आज बग़ावत की खुलकर धड़कनों ने भी l

जिंदगी की ग़ज़ल ने लिफ़ाफ़ा बना दिया ll

 

महताब ख्वाबों के सामने आकर समा गया l

पर्दा नशी के हौसलों ने किनारा बना दिया ll

२२-१-२४ 

 

हसी खूबसूरत राहगुज़र सोचती हूँ l

हमराह के साथ सफ़र सोचती हूँ ll

 

कभी दुबारा मिल सके फ़िर से यही l

अभी आएँगी वहा से खबर सोचती हूँ ll

.

जान पहचान भी है क्या अब तलक l

पहली मुलाकात की नज़र सोचती हूँ ll

 

शायद मुन्तजिर रहे उसी जगह पर l

जाना तो चाहती हूं मगर सोचती हूँ ll

 

यहाँ जी रहा है हर कोई अपने वास्ते l

झंझट चार दिन की असर सोचती हूँ ll 

 

दिल्लगी नाराजगी की वज़ह ना बने l

खामोश रहूंगी बाद में ग़र सोचती हूँ ll

२३-१-२०२४ 

 

दिल को रोने से भी सुकून नहीं मिलता l

सुखी ज़मीं में कोई गुल नहीं खिलता ll

 

सभी संगी साथी मतलबी है जहान में l

चतुर युग में संबंध कोई नहीं सिलता ll

 

खुद ही बहते हुए आंसूं को रोक लेकर l

मुस्कराते रहो चाहें अस्तित्व हिलता ll

 

भुलाने को जिन्दगी के रन्जो ग़म आज l

अपने आप ही ख़ुद की सुराही पिलता ll 

 

दिल खोल कर खुशी बाटने के लिए l

भूले से कोई पकड़े हाथ तो ज़िलता ll 

२४-१-२०२४ 

 

बात दिल की दिल में रह जाए तो अच्छा है l

दर्द सीने का आज सह जाए तो अच्छा है ll

 

हजारों उम्मीदे छिपी हुई है हँसकर जीने में l

अरमान को कानों में कह जाए तो अच्छा है ll

 

प्यार की भूख तो सभी को है क़ायनात में l

गम आंसूं के साथ बह जाए तो अच्छा है ll

 

पलकों पर बिठाकर जन्नतकी सैर कराई थी l

साथ समय के यादें लह जाए तो अच्छा है ll

 

सपनें में आ जाती है रात को सोने नहीं देती  l

याद भी ख्वाबों  में तह जाए तो अच्छा है ll

२५ -१-२०२४ 

 

सखी आधे पूरे आधे-अधूरे रह गये l

ओ दर्द जुदाई का चुपचाप सह गये ll

 

गाँव गाँव घूमती दरश की प्यासी  l

मीरा के भजन बहुत कुछ कह गये ll

 

गोकुल में ताउम्र मिलन की तड़प में l

राधा के अश्क भीतर ही बह गये ll

 

शीत पूनम की चांदनी रात में आज l

गोपियों के संग कृष्णा पह गये ll

 

भाग्य में जितना है उतना ही मिले l

कर्म का लेखा पूरा करने तह गये ll

२६-१-२०२४ 

 

अफलातून क़ायनात का सर्जनहार कितना सुंदर होगा?

रंगबिरंगी क़ायनात का चित्रकार कितना सुंदर होगा?

 

प्रतिमाओं से भरी क़ायनात का शिल्पकार कितना सुंदर होगा?

सुरों से गूँजती क़ायनात का गीतकार कितना सुंदर होगा?

२७-१-२०२४ 

 

खामोशी से भी नेक काम होते हैं l

गूगें होते हैं उनके भी नाम होते हैं ll

 

जिंन्दगी की शतरंज बड़ी पेचीदी l

दिल से जुड़े रिश्ते बेनाम होते हैं ll

 

नज़रों से जाम पीने को मना है तो l

महफिल में हाथों में जाम होते हैं ll

 

जाने नहीं देता है गुल से परे आज l

हुश्न की धड़कनों में मकाम होते हैं ll 

 

यकीं भी कैसे करू बोलो उस का l

एक मुस्कुराहट के भी दाम होते हैं ll

२७-१-२०२४ 

 

खामोश होकर जीना होगा l

दर्द को चुपचाप पीना होगा ll

 

होंठों पर मुस्कराहट पहनो l 

चाहे जो फटता सीना होगा ll

 

दिमाग का बोझ भारी होगा तो l

अश्कों से दिल सफीना होगा ll

 

अश्कों को भीतर छुपाने वाला l

वो पत्थरों जैसा नगीना होगा ll

 

इश्क़ से प्यार भरी बातों की l

यादों से दामन भीना होगा ll

२८-१-२०२४ 

 

खाली खाली सा घर लगता है l

लोगों से बेज़ान नगर लगता है ll

 

जाने पहचाने चहरों में ना ठूंठों l

हरकोई अजनबी बशर लगता है ll

 

मौसम बेजायका ही गुज़रा l

पल जुदाई का प्रहर लगता है ll  

 

हसते हुए ज़ख्म देखकर लगा l

मुस्कराना भी हुनर लगता है ll

 

गोते खाएं उम्मीद के समंदर में l

खामोशी का असर लगता है ll

२९-१-२०२४ 

 

दूर होने से तो रिश्ते नहीं टूटा करते l

हाथ साथी के कभी नहीं छुटा करते ll

 

दिल के तयखानो में छिपी हुई प्यारी l

यादों से लम्हों को नहीं लुटा करते ll

 

चुभ जाता है दिल में खंजर की तरह l

शब्दों के निशान कभी नहीं मिटा करते ll

 

वादा किया लौटकर वापिस आएँगे l

तो हसते हसते क्यूँ नहीं विदा करते ll

 

कहने के अंदाज पर मत जाना कभी l

बातों के लहजे से नहीं गिला करते ll

३०-१-२०२४ 

 

 

पागल दीवाना हूँ शाएर नहीं हूँ l

अच्छा ही है बे-जाहिर नहीं हूँ ll

 

साहिल तक साथ चलता रहूँगा l

हमसफ़र हूँ मुसाफिर नहीं हूँ ll

 

इतनी भी क्या जल्दी पढ़ने की l

पहला पन्ना हूँ आख़िर नहीं हूँ ll

 

खुदा के भरोसे जी रहा हूँ l

वाईज ही हूँ काफ़िर नहीं हूँ ll

 

सीधा सीधा लिख देता बस l  

लिखावट में माहिर नहीं हूँ ll

३१-१-२०२४ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह