में और मेरे अहसास - 96 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 96

हुश्न की खूबसूरती आज जी भर के देखते हैं l

नज़रे बचाके महफिल में ठहर के देखते हैं ll

 

किस्मत पर भरोसा है दीदार ए यार होगा l

चलो थोड़ा सा और इंतजार कर के देखते हैं ll

 

काश खिड़की पर आ जाए खुली साँस लेने l

एक बार फ़िर से गली से गुज़र के देखते हैं ll

 

भीतर की खूबसूरती को देखने के लिए अब l

नजरों में समाकर दिल में उतर के देखते हैं ll

 

रहम खाकर एक झलक दिखलाने आ जाए l

आज बड़े अरमान से सामने घर के देखते हैं ll

 

दिल की बात सादगी से कहने के वास्ते सखी l

इश्क़ की ख़ातिर चलो बन सँवर के देखते हैं ll

 

तड़प कुछ ज्यादा ही बढ़ गई लगती है कि वो l

पर्दा उठाके अपना बार बार इधर के देखते हैं ll 

 

बहुत सुना है हुश्न की खूबसूरतीके बारे में तो l

लुटाके काफ़िला जिगर का सफ़र के देखते हैं ll

१-२-२०२४ 

 

सपनों का संसार बसाने चले है l

सोये हुए अरमान जगाने चले है ll

 

इश्क़ का भरम आज भी ज़िन्दा है l

रूठे हुए को फ़िर मनाने चले है ll

 

शहर में कुछ दिन और ठहर के l

मुहब्बत के निशा लगाने चले है ll

 

ख्वाबों की ताबीर करने वास्ते l

संवारने जिंन्दगी कमाने चले है ll

 

सितारे सफ़र करके कहाँ जाए l

सखी किस्मत सजाने चले है ll

२-२-२०२४ 

 

शायर की दुनियां कलम से क़लाम तक होती है l

वो दिलका हाल न लिखने की बेबसी पर रोती है ll

 

यादें हो या बातेँ हो या मुलाक़ात का मामला हो l

पढ़ने लिखने वालों का चैन ओ सुकून खोती है ll

 

आवाज़ या तलवार बनकर देर रात होनेके बाद भी l

दिल की भड़ास निकाले बग़ैर वो कहाँ सोती है ll

 

हसीन खूबसूरत ख्यालों का बागबां खिलाकर करके l 

शेर, कविता औ ग़ज़लों में शब्दों के बीज बोती है ll

 

पिला, लाल, नीली, काली, हरि रंगबिरंगी रंगों से l

डायरी के पन्नों को सजाती लिखावट देखो मोती है ll

३-२-२०२४ 

 

दिल के लिए क़ज़ा है इश्क़ l

मुकम्मल जाँ-फ़ज़ा है इश्क़ ll

 

जिंन्दगी रखती है उम्मीद l 

दिलवालों की दवा है इश्क़ ll

 

भीड़ तो है चारो तरफ सखी l

तन्हा सफ़र में वफ़ा है इश्क़ ll 

 

जाम पी ले एक बार नजरों से l

दिल से करो खुदा है इश्क़ ll

 

मुहब्बत ने पागल बना दिया l

महबूब-ए-बा-वफ़ा है इश्क़ ll

४-२-२०२४ 

 

जिंन्दगी तेरे लिए बहुत सितम सहे l 

दर्दो गम को सहकर भी चुपचाप रहे ll

 

दुनिया वालों की अच्छी बुरी बातों को l

खामोश रखकर सुना बिन कुछ कहे ll

 

किस्मत के साथ वफ़ा निभाते हुए सखी l

रुसवाई से बचाने को अश्क भीतर बहे ll

 

जुदा होने पर जाते हुए नहीं देख सकेंगे l

साथ छोड़ते वक्त कहा कि जाएंगे पहे ll

 

जुदाई के लम्हों में बन सकेंगे सच्चे साथी l

दिल के तयखाने में प्यारी यादों को तहे ll 

५-२-२०२४ 

 

जिंन्दगी को रोशन करने यादों के दीप जलाएँ  हैं l

दिल की बगिया को प्यार के फ़ूलों से सजाएँ हैं ll

 

 

अगणित दीपों की झिलमिलाहट से आँगन चमके l

सब कुछ भूलकर वर्तमान में साथ जश्न मनाएँ हैं ll

 

 

प्यार और स्नेह की अमिधारा की बरसात कर के l

जो बीत गया उसे सपना समझ रंजिशें भुलाएँ हैं ll

 

शायद फ़िर ये सुहाने लम्हें कल मिले ना भी मिले l

अरमानो को पूरा करने अपने आप को जगाएँ हैं ll

 

एसे दीप जलाएँ के वो दिया सब को उजाला दे l

साथ दीप माला के फूलों से रंग रंगोली रचाएँ हैं ll 

६-२-२०२४ 

 

बंदगी खुदा की रूह को पावन कर गई l

दिलों दिमाग में चैन और सुकूं भर गई ll

 

सीखकर जीवन जीने का सही ढंग लो l 

साथ सत्संग के जिंन्दगी सभल गई ll

 

मन का दर्पण साफ़ हो गया बच्चों जैसा l

दुनिया में आने के सही माइने समज गई ll

 

मिट्टी के तन को पारसमणि ने छुआ l

सच्चई की राह से आत्मा संवर गई ll

 

पूजा व् आराधना की हर साँस में तो  l

आत्मज्ञान होने से दया छलक गई ll

७-२-२०२४ 

 

नये युग का निर्माण होने जा रहा है l

प्रगति के पंथ को बोने जा रहा है ll

 

रोज रोज नव नव आविष्कार करके l

कदम से क़दम संजोने जा रहा है ll

 

अंहिसा और अंधविश्वास को छोड़ l

गुलों को चमन में पिरोने जा रहा है ll

 

खिलने ओ खिलाने की ख्वाहिश में l

अपनों से वफ़ा निभाने जा रहा है ll

 

घूंट न जाए साँस यू जातियों में l

दिलों से रंजिशें मिटाने जा रहा है ll

८-२-२०२४ 

 

प्यार का मकरंद पिलाते रहो l

दिलों से नफरते मिटाते रहो ll

 

मनमोहक मुस्कराहट सजाकर l

कुलों सा हँसना सिखाते रहो ll

 

ज़िंन्दगी बहुत ही खूबसूरत हैं ये l

स्वयं को अह्सास दिलाते रहो ll

 

खुशबु की तरह महकते रहना l

साथ कलियों वक्त बिताते रहो ll

 

कुछ साथ नहीं लेके जाने वाले l

बस अपना किरदार निभाते रहो ll

९-२-२०२४ 

 

क़ायनात में बसंत बहार आई हुईं हैं l

सरसों की पीली चादर बिछाई हुईं हैं ll

 

फिझाओमें जवानी देख बुलबुल ने l

मधुर आवाज में ग़ज़ल गाई हुईं हैं ll

 

ऋतुओ की रानी लाई आमों में बोर l

डालीओ ने नव पत्तियाँ पाई हुईं हैं ll

 

जोशे निशातो की हवा यू चली कि l

आलम में सुहानी रंगते लाई हुईं हैं ll

 

नवल पल्लवमय है मंजरी-मंजुलता l

हर ह्रदय में प्रफुल्लिता छाई हुईं हैं ll

१०-२-२०२४ 

 

क़ायनात का सबसे खूबसूरत एहसास है प्रेम l

मुहब्बत में दौनों के मुकम्मल जज्बात है प्रेम ll

 

एक-दूसरे के गहरे प्यार में डूबे हुए प्रेमीओके l

दिल के चैन और सुकून का खयालात है प्रेम ll

 

आँखों की नमी में पनाह मिल जाती है तबसे l

दौनोंके इश्क़की भावनाओंका तिजारात है प्रेम ll

 

अतुल शक्ति संचार के साथ अलौकिक सुख के l

जन्मोजन्म से दोनो रूहों की मुलाकात है प्रेम ll

 

मीठे प्यार से प्रीत के बंधन में खुश मिजाज l

सच्चे रिश्तों की अनुभूति की कमालात है प्रेम ll 

११-२-२०२४ 

 

पहली मुलाकात का वो पल याद आ गया l

मुहब्बत की नज़रो का तीर साथ आ गया ll

 

कोशिश भी न की हाथों को छुड़ाने की वो l

महकता महेंदी वाला हसीन हाथ आ गया ll

 

आँखों में ख्वाबों की बरसात हुईं हैं आज तो l

चांदनी रात में जज़्बाती सुरीला राग आ गया ll

 

इश्क़ के आने की आहटें महसूस हुईं और l

क़ायनात को हरा भरा करने फाग आ गया ll

 

याद दिल के दरवाजे को दस्तक दे रहीं तो l

कमी का एहसास होने से भाग आ गया ll

१२-२-२०२४ 

 

माघ यौवन छांट रहा है फ़िर भी बौर अभी नहीं आया l

प्रकृति को सम्भालने वाला दौर अभी नहीं आया ll

 

संवेदन, करुणा,दया भूलके मानव शेर बना फिरता l

चारों ओर संकट है छाया पर गौर अभी नहीं आया ll

 

अभी भी थोड़ी सी मानवता बची हुई है दुनिया में l

दानवता की हद है वहाँ तक तौर अभी नहीं आया ll

१३-२-२०२४ 

 

बसंत की बेला आई आओ सपनों के गीत 

सुनाऊँ l 

हाथों में हाथ लेकर प्यारा सा गीत गुन गुनाऊँ ll   

 

भीतर की भावनाओ के शब्दों को कविता में लिखके l

सोए हुए तारों पर वासंती साज ओ सूर को जगाऊँ ll

 

रूठे हुई साजन को महफ़िल में खुले आम बुलाऊंगा l

हार नहीं मानूँगा कभी भी आज कसमे देकर मनाऊँ ll

 

बाद मुद्दतों के क़ायनात को हरा भरा करने आ रहे हैं l

स्वागत को दिल की दुनिया को अरमानो से सजाऊँ ll

 

ख्वाबों से भरे दिल का शोर ख़त्म करने के लिए l

जी चाहता है पहाङों पर जाकर नाम ज़ोर से पुकाऊँ ll

१४-२-२०२४ 

 

नज़रों से भावों का झरना छलक रहा है l

प्यारकी बौछारसे दिवाना बहक रहा है ll

 

दिल का रोग लगा दिया जाम ए नज़र ने l

प्यास दिलोंजान की बुझाने तड़प रहा है ll

 

दरअसल सुना है बासंती खिली है इश्क़ पे l

कई सर्दियों से प्यारी सुरत तरस रहा है ll

 

इन्द्रधनुष सा हो गया है मन का आलम l

बाहों में समाने का ख्याल पनप रहा है ll

 

सखी करवट मौसम ने यू ली है कि आज l

भीगी सी आंखों से प्यार बरस रहा है ll

१५-२-२०२४ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह